English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 72 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 72 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 72) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 72☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

ऐ रब, दोस्तों को भी नवाज़

दे  ये दर्द की दौलत

उनके साथ नाइंसाफी हो

ये मुझे कतई  मंजूर नहीं…!

 

O Lord, do bless my friends

with the wealth of pain….

Any injustice done to them

Is not acceptable to me….!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मुझ को है ये आरज़ू कि

वो उठाएँ नक़ाब ख़ुद

उन को ये इंतिज़ार है कि

हम इल्तिज़ा करें कोई…

 

I’ve this desire that she

should lift the veil herself

While she awaits that

I must request for it.

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

कुछ तो तुम्हारी

निगाहें काफिर थीं

फिर कुछ मुझे भी

तो खराब होना था…!

 

As such, your eyes

were a little infidel

Then, I had to

get spoilt, too…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

वो ना मिलते तो

ही अच्छा होता

बेकार में ही मोहब्बत

से नफरत हो गई…!

 

It’d have been much better

if we handn’t met at all….

Avoidably, developed a

hatred towards the love!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 72 ☆ मिल्टनियन  सॉनेट ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  ‘मिल्टनियन सॉनेट।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 72 ☆ 

☆ मिल्टनियन  सॉनेट ☆

(छंद दोहा)

चित्रगुप्त मन में बसें, हों मस्तिष्क महेश।

शारद उमा रमा रहें, आस-श्वास- प्रश्वास।

नेह नर्मदा नयन में, जिह्वा पर विश्वास।।

रासबिहारी अधर पर, रहिए हृदय गणेश।।

 

पवन देव पग में भरें, शक्ति गगन लें नाप।

अग्नि देव रह उदर में, पचा सकें हर पाक।

वसुधा माँ आधार दे, वसन दिशाएँ पाक।।

हो आचार विमल सलिल, हरे पाप अरु ताप।।

 

रवि-शशि पक्के मीत हों, सखी चाँदनी-धूप।

ऋतुएँ हों भौजाई सी, नेह लुटाएँ खूब।

करतल हों करताल से, शुभ को सकें सराह।

 

तारक ग्रह उपग्रह विहँस मार्ग दिखाएँ अनूप।।

बहिना सदा जुड़ी रहे, अलग न हो ज्यों दूब।।

अशुभ दाह दे मनोबल, करे सत्य की वाह।।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२४-१२-२०२१

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य #102 ☆भोजपुरी गीत – घर गांव पराया लगै लगल ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 102 ☆

☆ भोजपुरी गीत – घर गांव पराया लगै लगल ☆

हम गांव हई‌ अपने भितरा‌, हम सुंदर साज सजाईला

चनरू मंगरू चिथरू‌ के साथे, खुशियां रोज मनाई ला।

खेते‌ खरिहाने गांव घरे, खुशहाली चारिउ‌‌ ओर रहल।

दुख‌ में ‌सुख‌ में ‌सब‌ साथ रहल, घर गांव के‌ खेढ़ा (समूह) बनल‌ रहल।

दद्दा दादी‌‌ चाची माई से, कुनबा (परिवार) पूरा भरल रहल।

सुख में दुख ‌मे सब‌ साथ रहै, सबकर रिस्ता जुड़ल रहल।

ना जाने  कइसन‌ आंधी आइल, सब तिनका-तिनका बिखर‌ गयल ।

सब अपने स्वार्थ भुलाई गयले नाता‌ रिस्ता सब‌‌ दरक गयल ।

माई‌‌ बाबू अब‌ भार‌ लगै, ससुराल के रिस्ता नया जुडल।

साली सरहज अब नीक लगै, बहिनी से रिस्ता टूटि गयल

भाई के‌ प्रेम‌ के बदले में, नफ़रत क उपहार मिलल।

घर गांव पराया लगै लगल, अपनापन‌ सबसे खतम‌ भयल।

घर गांव ‌लगै‌ पिछड़ा पिछड़ा जे जन्म से ‌तोहरे‌ साथ रहल।

संगी साथी सब बेगाना, अपनापन शहर से तोहे मिलल।

छोड़ला आपन गांव‌ देश, शहरी पन पे‌ लुभा‌ गइला।

गांव का‌ कुसूर रहल, काहे? गांव भुला गइला।

अपने कुल में दाग लगाइके, घर गांव क रीत भुला गइला।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 10 (1-5)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #10 (1-5) ॥ ☆

शासन करते इंद्र सम नृप के इसी प्रकार

वर्ष कुछ ही कम बीत गये उसके दसक हजार ॥ 1 ॥

 

पर पुरखों से उऋण हो सकने का विश्वास

दे सकने वाला न मिल पाया पृत्र – प्रकाश ॥ 2 ॥

 

आशा में महाराज का बीता लंबाकाल

मंथन पहले रत्न बिन ज्यों सागर का हाल ॥ 3 ॥

 

जितेन्द्रिय दशरथ को थी प्रबल पुत्र की चाह

ऋघ्य श्रृंग मुनि आदि ने रचा यज्ञ सोत्साह ॥ 4 ॥

 

ग्रीष्मतप्त जाते यथा सघन वृक्ष के पास

रावण पीडि़त देव सब गये विष्णु के पास ॥ 5॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – क्रिसमस ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

?संजय दृष्टि – क्रिसमस  ??

तुम्हारी कोख में

अब शायद कीलें

ठोंकी जाएँगी..,

ख़त्म हो चुकी हैं

सलीबें उनकी

नए ईसाओं को

लटकाने के लिए!

 

क्रिसमस की शुभकामनाएँ।?

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ #123 – आतिश का तरकश – ग़ज़ल – 9 – “देख लिया” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “देख लिया”)

? ग़ज़ल # 9 – “देख लिया” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

राज़े मुहब्बत छुपा कर देख लिया,

हमने  दिल लगा कर देख लिया।

 

लोगों के कहने को कुछ न मिला,

चुप को गले लगा कर देख लिया।

 

दिलजोई में जो कभी हमराज़ रहे,

उन्हें भी ग़ैर बना कर देख लिया।

 

दुनियावी लेनदेन में हमेशा कच्चे रहे,

मुहब्बत में दिल लुटा कर देख लिया।

 

दिल के सौदे में मोलभाव क्या करना,

ग़मों का हिसाब लगा कर देख लिया।

 

आँसू बचा कर क्या हासिल ‘आतिश’

सबने तुम्हें रुला रुला कर देख लिया। 

 

दिल की झोली रही  ख़ाली की ख़ाली,

खुद को समुंदर में डुबा कर देख लिया।

 

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा 60 ☆ गजल – सच में सूरज की चमक भी अब तो फीकी हो चली ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण  “गजल”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा # 60 ☆ गजल – सच में सूरज की चमक भी अब तो फीकी हो चली ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध ☆

 

हर जगह दुर्गुण-बुराईयाँ बढ़ीं संसार में

भरोसा होता नहीं झट अब किसी के प्यार में।।

 

मुॅह पै मीठी बातें होती, पीठ पीछे पर दगा

दब गये सद्भावना, नय, नीति अत्याचार में।।

 

मैल मन का फैलता जाता धुआँ सा, घास सा

स्नेह की पगडंडियॉं सब खो गई विस्तार में।।

 

आपसी रिश्तों की दुनियॉं में अँधेरा छा रहा

नये तनाव-कसाव बढ़ते जा रहे व्यवहार में।।

 

अपहरण, चोरी, डकैती, लूट, धोखें का है युग

घुट रही ईमानदारी बढ़ते भ्रष्टाचार में।।

 

भावना कर्तव्य की औ’ नीति की बीमार है

स्वार्थवश  हर एक की रूचि अब हवस अधिकार में।।

 

धन की पूजा में हवन हो गये सभी गुण-धर्म-श्रम

रंग चटक लालच के दिखते हर एक कारोबार में।।

 

विषैली चीजों की सजती जा रही दूकानें नई

राजनीति अनीति के बल चाहती है कुर्सियॉ

कीमतें अपराधियों की है बढ़ी सरकार में।।

 

सारा जग आतंक के कब्जे में फँस बेहाल है

पूरी खबरे भी कहाँ छपती किसी अखबार में।।

 

जिंदगी साँसत  में सबकी है, मगर मुँह बंद है

डर है, बेचैनी है भारी, हर तरफ अँधियार में।।

 

दुराचारों की अचानक बाढ़ सी है आ गई

जाने किसकी जान पै आ जाये किस व्यापार में।।

 

’फलक’ सूरज की चमक तक अब तो फीकी हो चली

चाँद-तारों के तो मिट जाने के ही आसार है।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 9 (76-82)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #9 (76-82) ॥ ☆

उतर अश्व से पूंछा -‘वह कौन है’ ? तो घड़े पर टिका सिर जो उसने बताया

अस्फुट स्वरों में ‘द्विजेतर है ऋषिपुत्र वह ‘बात सुन नृप को यह समझ आया। 76।

 

‘‘मुझे पिता के पास तक पहुँचा दी जै ” – कहा उसने तो राजा बिन शर निकाले

नेत्रहीन माता-पिता पास लाकर, बता दोष निज किया उनके हवा ले ॥ 77॥

 

अतिशय दुखी दम्पती ने अधिक रों, राजा से ही बिधा शर निकलवाया

सुत दिवंगत हुआ, ऋषि अश्रुले हाथ प्रहर्ता को यह शाप रो रो सुनाया ॥ 78।

 

तुम भी मेरी भाँति पाओगे मृत्यु, प्रिय पुत्र के श्शोक में वृद्ध होके

विषधर सदृश दबके छूटे सें उससे कहा कोशलाधिप ने अपराधी होके ॥ 79॥

 

देखी नही पुत्रमुख कमल शोभा, उस मुझको यह शाप उपकार सा है

जल आग खुद खेत को है जलाती, पर करती अंकुर हित तैयार सा है॥ 80॥

 

तब कहा दशरथ ने-‘ यह वध्य जो है, -करे क्या ? ” कुपाकर मुझे यह बतायें ”

मुनि ने कहा-‘‘पत्नी सह मरण इच्छा है ”सहदाह सुतहित चिता एक बनायें। 81॥

 

राजा ने मुनि आज्ञा का करके पालन, वधपाप औं शाप को मन में धारे

सागर की बड़वाग्नि सी जलन मन रख, आ गये चरों साथ वापस सिधारे॥ 82 ।

 

नवमाँ सर्ग समाप्त

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – धूप ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

?संजय दृष्टि –  धूप ??

एसी कमरे में अंगुलियों के

इशारे पर नाचते तापमान में,

चेहरे पर लगा लो कितनी ही परतें,

पिघलने लगती है सारी कृत्रिमता

चमकती धूप के साये में,

मैं सूरज की प्रतीक्षा करता हूँ,

जिससे भी मिलता हूँ;

चौखट के भीतर नहीं,

तेज़ धूप में मिलता हूँ..!

 

©  संजय भारद्वाज

7:22 बजे, 25.1.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #112 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  “भावना के दोहे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 112 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

थर थर  वो तो कांपती, बड़ी ठंड है यार।

गले लगा लो तुम इसे, कर लो इससे प्यार।।

 

मार्गशीर्ष की सुबह तो, गाती शीतल  गीत।

मिल बैठो तुम संग तो, बन जाओ मनमीत।।

 

ठंड जरा बढ़ने लगी, आया कंबल याद।

जाड़े में करने लगे, गरमी की फरियाद।।

 

ठंड ठंड अब मत कहो, लो इसका आनंद।

खुश होकर दिन काटते, लिखते प्यारे छंद।।

 

ठिठुर ठिठुर कर रह गया, दे दी उसने जान।

हिम की चादर ने उसे, दिया कफन का मान।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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