हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #172 ☆ कविता – पाती तेरे नाम… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता  पाती तेरे नाम।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 172 – साहित्य निकुंज ☆

☆ कविता – पाती तेरे नाम… ☆

आज लेखनी लिख रही, अपने मन के भाव।

अंतर्मन में हो रहा, बस तेरा अभाव।।

हलचल मन में हो रही, आ जाओ तुम पास।

जीना दूभर हो गया, है मिलने की आस।।

ठंडक मन में  है नहीं , उठता है बस ज्वार।

तुझ तक हमें पहुंचना, मानेंगे ना हार।।

सोच रही हूँ आज मैं, मिलेगा अब जवाब।

बेताबी अब हो रही, आओ करें हिसाब।।

कहना तुमसे बहुत है, पाती तेरे नाम।

कैसे तुझसे मैं कहूँ, तुम  हो मेरे राम।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #159 ☆ “नटखट नंद गोपाल…” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी एक पूर्णिका – “नटखट नंद गोपाल। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 159 ☆

☆ “नटखट नंद गोपाल…” ☆ श्री संतोष नेमा ☆

बजी बाँसुरी प्रेम की, हर्षित है बृजधाम

नाचें बृज की गोपियाँ, बोलें जय घनश्याम

ले पिचकारी चल पड़ीं, रखकर संग अबीर

कृष्ण मिलन की लालसा, होता हृदय अधीर

होली की हुड़दंग में, हुए सभी मदहोश

रंग प्रेम का चढ़ गया, आया सब को जोश

श्याम रंग राधे रँगी, हुईं श्याम खुद आप

रंग न दूजो चढ़ सके, समझो प्रेम प्रताप

बरसाने के रास्ते, हुए बहुत ही तंग

ग्वाल,गोपियाँ चल पड़ीं, लिए हाथ में रंग

होली राधेश्याम की, हिय में भरे उमंग

दिखते राधे-कृष्ण भी, एक रूप इक रंग

बरजोरी करने लगे, श्याम राधिके संग

राधा ऊपर से कहें, करो न हमको तंग

पिचकारी ले प्रेम की, नटखट नंद गोपाल

राधा पीछे भागते, बदली उनकी चाल

फागुन प्यारा लग रहा, देख बिरज की फाग

सबके मन “संतोष” है, बढ़ा प्रेम अनुराग

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ग़ज़ल – तुम्हारे नूर का हर अश्क…☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

डॉ निशा अग्रवाल

☆ ग़ज़ल – तुम्हारे नूर का हर अश्क… ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

जिधर देखूं उधर जलवा, नज़र तेरा ही आता है

तुम्हारे नूर का हर अश्क, मेरी नजरों को भाता है।

 

करूं दीदार जब तेरा, मुकद्दर जगमगाता है

तेरे ही दर पे आने को , मेरा मन कसमसाता है।

 

तेरे रुतवे जवानी के, ये दुनियां जानती सारी

तेरा बस नाम सुनकर ही, धड़कती धड़कनें मेरी।

 

नशा तेरा चढ़ा ऐसा कि झूमे हर पल ये अंखियां

बुलाना पास तुम इसको, तनहा कटे ना जब रतियां।

 

हुए मदहोश आंखों से, नतीजा जानता जग है

पिलाई रात भर लेकिन , मेरा रब जानता सब है।

 

रुकेंगे न कदम पीछे, राह दुर्गम भले ही हो

सजाए साथ सपनों को, पूरा करना जानता है।

 

हुई न अब तलक रुसवा, दिल मगरुर था लेकिन

तुम्हारी याद में हर पल, मेरा ये दिल तड़पता है।

©  डॉ निशा अग्रवाल

(ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका)

एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री

जयपुर ,राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आओ संवाद करें ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – आओ संवाद करें ??

विवादों की चर्चा में 

युग जमते देखे,

आओ संवाद करें,

युगों को

पल में पिघलते देखें..!

मेरे तुम्हारे चुप रहने से 

बुढ़ाते रिश्ते देखे,

आओ संवाद करें,

रिश्तो में दौड़ते बच्चे देखें..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित आपदां अपहर्तारं साधना गुरुवार दि. 9 मार्च से श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च तक चलेगी।

💥 इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना तो साथ चलेंगी ही।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 151 ☆ बाल कविता – सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 151 ☆

☆ बाल कविता – सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

राधाकृष्णन थे गुरू , अदभुत उन का ज्ञान।

पाँच सितंबर जन्मदिन, करे देश सम्मान।।

 

श्रेष्ठ विचारक, वक्ता , रखा दार्शनिक ज्ञान।

उत्कृष्ट लेखनी से बने , मानव एक महान।।

 

ईश्वर के प्रिय भक्त थे, बाँटा जग को प्यार।

सत्य बोलकर ही सदा, कभी न मानी हार।।

 

शिक्षक बनकर देश का, सदा बढ़ाया मान।

किया समर्पित स्वयं को, बाँटा सबको ज्ञान।।

 

प्रतिभा की सदमूर्ति थे, नहीं किया अभियान।

सदा पुण्य करते रहे, और बढ़ाई शान।।

 

लड़े सदा अज्ञान से, किया दूर अँधकार।

मिटा कुरीति ज्ञान से, किया सदा उद्धार।।

 

खुशी, प्रेम सत बाँटकर, करें सभी हम याद।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन, सदा रहे निर्विवाद।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #173 – दूर जड़ों से हो कर… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है होली पर्व पर आपकी एक भावप्रवण कविता  दूर जड़ों से हो कर…”)

☆  तन्मय साहित्य  #173 ☆

☆ दूर जड़ों से हो कर… 

घर छूटा, परिजन छूटे

रोटी के खातिर

एक बार निकले

नहीं हुआ लौटना फिर।

 

वैसे, जो हैं वहाँ

उन्हें भी भूख सताती

उदरपूर्ति उनकी भी

तो पूरी हो जाती,

घी चुपड़ी के लिए नहीं

वे हुए अधीर,

एकबार निकले…

 

दूर जड़ों से होकर

लगा सूखने स्नेहन

सिमट गए खुद में

है लुप्त हृदय संवेदन,

चमक-दमक में भटके

बन कर के फकीर,

एकबार निकले…

 

गाँवों सा साहज्य,

सरलता यहाँ कहाँ

बहती रहती है विषाक्त

संक्रमित हवा,

गुजरा सर्प, पीटने को

अब बची लकीर,

एकबार निकले…

 

भीड़ भरे मेले में

एक अकेला पाएँ

गड़ी जहाँ है गर्भनाल

कैसे जुड़ पाएँ,

बहुत दूर है गाँव

सुनाएँ किसको पीर,

एकबार निकले

नहीं हुआ लौटना फिर।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “फितरत” – ☆ डॉ रेनू सिंह ☆

(ई-अभिव्यक्ति में प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. रेनू सिंह जी का हार्दिक स्वागत है। आपने हिन्दी साहित्य में पी एच डी की डिग्री हासिल की है। आपका हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी और उर्दू में भी समान अधिकार है। एक प्रभावशाली रचनाकार के अतिरिक्त आप  कॉरपोरेट वर्ल्ड में भी सक्रिय हैं और अनेक कंपनियों की डायरेक्टर भी हैं। आपके पति एक सेवानिवृत्त आई एफ एस अधिकारी हैं। अपनी व्यस्त दिनचर्या के बावजूद आप  साहित्य सेवा में निरंतर लगी रहती हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना  “फितरत।)

? “फितरत” डॉ. रेनू सिंह ?

ज्वालामुखी के ढेर पर बैठा है आदमी,

 फट जाये कौन से पल जाने न आदमी,

मंसूबे तो बनाता है पर, पल की ख़बर नहीं,

 नाक़ामियों पे अश्क़ बहाये है आदमी,

जीवन का फ़लसफ़ा ही समझे न ये कभी,

कि कोई न साथ होगा जब, जाएगा आदमी,

देखे हज़ार ख़ुशियाँ, देखे हज़ारों ग़म

फिर भी न रंज-ओ-ग़म से उबरे है आदमी,

चमका कभी क़िस्मत से जो क़िस्मत का सितारा,

तो चराग़ इबादत के बुझाये है आदमी,

देता है सदा तंज़ जो औरों को हर क़दम,

खुद अपने ग़रीबों में क्यूँ झाँके न आदमी,

 दीं हैं हज़ार नेमतें क़ुदरत की ख़ुदा ने फिर,

 फ़र्ज़-ओ-करम से पीठ क्यूँ फेरे है आदमी

उठाये है रोज़ क़समें ईमान धरम की,

 पर ईमान कर सरहाना सो जाये आदमी,

इंसान काम आए है इंसान के मगर क्यूँ ,

इंसान का ही ख़ून बहाये है आदमी,

समझाये कोई इसको समझाये या ख़ुदा,

ख़ुद को न ऐसे गर्त में बिखराये आदमी।

© डा. रेनू सिंह 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सही ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – सही ??

“मेरे जैसा सूरमा कोई नहीं।”

मैंने कहा, “सही।”

“मेरे जैसा एक मैं ही।”

मैंने कहा, “सही।”

“तब सूरमाओं की यह फ़ौज कहाँ से निकल पड़ी?”

“तुम से कमतर या बेहतर होने का हक़ रखते हैं सभी।”

उसने कहा, “सही।”

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित आपदां अपहर्तारं साधना गुरुवार दि. 9 मार्च से श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च तक चलेगी।

💥 इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना तो साथ चलेंगी ही।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 59 ☆ ग़ज़ल – फ़ागुन में रंग… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण ग़ज़ल – “फ़ागुन में रंग”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 59 ✒️

?  ग़ज़ल – फ़ागुन में रंग… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

फ़ागुन में रंगों की नज़ाकत न पूछिए।

दिल से मिले हैं दिल नफ़ासत न पूछिए।।

अलसाए हुए तन की क्या मिसाल दें।

बिजली भरी नज़र की ये हालत नपूछिए।।

होंठ हैं टेसू से गालों पे रंग गुलाल ।

अल्लाह रे आज हुस्न की रंगत न पूछिए।।

बौरा गए हैं आम भी कोयल के भाग से।

इस फ़ागुनी फ़िज़ा की शरारत न पूछिए।।

रंगों की ये फ़ुहार तन मन भिगो गई।

साड़ी के भीगने की अलामत न पूछिए।।

दिनभर की थकावट को पहलू में साजन की।

सलमा गई है भूल कैसे न पूछिए।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “जिंदगी एक सवाल” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ कविता ☆ “जिंदगी एक सवाल” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

जिंदगी कभी कुछ देती नही है

जिंदगी बस सवाल खड़े करती है

अगर खोज पाओ सही जवाब

जन्नत अपने आप खुल जाती है ।

 

ये ऐसा क्यों है?

इसमें ऐसा क्या है?

ये मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है?

इनका भी एक जवाब होता है ।

 

जब लगे मुझमें कमी क्या है?

यही जवाब की शुरुआत होती है

हमेशा बड़ा रखिये  दिल को

जवाब अक्सर लंबा होता है ।

 

जो हो खोजकर्ता खुद का

जवाब हो सरल उसका

जो हो वैज्ञानिक दूसरों का

लंबा हो सवाल उसका ।

 

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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