हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 152 ☆ यह अपना  नूतन वर्ष है… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 152 ☆

यह अपना  नूतन वर्ष है… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

(भारतीय नववर्ष विक्रम संवत 2080 के अवसर पर भारतीय नूतन वर्ष पर कोटिशः मंगलकामनाएं)

शस्य श्यामला धरती पर

हरषे नर्तन की शहनाई

तब अपना नूतन वर्ष है

मंद-सुगंध चले पुरवाई

तब अपना नूतन वर्ष है।।

 

यह सर्द कुहासा छँटने दो

रातों का पहरा हटने दो

धरती का रूप निखरने दो

फागों के गीत थिरकने दो

कुछ करो प्रतीक्षा और अभी

प्रकृति को दुल्हन बनने दो

खुशियों में गाए अमराई

तब अपना नूतन वर्ष है।

 

मंद-सुगंध चले पुरवाई

तब अपना नूतन वर्ष है।।

 

प्रतिप्रदा चैत की आने दो

धरती को सुधा लुटाने दो

चहुँदिश को ही महकाने दो

तन-मन में फाग सुनाने दो

यह कीर्ति सदा है आर्यों की

यह आर्यावर्त की प्रीत रही

जब धरा दुल्हन-सी मुस्काई

तब अपना नूतन वर्ष है।

 

मंद-सुगन्ध बहे पुरवाई

तब अपना नूतन वर्ष है।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #174 – परसों वाली रही न बातें… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता  “परसों वाली रही न बातें……”)

☆  तन्मय साहित्य  #174 ☆

☆ परसों वाली रही न बातें… 

बीता वक्त

साथ में बीत गए

स्वर्णिम पल

मची हुई

स्मृतियों में हलचल

 

शिथिल पंख

अनगिन इच्छाएँ

कैसे अब

उड़ान भर पाएँ,

आसपास

पसरे फैले हैं

लगा मुखौटे

छल बल के दल।

 

परसों वाली

रही न बातें

अन्जानी सी

अन्तरघातें,

सद्भावी नहरें

हैं खाली

हुआ प्रदूषित

नदियों का जल।

 

ऋतु बसन्त

अब भी है आती

होली, दीवाली

शुभ राखी,

परंपरागत

करें निर्वहन

पर न प्रेम वह

रहा आजकल।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नव संवत्सर आ गया… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आप प्रत्येक मंगलवार  उनकी नवीन रचाएं आत्मसात कर सकते हैं। नव संवत्सरआगमन पर आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण रचना  “नव संवत्सर आ गया…। 

☆  कविता ☆ नव संवत्सर आ गया… ✍

नव संवत्सर आ गया, खुशियाँ छाईं द्वार ।

दीपक द्वारे पर रखें, महिमा अपरंपार ।।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को, आता है नव वर्ष।

धरा प्रकृति मौसम हवा, सबको करता हर्ष।।

संवत्सर की यह कथा, सतयुग से प्रारम्भ।

ब्रम्हा की इस सृष्टि की, गणना का है खंभ।।

नवमी तिथि में अवतरित, अवध पुरी के राम ।

रामराज्य है बन गया, आदर्शों का धाम ।।

राज तिलक उनका हुआ, शुभ दिन थी नव रात्रि।

राज्य अयोद्धा बन गयी, सारे जग की धात्रि ।।

मंगलमय नवरात्रि को, यही बड़ा त्योहार।

नगर अयोध्या में रही, खुशियाँ पारावार।।

नव रात्रि आराधना, मातृ शक्ति का ध्यान ।

रिद्धी-सिद्धी की चाहना, सबका हो कल्यान ।।

चक्रवर्ती राजा बने, विक्रमादित्य महान ।

सूर्यवंश के राज्य में, रोशन हुआ जहान ।।

बल बुद्धि चातुर्य में, चर्चित थे सम्राट ।

शक हूणों औ यवन से,रक्षित था यह राष्ट्र।।

स्वर्ण काल का युग रहा, भारत को है नाज ।

विक्रम सम्वत् नाम से, गणना का आगाज ।

मना रहे गुड़ि पाड़वा, चेटी चंड अवतार ।

फलाहार निर्जल रहें, चढ़ें पुष्प के हार।।

भारत का नव वर्ष यह, खुशी भरा है खास।

धरा प्रफुल्लित हो रही, छाया है मधुमास।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 60 ☆ ग़ज़ल – प्रीत का हिंडोला… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण ग़ज़ल – “प्रीत का हिंडोला”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 60 ✒️

?  ग़ज़ल – प्रीत का हिंडोला… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

प्रीत के हिंडोले में

झूलती जवानी है ।

फूल हैं क़दमों तले

निगाहें आसमानी हैं ।।

 

मुझे रोक ना सकेगी दुनियां

रूढ़ियों की जंज़ीरों से।

मैं बहती हुई नदियां हूं

भावना तूफ़ानी है ।

प्रीत —————–।।

 

झर – झर – झरते – झरने

कल-कल करतीं नदियां ।

कर्मरत रहना ही

सफ़ल ज़िदगानी है ।

प्रीत —————–।।

 

चांदी की हों रातें

सोने भरे हों दिन ।

ऐसा स्वर्ग धरती में

हमने लाने की ठानी है ।

प्रीत —————–।।

 

स्वप्नों के पंख पसारे

क्षितिज के पार हम चलें ।

रात भीगी – भीगी है

भोर धानी – धानी है ।

प्रीत —————–।।

 

नेह के आलिंगन में

बांध लो तुम मुझको ।

वर्तमान से वंचित होना

निरीह नादानी है ।

प्रीत —————–।।

 

मेरा प्यार एक इबादत है

मेरे प्यार में शहादत भी है ।

हर हाल में सलमा को

वफ़ा ही निभानी है ।

प्रीत —————–।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘गौरैया’… श्री सूबेदार पांडेय (भावानुवाद) – ‘Sparrow…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Subedar Pandey’s Hindi poem “~ गौरैया ~.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री सुबेदार पांडेय  “आत्मानंद” जी की मूल रचना

? गौरैया दिवस पर विशेष – गौरैया – ??

मेरे घर के मुंडेर पर

   गौरैया एक रहती थी

      अपनी भाषा मे रोज़ सवेरे

          मुझसे वो कुछ कहती थी

 

चीं चीं चूं चूं करती वो

   रोज़ माँगती दाना-पानी

      गौरैया को देख मुझे

           आती बचपन की याद सुहानी…

 

नील गगन से झुंडों में

  वो आती थी पंख पसारे

     कभी फुदकती आँगन आँगन,

          कभी फुदकती द्वारे द्वारे

 

उनका रोज़ देख फुदकना,

   मुझको देता  सुकूँ रूहानी

      गौरैया को देख मुझे

        आती बचपन की याद सुहानी…

 

चावल के दाने अपनी चोंचों में

   बीन बीन ले जाती थी

      बैठ घोसलें के भीतर वो

         बच्चों की भूख मिटाती थी

    

सुनते ही चिड़िया की आहट

    बच्चे खुशियों से चिल्लाते थे

       माँ की ममता, दाने पाकर

          बच्चे निहाल हो जाते थे

       

गौरैया का निश्छल प्रेम देख

     आँखे मेरी भर आती थी

        जाने अनजाने माँ की मूरत

           आँखों मे मेरी, समाती थी

             

माँ की यादों ने  उस दिन

    खूब मुझे रुलाया था।

       उस अबोध नन्ही चिड़िया ने

            मुझे प्रेम-पाठ पढ़ाया था

    

नहीं प्रेम की कोई कीमत

       और नहीं कुछ पाना है

         सब कुछ अपना लुटा लुटाकर

              इस दुनिया से जाना है

 

प्रेम में जीना, प्रेम में मरना

   प्रेम में ही मिट जाना है,

      ढाई आखर प्रेम का मतलब

         मैंने गौरैया से ही जाना है!

© सुबेदार पांडेय  “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

?~ Sparrow…~ ??

At the parapet of my house

There used to live a sparrow

Everyday in morning, she’d tell

me something in her language

 

Chirping ‘chee-chee’ ‘choo-choo’

would she demand food grains

Looking at the lovely sparrow

I’d remember my  childhood…

 

With her flock, she would

descend from the blue sky

Sometimes jumping in patio

Sometimes hopping in yard

 

Seeing her flitter every day

Would give me spiritual bliss

Looking at the lovely sparrow

I’d remember my childhood…

 

Picking rice grains in her beak

She would take them away

Feeding her chics in the nest

Erasing their insatiable hunger

 

The chics would rejoice always

Waiting eagerly for mother’s arrival

With food and her endearment 

Chics would exhilarate madly…

 

Seeing the sparrow’s selfless love

Would make my eyes moist

Unknowingly my mother’s idol

would emerge in glistened eyes

 

Mother’s memories that day

Made me cry inconsolably

That innocent little bird

Taught me the lesson of love

 

Love is priceless, says adage

There’s more to gain; Coz

Everything is to be left behind

While going from this world…

 

Live in love, die in love

Fade in love, is all I learnt

True meaning of selfless love

I learnt from the sparrow only!

~Pravin

English translation: Pravin Raghuvanshi

Original Hindi: Subedar Pandey “Atmanand”

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विश्व कविता दिवस विशेष – शिलालेख ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – विश्व कविता दिवस विशेष – शिलालेख ??

आज वैश्विक कविता दिवस है। यह बात अलग है कि स्वतः संभूत का कोई समय ही निश्चित नहीं होता तो दिन कैसे होगा? तब भी तथ्य है कि आज यूनेस्को द्वारा मान्य अधिकृत विश्व कविता दिवस है।

बीते कल गौरैया दिवस था, आते कल जल दिवस होगा। लुप्त होते आकाशी और घटते जीवनदानी के बीच टिकी कविता की सनातन बानी। जीवन का सत्य है कि पंछी कितना ही ऊँचा उड़ ले, पानी पीने के लिए उसे धरती पर उतरना ही पड़ता है। आदमी तकनीक, विज्ञान, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में कितना ही आगे चला जाए, मनुष्यता बचाये रखने के लिए उसे लौटना पड़ता है बार-बार कविता की शरण में।

इसी संदर्भ में कविता की शाश्वत यात्रा का एक चित्र प्रस्तुत है।

कविता नहीं मांगती समय

न शिल्प विशेष

न ही कोई साँचा

जिसमें ढालकर

36-24-36

या ज़ीरो फिगर गढ़ी जा सके,

कविता मांग नहीं रखती

लम्बे चौड़े वक्तव्य

या भारी-भरकम थीसिस की,

कविता तो दौड़ी चली आती है

नन्ही परी-सी रुनझुन करती

आँखों में आविष्कारी कुतूहल

चेहरे पर अबोध सर्वज्ञता के भाव,

एक हाथ में ज़रा-सी मिट्टी

और दूसरे में कल्पवृक्ष के बीज लिये,

कविता के ये क्षण

धुंधला जाएँ तो

विस्मृति हो जाते हैं,

मानसपटल पर उकेर लिये जाएँ तो

शिलालेख कहलाते हैं..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित आपदां अपहर्तारं साधना गुरुवार दि. 9 मार्च से श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च तक चलेगी।

💥 इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना तो साथ चलेंगी ही।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 74 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 74 – मनोज के दोहे… ☆

1 क्षितिज

क्षितिज नापने उड़ चला, पंछी नित ही भोर।

शाम देख फिर आ गया, सुनने कलरव शोर ।।

वायुयान में बैठ कर, उड़े कनाडा देश।

अंतहीन इस क्षितिज का, समझ न पाया वेश।।

2 भूषित

धरा वि-भूषित वृक्ष से, करती है शृँगार।

प्राणवायु देती सुखद, जीवन हर्ष अपार ।।

भूषित प्रकृति संपदा, दर्शन का उन्मेश ।

पर्यटक आते देखने, मिटते मन के क्लेश।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 131 – भटक रहा है बंजारे सा… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – भटक रहा है बंजारे सा…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 131 – भटक रहा है बंजारे सा…  ✍

व्याप गई है ऐसी जड़ता, जैसी कमी न व्यापी ।

मौसम का मन बदल गया है

करता है मनमानी

ऊपर से तुम शह देते हो

लगे मुझे हैरानी।

अपने पाँव देख चुप बैठे, जैसे कोई कलापी।

 

यादों की वंशी बजती थी

वह है बात पुरानी

अता पता कुछ नहीं याद का

शायद कहीं हिरानी।

घटनाओं का क्रम अटूट है, लगता जीवन शापी।

 

बात कौन सोची थी मैंने

सोच सोच कर हारा

ठीक नहीं हैं मन के लच्छन

निकल गया आवारा।

 

भटक रहा है बंजारे सा, राह सड़क सब नापी।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 130 – “ढलते सूरज में दिखती है…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  “ढलते सूरज में दिखती है)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 130 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

ढलते सूरज में दिखती है

सरक गया सिर से

रेशम की साडी का कोना

कोई खिड़की पर बैठा

करता जादू टोना

 

उसकी भूखी आँत

उलहना देती सी आखें

बहुत फड़फडाता उडने

को श्वेत श्याम पाँखें

 

उसके शब्दों में गहरी

पीडा निवास करती

आखिर क्यों कर कडुवाहट

का वह है सिनकोना

 

खिड़की पर बाँसुरी

बजाना उसका क्यों भारी

लोग समझते उसको

है यह शापित बीमारी

 

सरगम के सब तार

लिपट कहते बंसी धुन में

छलना रेशम को आता है

तिस पर क्या रोना

 

ढलते सूरज में दिखती है

उस को परछाईं

प्रिय की किसी सुशोभन

अनुपम मुद्रा की नाईं

 

चेहरे पर नैराश्य और

छाती में  शून्य रहा

बस अटके है प्राण

अधर में दोना- दो- दोना

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

11-03-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अपरंपार ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – अपरंपार ??

नश्वर आशंकाएँ खेत रहीं,

शाश्वत आकांक्षाएँ बनी रहीं,

ठगा-सा तकता रहा संसार,

चलो मिलें फिर देह के पार..!

© संजय भारद्वाज 

10.11am, 3.6.22

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित आपदां अपहर्तारं साधना गुरुवार दि. 9 मार्च से श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च तक चलेगी।

💥 इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना तो साथ चलेंगी ही।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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