हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 75 ☆ सॉनेट – थल सेना दिवस ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  ‘सॉनेट – थल सेना दिवस।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 75 ☆ 

☆ सॉनेट – थल सेना दिवस ☆

वीर बहादुर पराक्रमी है, भारत की थल सेना। 

जान हथेली पर ले लड़ती, शत्रु देख थर्राता।

देश भक्ति है इनकी रग में, कुछ न चाहते लेना।।

एक एक सैनिक सौ सौ से, टकराकर जय पाता।।

 

फील्ड मार्शल करियप्पा थे, पहले सेनानायक।

जिनका जन्म हुआ भारत में, पहला युद्ध लड़ा था।

दुश्मन के छक्के छुड़वाए थे, वे सब विधि लायक।।

उनन्चास में प्रमुख बने थे, नव इतिहास लिखा था।।

 

त्रेपन में हो गए रिटायर, नव इतिहास बनाकर।

जिस दिन प्रमुख बने वह दिन ही, सेना दिवस कहाता।।

याद उन्हें करते हैं हम सब, सेना दिवस मनाकर।।

देश समूचा बलिदानी से, नित्य प्रेरणा पाता।।

 

युवा जुड़ें हँस सेनाओं से, बनें देश का गौरव।

वीर कथाओं से ही बढ़ता, सदा देश का वैभव।।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१५-१-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 11 (21-25)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #11 (21-25) ॥ ☆

राम पराक्रम से हुये कौशिक परम प्रसन्न।

मंत्र युक्त दे अस्त्र नव, किया और सम्पन्न।।21अ।।

 

सूर्यक्रान्त मणि जिस तरह रवि से ज्वालन ज्योति।

पाता, पाया राम ने त्यों मुनि से नव योग।।21ब।।

 

फिर वामन आश्रम का सुन मुनिवर से आख्यान।

राम हुये उत्सुक वहाँ करने को प्रस्थान।।22।।

 

पहुँचे मुनि संग तपोवन जहाँ शिष्य समुदाय।

पूजन सामग्री सहित, तत्पर था साभिप्राय।।23अ।।

 

जहाँ वृक्ष पल्लवपुट-अंजलि मय मधु बैन।

और हरिण, दर्शन के हित लिये थे उत्सुक नैन।।23ब।।

 

राम-लखन ने वहाँ मुनि मख मे उसी प्रकार।

रक्षा की ज्यों सूर्य-शशि हरते हैं अंधियार।।24।।

 

रक्त बिन्दु से अपावन देख वेदि संभाग।

विचलित से मन में हुये यज्ञ-कर्म सब त्याग।।25।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆☆ लाल किले की प्राचीर से ☆☆ श्री कमलेश भारतीय

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ कविता  ☆ लाल किले की प्राचीर से ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

लाल किले की प्राचीर से

कविता पढ़ने की

इच्छा बहुत रही

लाल किले से प्रधानमंत्री भी संबोधित करते हैं

वे भी जनता की समस्याओं के बारे में कहते हैं

मेरे पास कोई जादू की छड़ी नहीं ।

कवि भी कविता पढते हैं लाल किले पर

वे भी जनता के सवालों से बचते हैं

कश्मीर पर देशभक्ति

और पड़ोसी देशों को कोस कर

अपनी इतिश्री कर लेते हैं ।

मैं भी लाल किले पर बोलूं

या हिसार में

क्या फर्क पड़ता है ?

यदि राजनीति को दिशा नहीं देता हूं

राह नहीं दिखाता हूं ।

फिर मेरे कविता कर्म की जरूरत ही क्या रही ?

लाल किले की प्राचीर पर

कविता पढ़ने की इच्छा फिर भी

बहुत रही

पर मेरे पास भी जादू की

कोई छड़ी नहीं ,,,,,,,,,,

 

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ #126 – आतिश का तरकश – ग़ज़ल – 12 – “निकलने नहीं दिया” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “निकलने नहीं दिया”)

? ग़ज़ल # 12 – “निकलने नहीं दिया” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ? 

मजबूरियों ने घर से निकलने न दिया,

नई आफ़त ने उनको मिलने न दिया।

 

चाहते तो  मौसम बदल सकता था,

हालात ने आग को सुलगने न दिया।

 

ग़मख़्वार सुबह से  बैठे थे इंतज़ार में,

कोरोना ख़ौफ़ ने उसे निकलने न दिया।

 

ज़ख्म ख़ूब खिले बंदिशों की तीरगी में,

हसरत-ए-वस्ल ने उन्हें भरने न दिया।

 

बहुत नाज़ुक हालत में रहे दिले बीमार,

करिश्मा-ए-मुहब्बत ने मरने न दिया।

 

तन्हाई की मेहंदी रूह तलक़ उतर गई,

आफ़तों ने रंगे इश्क़ उतरने न दिया।

 

मुहब्बत हुई मुकम्मल लम्बी जुदाई में,

बमुश्किल मिले फिर बिछड़ने न दिया।

 

जज़्ब हो गई दिल में साँसों की मानिंद,

काग़ज़ ने स्याही को निकलने न दिया।

 

उनकी नशीली नज़रों ने चलाए ऐसे तीर,

मेहबूब को फिर उसने संभलने न दिया।

 

माशूका हुई दिल से कुछ इस तरह नाचूर,

मजबूरियों ने उसे पहलू बदलने न दिया।

 

बहकते गए  नीमबाज़ आँखों के नशे में,

‘आतिश’ को फिर उसने संभलने न दिया।

 

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चादर ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – चादर  ??

अनुभूति स्त्री है,

जानती-समझती है

लिखने वाले की चादर,

कम से कम शब्दों में

अभिव्यक्त हो लेती है..!

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा 63 ☆ गजल – ’पसीने से सिंचे बागों में ही नित फूल आते है’ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण  ग़ज़ल  “’पसीने से सिंचे बागों में ही नित फूल आते है’”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा # काव्य धारा 63 ☆ गजल – ’पसीने से सिंचे बागों में ही नित फूल आते है’ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

बिगड़ते है बहुत से काम सबके जल्दबाजी में

जो करते जल्दबाजी वे सदा जोखिम उठाते है।

हमेषा छल कपट से जिंदगी बरबाद होती है

जो होते मन के मैले, वे दुखी कल देखे जाते है।

बिना कठिनाइयों के जिंदगी नीरस मरूस्थल है

पसीनों से सिंचे बागों में ही नित फूल आते है।

किसी को कहाँ मालुम कि कल क्या होने वाला है

मगर क्या आज हो सकता समझ के सब बताते है।

जहां बीहड़ पहाड़ी, घाट, जंगल खत्म हो जाते

वहीं से सम सरल सड़कों के सुन्दर दृश्य आते है।

कभी भी वास्तविकतायें सुखद उतनी नहीं होती

कि जितने कल्पना में दृश्य लोगों को लुभाते हैं।

निकलना जूझ लहरों से कला है जिंदगी जीना

जिन्हें इतना नहीं आता उन्हीं को दुख सताते हैं।

वही रोते है रोना, भाग्य का अपने अनेकों से

परिस्थितियों को जो अनुकूल खुद न ढाल पाते है।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆☆ जांच कमेटी का बैठना ☆☆ श्री श्याम संकत

श्री श्याम संकत

(श्री श्याम संकत जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। स्वान्त: सुखाय कविता, ललित निबंध, व्यंग एवं बाल साहित्य में लेखन।  विभिन्न पत्र पत्रिकाओं व आकाशवाणी पर प्रसारण/प्रकाशन। रेखांकन व फोटोग्राफी में रुचि। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय  कविता ‘जांच कमेटी का बैठना’

☆ कविता ☆ जांच कमेटी का बैठना ☆ श्री श्याम संकत ☆ 

जैसे बुधिया की भैंस

बैठ जाती है धम्म से

जैसे राम आसरे की कच्ची दीवार

बैठ गई इस बारिश में

वैसे ही, फिर बैठ गई है जांच कमेटी बीते साल बैठ गई थी

दुलारे की किराना दुकान की तरह

अब होगी जांच पड़ताल

कौन कसूरवार रहा, कौन चूका

किसने किया अपराध, गड़बड़ घोटाला देखेगी, परखेगी, जांचेगी

करेगी दूध पानी अलग-अलग

जो बैठ गई है जांच कमेटी

इसका बैठ जाना सबको पता चलता है

यह उठती कब है?

क्या लेकर, कोई नहीं जानता

बस ताजी खबर यही है कि 

फिर बैठ गई है जांच कमेटी

बुधिया की भैंस की तरह।

 

© श्री श्याम संकत 

सम्पर्क: 607, DK-24 केरेट, गुजराती कालोनी, बावड़िया कलां भोपाल 462026

मोबाइल 9425113018, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 11 (16-20)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #11 (16-20) ॥ ☆

कफन ओढ़ सी प्रगट हुई घन-गर्जन के साथ।

आँधी सी थी ताड़का, सहमे कुछ रघुनाथा।।16।।

 

धरे आँते धरधनी सी, उठा लट्ठ सा हाथ।

भुला सोच, वध नारि का बाण हने रघुनाथ।।17।।

 

छेद ताड़का-वक्ष को राम-बाण की मार।

असुरों के संहार हित खोल गई यम द्वार।।18।।

 

गिरी ताड़का, वन-धरा ही न हिली सह भार।

वरन बली रावण का ही डोल उठा संसार।।19।।

 

रक्त-सनी, चंदन लगी सी वह प्रमदा वाम।

राम बाण से बिंध, गई प्राणेश्वर के धाम।।20।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – नंग-धड़ंग ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? मकर संक्रांति/ उत्तरायण/ भोगाली बिहू / माघी/ पोंगल/ खिचड़ी की अनंत शुभकामनाएँ ?

सूर्यदेव अर्थात सृष्टि में अद्भुत, अनन्य का आँखों से दिखता प्रमाणित सत्य। सूर्यदेव का मकर राशि में प्रवेश अथवा मकर संक्रमण खगोलशास्त्र, भूगोल, अध्यात्म, दर्शन सभी दृष्टियों से महत्वपूर्ण है।

इस दिव्य प्रकाश पुंज का उत्तरी गोलार्ध के निकट आना उत्तरायण है। उत्तरायण अंधकार के आकुंचन और प्रकाश के प्रसरण का कालखंड है। स्वाभाविक है कि इस कालखंड में दिन बड़े और रातें छोटी होंगी।

दिन बड़े होने का अर्थ है प्रकाश के अधिक अवसर, अधिक चैतन्य, अधिक कर्मशीलता।

अधिक कर्मशीलता के संकल्प का प्रतिनिधि है तिल और गुड़ से बने पदार्थों का सेवन।

निहितार्थ है कि तिल की ऊर्जा और गुड़ की मिठास हमारे मन, वचन और आचरण तीनों में देदीप्यमान रहे।

तमसो मा ज्योतिर्गमय!

संजय भारद्वाज

? संजय दृष्टि – नंग-धड़ंग  ??

तुम झूठ बोलने की

कोशिश करते हो

किसी सच की तरह..,

तुम्हारा सच

पकड़ा जाता है

किसी झूठ की तरह..,

मेरी सलाह है,

जैसा महसूसते हो

वैसा ही जियो,

पारदर्शी रहो सर्वदा

काँच की तरह,

स्मरण रहे,

मन का प्राकृत रूप

सदा आकर्षित करता है

किसी नंग-धड़ंग

शिशु की तरह..!

©  संजय भारद्वाज

प्रात: 6:58 बजे, 12.01.2022

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 
मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 115 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  “भावना के दोहे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 115 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

बलख बलख आकाश में, उड़ने लगी पतंग।

हर्ष उल्लास छा रहा, बाल सखा के संग।।

 

पतझड़ का मौसम गया, जीवित हुआ बसन्त।

नवपल्लव छाने लगा, है पतझड़ का अंत ।।

 

पौधों पर छाने लगा, कलियों का विन्यास।

दस्तक देता द्वार पर, खड़ा हुआ मधुमास।।

 

पौधे भी अब कर रहे, कलियों की ही आस।

देखो दस्तक दे रहा, खड़ा हुआ मधुमास।।

 

सरसों पर छाने लगे, खिलते पीले फूल।

दिन रवि के आने लगे, है मौसम अनुकूल।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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