हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 74 – इसने झेले हैं जलजले कितने… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – इसने झेले हैं जलजले कितने।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 74 –इसने झेले हैं जलजले कितने… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

मेरे दिल पर तेरी हुकूमत है 

तेरी हस्ती मेरी बदौलत है

*

पहले ठोकर दी, अब उठाते हो 

तुमको शायद मेरी जरूरत है

*

काम, सय्याद अब दिखायेगा 

उड़ने की, दी तुम्हें इजाजत है

*

जंग, उनके खिलाफ जारी है 

जिनसे, हमको बहुत मुहब्बत है

*

इसने झेले हैं जलजले कितने 

देश की, सांस्कृतिक इमारत है

*

आप ‘आचार्य’, गर समझ पाते 

प्यार पूजा है, प्यार दौलत है

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 147 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 147 – मनोज के दोहे ☆

मुक्त छंद के काव्य में, सुर- संगीत-अभाव।

दिल को छूता छंद है, स्वर-सरिता की नाव।।

*

सब को छप्पर चाहिए, जहाँ करें विश्राम।

श्रम की दौलत से सजे, दरवाजे पर नाम।।

*

मानवता कहती यही, होगी युग में भोर।

मुलाकात होती रहे, कुशल-क्षेम पर जोर।।

*

मौसम करवट ले रहा, धूप कहीं बरसात।

जहाँ न वर्षा थी कभी, बरसे अब दिन रात।।

*

संकट के बादल बढ़े, छिड़ा हुआ है युद्ध।

भारत का प्रस्ताव यह, अब तो पूजो बुद्ध।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अमूल्य ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अमूल्य ? ?

भूमंडल की

सारी संपदा हाँफने लगी,

भूतल की

हर सत्ता का दम निकला,

जिसे सबने था

बहुमूल्य समझा,

मेरा वह स्वाभिमान

अमूल्य निकला..!

© संजय भारद्वाज  

4:31 दोपहर, 2 जून 2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️💥 श्रीगणेश साधना सम्पन्न हुई। पितृ पक्ष में पटल पर छुट्टी रहेगी।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 306 ☆ कविता – “आप निगरानी में हैं…” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 306 ☆

?  कविता – आप निगरानी में हैं…  ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

चौबीस घंटे

एलेक्सा, गूगल

सब सुन रहे हैं,

हमारी बातें।

मोबाइल सब ट्रेस कर रहा है,

कहां , कब गए ,

कितनी देर रुके.

फायर अलार्म सूंघ रहा है

हर पल हमारी सांसे,

हवा की ठंडक।

जाने किन किन

कैमरों की निगाहों में

होते हैं हम

क्रेडिट या डेबिट कार्ड

को सब पता होता है

कहां क्या कितना

किस पर खर्च

कर रहे हैं हम

हजारों आभासी मित्रों

के बीच

फिर भी

कितने अकेले हैं

सब

अपने वितान में ।

 

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 209 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 209 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

ऋषि विश्वामित्र ने

प्रसन्नता के साथ

स्वीकार किया

माधवी को ।

रमण के

फलस्वरूप

पुत्र हुआ

‘अष्टक’

(धन्य हैं ज्ञानी पुरुष)

गुरुदक्षिणा

शुल्क

और रमण का चक्र पूरा हुआ ।

विडम्बना यह कि

विश्वामित्र ने

माधवी को दिया

आशीष

धर्म, अर्थ सम्पन्नता का ।

( धन्य हैं तपस्वी )

ऋषि गालव की

शुल्क याचना

और

पिता के वचनों

के

पालन के बाद

माधवी लौटी

पिता ययाति के पास ।

क्या सोचा होगा

ययाति ने

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 209 – “कई इरादे नेक नीयतें…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत कई इरादे नेक नीयतें...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 209 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “कई इरादे नेक नीयतें...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

एक टाँग पर टिकी हुई थी

उसकी संरचना

दूजे सधे हुये बैसाखी

पर उसका चलना

 

था दिव्यांग भले ही

लेकिन भीख नहीं माँगी

जो भी कुछ कोई दे जाता

आस नहीं त्यागी

 

कमी कभी भूखे सो जाना

भी था क्रम उसका

सभी समस्याओं का हल

मुस्कान रही जिसका

 

पेट नहीं भरपाने से

अटकी उसकी दुनिया

या कि कभी तो बिना

वजह ही हाथ पड़े मलना

 

कई इरादे नेक नीयतें

उसके ढिंग आयीं

कई कई किंवदन्ती थीं उसके

मन को भायीं

 

कुछ ने कहा यह जगह छोड़ो

गाँव चले जाओ

वहाँ कुछ न कुछ मिल जायेगा

तब हरिगुन गाओ

 

कई झुग्गियाँ उसको

बेचैनी से देखे थी

कैसे सीख गया है गनपत

सीमा में ढलना

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

29-09-2024

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ पंडित श्रद्धाराम फिलौरी जी के जन्मदिवस पर विशेष  ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक ☆

डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

 

☆ कविता ☆ पंडित श्रद्धाराम फिलौरी जी के जन्मदिवस पर विशेष  ☆  डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक 

(जन्म- 30 सितंबर 1837 – मृत्यु- 24 जून, 1881)

विश्वप्रसिद्ध आरती “ओम जय जगदीश हरे….” के रचयिता यशस्वी कवि पंडित श्रद्धाराम फिलौरी जी के व्यक्तित्व का गुणगान करते हुये अपनी कविता के द्वारा उनके जन्मदिवस पर श्रद्वा सुमन अर्पित कर रही हूँ-

हे! संत  साहित्य  सरोवर के, मैं तुझ पे अभिमान  करूँ

अर्पण करके क़लम मैं तुझको, हृदय से सम्मान करूँ॥

सहज सरल व्यक्तित्व तुम्हारा, साहित्य अद्भुत रचा न्यारा

बहायी  प्रेम   की  रस-धारा, शत-शत मैं  प्रणाम  करूँ॥

 *

विश्व-विख़्यात लिखी आरती, सभी के हृदय को जो ठारती

नत-मस्तक हैं सभी भारती, मैं भी उसका गुण गान करूँ॥

 *

ज्ञान के तुम तो हो चैतन्य, अदभुत तुम ने रचा है साहित्य

चमके जैसे हो आदित्य, ख़ुद को  मैं   कुरबान   करूँ

 *

शब्दों में बहते भाव सुनहरे, कुछ सहज हैं, कुछ हैं गहरे

जो काग़ज़ पर आ कर ठहरे, मैं उनका रस-पान करूँ ॥

 *

ज्ञान की गहरी पैठ बनाई, साहित्य की सेवा खूब निभाई

शब्दों की वो ज्योति जलाईनिस दिन उसे बयान करूँ॥

 *

मन व्याकुल है तु‌झ‌ को खोकर, रचनाओं  के  हार पिरो कर

हर्ष-विषादों से मुक्त हो करपल-पल  तेरा ध्यान  करूँ॥

 डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

संपर्क – मकान न.-11 सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब – 141003 फोन नं – 9646863733 ई मेल – [email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 194 ☆ # “श्राद्ध !!” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता श्राद्ध !!”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 193 ☆

☆ # “श्राद्ध !!” # ☆

एक वृद्ध दंपति ने

अपने इकलौते पुत्र को

अपने पास बुलाया

अपने मन की बात समझाया

तुम हमारी इकलौती औलाद हो

इस सारी संपत्ति के मालिक

हमारी मरने के बाद हो

हमने उम्र भर परिश्रम कर

इसे जोड़ा है

माना बहुत ज्यादा नहीं

पर तुम्हारे लिए

पर्याप्त छोड़ा है

हमारी तुमसे एक

शिकायत है

तुमसे कहनीं

जरूरी बात है

 

तुम्हारी पत्नी ने हमारा

कभी सम्मान नही किया

खुशी खुशी, आदरपूर्वक

हमारा नाम नहीं लिया

तीज त्योहारों पर

हमसे कभी

आशीर्वाद नहीं लिया

हमारे साथ बैठकर

परिवार की तरह

सुख दुःख की

चर्चा नहीं किया

बताओ हमने

ऐसा क्या गुनाह किया है ?

हमारे पोते को

हमसे कई बार मिलने

नहीं दिया है ?

 

हमें तिरस्कृत कर

हमारी अवहेलना की है

हम अवांछित हैं

कहकर गाली दी है

हम उम्र के आखिरी

पड़ाव पर

मन मसोसकर जी

रहे हैं

पुत्र प्रेम के मोह में

जीते जी

जहर पी रहे हैं

पता नही

अभी और कितना

अपमानित होना बाकी है

इन सब कृत्यों की

हमारी नजर में

नहीं कोई माफी है

 

जीते जी कुछ मीठे बोल

और प्यार को

कब तक तरसाओगे ?

मरने के बाद

दिखावे का पाखंड कर

पंच पकवान हम पर

क्यों बरसाओगे ?

यह जीवन

आज और कल का

बोलता हुआ दर्पण है

जहां श्रध्दा ना हो

प्यार ना हो

सम्मान ना हो

वो जीते जी 

और मरने के बाद भी

व्यर्थ किया हुआ तर्पण है

 

बेटे-

हमें बहुत कुछ सहना

पड़ रहा है

मजबूरी में दुखी होकर

कहना पड़ रहा है

हमारी अंतिम इच्छा है

तुम मरने के बाद

मां-बाप को कभी

याद नहीं करोगे ?

हमारे मरने के बाद

हमारा कभी

श्राद्ध नहीं करोगे?

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – फूल, खुशबू, चांद, चाहत… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता फूल, खुशबू, चांद,चाहत… ‘।)

☆ कविता  – फूल, खुशबू, चांद, चाहत.. ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆ 

फूल, खुशबू, चांद, चाहत,

ये निशानी हैं तेरी,

चांद की पहली किरण,

तू, जिंदगानी है मेरी,

आसमां के थाल में,

जैसे मोती हों भरे,

झिलमिलाते तारों जैसी,

निखरी जवानी है तेरी,

फूल खुशबू….

 

बादलों की ओट से,

तकती हुई,किरण,

भूले से ना भूलती,

ऐसी कहानी है तेरी,

फूल खुशबू….

 

लालिमा सूरज से लेके,

रंग फूलों में भरे,

शोख सरिता की तरह,

बढ़ती रवानी है तेरी,

फूल खुशबू….

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 206 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 206 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 206) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 206 ?

☆☆☆☆☆

खामोशियां बोल देती है

ज़िनकी बातें नहीं होती…

दोस्ती उनकी भी क़ायम है

ज़िनकी मुलाक़ातें नहीं होती…

☆☆

Silence converses with them 

who don’t talk to each other…

Friendship flourishes of those too,  

Who don’t  even get to meet…

☆☆☆☆☆

बेदाग़ रख महफूज़ रख

मैली न कर तू ज़िन्दगी…

मिलती नहीं इँसान को…

किरदार की चादर नई…

☆☆

Keep it spotless, keep it secure

Your life don’t you ever stain

For man does not receive again

A fresh mask for his character

☆☆☆☆☆

क्या कहना उनका जो हवाओं में 

सलीक़े से  ख़ुशबू घोल देते हैं 

फ़िज़ाएँ मुश्कबार हो जाती हैं   

फ़क़त जिनके खयाल से…

☆☆

What  to say about her who

infuses aroma in the winds

Whose thought alone turns

Whole environment fragrant

☆☆☆☆☆

बस इतना सा असर होगा

हमारी यादों का

कि कभी कभी तुम बिना

बात मुस्कुराओगे…

☆☆

The only effect of my

Memories will be that

Sometimes without any

Reason you will smile…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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