प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण “गजल”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा # 51 ☆ गजल ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध ☆
अधिकतर लोग मन की बात औरों से छुपाते है
अधर पर जो न कह पाते, नयन कह साफ जाते है।
कभी-कभी एक खुद की बात को भी कम समझते है
मगर जो दिल में रहते हैं वही सपनों में आते है।
बुरा भी हो तो भी अपना ही सबके मन को भाता है
इसी से लोग अपनी झोपड़ी को भी सजाते है।
बने रिश्तों को सदा ही, प्रेम-जल से सींचते रहिये
कठिन मौकों पै आखिर अपने ही तो काम आते है।
भरोसा उन पर करना शायद खुद को धोखा देना है
जो छोटी-छोटी बातों को भी बढ़-चढ़ के बताते है।
समझना-सोचना हर काम के पहले जरूरी है
किये करमों का ही तो फल हमेशा लोग पाते है।
जमाने की हवा में घुल चुके है रंग अब ऐसे
जो मौसम के बदल के सॅंग बदलते नजर आते है।
अचानक रास्ते में छोड़कर जो लौट जाते हैं
सभी वे राह भर सबको हमेशा याद आते है।
जो पाता आदमी पाता है मेहनत और मशक्कत से
जो सपने देखते रहते कभी कुछ भी न पाते है।
जहाँ अंधियारी रातों का अँधेरा खत्म होता है
वहीं पै तो सुनहरे दिन के नये रंग झिलमिलाते है।
नहीं देखे किसी के दिन कभी भी एक से हमने
बरसते जहाँ मैं आँसू वे घर तो खिल खिलाते है।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈