हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 78 ☆ सॉनेट – शीत ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  ‘सॉनेट – शीत।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 78 ☆ 

☆ सॉनेट – शीत ☆

*

प्रीत शीत से कीजिए, गर्मदिली के संग।

रीत-नीत हँस निभाएँ, खूब सेंकिए धूप। 

जनसंख्या मत बढ़ाएँ, उतरेगा झट रंग।।

मँहगाई छू रही है, नभ फीका कर रूप।।

*

सूरज बब्बा पीत पड़, छिपा रहे निज फेस।

बादल कोरोना करे, सब जनगण को त्रस्त।

ट्रस्ट न उस पर कीजिए, लगा रहा है रेस।।

मस्त रहे जो हो रहे, युवा-बाल भी पस्त।।

*

दिल जलता है अगर तो, जलने दे ले ताप।

द्वार बंद रख, चुनावी ठंड न पाए पैठ। 

दिलवर कंबल भा रहा, प्रियतम मत दे शाप।।

मान दिलरुबा रजाई, पहलू में छिप बैठ।।    

*

रैली-मीटिंग भूल जा, नेता हैं बेकाम।

ओमिक्रान यदि हो गया, कोई न आए काम।। 

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२९-१२-२०२१ 

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बसंत पंचमी: आया पर्व ऋतुराज बसंत का… ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आई आई एम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। आप सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत थे साथ ही आप विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में भी शामिल थे।)

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी ने अपने ‘प्रवीन  ‘आफ़ताब’’ उपनाम से  अप्रतिम साहित्य की रचना की है। आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना बसंत पंचमी: आया पर्व ऋतुराज बसंत का…।  

? बसंत पंचमी: आया पर्व ऋतुराज बसंत का…?

निर्मल, चंचल, शीतल समीर,

मन्दस्वर में है गुनगुनाती

शरद चाँदनी मुक्त हृदय से

अनवरत रहती है इठलाती

पीली चादर है ओढ़े सरसों,

धानी चुनर में लिपटी वसुधा

नीले अंबर तले, हृदय झंकृत

करती रहती, है अमृत-सुधा

 

चंचल कलरव पक्षियों का

इंद्रधनुषी महकते फूलों में

है स्वागत तुम्हारा ऋतुराज

इन बसंती उन्मुक्त झूलों में

 

हे विद्यादायिनी माँ सरस्वती

हे वीणावादिनि शारदा वर दे

हे ज्ञानदायिनी, हे हंसवाहिनी

बुद्धि, मति से परिपूर्ण कर दे

 

© कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

पुणे

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 12 (31-35)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (31-35) ॥ ☆

सर्गः-12

 

विन्ध्या ज्यों अनुशाशित, ऋषि अगस्त्य आदेश।

बसे राम पंचवटी त्यों तज कर अन्य प्रदेश।।31।।

 

तपी त्रस्त ज्यों सर्पिणी आती चन्दन पास।

कामाहत त्यों शूर्पनखा आई राम के पास।।32।।

 

सीमा सम्मुख ही लगी करने आत्म बखान।

कामातुर कामिनी को रहता कब कोई ध्यान।।33।।

 

सबल श्रेष्ठ श्रीराम ने कहा उसे समझाय।

वे तो हैं पत्नी सहित, एकाकी है भाई।।34।।

 

लक्ष्मण ने भी जब उसे किया न अंगीकार।

फिर लौटी वह राम पै ज्यों सरिता की धार।।35।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ #128 – आतिश का तरकश – ग़ज़ल – 15 – “इंतज़ार-ए-शबेग़म हुआ नहीं मुक्तसर …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “इंतज़ार-ए-शबेग़म हुआ नहीं मुक्तसर …”)

? ग़ज़ल # 15 – “इंतज़ार-ए-शबेग़म हुआ नहीं मुक्तसर …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

मिरे चेहरे से तुम क्या जान लोगे,

दिल तुमको दिया क्या जान लोगे।

 

डरते क्यों हो निगाहों से ज़माने  की,

पा जाओगे मुहब्बत अग़र ठान लोगे।

 

हमसे कुछ दिन और थोड़ा रूठे रहो,

मिलने की मजबूरी खुद जान लोगे। 

 

रुत मिलन की  गुनगुनाएगी रगों में,

हमारी ख़ुशबू बदन में पहचान लोगे।

 

नज़र बिछाए बैठे हैं तुम्हारी राहों में,

तोहफ़े में क्या सुलगते अरमान लोगे।

 

दस्तरखान दीवानगी का सज़ा रक्खा,

लबों से चख ज़ायक़ा पहचान लोगे।

 

इंतज़ार-ए-शबेग़म हुआ नहीं मुक्तसर,

आने के वास्ते रक़ीब से फ़रमान लोगे।

 

जुदाई  मज़ा देती है थोड़े  वक़्त की,

टूटे प्यालों से क्या रक़्स-ए-जान लोगे।

 

रातें हुईं अब ख़ार-ओ-ख़स सी तनहा,

मुर्दा जिस्म से तुम क्या आन लोगे।

 

इंतज़ार-ए-वस्ले यार में जो हुआ पिन्हा,

ख़ुदगर्ज ‘आतिश’ की  क्या शान लोगे।

 

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ वसंत पंचमी विशेष – ।।शरद ऋतु का अंत।।बसंत।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं। आज प्रस्तुत है आपकी वसंत पंचमी पर्व पर एक विशेष रचना ।।शरद ऋतु का अंत।।बसंत।। )

☆ कविता ☆ वसंत पंचमी विशेष – ।।शरद ऋतु का अंत।।बसंत।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

।।विधा।। मुक्तक।।

[1]

शरद ऋतु तुमको प्रणाम, खुमारी सी छाने लगी है।
लगता ऋतुराज़ बसंत की, रुतअब कहींआने लगी है।।
माँ सरस्वती काआशीर्वाद, अब पाना है हम सबको।
मन पतंग भीअब खुशियों, के हिलोरे खाने लगी है।।

[2]
पत्ता पत्ता बूटा बूटा अब, खिला खिला सा तकता है।
धवल रश्मि किरणों सा, सूरज जैसे अब जगता है।।
मौसम चक्र में मन भावन, परिवर्तन अब आया जैसे।
ऋतुराज बसन्त काअवसर, अब आया सा लगता है।।

? बसंत पंचमी कीअनंत शुभ कामनाओं सहित ?

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा 67 ☆ गजल – ’याद’ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण  ग़ज़ल  “याद ”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 67 ☆ गजल – ’याद’ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

तुम्हारे सँग बिताया जब जमाना याद आता है

तो आँसू भरी आँखों में विकल मन डूब जाता है।

बड़ी मुश्किल से नये-नये सोच औ’ चिन्ता की उलझन से

अनेकों वेदनाओं की चुभन से उबर पाता है।

न जाने कौन सी गल्ती हुई कि छोड़ गई हमको

इसी संवाद में रत मन को दुख तब काटे खाता है।

अचानक तुम्हारी तैयारी जो यात्रा के लिये हो गई

इसी की जब भी आती याद, मन आँसू बहाता है।

अकेले अब तुम्हारे बिन मेरा मन भड़ भड़ाता है।

अँधेरी रातों में जब भी तुम्हें सपनों में पाता हूँ

तो मन यह मौन रो लेता या कुछ-कुछ बड़बड़ाता है।

कभी कुछ सोचें करने और होने लगता है कुछ और

तुम्हारे बिन, अकेले तो न कुछ भी अब सुहाता है।

अचानक तेवहारों में तुम्हारी याद आती है

उमड़ती भावनाओं में न बोला कुछ भी जाता है।

बड़ी मुश्किल से आये थे वे दिन खुष साथ रहने के

तो था कब पता यह भाग्य कब किसकों रूलाता है।

है अब तो शेष, आँसू, यादें औ’ दिन काटना आगे

अंदेशा कल का रह-रह आ मुझे अक्सर सताता है।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

vivek1959@yahoo.co.in

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 12 (26-30)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (26-30) ॥ ☆

सर्गः-12

करती अनुसरण राम का सिया सुनारि अनूप।

गुणोन्मुखी लक्ष्मी सदृश हुई सुशोभित खूब।।26।।

 

अनुसूया के वचन की बिखरी पुण्य सुगंध।

पाकर भौंरे भूल गये वन पुष्पों की गंध।।27।।

 

सांध्य मेघ के वर्ण का वन में मिला विराध।

जैसे चंद्रपथ रोकने ‘राहु’ करे अपराध।।28।।

 

वर्षा ऋतु में ग्रह यथा हरते वर्षा-धार।

उस राक्षस ने जानकी हर ली उसी प्रकार।।29।।

 

राम-लखन ने तब उसे अतिशय पीस-पछाड़।

आश्रम दूषण बचाने दिया भूमि में गाड़।।30।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 118 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  “भावना के दोहे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 118 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

रागिनी

मधुर रागिनी छेड़ दी, बजती है झंकार ।।

सुधा बरसती प्रेम की, भीगे दिल के तार।।

 

मयूर

हलचल बादल में हुई, भरे मयूर उड़ान।

ठुमक -ठुमक कर चल रहा, दिखा रहा है शान।।

 

पुष्पज

भ्रमर फूल को देखकर, आते हैं जो पास।

पुष्पज का परिमल उन्हें, देता सुख-उल्लास।।

 

पर्जन्य

उमड़ – घुमड़ कर छा रहे, मिल-जुलकर हर ओर।

देख सभी पर्जन्य को, झूम मचाते शोर।।

 

अंगना ..

छेड़छाड़ से है व्यथित, छुपी अंगना आज।

डर से थरथर काँपती, किसे बताए राज।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : bhavanasharma30@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष#107 ☆ कैसे कहूँ विरह की पीर…. ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.  “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण  रचना “कैसे कहूँ विरह की पीर….। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 107 ☆

☆ कैसे कहूँ विरह की पीर….

 

पल पल राह निहारे आँखें, मनवा होत अधीर

जब से बिछुड़े श्याम साँवरे, अँखियन बरसत नीर

नैनन नींद न आबे मोखों, छूट रहा है धीर

बने द्वारिकाधीश जबहिं से, भूले माखन खीर

व्याकुल राधा बोल न पावें, चुभें विरह के तीर

दर्शन बिनु “संतोष” न आबे, काहे खेंचि लकीर

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 12 (21-25)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (21-25) ॥ ☆

सर्गः-12

एक बार छाया सघन तरूतल सहित प्रमोद।

थके हुये से सो रहे राम सिया की गोद।।21।।

 

तभी इन्द्र-सुत काक बन आया वहाँ जयन्त।

रख कुदृष्टि छू सिया को नभ में उड़ा अनन्त।।22।।

 

मारा बाण इषीक तब, यह घटना सुन राम।

क्षमा माँगने पर किया एक नेत्र बेकाम।।23।।

 

चित्रकूट है निकट अति जहाँ भरत का वास।

यह विचार हरिणों भरा छोड़ा वह वन खास।।24।।

 

रह नक्षत्रों बीच ज्यों वर्षा बीते भानु।

किया राम ने रह वहाँ, दक्षिण दिशा प्रयाण।।25।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares