हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 8 (26-30)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #8 (26-30) ॥ ☆

श्राद्धकर्म अज ने किये पितृभक्ति के भाव

योगी तो रखते नहीं पिण्डदान का चाव ॥ 26॥

 

पितृमरण के शोक को, वेदपाठ से भूल

धनुर्वीर अज ने किया हर नृप को निर्मूल ॥ 27॥

 

धरा इन्दु दोनों ने ही पा पति अज सा भूप

सफल हुई दे रत्न और वीर महान सपूत ॥ 28॥

 

इंदुपुत्र थे ख्यात नृप दशरथ जिनका नाम

जिनके आगे थे हुये रावणरिपु श्री राम ॥ 29॥

 

अध्ययन यजन औं जनन से होकर अज ऋणमुक्त

पितृ – देव – ऋषि कृपा से भासे ज्यों रवि मुक्त ॥ 30॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – बीमारी ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – बीमारी ??

तबीयत बिगड़ने पर, तब

बहू काढ़ा पिलाती थी,

बेटा पाँव दबाता था,

पोती माथा सहलाती थी,

पोरों में बसी नेह की छुअन

बीमारी को भगा देती थी,

तबीयत बिगड़ने पर, अब

दवाइयाँ हैं, एंटीबायोटिक हैं,

बहू, बेटा, पोती भी हैं,

बचा-खुचा नेह भी है,

पर समय नहीं है किसीके पास,

इन दिनों बीमारी दब तो जाती है

पर जाने में समय लगाती है!

 

©  संजय भारद्वाज

प्रात: 9:46 बजे, 14.2.2019

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603
संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ।।देखने को सितारे पहले, अँधेरा जरूरी   होता है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण एवं विचारणीय रचना ।।देखने को सितारे पहले, अँधेरा जरूरी   होता है।।)

☆ कविता – ।।देखने को सितारे पहले, अँधेरा जरूरी   होता है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

(विधा – मुक्तक)

 

[1]

देखने को सितारे   अंधेरा पहले जरूरी   है।

आजमाने को  भाग्य   का फेरा    जरूरी  है।।

देखना चाहते इंद्रधनुष तो भीगो बरसात  में।

भीतर की शक्ति लिए दुखों का घेरा जरूरी है।।

 

[2]

काँटों से घिरना ही  गुलाब की     शान        है।

संघर्ष से ही       निकलती आपकी पहचान है।।

अग्नि में तप     कर  सोना बनता    है   कुंदन।

बिन दुःख के    सुखों   का स्वाद   सुनसान है।।

 

[3]

जीत आपके   कर्मों     की लिखी   किताब     है।

सफलता आपकी   मेहनत का ही    हिसाब।   है।।

एक मुट्ठी जमीन नहीं  पूरा आसमां मिल सकता।

कोशिश कर   देखो सामने मंजिल बेहिसाब   है।।

 

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 86 ☆ बाल कविता – मौजी राजा चूहा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । 

आज प्रस्तुत है  “बाल कविता – मौजी राजा चूहा ”. 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 86 ☆

☆ बाल कविता – मौजी राजा चूहा ☆ 

 एक विदेशी चूहा आया

      सैर सपाटे को करने

नाम था उसका मौजी राजा

     लगा देखने वह झरने।।

 

झरने, जंगल , नदियाँ देखीं

      पर्वत घूमा वह सारा

अद्भुत भारत देश लगे है

      सुंदर- सुंदर है प्यारा।।

 

फूल खिले हैं बाग- बगीचे

      चलती हवा सुखदाई

जीवन में रस घोल रही है

      प्रीत प्रेम में नहाई।।

 

देखे बच्चे एक जगह पर

      चूहा दौड़ा है आया

बोला बच्चो करो दोस्ती

      मैं प्यारा घोड़ा लाया।।

 

 बच्चे सहमे दौड़े भागे

       यह चूहा अद्भुत कैसा

तन है इसका भूरा- भूरा

       नहीं यहाँ के जैसा।।

 

चूहा था मस्ती में अति का

      चढ़ा एक बच्चे के ऊपर

सब बच्चों ने ताली पीटी

       बचपन होता सच में मधुकर।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 8 (21-25)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #8 (21-25) ॥ ☆

अज ने षट गुण फलों का समझ लिया उपयोग

सत – रज – तम गुण जीत कर रघु ने किया प्रयोग ॥ 21॥

 

कर्म निरत फल प्राप्ति तक अज ने न किया विराम

स्थिर बुद्धि रघु को भी था हरिदर्शन से काम ॥ 22॥

 

सिद्धि प्राप्ति में जहाँ भी जो भी था अवरोध

उसे हटा पाई विजय दोनों ने बिन रोक ॥ 23॥

 

सबके प्रति समभाव रख रख अज का अनुरोध

बिता काल कुछ और भी रघु ने पाया मोक्ष ॥ 24॥

 

रघु का सुन देहांत अज हो दुखलीन विपन्न

सन्यासी जन सहित सब किया कर्म सम्पन्न ॥ 25॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #108 – दुखों का सुख….. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी  एक अतिसुन्दर एवं विचारणीय कविता  “दुखों का सुख…..”। )

☆  तन्मय साहित्य  #108 ☆

☆ दुखों का सुख…..

 

दुखों का सुख….

घावों को अपने

उघाड़-उघाड़ कर

दर्द को बार-बार कुरेदना

जतन से सहलाते हुए

दुखों को अंतस में सहेजना

अच्छा लगता है।

 

 रुग्ण वेदना में भी

दुख का सुख पीना

अपने खालीपन को

दुखों से भर कर जीना

बाहर उलीचने के बजाय

उन्हें रात दिन सींचना

अच्छा लगता है।

 

कभी प्रवक्ता बन दुखों का

कारुणिक बखान करना

आँखों में अश्रुजल भरना

पीड़ा के स्थाई भाव

प्रदर्शित कर दूजों से

सहानुभूति प्राप्त करना

अच्छा लगता है।

 

हमारे दुखी होने से

आपका सुखी होना

और आपके सुख से

हमारा दुखी होना

सप्रयास दुख कमाना

सुखों को भी

दुख का आवरण पहनाना

अच्छा लगता है।

 

सुखों की सुरक्षा को

दुख का ताला

गहन अंधेरे  के बाद

किरण भर उजाला

बन्द कर स्वयं को

फिर चाबियाँ सँभालना

अच्छा लगता है

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 1– मुझे याद रब की —- ☆डॉ. सलमा जमाल

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 22 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक लगभग 72 राष्ट्रीय एवं 3 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।  

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है। 

अब आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण गीत “मुझे याद रब की —-” 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 1 ✒️

? गीत – मुझे याद रब की —- डॉ. सलमा जमाल ?

मुझे याद रब की ,बहुत आ रही है ।

ग़म से अब आवाज़ ,थर्रा रही है ।।

 

चांद हुआ मद्धम , सितारे पशेमां,

टुकड़े – टुकड़े बादल, बिखरे अरमां ,

चांदनी दबे पैर , चली जा रही  है ।

मुझे याद ———————— ।।

 

फ़लक से उतरी है , लाली ज़मीं पे ,

कोरोना से बरपा , क़हर हमीं पे ,

शुमाऐं सूरज की , शरमां रहीं हैं ।

मुझे याद ———————— ।।

 

परिंदे हैं सहमें , यह कैसा आलम ,

लाशों के ढेरे ,  हुक़ूमत है ज़ालिम ,

सदायें दुआ ख़ैर , की आ रहीं हैं ।

मुझे याद ———————— ।।

 

इक सांस के लिए , तड़पते हैं इंसान ,

कल घर थे गुलशन , हुए आज वीरां ,

ये वबा पंख अपने, फ़ैला रही है ।

मुझे याद ———————- ।।

 

क़फ़न है ना लकड़ी ,ना पैसा ज़मीं है ,

सांसें बाप बेटे की , साथ थमीं हैं ,

लाशें गंगाजल में , उतरा रहीं हैं ।

मुझे याद ———————– ।।

 

एहसास दिल के , हो गए आज मुर्दा ,

दामन बिछाओ , करे ‘सलमा’ सिजदा,

नमाज़- ए- मोहब्बत, क़ज़ा हो रही है ।

मुझे याद ———————— ।।

 

© डा. सलमा जमाल 

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्रकृति जीवनदायिनी है ☆ डॉ निशा अग्रवाल

डॉ निशा अग्रवाल

☆  कविता – प्रकृति जीवनदायिनी है ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

 

रूढ़वादिता की दहलीज पर खड़े होकर 21वीं सदी के सपने देख रहे है हम।

आधुनिकता के रंग में रंगने को तैयार हो रहे हैं हम।।

काट रहे हैं वन जंगल सब ,

बहक रहे है हम।

ऐसा सतत करते रहे तो,

एक दिन मिट जाएंगे हम।।

हिमगिरि से ढके पहाड़ों को काट रहे हैं हम।

बिना भविष्य की सोच विचार कर,

चौड़े चौड़े मार्ग बना रहे है हम।।

पानी के स्रोतों को बंद कर,

स्वयं विनाश को दावत दे रहे है हम।

सूखा है धरती का आँचल,

आकर्षण हरियाली मां का सुखा रहे हैं हम।।

पानी बिक रहा लीटर में, बोतल में होकर बंद।

पानी बचाओ के नारे अब लगा रहे है हम।।

वन उपवन सब काट काट कर,

बहुमंजिला इमारत बना रहे है हम।

आधुनिकता की अंधी दौड़ में, दौड़ रहे हैं हम।।

पक्षियों के घरौंदे घोंसले,

खत्म कर रहे है हम।

वृक्षों से मिलती मुफ्त ऑक्सीजन

को कम कर रहे है हम।।

खरीद रहे नौनिहाल जिंदगी,

बंद सिलेंडर में अब हम।

एक तरफ हरियाली बचाओ के

नारे लगा रहे है हम।।

आधुनिकता की होड़ में हमने

बहुत कुछ बर्बाद किया।

अपना जीवन अपने हाथों से ही स्वाह किया।।

ए सी, पंखा, फ्रीज, ओवन और मोबाइल का प्रयोग किया।

पर्यावरण की सुरक्षा ना करके,

सिर्फ अपना स्वार्थ ही सिद्ध किया।।

प्रकृति ने जब जब कुछ कहना चाहा।

अनसुनी कर मनमानी से हमने जीना चाहा।।

कितना प्यार लुटाती है एक माँ की तरह प्रकृति।

बिन मांगे ही बहुत कुछ दे जाती है प्रकृति।।

दिन की रोशनी, रात की चाँदनी देती है प्रकृति।

धरती को हरा भरा करती है प्रकृति।।

मत काटो, मत काटो हमको कहती ये,

रो रो कर अश्रु बहाती ये।

निर्जीव नही मैं, प्राण बसे मुझमें,

बिलख रही है हर पल ये।

पलता जीवन, मिलता आश्रय,

शुद्ध हवा कर देती ये।

सारी विपदा को हर लेती,

हर पल कुछ ये देती रहती, बदले में कुछ ना लेती ये।

पेड़ पौधें और पर्ण पुष्प सब आभूषण है प्रकृति के,

दवा, पानी, फल, भोजन, वायु उपहार बने सब प्रकृति के।

मानव की उद्दंडता ने प्रकृति को बहुत है उकसाया,

विकास की दौड़ में मानव ने प्रकृति को बहुत है तड़फाया।

उठो जागो नर नारी तुम, प्रकृति से ना रुसवाई करो,

हरियाली चादर फैलाकर, प्रकृति को खुशहाल करो।

 

©  डॉ निशा अग्रवाल

जयपुर, राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 8 (16-20)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #8 (16-20) ॥ ☆

रघु तो सन्यासी बने, पुत्र बना सम्राट

धर्म के जैसे रूप दो – मोक्ष और उदय विराट ॥ 16॥

 

नीति निपुण जन मंत्रणा से अज बने अजेय

तत्व ज्ञान से मोक्ष पदपाना  रघु का ध्येय ॥ 17॥

 

महाराज अज राज्य हित हुये धर्म आसीन

मनस्थिरता हेतु रधु हुये ध्यान तल्लीन ॥ 18॥

 

कोष-दण्ड-बल से किया अज ने सब आधीन

रघु भी योग – समाधि में हुये साधनालीन ॥ 19॥

 

अज ने अरियों के किये ध्वस्त समग्र प्रयास

ज्ञान – अग्नि से रघु ने भी किये कर्म सब नाश ॥ 20॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ शब्द मेरे अर्थ तुम्हारे – 8 – तात्पर्य ☆ श्री हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

☆ शब्द मेरे अर्थ तुम्हारे – 7 ☆ हेमन्त बावनकर

 ☆ तात्पर्य ☆

शब्दकोश तो वही है

फिर

मेरे शब्द इतने कोमल

किन्तु,

तुम्हारे शब्द

इतने कठोर क्यों हैं?

 

मेरे शब्दों का तात्पर्य तो

मानवता से था

किन्तु,

तुमने उसमें भी

अमानवीयता ढूंढ लिया?

 

मेरे शब्दों का तात्पर्य तो

नया इतिहास रचने से था

किन्तु,

तुमने तो इतिहास ही बदल दिया?

 

मेरे शब्दों का तात्पर्य तो

अपने सृजन को अपना नाम देने से है 

किन्तु,  

तुमने तो अन्य के सृजन को

अपना नाम/नया नाम ही दे दिया।  

 

मेरे शब्दों का तात्पर्य तो

शब्दों के तात्पर्य से है

सत्य, अहिंसा, प्रेम से है

वसुधैव कुटुंबकम से है

सार्वभौमिकता  से है

किन्तु,

तुमने तो संकीर्ण विचारधारा ही थोप दी।

 

© हेमन्त बावनकर

पुणे 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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