प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण ग़ज़ल “जुड़ गया है आंसुओं का …”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा 83 ☆ गजल – जुड़ गया है आंसुओं का… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
बीत गये जो दिन उन्हें वापस कोई पाता नहीं
पर पुरानी यादों को दिल से भुला पाता नहीं।
बहती जाती है समय के साथ बेवस जिंदगी
समय की भँवरों से बचकर कोई निकल पाता नहीं।
तरंगे दिखती हैं मन की उलझनें दिखती नहीं
तट तो दिखते हैं नदी के तल नजर आता नहीं।
आती रहती हैं हमेशा मौसमी तब्दीलियॉ
पर सहज मन की व्यथा का रंग बदल पाता नहीं।
छुपा लेती वेदना को अधर की मुस्कान हर
दर्द लेकिन मन का गहरा कोई समझ पाता नहीं।
उतर आती यादें चुप जब देख के तन्हाइयाँ
वेदना की भावना से कोई बच पाता नहीं।
जगा जाती आके यादें सोई हुई बेचैनियाँ
किसी की मजबूरियों को कोई समझ पाता नहीं।
जुड़ गया है आंसुओं का यादों से रिश्ता सघन
चाह के भी जिसको कोई अब बदल पाता नहीं।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈