हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #245 ☆ संतोष के दोहे – अहम… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे – अहम आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 245 ☆

☆ संतोष के दोहे – अहम… ☆ श्री संतोष नेमा ☆

कभी न हम पालें अहम, इसकी गहरी मार

मान गिराता यह सदा, होता है अपकार

*

अहम करे किस बात का, हे मूरख इंसान

जाना सबको एक दिन, बचता नहीं निशान

*

बचें सदा हम क्रोध से, इसमें लिपटा दंभ

अहंकार की आग में, गिरें टूट के खम्भ

*

सदा कभी रहता नहीं, धन-वैभव अभिमान

माटी में मिलता सदा, माटी का इंसान

*

साथ न देते बंधु प्रिय, महल अटारी कोष

वहम बढ़ाता अहम को, और बढ़ाये रोष

*

धन दौलत सम्मान से, मिले अहम को खाद

कमतर समझे गैर को, करे झूठ आबाद

*

अहंकार से सब मिटे, वैभव, इज्जत, वंश

देखें तीन उदाहरण, रावण, कौरव, कंस

*

साईं इतना दीजिए, आ ना सके गुरूर

चलें धर्म की राह हम, प्रेम रहे भरपूर

*

मनसा, वाचा कर्मणा, सबके बनें चरित्र

स्वयं रहे “संतोष” भी, रहें विचार पवित्र

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पाठशाला ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पाठशाला ? ?

पाठशाला के दिन अच्छे थे,

संगी-साथी गणित में कच्चे थे,

फिर क़िताबों को पढ़ना बंद हुआ,

आदमी को पढ़ने का सिलसिला हुआ,

हानि पहुँचाने के गणित में तब जो कच्चे थे,

अपना लाभ उठाने के गणित में अब पक्के हैं,

संबंधों को कंधा बनाने के मर्मज्ञ हैं,

मैं और मेरा के अनन्य विशेषज्ञ हैं,

नि:स्वार्थ भाव पढ़ाती थी पाठशाला,

पग-पग स्वार्थ का अब बोलबाला,

निष्कपट थे, सादे थे, सच्चे थे,

पाठशाला के दिन अच्छे थे..!

?

© संजय भारद्वाज  

(प्रात: 6:47 बजे, 5 मार्च 2024)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

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अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 235 ☆ गीत – घर – घर बड़ा झमेला है… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 235 ☆ 

☆ गीत – घर – घर बड़ा झमेला है…  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

शिकवे – गिले दूर कर लेना,

आई अंतिम बेला है।

हमने तो बस पुष्प लुटाए,

हंसा चला अकेला है।।

 **

मिलीं उपाधी खुशियों वाली,

अनगिन जन ने प्रेम दिया।

कुछ ने ही खुद काँटे बोकर,

जाने क्या – क्या खेल किया।

 *

चक्रव्यूह – सा जीवन सारा

पाप – पुण्य का खेला है।।

 **

जोड़ा हमने ये भी वो भी

सबका ही इतिहास बना।

पर भूगोल बदल न पाए,

शतरंजी यह पाश बना।

 *

आडम्बर की नई दुकानें

घर – घर बड़ा झमेला है।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मकर संक्रांति  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ कविता – मकर संक्रांति ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

भारत त्योहारों का देश है अनोखा अति मतवाला।

पग-पग पर यह तो नित खुशियां बिखेरने वाला।।

*

रौनक है, नाच-गान और मस्तियों के मेले हैं।

सारे उमंग में भरे हैं, कोई भी यहां नहीं अकेले हैं।।

*

कहीं सूर्य नारायण के उत्तरायण होने का पर्व है।

तो कहीं मतवाले पोंगल पर हो रहा सबको गर्व है।।

*

कहीं लोहड़ी का हो रहा सच में व्यापक सम्मान है।

तो कहीं नदी स्नान से पावनता की बढ़ी आन है।।

*

 संक्रांति सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का उत्सव है।

तो भांगड़े की तान पर थिरकता हुआ मानव है।।

*

खिचड़ी का स्वाद है, तो तिली के लड्डू का जलवा है।

बिखर रहा भाईचारा, प्रेम, नहीं किसी तरह का बल्ला है।।

*

आकाश में छाई है आकर्षक पतंगों की निराली छटा।

नदियों के किनारे लगे झूले, भरे मेरे, है सुंदर घटा।।

*

दान-पुण्य के प्रति व्यापक अनुराग पल रहा है।

जो है उल्लास से दूर वह आँखों को मल‌ रहा है।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #263 – कविता – ☆ हम पढ़ रहे ककहरे हैं… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी द्वारा गीत-नवगीत, बाल कविता, दोहे, हाइकु, लघुकथा आदि विधाओं में सतत लेखन। प्रकाशित कृतियाँ – एक लोकभाषा निमाड़ी काव्य संग्रह 3 हिंदी गीत संग्रह, 2 बाल कविता संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 कारगिल शहीद राजेन्द्र यादव पर खंडकाव्य, तथा 1 दोहा संग्रह सहित 9 साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित। प्रकाशनार्थ पांडुलिपि – गीत व हाइकु संग्रह। विभिन्न साझा संग्रहों सहित पत्र पत्रिकाओं में रचना तथा आकाशवाणी / दूरदर्शन भोपाल से हिंदी एवं लोकभाषा निमाड़ी में प्रकाशन-प्रसारण, संवेदना (पथिकृत मानव सेवा संघ की पत्रिका का संपादन), साहित्य संपादक- रंग संस्कृति त्रैमासिक, भोपाल, 3 वर्ष पूर्व तक साहित्य संपादक- रुचिर संस्कार मासिक, जबलपुर, विशेष—  सन 2017 से महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में एक लघुकथा ” रात का चौकीदार” सम्मिलित। सम्मान : विद्या वाचस्पति सम्मान, कादम्बिनी सम्मान, कादम्बरी सम्मान, निमाड़ी लोक साहित्य सम्मान एवं लघुकथा यश अर्चन, दोहा रत्न अलंकरण, प्रज्ञा रत्न सम्मान, पद्य कृति पवैया सम्मान, साहित्य भूषण सहित अर्ध शताधिक सम्मान। संप्रति : भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स प्रतिष्ठान भोपाल के नगर प्रशासन विभाग से जनवरी 2010 में सेवा निवृत्ति। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता हम पढ़ रहे ककहरे हैं…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #263 ☆

☆ हम पढ़ रहे ककहरे हैं… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

हम पढ़ रहे ककहरे हैं

विषय बाद के गहरे हैं।

कौन सुनें मन की बातें

कान सभी के बहरे हैं।

 *

अलग अलग सब के झंडे

एक साथ कब फहरे हैं।

 *

गठबंधन को  यूँ समझें

आती जाती लहरें हैं।

 *

वे सरिता वे हैं सागर

बाकी केवल नहरें हैं।

 *

सोच समझ कर कहें सुनें

लगे चतुर्दिश पहरे हैं।

 *

है कुछ दिन की बात यहाँ

बस कुछ पल को ठहरे हैं।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 87 ☆ किसको दें इल्ज़ाम… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “किसको दें इल्ज़ाम…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 87 ☆ किसको दें इल्ज़ाम… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

शहर बिक गया

औने-पौने दाम।

 

कचरा ठेके पर

बिजली की आँखमिचोली

गड्ढों में सड़कें

सड़कों पर धूल की होली

शहर सो गया

बोलो सीताराम ।

 

सत्ता खेले खेल

दाँव पर लगी है जनता

पैसों के पीछे

चकमक में खोया रिश्ता

शहर लुट गया

गली-गली बदनाम।

 

सुस्त पड़े कानून

नियम सब कागज ढोते

मंदिर-मस्जिद के

झगड़े में वैमनस्य बोते

शहर रुक गया

किसको दें इल्ज़ाम ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

१०.१२.२४

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – गणित, कविता और आदमी..! ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – गणित, कविता और आदमी..! ? ?

बचपन में पढ़ा था

X + X , 2X होता है,

 X × X,  X² होता है,

Y + Y,  2Y होता है

Y + Y,  Y² होता है..,

X और Y साथ आएँ तो

X  + Y होते हैं,

एक-दूसरे से

गुणा किये जाएँ तो

XY होते हैं..,

X और Y चर राशि हैं

कोई भी हो सकता है X

कोई भी हो सकता है Y,

सूत्र हरेक पर, सब पर

समान रूप से लागू होता है..,

फिर कैसे बदल गया सूत्र

कैसे बदल गया चर का मान..?

X पुरुष हो गया

Y स्त्री हो गई,

कायदे से X और Y का योग

X + Y होना चाहिए

पर होने लगा X – Y,

सूत्र में Y – X भी होता है

पर जीवन में कभी नहीं होता,

(X + Y)2 = X² + 2 XY + Y²

का सूत्र जहाँ ठीक चला है,

वहाँ भी X का मूल्य

Y की अपेक्षा अधिक रहा है,

गणित का हर सूत्र

अपरिवर्तनीय है

फिर किताब से

ज़िंदगी तक आते- आते

परिवर्तित कैसे हो जाता है.. ?

जीवन की इस असमानता को

किसी तरह सुलझाओ मित्रो,

इस प्रमेय को हल करने का

कोई सूत्र पता हो तो बताओ मित्रो!

?

© संजय भारद्वाज  

संध्या 7.35 बजे, 13.9.2019

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

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अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 91 ☆ हाथों को मिलाना है महज रस्म निभाना… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “हाथों को मिलाना है महज रस्म निभाना“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 91 ☆

✍ हाथों को मिलाना है महज रस्म निभाना… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

मतलब पे नहीं झूठ को तू सत्य कहा कर

इतना भी न किरदार से तू दोस्त गिरा कर

*

इंसान करे जैसा है अंजाम भी वैसा

मज़लूम पे ऐसे न सितम देख किया कर

*

मलहम न लगा सकते न कर सकते हवा गर

ज़ख्मों पे किसी के नहीं तू लौन मला कर

*

अल्लाह हर इक वंदे की करता है ख़ता मुआफ़

मतलब नहीं है ये कि ख़ताऐं तू किया कर

*

ये शौक़ ख़राबात के लाते है सड़क पर

फिर क्या तू करेगा बता विरसे को उड़ा कर

*

ये प्यार भी क्या चीज है दो ज़िस्म हों इक जां

खुद अश्क़ बहाते है सनम तुमको सता कर

*

दमकल के नहीं वश का बुझा पाना है देखो

नफ़रत के शरारों से कभी आग लगा कर

*

हाथों को मिलाना है महज रस्म निभाना

यक ज़हती को मजबूत करो दिल को मिला कर

*

भारी कोई हुंडी या खज़ाना मिला है क्या

जो आपने हासिल किया है मुझको भुला कर

*

खरसूदा रिवायात है सदियों से अभी तक

क्या पाया है दुनिया ने मुहब्बत को ज़ुदा कर

*

दे आया है बदले में तू ईमान व पगड़ी

क्या पास अरुण रह गया है ताज को पा कर

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 221 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 221 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

छायेंगीं

पुष्प सज्जित

सुवासित

रमण शैयाएँ ।

ध्यान आयेंगे

रमणकर्ता

उनके बाहुओं के

नागपाश ।

उद्वेलित करेगा

साँसों का संगम ।

एहसास होगा

गर्भ का

अनुभव करोगी

सही गई

प्रसव पीड़ा।

कानों में गूँजेगी 

नवजातों की चीखें ।

तुम्हें

धिक्कारेगा

आँचल का गीलापन ।

मानवी होकर भी तुमने

क्यों स्वीकारी जड़ता?

माधवी ।

सच बताना

क्या तुम

पत्नी रह सकोगी 

किसी की?

क्या

सार्थक कर पाई

अपना मातृत्व ?

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 221 – “क्या चिड़ियों के नये घोंसले…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत क्या चिड़ियों के नये घोंसले...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 221 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “क्या चिड़ियों के नये घोंसले...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

टोरांटो से छोटा बेटा

पूछ रहा तत्पर………

क्या चिड़ियों के नये घोंसले

बनते इमली पर

क्या अबभी हलचल को लेकर

खुश है पुतली घर

टोरांटो से छोटा बेटा

पूछ रहा तत्पर

 

क्या अब भी सुबरातन चाची

अपने शौहर से

पूछा करती हैं चिट्टी में

यही अबोहर से –

 

नये शॉल को भिजवाने की

जिद करती खत में

नाच नचाती रहती जबतब

टेढ़ी उँगली पर

 

क्या अब भी रमजान मियाँ

का वह बिगड़ा इंजन

सुधर गया ? तो बेच डालता

नया दंत मंजन

 

जो नुकसान दिलाता रहता

था आये दिन को

या उसका व्यापार सिमट

आया अब मछली पर

 

क्या अबभी उस बड़े मोहल्ले

की महिलायें भी

याद किया करती हमसब को

योंही कभी कभी

 

क्या अबभी उसकुनबे के

सब मर्दोंकी आखें

गड़ी रहा करती हैं उनकी

भावज मझली पर

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

12-01-2025

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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