॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #10 (51-55) ॥ ☆
अंतरनिहित परमपिता उठा सहित अनुराग
स्वर्णकलश में लें चरूं दिव्यपुरूष तज आग ॥ 51॥
लिया नृपति ने पुरूष से पायस उसी प्रकार
जैसे अमृत इन्द्र ने सागर का जल सार ॥ 52॥
दशरथ गुण के धनी थे जो दुलर्भ अन्यत्र
इससे प्रभु ने जन्म की इच्छा भी की तत्र ॥ 53॥
कौशल्या कैंकयी को चरू दी नृप ने बॉट
जैसे रवि नभ – धरा को देता प्रात प्रकाश ॥ 54॥
कौशल्या थी बड़ी और कैकेयी प्रिय नारि
नृप ने चाहा वे करें सुमित्रा को सत्कार ॥ 55॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈