हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 6 (41 -45)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #6 (41-45) ॥ ☆

 

उसी के कुल में प्रतीपनामक है नृप ये गुणियों का मान कर्ता

दिया है झुठला कि लक्ष्मी चंचल है, बनके उसका समर्थ भर्ता ॥ 41॥

 

प्रतीप जो अग्नि से पाके वरदान निडर हो अरि से कभी नहारा

कमल सी कोमल है जिस को दिखती परशुराम के परशु की धारा ॥ 42॥

 

इस दीर्घ बाहू की बनत लक्ष्मी यदि राजमहलों की जालियों से

माहिष्मती की जलोर्मि रसना सी लखने रेवा जो कामना है ॥ 43॥

 

निरभ्र नभ का श्शारदा श्शशि भी ज्यों कमलिनी को नहीं सुहाया

तथैव वह नृप परम सुदर्शन भी इन्दुमति को लुभा न पाया ॥ 44॥

 

बोली सुनंदा, सुषेण शूरसेन नृपति को लख तब – सुनो कुमारी

सदाचरण से सुख्यात में जग में ये है स्वकुलदीप प्रकाशकारी ॥ 45॥

 

ये नीपवंशी सुषेण नृप हैं आ जिनके आश्रय सभी गुणों ने

भुला दिया बैर है जैसे सिद्धाश्रमों में जा हिस्रजों ने ॥ 46॥

 

सुखद मधुर चंद्र सी कांति जिसकी तो शोभती है स्वयं सदन में

पर तेज से पीडि़त शत्रु है सब हैं घास ऊगे घर उन नगर में ॥ 47॥

 

विहार में घुल उरोज चंदन कालिन्दी में मिल यों भास होता

ज्यों यमुना का मथुरा में ही गंगा से शायद सहसा मिलाप होता ॥ 48॥

 

गले में इनके गरूड़ प्रताडि़त है कालियादत्त मणि की माला

श्री कृष्ण का कौस्तुभ मणि भी जिसके समक्ष है फीकी कांति वाला ॥ 49॥

 

स्वीकार इसको मृदुकिरूलयों युक्त सुपुष्प शैया से वृन्दावन में

जों चैत्ररथ सें नहीं कोई कम, हे सुन्दरी रम सहज सघन में ॥ 50॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संतुलन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – संतुलन ?

लालसाओं का

अथाह सिंधु,

क्षमताओं का

किंचित-सा चुल्लू,

सिंधु और चुल्लू का

संतुलन तय करता है-

सिमटकर आदमी का

ययाति रह जाना

या विस्तार पाकर

अगस्त्य हो जाना!

(आगामी रविवार को ऑनलाइन लोकार्पित होनेवाले कवितासंग्रह क्रौंच से)

©  संजय भारद्वाज

(1:15 दोपहर, 2.5.2020)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 82 ☆ गीत – बूढ़ी साइकिल और पिताजी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । 

आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण गीत  “बूढ़ी साइकिल और पिताजी

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 82 ☆

☆ गीत – बूढ़ी साइकिल और पिताजी ☆ 

याद पिताजी

आते अक्सर

सपनों में

वो कच्चा घर

 

शिखर हिमालय से भी ऊँचा

था व्यक्तित्व महान

सबके हित का रहता उनको

हर पल ही था ध्यान

 

बूढ़ी साइकिल पर ही चलकर

उनकी हुई  बसर

 

श्रम के थे प्रतिमान पिताजी

साहस कभी न छोड़ा

मिली चुनौती कभी अगर तो

कभी नहीं मुख मोड़ा

 

बाधाओं से लड़ते – लड़ते

बीती  पूर्ण उमर

 

आँधी, तूफां सर पर झेले

पथ पर चले मगर

शंकर बनकर विष भी पीए

गंगा ली सिर पर

 

करते रहे प्रयास सतत वे

होकर सदा निडर

 

ब्रहममूर्त में जल्दी  जगकर

करते पूजा पाठ

भूल गए हम सब की खातिर

वे जीवन के ठाठ

 

रहा उद्यमी जीवन उनका

नहीं रहे डरकर

 

अनगिन अरमानों की सारे

झुलस गए सब फूल

सुखद भविष्य हमारा उनके

सम्मुख था बन मूल

 

कम खा, गम खा जिए हमेशा

सत की रही डगर

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 6 (36 -40)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #6 (36-40) ॥ ☆

सुखाता जो पङक को चण्डता से, खिलाता पद्यों को निज विभा से

कुमुद इन्दुमति को न रवि संभाया वह नृप अवन्ति का निज प्रभा से ॥ 36॥

 

तब गौरवर्णा, सुदशना, गुणी इन्दुमति जो विधाता की अनुपम छटा थी

को अनुप नृप पास ले जा व्यवस्थित, सुनंदा ने धीरे से कहा कि – ॥ 37॥

 

संग्राम में वीर सहत्रबाहू ख् अठारह द्वीपों की जीतवाला

विद्वान योगी प्रजानुरंजक विशेष गुणवान था अनूप राजा ॥ 38॥

 

दुराचरण के विचार उठते ही दण्ड देकर उन्हें हटाने

तुरंत धनुर्धर प्रकट वहाँ हो, था यत्नरत नित सुख – शांति लाने ॥ 39॥

 

बँधी भुजायें कराहता सा, था जिसकी कारा में कैद रावण

जो इन्द्रजित था, पै छूट पाया तभी कि जब किया प्रसन्न आनन ॥ 40॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #105 – हम जो समझ रहे अपना है…☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी  एक भावप्रवण गीतिका  “हम जो समझ रहे अपना है…”। )

☆  तन्मय साहित्य  #105 ☆

☆ हम जो समझ रहे अपना है…

हम जो समझ रहे अपना है

केवल सपना है

मृगमरीचिकाओं के भ्रम में

नाहक तपना है।

 

मौज मजे हैं साज सजे हैं

रोम-रोम संगीत बजे हैं

हो उन्मुक्त व्यस्त मस्ती में

दिन निद्रा में रात जगे हैं,

 

यही लालसा जग के

सब स्वादों को चखना है।….

 

साँझ-सबेरे लगते फेरे

दायें-बायें चित्र घनेरे

कुछ हँसते गाते मुस्काते

कुछ रोते चिल्लाते चेहरे,

 

द्वंद मचा भीतर अब

इनसे कैसे बचना है। ….

 

प्रश्नचिह्न है हृदय खिन्न है

अब उदासियाँ भिन्न-भिन्न है

भ्रमित भावनाओं के सम्मुख

खड़ा स्वयं का कुटिल जिन्न है,

बीती बर्फीली यादों में

कँपते रहना है।….

 

शिथिल शिराएँ बादल छाए

भटकन का अब शोक मनाए

फिसल रही है उम्र हाथ से

कौन साँझ को अर्घ्य चढ़ाए,

बीते पल-छिन गिनती गिन-गिन,

 

मन में जपना है

मृग-मरिचिकाओं के भ्रम में

नाहक तपना है।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पुनर्वास ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – पुनर्वास ?

(आगामी रविवार को लोकार्पित होनेवाले कवितासंग्रह क्रौंच से)

‘लेखक पुनर्वास मंडल’,

तख़्ती देख

मैं ठठाकर हँस पड़ा,

जो पहले कभी बस सका हो

तब तो पुनर्वास पर चर्चा हो!

©  संजय भारद्वाज

(1:15 दोपहर, 2.5.2020)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नारी सौंदर्य ☆ डॉ निशा अग्रवाल

डॉ निशा अग्रवाल

☆  कविता – नारी सौंदर्य ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆  

चाँद को चिन्हित करती है, उसकी चांदनी।

सूरज को चिन्हित करती है दिन की रोशनी।।

 

नारी को चिन्हित करती है उसकी खूबसूरती ।

उसकी आँखों से झलकती है उसकी खूबसूरती।।

उसकी जुल्फों से महकती है उसकी खूबसूरती।

उसकी हर अदा में छिपी रहती है उसकी खूबसूरती।।

उसके आंचल से लहराती है उसकी खूबसूरती।

चाँद ——————————-

 

नारी का अपना स्वाभिमान भी है एक खूबसूरती।

समाज में कदम से कदम मिलाकर

आगे बढ़ने की ललक भी है एक खूबसूरती।।

नारी का शैक्षिक स्तर भी है एक खूबसूरती।

नारी का तेज होना भी है एक खूबसूरती।।

चाँद —————————–

 

धर्मत्व की भावना भी है एक खूबसूरती।

तेजस्व की भावना भी है एक खूबसूरती।।

नारी का दुर्गास्वरूप रूप भी है एक खूबसूरती।

नारी का अभिमान भी है एक खूबसूरती।।

चाँद को चिन्हित करती है उसकी चांदनी।

सूरज को चिन्हित करती है दिन की रोशनी।।

 

©  डॉ निशा अग्रवाल

जयपुर, राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 6 (31 -35)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #6 (31-35) ॥ ☆

 

तब सुनंदा ने बढ़ इंदुमति को, नवीन पुर्णेन्दु सा नृप दिखाया

जो था सुदर्शन पर शोैर्य में शत्रु कोई भी जिसको न जीत पाया ॥ 31॥

 

ये वशाल वाहु प्रशस्त छाती सुगढ़ बदन हैं अवन्तिराजा

जिन्हें चढ़ा शान पैं सूर्य सी दीप्ति दें गढ़ा है शायद स्वयंविधाता ॥ 32॥

 

प्रयाण में जिसके अग्र अश्वों की धूल नृपों सिर बैठ जाती

जो चूड़ामणि की चमकती आभा को उनकी अक्सर मलिन बनाती ॥ 33॥

 

महाकाल चंद्रभान से जो असित निशा में भी उल्लास पाता

ज्यों चंद्रिका मयी रजनि में अपनी प्रियाओं के सग खुशी मनाता ॥ 34॥

 

इस तरूण नृप सँग क्या है वरोरू । विहार करने की है कोई इच्छा

उन उपवनों में जहाँ समीरण है शिप्रा जलकण से सिक्त बहता ॥ 35॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 5 – सजल – सीमा पर प्रहरी खड़े… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य में आज प्रस्तुत है सजल “सीमा पर प्रहरी खड़े…”। अब आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 5 – सजल – सीमा पर प्रहरी खड़े … ☆ 

सजल

समांत-आल

पदांत-हैं

मात्राभार- 13

 

बजा रहे कुछ गाल हैं।

नेता मालामाल हैं ।।

 

नोंच रहे है भ्रष्टाचारी, 

नेकनियति की खाल हैं।

 

खड़े विरोधी हैं सभी ,

बिछा रहे कुछ जाल हैं।

 

सीमा पर प्रहरी खड़े,

माँ भारत के लाल हैं।

 

खेत और खलिहान में,

कृषक बने कंकाल हैं।

 

नेक राह कठिन लगतीं,

खड़े-बड़े जंजाल हैं।

 

देवदूत बन आ खड़े ,

दुखती रग के ढाल हैं। 

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

22 मई 2021

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कवि ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – कवि ?

विशेषज्ञ हूँ,

तीन भुजाएँ खींचता हूँ,

तीन कोण बनाता हूँ,

तब त्रिभुज नाम दे पाता हूँ..,

तुम भला

करते क्या हो कविवर?

विशेष कुछ नहीं,

बस, त्रिभुज में

चौथा कोण देख पाता हूँ..!

©  संजय भारद्वाज

(1:15 दोपहर, 2.5.2020)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares