हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 68 – कालजयी जैसा माधुर्य कुछ… ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “कालजयी जैसा माधुर्य कुछ…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 68 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || कालजयी जैसा माधुर्य कुछ ….. || ☆

बंदिशें सुनाते हैं कंगूरे

और जुगलबंदी किबार की

बाकी है अब भी दीवारों में

संगत वह ईंट की, दरार की

 

सुरबहार जैसे मकड़  जाले

आलों में जलतरंग जैसा कुछ

तनी खिड़कियाँ तानपूरे सी

तार तार हो जाता जिनका चुप

 

गत में आलाप से , झरोखे हैं

गढ़ की सम्पूर्ण रागदारी के

ड्योढ़ी से दूर नहीं हो पायी

लौकिक छबि सुर में सितार की

 

मंद्र में निकलती लगी पीड़ा

जंग लगी आवाजें रागों की

सरगम सरीखी लहराती थीं

सूख गयी लहरें तड़ागों की

 

मींड़   से निकलते इस

सप्तक का

गायन करते करते बुर्ज सभी

बता नहीं पाये संगीत में

तबले की थाप को उधार की

 

कालजयी जैसा माधुर्य कुछ

ठहर गया इन अदम्य प्राचीरों

पत्थर के टुकड़ों में पसरा है

तीरकशों से निकल गये तीरों-

 

सा,जैसे भैरवी में गाता है

स्वर साधक महल से उतरते हुये

वैसा संगीत विखरता रहता

वाणी में , समय के विचार की

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

12-12-2021

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पशोपेश ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – पशोपेश ??

बहुत बोलते हो तुम..
उस रोज़ ज़िंदगी ने कहा था,
मैंने खामोशी ओढ़ ली
और चुप हो गया…,

अर्से बाद फिर
किसी मोड़ पर मिली ज़िंदगी,
कहने लगी-
तुम्हारी खामोशी
बतियाती बहुत है…,

पशोपेश में हूँ
कुछ कहूँ
या चुप रहूँ…!

©  संजय भारद्वाज

 अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 9 (16-20)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #9 (16-20) ॥ ☆

पतिव्रता धन की देवी लक्ष्मी ने आत्म भू विष्णु की करते सेवा

उदार दानी का कुत्स्थ्ज्ञ दशरथ पर कर कृपा बांटा धन का मेवा ॥ 16॥

 

कोशल, मगध, कैकय राजकन्याओं ने उसको पति रूप में पूज्य माना

जैसे के नदियों को एक सागर ही दिखता अपना सही ठिकाना ॥ 17॥

 

तीनों महारानियों साथ राजा प्रजा को अपनी विनयी बनाने

प्रभु-मंत्र-उत्साह मय शक्तियों से थे इन्द्रसम यश से जगमगाने ॥ 18॥

 

महारथी ने फिर युद्ध में इन्द्र का साथ दे, शर से चिजय दिलाई

सुरागंनाओ ने उसके विक्रम की तब खुले मन से कीर्ति गाई ॥ 19॥

 

दिगन्त विजयी सतोगुणी दशरथ ने यजन हेतु मुकुट उतारा

तमस्त व सरयू सरिता तटों को स्वर्णिम यज्ञ स्तूपों से सॅवारा ॥ 20॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 70 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 70 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 70) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 70☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

हम कहाँ तुमसे अपने

सवालों के जवाब मांगते हैं,

सिर्फ अपनी आँखों के

हिस्से के ख्वाब मांगते हैं…

 

When have I asked you

to answer my questions,

I only asked for the part of

my dreams in your eyes!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

ये बिखरी-बिखरी ज़ुल्फें

ये उखड़ी-उखड़ी सांसें

तेरी आँखें बयां कर रही हैं

बीती रात का फसाना…!

 

These scattered swirls,

these unsettled breaths..

Your eyes are narrating

the testimony of last night..

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

कितनी अज़ीब है ये

मेरे अंदर की तन्हाई

कितने अपने हैं पर याद

हमेशा तुम ही आते हो…

 

How strange is this

loneliness inside me…

So many loved ones are there

but remember do I you only..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

अंजान हो अगर तो

गुजर क्यों नहीं जाते,

पहचान रहे हो तो

ठहर क्यों नहीं जाते….!

 

If you are a stranger, then

why don’t you go away,

If you recognize me, then

why don’t you stop….!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 70 ☆ घनाक्षरी ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  ‘घनाक्षरी।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 70 ☆ 

☆ घनाक्षरी ☆

*

चलो कुछ काम करो, न केवल नाम धरो,

उठो जग लक्ष्य वरो, नहीं बिन मौत मरो।

रखो पग रुको नहीं, बढ़ो हँस चुको नहीं,

बिना लड़ झुको नहीं, तजो मत पीर हरो।।

गिरो उठ आप बढ़ो, स्वप्न नव नित्य गढ़ो,

थको मत शिखर चढ़ो, विफलता से न डरो।

न अपनों को ठगना, न सपनों को तजना,

न स्वारथ ही भजना, लोक हित करो तरो।।

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य #100 ☆ मैं उसको पावन कहता था ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 100 ☆

☆ मैं उसको पावन कहता था ☆

माँ की छाती का मिला दूध,

उसको मैं पावन कहता था।

उसकी आँखों से ढुलके मोती,

 उसको मैं सावन कहता था।

उसके आँचल की छाँव मिली,

उसमें ही जीवन पलता था।

उसकी उँगली का मिला सहारा,

 नन्हें पाँवों से चलता था।

।। माँ की छाती का मिला दूध।।1।।

 

माँ जब जब गुस्सा होती थी,

तब मुझे डाँटती जाती थी।

दिल में प्यार उमड़ता था,

आँखों से बदली बरसाती थी।

वह हर मंदिर में जाती थी,

मेरी ही कुशल मनाती थी ।

उसकी आँखें भर आती थी,

जब मेरी याद सताती थी।

।। माँ की छाती का मिला दूध।।2।।

 

आँखों में गुस्सा दिल में प्यार,

ना आए समझ तेरा व्यवहार।

जो भी रूखा सूखा मिलता,

वह पहले मुझे खिलाती थी।

पेट मेरा भरने की खातिर,

तू खुद भूखी सो जाती थी।

न जाने कितने जतन किए,

तूने  मुझे पढ़ाने की खातिर।

अपने सारे श्रम का फल ,

तूने मुझे चढ़ाने की खातिर।

अपने आंखों के पीकर आंसू,

तूने तो मुझको पाला था।

माँ तेरी फौलादी हिम्मत,

ने ही तो मुझे संभाला था।

।। माँ की छाती का मिला दूध।।3।।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 9 (11-15)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #9 (11-15) ॥ ☆

 

कुशल धनुर्धर, विकट रथी की, कुबेर सी संपत्ति के धनी की

धन गर्जना करते सागरों ने विजय की दुन्दुभि की घोषणा की ॥ 11॥

 

ज्यों इंद्र ने बहुमुखों कुलिश से पहाड़ो के पक्ष की शक्ति काटी

त्यों राजा दशरथ कमल वदन ने शरों से अरिबल मिलाया माटी ॥ 12॥

 

ज्यों देवगण इंद्रचरण विभादीप्त मुकुट झुका करते चरण वंदन

त्यों सैकड़ो नृप तज मान दशरथ का किया करते थे पाद वंदन ॥ 13॥

 

सचिव सिखाये प्रणाम करते अरिपुत्रों औं उनकी विधवा माँ को

तज कर कृपा दशरथ लौटे आये, समुद्र तट से अयोध्या को ॥ 14॥

 

जो मित्र के साथ थे चंद्रिकावत और शत्रु के साथ प्रचण्ड ज्वाला

वे चक्रवर्ती थे बारह मण्डल के पर थे निरालय, नित श्रम को पाला ॥ 15॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – नरगिद्ध ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – नरगिद्ध ??

वे बेच रहे हैं

हत्या,

आत्महत्या,

चीत्कार,

बलात्कार,

सिसकारी,

महामारी,

धरना,

प्रदर्शन,

हंगामा,

तमाशा,

वेदना,

संवेदना..,

इस हाट में

हर पीड़ा

उपजाऊ है,

हर आँसू

बिकाऊ है..,

राजनीति,

सत्ता,

षड्यंत्र,

ताकत,

सारे बिचौलिये

अघा रहे हैं,

इनकी ख़ुराक पर

गिद्ध शरमा रहे हैं,

मैं निकल पड़ा हूँ दूर,

बहुत दूर…,

वहाँ पहुँच गया हूँ

जहाँ से यह मंडी

न दिखती है,

न सुनती है..,

इस टापू पर

निष्पक्ष होकर

सोच सकते हैं,

कुछ और नहीं तो

पीड़ित के लिए

सचमुच रो सकते हैं..,

इस टापू को मैं रखूँगा

मनुष्यों के लिए सुरक्षित

नरगिद्धों के लिए वर्जित,

प्रतीक्षा रहेगी,

तुम कहाँ हो मित्र..?

 

आदमी की आदमियत बची रहे।

 

©  संजय भारद्वाज

प्रात 5:31 बजे, 3 अक्टूबर 2020

 अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ #122 – आतिश का तरकश – ग़ज़ल – 7 – “वतन परस्त” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।  आज प्रस्तुत है  जनरल बिपिन रावत जी एवं शहीद जांबाजों को श्रद्धांजलि स्वरुप आपकी ग़ज़ल “वतन परस्त”)

?? आतिश का तरकश – ग़ज़ल # 7 – “वतन परस्त” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ??

 

महफ़ूज़ रहना ऐ वतन सेनापति सफ़र करते हैं,

तुम्हें सलाम हर शहर गाँव दर बदर करते है।

तुम दहाड़े शेर की मानिंद दुश्मन की जमीं पर,

हम वीर सिपहसालारों से दिली मुहब्बत करते हैं।

तुम्हारे सीने पर तग़मे कहते जज़्बे की कहानी,

दुश्मन नज़र तो उठाए हम काम तमाम करते हैं।

तुम्हारी ये ज़िंदादिली हर सिपाही में जान फूंकेगी,

ज़रूरत होने पर बता देंगे हम शहादत करते हैं।

यह देश हमेशा वतन परस्तों का क़र्ज़दार रहेगा,

देश की आन के लिए जान हथेली पर धरते हैं।

वक़्त आने पर हम भी बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ,

‘आतिश’ अभी क्यों बताए सिपाही क्या करते हैं।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 58 ☆ गजल – ज़िन्दगी ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण  “गजल”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा # 58 ☆ गजल – जिंदगी ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध ☆

 

जीना है तो दुख-दर्द छुपाना ही पड़ेगा

मौसम के साथ निभाना-निभाना ही पड़ेगा।

 

देखा न रहम करती किसी पै कभी दुनियाँ

हर बोझ जिंदगी का उठाना ही पड़ेगा।

 

नये हादसों से रोज गुजरती है जिंदगी

संघर्ष का साहस तो जुटाना ही पड़ेगा।

 

 खुद संभल उठ के राह पै रखते हुये कदम

दुनियॉं के साथ ताल मिलाना ही पड़ेगा।

 

हर राह में जीवन की, खड़ी है मुसीबतें

मिल उनसे, उनका नाज उठाना ही पड़ेगा।

 

दस्तूर हैं कई ऐसे जो दिखते है लाजिमी

हुई शाम तो फिर दीप जलाना ही पड़ेगा।

 

है कौन जिससे खेलती मजबूरियॉं नहीं ?

मन माने या न माने मनाना ही पड़ेगा।

 

पलकों में हों आँसू तो ओठों को दबाके

मुँह पै बनी मुस्कान तो लाना ही पड़ेगा।

 

खुद के लिये न सही, पै सबके लिये सही

जख्मों को अपने दिल के छुपाना ही पड़ेगा।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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