हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पीड़ा, जिजीविषा और मैं..(3) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पीड़ा, जिजीविषा और मैं..(3) ? ?

मैं हूँ

सो तुम हो,

मुझ पर ही

टिका है

तुम्हारा अस्तित्व,

‘जीती रहो’ पीड़ाओ!

खेद है,

तुम्हें ‘विजयी भव’

नहीं कह सकता मैं..,

अपनी जिजीविषा को

चिरंजीव होने का आशीर्वाद

पहले ही दे चुका हूँ मैं..!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 3 अक्टूबर 2024 से नवरात्रि साधना आरम्भ हो गई है 💥

🕉️ इस साधना के लिए मंत्र इस प्रकार है-

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

देवीमंत्र की कम से कम एक माला हर साधक करें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 194 ☆ # “तेरे दरबार में…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “तेरे दरबार में…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 194 ☆

☆ # “तेरे दरबार में…” # ☆

तेरे दरबार में दुहाई है

मेरी मजबूरी खींच लाई है

 

संगी साथी सब छूट गये हैं  

मेरे अपने सब रूठ गये हैं

जो कमाये थे मैंने अब तक

वो खनकते सिक्के सब लुट गये हैं

तुझे जगाने आवाज़ लगाई है

तेरे दरबार में दुहाई है

 

मेरी आंखों के तारे खो गये हैं

भीड़ में किसी के हो गये हैं

मेरी बगिया वीरान हो गई है

मेरे कुचले अरमान सो गये हैं

तेरी शक्ति ने आस बंधाई है

तेरे दरबार में दुहाई है

 

गरीबी नाइलाज मर्ज है

दुनिया बड़ी खुदगर्ज है

ज़ख्मों पर नमक छिड़कती है

रोते-रोते यह मेरी अर्ज है

तूने लाखों की बिगड़ी बनाई है

तेरे दरबार में दुहाई है

 

क्षमा कर दे तू मेरे अवगुण

होंठ गुनगुना रहे हैं तेरी ही धुन

अश्रुओं को चढ़ाने आया हूं

मोतियों को लाया हूं चुन-चुन

अरमानों की माला पिरोकर चढ़ाई है

तेरे दरबार में दुहाई है

मेरी मजबूरी खींच लाई है  /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – इंसान तुम बस प्रेम का… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता इंसान तुम बस प्रेम का…।)

☆ कविता  – इंसान तुम बस प्रेम का… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆ 

इंसान तुम बस प्रेम का प्रतिदान बनकर के चलो,

प्रेम का आभास निज उर में सदा रखकर के चलो,

कठिनाइयों से प्यार हो, ना कष्ट का आभास हो,

मुश्किलों में मुस्कुरा, मुस्कान बनकर के चलो,

इंसान तुम बस प्रेम का…

*

राह वीराने में बनाकर, दीप तूफां में जला दो,

हर दिलों में प्यार हो प्रेम की ज्योति जला दो,

भूले बिसरे राही के हमराज बनकर के चलो,

इंसान तुम बस प्रेम का…

*

राह से कंटक हटाकर, राह पुष्पों की बना दो,

प्रेम रूपी राह में प्रीति की कलियां खिला दो,

अंधकार का अंत हो रश्मि पुंज बनकर के चलो,

इंसान तुम बस प्रेम का…

*

महक उठे रजनीगंधा सुरसौरभि का “राज” बना दो,

शांति गीत का हो गुंजन ऐसा प्यार साज बना दो,

हो उदित अनुराग, ऐसी तान बनकर के चलो,

इंसान तुम बस प्रेम का प्रतिदान बनकर के चलो..

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 207 ☆ आदि शक्ति दुर्गा वंदना ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है नवरात्रि पर्व पर विशेष आदि शक्ति दुर्गा वंदना…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 207 ☆

☆ आदि शक्ति दुर्गा वंदना ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आदि शक्ति जगदम्बिके, विनत नवाऊँ शीश.

रमा-शारदा हों सदय, करें कृपा जगदीश….

*

पराप्रकृति जगदम्बे मैया, विनय करो स्वीकार.

चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार…..

*

अनुपम-अद्भुत रूप, दिव्य छवि, दर्शन कर जग धन्य.

कंकर से शंकर रचतीं माँ!, तुम सा कोई न अन्य..

परापरा, अणिमा-गरिमा, तुम ऋद्धि-सिद्धि शत रूप.

दिव्य-भव्य, नित नवल-विमल छवि, माया-छाया-धूप..

जन्म-जन्म से भटक रहा हूँ, माँ ! भव से दो तार.

चरण-शरण जग, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार…..

*

नाद, ताल, स्वर, सरगम हो तुम. नेह नर्मदा-नाद.

भाव, भक्ति, ध्वनि, स्वर, अक्षर तुम, रस, प्रतीक, संवाद..

दीप्ति, तृप्ति, संतुष्टि, सुरुचि तुम, तुम विराग-अनुराग.

उषा-लालिमा, निशा-कालिमा, प्रतिभा-कीर्ति-पराग.

प्रगट तुम्हीं से होते तुम में लीन सभी आकार.

चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार…..

*

वसुधा, कपिला, सलिलाओं में जननी तव शुभ बिम्ब.

क्षमा, दया, करुणा, ममता हैं मैया का प्रतिबिम्ब..

मंत्र, श्लोक, श्रुति, वेद-ऋचाएँ, करतीं महिमा गान-

करो कृपा माँ! जैसे भी हैं, हम तेरी संतान.

ढाई आखर का लाया हूँ,स्वीकारो माँ हार.

चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१८-४-२०१४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 207 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 207 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 207) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 207 ?

☆☆☆☆☆

काश मिल जाये हमें भी

कोई किसी आईने की तरह

जो हँसे भी साथ साथ

और रोये भी साथ साथ…

☆☆

Wish I could also have

Someone like a mirror

Who could laugh together

And  even  cry together …

☆☆☆☆☆

उन्हें  ठहरे…

समुंदर  ने  डुबोया

जिन्हें  तूफ़ाँ  का…

अंदाज़ा  बहुत  था…

☆☆

Calm seas…

drowned them only…

Who claimed to have great 

experience of braving the storms

☆☆☆☆☆

तकलीफ खुद ही

कम हो गई…

जब अपनों से…

उम्मीद कम हो गई..

☆☆

The suffering itself got

conclusively reduced,

When expectations from

the loved ones minimized…

☆☆☆☆☆

पत्तों सी होती है कई रिश्तों

की उम्र, आज हरे कल सूखे….

क्यों  न  हम जड़ों  से  ही

उम्र भर रिश्ते निभाना सीखें…

☆☆

Age of many relationships is like

leaves; today green, tomorrow dried… 

Why don’t we learn from roots

To maintain the relationship …

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पीड़ा, जिजीविषा और मैं… (2) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पीड़ा, जिजीविषा और मैं…(2) ? ?

तब मन

खंड-खंड करती रही,

अब तन

तार-तार करने पर

उतारू है,

सूक्ष्म और स्थूल में

अपनापा निकला,

पीड़ा और मेरा सम्बंध

पुराना निकला।

© संजय भारद्वाज  

(प्रात: 10 बजे, गुरुवार दि. 12अक्टूबर 2017)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 3 अक्टूबर 2024 से नवरात्रि साधना आरम्भ होगी💥

🕉️ इस साधना के लिए मंत्र इस प्रकार होगा-

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

देवीमंत्र की कम से कम एक माला हर साधक करे🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 133 ☆ मुक्तक – ।।नवरात्रि महिमा।। हे माँ दुर्गा पापनाशनी,तेरा वंदन बारम्बार है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 133 ☆

☆ मुक्तक ।।नवरात्रि महिमा।। हे माँ दुर्गा पापनाशनी,तेरा वंदन बारम्बार है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

सुबह शाम की   आरती  और माता का जयकारा।

सप्ताह का हर दिन बन  गया शक्ति  का  भंडारा।।

केसर चुनरी चूड़ी रोली हे माँ करें तेरा सब श्रृंगार।

सिंह पर सवार माँ दुर्गा आयी बन भक्तों का सहारा।।

[2]

तेरे नौं रूपों में  समायी  शक्ति बहुत  असीम  है।

तेरी भक्ति से बन जाता व्यक्ति संस्कारी  प्रवीण है।।

हे वरदायनी  पपनाशनी   चंडी रूपा  कल्याणी तू।

लेकर तेरे नाम मात्र से हो जाता व्यक्ति दुखविहीन है।।

[3]

नौं दिन की   नवरात्रि  मानो कि ऊर्जा का  संचार है।

भक्ति में लीन तेरे   भजनों   की नौ दिन भरमार है।।

कलश सकोरा  जौ  और   पानी आस्था के   प्रतीक।

हे जगत पालिनी माँ  दुर्गा   तेरा वंदन बारम्बार है।।

।।शारदीय नवरात्रि की अनन्त असीम शुभकामनाओं सहित।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 197 ☆ माँ दरशन की अभिलाषा ले हम द्वार तुम्हारे आये हैं… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “माँ दरशन की अभिलाषा ले हम द्वार तुम्हारे आये हैं। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 197 ☆ माँ दरशन की अभिलाषा ले हम द्वार तुम्हारे आये हैं☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

माँ दरशन की अभिलाषा ले हम द्वार तुम्हारे आये हैं

एक झलक ज्योती की पाने सपने ये नैन सजाये हैं 

*

पूजा की रीति विधानों का माता है हमको ज्ञान नही 

पाने को तुम्हारी कृपादृष्टि के सिवा दूसरा ध्यान नहीं 

फल चंदन माला धूप दीप से पूजन थाल सजाये हैं 

दरबार तुम्हारे आये हैं, मां  द्वार तुम्हारे आये हैं 

*

जीवन जंजालों में उलझा, मन द्विविधा में अकुलाता है 

भटका है भूल भुलैया में निर्णय नसही कर पाता है 

मां आँचल की छाया दो हमको, हम माया में भरमाये हैं

दरबार तुम्हारे आये हैं, हम द्वार तुम्हारे आये हैं 

*

जिनका न सहारा कोई माँ, उनका तुम एक सहारा हो 

दुखिया मन का दुख दूर करो, सुखमय संसार हमारा हो 

आशीष दो मां उन भक्तों को जो, तुम से आश लगाये हैं 

दरबार तुम्हारे आये हैं, सब  द्वार तुम्हारे आये हैं 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #252 ☆ कविता – वजूद औरत का… ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की स्त्री जीवन पर आधारित एक भावप्रवण कविता वजूद औरत का…। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 252 ☆

वजूद औरत का… 

काश! इंसान समझ पाता

वजूद औरत का

वह अबला नारी नहीं

नारायणी है,दुर्गा है,काली है

समय आने पर कर सकती

वह शत्रुओं का मर्दन

छुड़ा सकती है उनके छक्के

और धारण कर सकती है

मुण्डों की माला

 

वह सबला है

असीम शक्तियां संचित हैं उसमें

कठिन परिस्थितियों में

पर्वतों से टकरा सकती

आत्मसम्मान पर आंच आने पर

वह अहंनिष्ठ पुरुष को

उसकी औक़ात दिखला सकती

 

बहुत कठिन होता है

विषम परिस्थितियों से

समझौता करना

दिल पर पत्थर रखकर जीना

सुख-दु:ख में सम रहना

सकारात्मक सोच रख

निराशा के गहन अंधकार को भेद

आत्मविश्वास का दामन थामे

निरंतर संघर्षशील रहना

यही सार ज़िंदगी का

 

यदि मानव इस राह को

जीवन में अपनाता

तो लग जाते खुशियों के अंबार

चलती अलमस्त मलय बयार

और ज़िंदगी उत्सव बन जाती

●●●●

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ “पूजा का फल…” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक श्री प्रतुल श्रीवास्तव, भाषा विज्ञान एवं बुन्देली लोक साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, शिक्षाविद् स्व.डॉ.पूरनचंद श्रीवास्तव के यशस्वी पुत्र हैं। हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतुल श्रीवास्तव का नाम जाना पहचाना है। इन्होंने दैनिक हितवाद, ज्ञानयुग प्रभात, नवभारत, देशबंधु, स्वतंत्रमत, हरिभूमि एवं पीपुल्स समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। साहित्यिक पत्रिका “अनुमेहा” के प्रधान संपादक के रूप में इन्होंने उसे हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी। आपके सैकड़ों लेख एवं व्यंग्य देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके द्वारा रचित अनेक देवी स्तुतियाँ एवं प्रेम गीत भी चर्चित हैं। नागपुर, भोपाल एवं जबलपुर आकाशवाणी ने विभिन्न विषयों पर आपकी दर्जनों वार्ताओं का प्रसारण किया। प्रतुल जी ने भगवान रजनीश ‘ओशो’ एवं महर्षि महेश योगी सहित अनेक विभूतियों एवं समस्याओं पर डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया। आपकी सहज-सरल चुटीली शैली पाठकों को उनकी रचनाएं एक ही बैठक में पढ़ने के लिए बाध्य करती हैं।

प्रकाशित पुस्तकें –ο यादों का मायाजाल ο अलसेट (हास्य-व्यंग्य) ο आखिरी कोना (हास्य-व्यंग्य) ο तिरछी नज़र (हास्य-व्यंग्य) ο मौन

आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “पूजा का फल… “ की समीक्षा)

☆ “पूजा का फल…” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव

जगतजायनी की पूजा का

फल केवल वह पाता है,

अपनी जन्मदायनी के प्रति

जो कर्तव्य निभाता है ।

 *

तेरे कटु वचनों से तेरी

  जन्मदायनी यदि रोए,

फिर तेरे भजनों से कैसे

जगतजायनी खुश होए ?

 *

तेरे दुर्व्यवहार से तेरी

जन्मदायनी दुख ढोए,

फिर तेरी सेवा से कैसे

जगतजायनी खुश होए ?

 *

तेरी तंगदिली से भूखी

जन्मदायनी यदि सोए,

कैसे तेरे भोग – प्रसाद से

जगतजायनी खुश होए ?

 *

वस्त्र अभाव में तेरी माता

यदि अपनी लज्जा खोए,

फिर तेरी लाल चुनरिया से

क्यों जगतजायनी खुश होए ?

 *

जगतजायनी की पूजा का

फल केवल वह पाता है,

अपनी जन्मदायनी के प्रति

जो कर्तव्य निभाता है ।

© श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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