हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #143 ☆ सन्तोष के दोहे…चाँद ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “सन्तोष के दोहे…चाँद। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 143 ☆

 ☆ सन्तोष के दोहे…चाँद ☆ श्री संतोष नेमा ☆

बाँटे शीतल चाँदनी, दाग रखे खुद पास

रोशन करता जहां को, किये बिना कुछ आस

 

लिखते कवि,शायर सभी, देकर उपमा खूब

सदा देखते चाँद में, सपनों का महबूब

 

करती खूब शिकायतें, दे देकर संदेश

बिरहन ताके चाँद को, पिया गए परदेश

 

ईद दिवाली, होलिका,  करवा का त्योहार

सभी निहारें चाँद को, विनती करें पुकार

 

तनहा तारों में रहे, किंतु अलग पहचान

घटता, बढ़ता समय से, सदा चाँद का मान

 

हर क्रम में है एक तिथि, एक अमावस रात

आभा पूर्ण बिखेरता,दे पूनम सौगात

 

सही धर्म निरपेक्षता, सिखलाता सारंग

सबको ही प्यारे लगें, विविध कला के रंग

 

लहरें सागर में उठें, आते हैं तूफान

संचालित ये चन्द्र से, जाने सकल जहान

 

सूर्य,चन्द्र की चाल ही, ज्योतिष का आधार

ग्रहण सभी हम मापते, ग्रह-नक्षत्र विचार

 

साझा करते चाँद से, व्याकुल मन की बात

झर कर कहती चाँदनी,काबू रख जज़्बात

 

चंदा मामा ले चले, तारों की बारात

हर्षित होता बालमन, देख दूधिया रात

 

शरद पूर्णिमा यामिनी, सुंदर दिखे शशांक

सुधा बाँटता सभी को,रहता याद दिनांक

 

देख सँवरती यामिनी,रचा कृष्ण ने रास

षोडस कला बिखेर कर,शशि उर है उल्लास

 

उज्ज्वल शीतल चाँदनी, उजियारे के गीत

कम होती रवि की तपन, दस्तक देती शीत

 

मन को लगें लुभावने, सभी चाँद के रूप

देते हैं “संतोष” ये, मिलती ख़ुशी अनूप

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विधान ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री महालक्ष्मी साधना सम्पन्न हुई 🌻

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – विधान ??

चाँदनी के आँचल से

चाँद को निरखते हैं,

इतने विधानों के साथ

कैसे लिखते हैं..?

सीधी-सादी कहन है मेरी

बिम्ब, प्रतीक,

उपमेय, उपमान

तुमको दिखते हैं..!

© संजय भारद्वाज

21.10.20, रात्रि 10:09

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 133 ☆ एक दीया जलाना है… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 133 ☆

☆ एक दीया जलाना है… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

एक दीया जलाना है

          प्यारमयी प्रकाश का

एक दीया जलाना है

         अंधकार के विनाश का

 

एक दीया जलाना है

         उपकार का विश्वास का

एक दीया जलाना है

          सत्कार रास  हास का

 

एक दीया जलाना है

          अपने वीर जवानों का

एक दीया जलाना है

          सच्चे प्रिय इंसानों का

 

एक दीया जलाना है

          नफरत और भेद मिटाने का

एक दीया जलाना है

         हिंदी राष्ट्र भाषा बनाने का

 

एक दीया जलाना है

           मित्रों में प्रेम बढ़ाने का

एक दीया जलाना है

           मन के शत्रु हटाने का

 

एक दीया जलाना है

            मन को गीत सुनाने का

एक दीया जलाना है

           उपवन बाग लगाने का

 

एक दीया जलाना है

          धरती को स्वर्ग बनाने का

एक दीया जलाना है

           सपनों में खो जाने का

 

एक दीया जलाना है

         आलस को राह दिखाने का

एक दीया जलाना है

          अच्छी सोच बनाने का

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#155 ☆ कविता – जीवन क्या है? ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण एवं विचारणीय कविता “जीवन क्या है?”)

☆  तन्मय साहित्य # 155 ☆

☆ जीवन क्या है? ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

सुखद समुज्ज्वल दूध

दूध में जब खटास का

दुःख जरा सा भी मिल जाए

धैर्य रखेंगे तो फिर

वही दूध परिवर्तित

हो कर शुद्ध दही बन जाए,

गहरे मंथन से फिर

रूप बदलता है दधि

मक्खन हो कर तपे

खूब तप कर

गुणकारी घी बन कर के

स्वाद बढ़ाए

बस ऐसे ही

जीवन में दुख की खटास भी

चिंतन मनन धैर्य से

हमको सुखी बनाए

बिना दुखों के स्वाद

कहाँ सुख का मिल पाए।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 45 ☆ गीत – भाई दूज… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण गीत “भाई दूज…”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 45 ✒️

? गीत – भाई दूज…  ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

ख़ूब मनाई दिवाली अब ,

भाई दूज की बारी है ।

बहनें करें भाई को टीका ,

इस पर दुनिया वारी है ।।

 

अमावस्या का घना तिमिर है ,

दीपावली की है शाम ,

जश्न मने, हो आतिशबाज़ी ,

सबके घर ख़ुशियां तमाम ,

दीपों से लेकर प्रकाश ,

राह आसान हमारी है ।

बहनें —————————— ।।

 

कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया ,

इसके बाद आ जाती है ,

संग जन्में पले भाई बहन

की याद बहुत दिलाती है ,

भारतीय संस्कृति का पर्व है ,

बाक़ी सब त्यौहारी है ।

बहनें —————————– ।।

 

जब हमारे मन का प्रकाश ,

बाहर तक आ जाएगा ,

अन्दर बाहर रोशन होगा ,

मार्ग हमें मिल जाएगा ,

सारे रिश्तो में सुंदर

भाई बहन की किलकारी है ।

बहनें —————————– ।।

 

मेल मिलाप को समय देना ,

है महत्वपूर्ण व विशेष ,

संसार की कल्याण कामना

हो पर्वों का शुभ संदेश ,

समय के साथ सोच बदलना ,

सलमा बेहद हितकारी है ।

बहनें —————————– ।।

 

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “कहीं एक रहती थी …” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ कविता  ☆ “कहीं एक रहती थी …” ☆ श्री कमलेश भारतीय  

कहीं एक रहती थी

एक आवारा सी लड़की

किसी की न सुनती

किसी का न मानती

बस अपने ही दिल की सुनती

और दिल की ही करती

कहीं एक रहती थी

एक ऐसी लड़की

जो धरती पर पांव रख कर भी

आसमान छू लेती

धरती आकाश को मिला देती

पर लोगों की नज़रों में आवारा सी लड़की

वही लड़की जो

छुईमुई न थी

उसकी आंखें न सिर्फ सपने देखती थीं

बल्कि सच करने की उड़ान भी थी उसमें

कहीं कोई रहती थी

आवारा सी लड़की

जो चुलबुली थी

पर स्वाभिमान से जब खड़ी होती

तो क्या से क्या हो जाती ।वह आवारा सी लड़की

समाज की नजरों की परवाह न करती

कहीं कोई रहती है क्या कोई ऐसी

आवारा सी लड़की,,,,,?

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 56 – मनोज के दोहे…. ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  द्वारा आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को श्री मनोज जी की भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं।

✍ मनोज साहित्य # 56 – मनोज के दोहे…. दीपावली 

दीपक

मानवता की ज्योत से, नव प्रकाश की पूर्ति।

सबके अन्तर्मन जगे, मंगल-दीपक-मूर्ति।।

 

वर्तिका

जले वर्तिका दीप की, फैलाती उजियार।

राह दिखाती जगत को, संकट से उद्धार।।

 

दीवाली

रात अमावस की रही, घिरा तमस चहुँ ओर।

राम अयोध्या आ गए, दीवाली की भोर।।

 

दीवाली की रात में, बैठा उल्लू पास ।

टुकुर टुकुर सब देखते, श्री लक्ष्मी का खास ।।

 

रजनी

रजनी का घूँघट उठा, दीपक आत्म विभोर।

जीवन साथी मिल गया , बना वही चितचोर।।

 

रंगोली

रंगोली द्वारे सजे, आए जब त्यौहार।

रंग बिरंगे पर्व सब, खुशियाँ भरें हजार।।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विचार ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री महालक्ष्मी साधना सम्पन्न हुई 🌻

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – विचार ??

मेरे पूर्ववर्तियों ने

जहाँ छोड़ा था;

उसीके आगे का अध्याय

लिख रहा हूँ मैं,

मेरे बाद के कलमकार

बढ़ायेंगे इस

अनंत ग्रंथ को आगे..,

मेरी बात

गाँठ बाँध लेना मित्र,

अखंड दीया

केवल कर्मकाण्ड में

नहीं जलता,

लेखक चाहे रहे अनाम,

विचार कभी नहीं मरता..!

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 111 – कविता – सुमित्र के दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – सुमित्र के दोहे ।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 111 – सुमित्र के दोहे ✍

दीप पर्व फिर आ गया, कहां गया था यार ।

वह तो मन में ही रहा, बाहर था अँधियार।।

आखिर कब तक रखोगे, मन में तिमिर संभाल ।

खड़ा द्वार पर उजेला, पहिनाओ जयमाल।।

तीर मारता उजाला, तो सह लो कुछ देर।

तुमने तो काफी सहा, रजनी का अँधेर।।

दीप – दीप कहते सभी, बाती भी तो बोल।

बाती ही तो कर रही, संगम ज्योति खगोल।।

दीवाली की दस्तकें, दीपक की पदचाप।

आओ खुशियां मनायें, क्यों बैठे चुपचाप।।

अंधियारे की शक्ल में, बैठे कई सवाल ।

 कर लेना फिर सामना, पहले दीप उजाल।।

कष्टों का अंबार है, दुःखों का अँधियार ।

हम तुम दीपक बनें तो, फैलेगा   उजियार।।

जितने उजले चेहरे, नहीं तुम्हारे मित्र।।

जिनकी श्यामल सूरते, संभव वही सुमित्र।।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 113 – “आदमी हूँ…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “आदमी हूँ ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 113 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “आदमी हूँ” || ☆

 

गलतफहमी नहीं

छोटी सी कमी हूँ

आदमी हूँ

 

इस सफलता के

अधूरे दौर में

बन रहा था किस

तरह सिरमौर में

 

चाँदनी को मेरा

मिलना जरूरी

चाँद को भी मैं

यहाँ पर लाजिमी हूँ

 

खिड़कियों पर हिल

रहे रुमाल ज्यों

मैं किसी उम्मीद

का फिलहाल ज्यों

 

एक अर्वाचीन

सा संकेत ले

सधा किरदार

कोई मौसमी हूँ

 

शब्द वंचित इस

बड़े  सुनसान में

अभी बाकी बचा

हूँ अनुमान में

 

लुटाता रहा

खुशियाँ यहाँ पर

तुम्हारे लिये फिर

क्यों मातमी हूँ

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

20-10-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares