हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 10 (51-55)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #10 (51-55) ॥ ☆

 

अंतरनिहित परमपिता उठा सहित अनुराग

स्वर्णकलश में लें चरूं दिव्यपुरूष तज आग ॥ 51॥

 

लिया नृपति ने पुरूष से पायस उसी प्रकार

जैसे अमृत इन्द्र ने सागर का जल सार ॥ 52॥

 

दशरथ गुण के धनी थे जो दुलर्भ अन्यत्र

इससे प्रभु ने जन्म की इच्छा भी की तत्र ॥ 53॥

 

कौशल्या कैंकयी को चरू दी नृप ने बॉट

जैसे रवि नभ – धरा को देता प्रात प्रकाश ॥ 54॥

 

कौशल्या थी बड़ी और कैकेयी प्रिय नारि

नृप ने चाहा वे करें सुमित्रा को सत्कार ॥ 55॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 14 – गीत – नए वर्ष में आएँ खुशियाँ… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है सजल “नए वर्ष में आएँ खुशियाँ… । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 14 – नए वर्ष में आएँ खुशियाँ…  ☆ 

नए वर्ष में आएँ खुशियाँ,

मंगलमय संदेश मिले।

स्वस्थ निरोगी हो यह काया,

सुखमय अब परिवेश मिले।

 

जीवन सबका जगमग दमके,

सुख की बदली ही बरसे।

छल-छद्मों की ढहा दिवालें,

नेह प्रेम बस ही दरसे।

 

मानव पर यदि तम घिर जाए,

कभी उसे ना क्लेश मिले ।

 

नये वर्ष में सुख यश वैभव,

नूतन नव संगीत बजे। 

नई सर्जना नई चेतना,

के मधुरिम नव गीत सजे।

 

मिले सभी को तरुवर छाया,

निष्कंटक पथ उपवन  हो।

अन्तरघट में बजे बांसुरी,

मन-भावन वृंदावन हो।

 

द्वार तुम्हारे चलकर पहुँचें,

कृष्ण-सखा दरवेश मिले। 

 

मिले कृष्ण का संग सभी को,

कलयुग का द्वापर युग हो।

सत्य न्याय का शंखनाद कर,

राम राज्य सा सत युग हो ।

 

हम विकास के पथ हैं गढ़ते,

सबको लेकर ही बढ़ते।

मित्र सुदामा बने अगर तो,

उनका भी हित ही करते।

 

जो भी बुरी नज़र है डाले,

वैसा ही परिवेश मिले।

 

शांति और सद्भाव रहे जग,

सदियों से सबने चाहा।

वासुधैव की रहे भावना,

पहले से हमने चाहा।

 

गीता की अमरित वाणी का,

जग में फिर सम्मान मिले।

अखँड रहेगा भारत अपना,

विश्व गुरू का मान मिले।

 

पुनर्जन्म जब हो धरती पर,

हमको भारत देश मिले।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

01-01- 2022

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अपरिमेय ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

?संजय दृष्टि – अपरिमेय ??

संभावना क्षीण थी

आशंका घोर,

बायीं ओर से उठाकर

आशंका के सारे शून्य,

धर दिये संभावना के

दाहिनी ओर..,

गणना की

संभावना खो गई,

संभावना

अपरिमेय हो गई..!

 ©  संजय भारद्वाज

25.12.2021, सुबह 11:35 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 10 (46-50)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #10 (41-45) ॥ ☆

पुष्पक का भय त्याग दें देव सभी निष्पाद

जो विमान निज छुपाते मेधों में चुपचाप ॥ 46॥

 

शाप नियंत्रित असुर के केश ग्रहण से मुक्त

करो अदूषित देवयिों के केशों को मुक्त ॥ 47॥

 

रावण रूपी तापसे झुलसी सुस्गण धान

को वचनामृत सींच घन से हुये अन्तर्धन ॥ 48॥

 

देवकार्य हित रत हुये जब भी विष्णु भगवान

देववृक्षों ने अंश सम किया वायु अनुयान ॥ 49॥

 

तब समाप्रिपर यज्ञ के ऋविवज विस्मय जाग

दिव्य पुरूष हुये अग्नि से प्रकट नृपति के काज ॥ 50॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 71 – दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 71 –  दोहे ✍

सूखे सूखे खेत हैं, भूखे हैं खलियान ।

भरे पेट रहते अगर मरते नहीं किसान।।

O

सुलगी बीड़ी हाथ में ,गरमा गया किसान ।

हाथ पैर ठंडे पड़े ,आया घर का ध्यान।।

O

भ्रष्टाचारी जब हंसे, मन में गडती की कील।

खौल रही आक्रोश से, स्वाभिमान की झील।।

O

जो सपने थे आंख में ,सभी हुए नीलाम।

लेकिन है मजबूत मन होगा नहीं गुलाम।।

O

उसके पल्ले है पडी, गई जिंदगी ऊब।

एक नदी घर से निकल, गई नदी में डूब।।

O

जिनकी पूंछें कट गई,रहीं न पूछ पछोर।

बेचारे अब क्या – शोर शोर बस शोर।।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 71 – झोंके छतनार कहीं… ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “झोंके छतनार कहीं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 71 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || झोंके छतनार कहीं || ☆

ये पत्ते नीम के ।

कड़वे लगते जैसे

नुस्खे हक़ीम के।।

 

दुबले-पतले हिलते।

लगे, हाथ हैं मलते।

 

भूखे-प्यासे जैसे

बेटे यतीम के ।।

 

डाल-डाल लहराते ।

टहनी में फहराते ।

 

झूमते-मचलते

नशे में अफीम के ।।

 

हरे-भरे रहते हैं।

खरी-खरी कहते हैं।

 

जैसे कि तकाजे

हवा के मुनीम के।

 

झोंके छतनार कहीं।

झुकते साभार वहीं ।

 

शाख पर सजे

जैसे दोहे रहीम के।।

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

29-12-2021

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – बातें ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

?संजय दृष्टि –बातें ??

नन्ही-सी थी

कितनी बड़ी हो चली है

बूँद-सी लगती थी

धारा बन बह चली है,

जीवन की गति पर

आश्चर्य जता रहा था

दर्पण में दिखती

अपनी उम्र से बतिया रहा था,

 

आश्चर्य पर हँस पड़ी वह

कुछ यूँ कहने लगी वह-

धीमे चलने, पिछड़ जाने

का सोग जीवन भर रहा

आगमन-गमन की घटती दूरी पर

कभी चिंतन ही न हुआ,

बीता कल, आता कल,

कल हुआ हरेक पल

भूत,भविष्य की चर्चा में

हाथ से निकला हर पल,

 

यह पल यथार्थ है

यह पल भावार्थ है

इस पल को साँसों में उतार लो

इस पल को रक्त में निचोड़ लो,

 

अन्यथा

दर्पण हमेशा है

बढ़ती उम्र हमेशा है

कल होता पल हमेशा है

और बातूनी तो

तुम हमेशा से हो ही!

 

©  संजय भारद्वाज

प्रातः 7:19 बजे 01.01.2019

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #61 ☆ # नववर्ष 2022 # ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# नववर्ष 2022 #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 61 ☆

☆ # नववर्ष 2022 # ☆ 

बीत गया फिर एक साल

सूर्य चमका अंबर के भाल

गुन गुन हवायें बहनें लगी

मधुर तराने कहने लगी

ओस की बूंदें चमकने लगी

चंचल चिड़िया चहकने लगी

कलियां कलियां महकने लगी

सुगंध से सृष्टि बहकने लगी

पनघट पर चल रही सीना जोरी

भीग गई है नाजुक गोरी

आगमन मे कैसा यह संजोग

रात भर जागते दुनिया के लोग

सुख, शांति, समृद्धि हो सबके घर

यह पर्व मनाते रहे हम वर्ष भर

 

भूल जाइए वो काली रातें

दुखों से भरी पीड़ादायक बातें

अपनों से बिछड़ने का गम

आंखों में छिपे आंसू हरदम

खंडहर बने वो आशियाने

उजड़ने का दर्द वो ही जाने

बस रही वीरान बस्तियां

हर्षित हैं जीवन में डूबी हस्तियां

खुशियों का सूरज चमक रहा है

हर चेहरा आभा से दमक रहा है

कलियाँ चटकने लगीं घर घर

कम होने लगा छुपा हुआ डर

 

बड़ी रंगीन है इस सुबह की लाली

छुप गई वो स्याह रात काली

रंगीन परिधान लहरा रहे है

खुशियों का परचम फहरा रहे है

तोड़ डालिए रूढ़िवादी आडंबर

ईर्ष्या, द्वैष, नफरत का यह ज़हर

फूलों की तरह सब मुस्कराईये

उपवन को अपने स्वर्ग बनाईये

कुछ पल का हैं यह खुशीयों का प्रहर

शायद आने वाली है नयी नयी लहर

इसलिए आज इसी पल

खुशियां मनायेंगे

कल की चिंता छोड़िए

नववर्ष के गीत गुनगुनाइये /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 10 (41-45)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #10 (41-45) ॥ ☆

दसवों सिर है शैष जो बिना कटे असिधार

वह मेरे ही चक्र से पायेगा उद्धार ॥ 41॥

 

पर विधि के वरदान का कर समुचित सम्मान

अति उसकी गई सही ज्यों चंदन अहि सज्ञान ॥ 42॥

 

तप से उसने धातृ से पाया है वरदान

देवसृष्टि से अमरता कर मानव अपमान ॥ 43॥

 

मैं बन दशरथ पुत्र, कर शर से विकट प्रहार

रण में रावण – श्शीश का करूँगा मैं संहार ॥ 44॥

 

शीघ्र लखोग यज्ञ में विधिवत जो हविभाग

असुन न कर पायेंगे फिर विघ्न डाल आस्वाद ॥ 45॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 73 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 73 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 73) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 73☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

यूँ  इंतज़ार  करना

तो हमे आता नहीं,

पर  जब  बात  किसी

अपने  की  हो तो

इंतज़ार  लफ्ज़  ही कुछ

मदहोश  सा लगता है…

 

Albeit, never did I

learn  to  wait…

But when it comes to

waiting for the loved one

The  word  ‘wait’  itself    

seems so intoxicating..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

कुछ नहीं बदला

दीवाने थे,

दीवाने ही रहे…

 

हम नए शहरों में

आकर भी,

पुराने ही रहे…!

 

Nothing did ever change

Was always crazy; and,

remained crazy only…

 

Although kept

visiting new cities,

Yet remained old only!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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