हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – वह ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – वह  ??

‘वह’ शृंखला की एक और कविता प्रसूत हुई। पाठकों के साथ साझा कर रहा हूँ।

 

उसके भीतर

बसती है एक बतक्कड़,

बहुत कुछ, सब कुछ

उससे कहना चाहती है वह,

किस्से-कहानी, आपबीती-जगबीती

सिर्फ उसे सुनाना चाहती है वह,

फिर सुनकर उसका रूखापन

अनमनी-सी चुप हो जाती है वह !

 

©  संजय भारद्वाज

अपराह्न 1:48 बजे, 9.1.20 2 2

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 
मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 10 (81-86)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #10 (81-86) ॥ ☆

था सौहाद्र समान पर, राम – लखन थे साथ

तथा भरत – शत्रुघ्न का था स्नेह विख्यात ॥ 81॥

 

वायु – अग्नि में प्रेम ज्यों, चंदा और समुद्र

वैसे ही द्वय युग्म का था सनेह अति उग्र ॥ 82॥

 

चारों की तेजस्विता औं विनम्रता साथ

जनप्रिय मन मोहक थी ज्यों ग्रीष्म बाद बरसात ॥ 83॥

 

दशरथ के वे पुत्र थे शोभित, चार उदार

अर्थ कर्म काम मोक्ष के साक्षात अवतार ॥ 84॥

 

सागर पाता रत्नों से दिय स्वामी का ध्यान

त्यों प्रसन्न सुत गुणों से दशरथ पिता महान ॥ 85॥

 

भंजक दैत्य असि दन्त से ऐरावत गजराज

फलदायी गुणचार से राजनीति के काज ॥ 86॥ अ

 

चतुर्युगो के भार से ज्यों श्शोभित भगवान

विष्णु अंश चारों सुतों से त्यों नृपति महान ॥ 86॥ ब

 

दसवॉ सर्ग समाप्त

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 72 – दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 72 –  दोहे ✍

सत्ताधारी जब रहे, सूजी उनकी डाढ़,

फिर जिनका कब्जा हुआ, डाढें रहे उखाड़।।

 

शिक्षा मंत्री बन गए, बाप पढ़ें  ना पूत ।

पढ़े-लिखे की हैसियत, हैंडलूम का सूत।।

 

क्या है उनकी कुंडली, क्या है उनका ज्ञान ।

अरे अरे मत पूछिए, सुनिए सिर्फ बयान।।

 

महंगाई की मार से, सभी लोग बेहाल ।

ढेर ढेर भूसा दिखे, खिंचे हमारी खाल।।

 

बहिन बेटियों समझ लो, समय-सांड  बिगड़ैल ।

सोच समझकर निकलिए, राजनीति की गैल।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 72 – घाट की निश्छल … ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – घाट की निश्छल।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 72 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || घाट की निश्छल … || ☆

पूछता है अब

नदी का कुल ।

अकड़ कर जर्जर

पुराना पुल ।।

 

बाढ़ है उतरी

लगा अनुमान।

कह रहा, हूँ ले

रहा संज्ञान ।

 

पानी-पानी थी

नहीं पूछा कभी ।

आज परिचय

पूछने ब्याकुल ।।

 

संधियाँ छुट-पुट

किनारों की ।

स्मृतियाँ जल के

प्रहारों की ।

 

खिला जिन पर

मुस्कुराता अकिंचन

वनस्पतियों का

हरित संकुल ।।

 

घाट की निश्छल

टिटहरी जो ।

रह चुकी हैअडिग

प्रहरी वो ।

 

कह रही सबसे

जरा सीखो ।

जिस तरह रहती

यहाँ बुलबुल ।।

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

05-01-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सृजन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

सभी मित्रों को विश्व हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ।

साथ ही यह आकलन करने का अनुरोध कि निजी स्तर पर अपने जीवन में हम हिन्दी / भारतीय भाषाओं को कितना स्थान देते हैं?

135 करोड़ का देश अपने आप में भूमंडल है। यह भूमंडल, शेष भूमंडल को परिवर्तित करने की क्षमता रखता है। परिवर्तन की कुँजी इकाई के हाथ में है। हम सब इसकी इकाई हैं।…विचार कीजिएगा।

संजय भारद्वाज

अध्यक्ष, हिन्दी आंदोलन परिवार

? संजय दृष्टि – सृजन  ??

कठिन परीक्षाएँ सिर पर हैं,

तुम्हें कभी तैयारी करते नहीं देखा..?

समस्या क्रमांक दो (क) के

तीसरे उपप्रश्न ने पूछा,

जटिल प्रश्नपत्र बने जीवन को

सांगोपांग निहारा,

पारंपरिक उत्तरों को

निकासी का द्वार दिखाया,

कलम स्याही में डुबोई

और मैं हँस पड़ा…!

 

©  संजय भारद्वाज

प्रात: 9:10 बजे, गुडी पाडवा, संवत 2076

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 
मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #62 ☆ # वैचारिक क्रांति # ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# वैचारिक क्रांति #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 62 ☆

☆ # वैचारिक क्रांति # ☆ 

बड़ी बेखौफ हवा चल रही है

धूप भी छांव में ढल रही है

सुलग रहे हैं आशियाने

आग अंदर ही अंदर जल रही है

 

मुस्कुराते हुए चेहरे है

अंदर घाव बड़े गहरे हैं

कशमकश में डूबे हुए

सैलाब किनारे पर ठहरे हैं

 

यह कैसा अजीब खेल है

दो विपरीत ध्रुवों का

अनोखा मेल है

सिंह और हिरण 

एक नाव में सवार है

जंगल के सभी प्राणी

नाव को रहे ठेल है

 

दंगल में यह कौन

नया खिलाड़ी उतरा है

उसके पास कौनसा

नया पैंतरा है

विश्व विजेता पहलवान

डर कर कह रहा है

उसकी जान को खतरा है

 

जन आक्रोश के आगे

तानाशाह भी झुकते ही है

प्रबल विरोध के आगे

दमन चक्र रूकते ही है

वैचारिक क्रांति

कोई रोक नहीं पाया है

उग्र हुए लोग

राजसिंहासन फूंकते ही है/

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 10 (76-80)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #10 (76-80) ॥ ☆

पुत्र – जन्म की खुशी में दशरथ नृप घर वाद्य

बजवाने की शुरू हुई सुर दुन्दिभियों के साथ ॥ 76॥

 

राजभवन में बरसे तब कल्पवृक्ष के फूल

प्रथम मंगलचार के ही थे वे अनुकूल ॥ 77॥

 

जातकर्म संस्कारयृत कर धात्री पयपान

बढ़े बड़े भाई सहित पितृ आनन्द समान ॥ 78॥

 

शिक्षा पा उनका विनय बढ़ा सहज ही और

जैसे हवि का भोग पा बढ़े अग्नि का जोर ॥ 79॥

 

रघुकुल अतिशोभित हुआ देख भ्रातृ सद्भाव

ज्यों नन्दन वन सजाता मधुमय पवन प्रवाह ॥ 80॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 74 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 74 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 74) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 74☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

तुम्हारी यादों के ज़ख़्म

जब भरने लगते हैं,

तो किसी बहाने तुम्हें

याद करने लगते हैं…!

 

When the wounds of your

memories begin to heal,

Then, on some pretext I

start remembering you!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

कुछ इस अदा से तोड़े हैं

ताल्लुक़ उसने कि…

एक अरसे से तलाश रहा हूँ

गुनाह  अपने…!

 

In such a manner she

broke the relationship

That ever since I’ve been

looking for my fault..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

सुना है आज समंदर को

बड़ा  गुमान  आया  है

उधर ही ले चलो कश्ती

जहाँ  तूफान  आया  है…

 

Heard that the sea is

feeling too boisterous today…

Let’s take the boat there only

where the storm is raging…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मालूम नहीं मिट्टी ने है रंग बदला

या बीज में ही है मिलावट

ताउम्र अपनापन बो कर भी

अकेलापन काटता रहा मैं….!

 

Knoweth not if soil changed its nature

Or the seeds itself were adulterated!

Kept sowing affinity all my life…

But only to reap the stark solitude….!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 74 ☆ सॉनेट – तिल का ताड़ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  ‘सॉनेट – तिल का ताड़।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 74 ☆ 

☆ सॉनेट – तिल का ताड़ ☆

*

तिल का ताड़ बना रहे, भाँति-भाँति से लोग।

अघटित की संभावना, क्षुद्र चुनावी लाभ।

बौना खुद ओढ़कर, कहा न हो अजिताभ।।

नफरत फैला समझते, साध रहे हो योग।।

*

लोकतंत्र में लोक से, दूरी, भय, संदेह।

जन नेता जन से रखें, दूरी मन भय पाल।

गन के साये सिसकता, है गणतंत्र न ढाल।।

प्रजातंत्र की प्रजा को, करते महध अगेह।।

*

निकल मनोबल अहं का, बाना लेता धार।

निज कमियों का कर रहा, ढोलक पीट प्रचार।

जन को लांछित कर रहे, है न कहीं आधार।

*

भय का भूत डरा रहा, दिखे सामने हार।।

सत्ता हित बनिए नहीं, आप शेर से स्यार।।

जन मत हेतु न कीजिए, नौटंकी बेकार।।

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

८-१-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य #104 ☆ वृक्षारोपण अभियान चला ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 104 ☆

☆ वृक्षारोपण अभियान चला  ☆

ये मानव अपने स्वारथ में,

     निस दिन  जंगल काट रहा है।

खत्म कर रहा मेरा जीवन,

      सबको ही दुःख बांट रहा है।

जाने अंजाने ये मानव,

        पर्यावरण बिगाड़ रहा है।

ईंधन और इमारत खातिर,

    प्रतिदिन मुझे उजाड़ रहा है।।1।।

 

अगर, ना होंगे वृक्ष  धरा पर,

            छाया ना मिल पायेगी।

 सूरज की तपती किरणों से,

             ये धरती जल जायगी।

यदि, खत्म  हो गया इस जग से मै

            धरती बंजर बन जाएगी।

होंगे खत्म जीव धरती से,

              सृष्टि ही मिट जायेगी।।3।।  

 

जो बढ़ा प्रदूषण इस जग में,

                बरखा ना हो पायेगी।।

ताल पोखरें  सूखे होंगे,

    जल बिनु मछली मर जायेगी।

यदि खत्म हुई हरियाली जग से,

               जीवन ही मिट जायेगा।

हर तरफ करूण क्रंदन होगा ।।4।।

 

अब भी चेत अरे!ओ मानव,

        ना मुझसे व्यर्थ तू बैर बढ़ा।

 अगर चाहता हित सबका तो,

              तू दुनियां में  पेड़ लगा।

तूने संरक्षण दिया मुझे,

             तो मैं सबको जीवन दूंगा।

 वर्षा होगी हरियाली होगी,

    खुशियों से दामन भर दूंगा।।5।।

 

दूंगा मैं फल-फूल धरा को,

         पशुओं को चारा दूंगा।  

जड़ी बूटियां जग को दे

       जीवन को मैं संवारूगा।

हरियाली की चादर ताने,

          धरती को छाया दूंगा। 

नीरस जीवन रसमय करके,

     सबको जीवन प्यारा दूंगा।।6।।

 

इस लिए धरा पर हे मानव!

     तू प्रति दिन वृक्ष लगाता जा।

ऊसर बीहड़ बंजर धरती पर,

    खुशियों के फूल खिलाता जा।

मैं सबका ही आह्वान करता हूं,

        मुझको मीत बनाता जा।

वृक्षरोपण  अभियान चला

    वृक्षरोपण अभियान चला।।7।।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

04–08–2021

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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