हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.४०॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.४०॥ ☆

 

ताम आयुष्मन मम च वचनाद आत्मनश चोपकर्तुं

ब्रूया एवं तव सहचरो रामगिर्याश्रमस्थः

अव्यापन्नः कुशलम अबले पृच्चति त्वां वियुक्तः

पूर्वाभाष्यं सुलभविपदां प्राणिनाम एतद एव॥२.४०॥

तो दीर्घजीवी मेरी मान कृपया

स्वतः को तथा मित्र कृतकार्य करते

कहना कि सहचर सखी तब वियोगी

कुशल रामगिरि मे बसा है तरसते

कुशल क्षेम तुमसे तथा पूछता

क्योंकि मानव विपद के सहज जो खिलौने

उनकी कुशलता प्रथम प्रश्न है योग्य

इससे प्रमुख भला क्या प्रश्न होने

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 49 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 49 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 49) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 49☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

फ़र्क़ चेहरे की हँसी पर

सिर्फ इतना सा पाते हैं

पहले  खुद आती  थी

अब  लाना पड़ता  है..!

 

Difference in smile on the

 face is just that much only,

Earlier it’d come on its own

Now it has to be brought..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मिज़ाज अपना कुछ

ऐसा बना लिया हमने,

किसी ने कुछ भी कहा

बस मुस्कुरा दिया हमने…

 

I’ve made my temperament

such  that,  even  if

Someone says anything,

I simply give a smile…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

न जाने किस मोड़ पे ले आई

हमें तेरी ये बेकाबू तलब,

सर पे चिलचिलाती धूप

और राह में इक साया भी नहीं!

 

Don’t know where this unruly

craving for you has brought me,

Scorching sun up in the sky

And, not a shade in the path..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

ठुकराया था हमने भी

बहुतों को तेरी खातिर..

तुझसे फासला भी शायद

उनकी बद्दुआओं का असर है

 

I too had rejected many

of  them  for  your sake, 

Distance from you, perhaps,

is the effect of their curse!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 82 ☆ उसकी खोज ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की  एक भावपूर्ण रचना  “उसकी खोज….। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 82 ☆ उसकी खोज…. ☆

 

दिन के उजाले में अपनी परछाई देखी,

चांद दिखा ‌अंबर‌ में और पानी में ‌छाया।

तपती दोपहरी में एक मृग मरीचिका सी,

गली गली में भी मैं उसे ढूंढ नहीं पाया ।

 

मंदिरों में खोज रहा मस्ज़िदों में झांक रहा,

गिरजों गुरद्वारों में उसे ही पुकार रहा।

देता अजान रहा और पढ़ता कुरान रहा।

घंटे घड़ियाल बजा मैं गाता रहा आरती।

 

भाग‌ रहा जीवन भर मन में अहसास लिए,

फिर भी ना‌‌ पकड़ पाया परछाई ‌भागती ।

उसको मैं जान रहा उसको ही‌ मान रहा,

कभी उसे देखा नहीं ना उससे पहचान थी।

 

अपनी आंखों‌ में दर्शन की चाह‌ लिेये,

रहा‌ हूँ भटकता मैं ढूंढ ढूंढ हार गया।

ढूंढ ढूंढ बाहर मैं थक कर निढाल हुआ,

खुद के भीतर ‌झांका तो उसे वहीं पाया ।

 

मन की आंखों से जब मैंने उसे देखा

छलक पड़े दृगबिंदु मन में वो समाया ।

अंतर्मन में ‌जब‌ होकर‌ मौन देखा,

आओ बतायें तुम्हें कहां कहां पाया।

 

सबेरे की‌ भोर में झरनों के शोर में

सागर की‌ हलचल, नदियों की‌ कलकल में।

चिड़ियों के गीत में जीवन संगीत में,

बच्चों की‌ क्रीड़ा में ‌दुखियों की ‌पीडा़ ‌में,

दीनो ईमान में सारे जहान में सारे जहान में,

डाल डाल पात पात फूलों की रंगत में,

जहां जहां नजर पड़ी उसको ही पाया।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.३९॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.३९॥ ☆

 

इत्य आख्याते पवनतनयं मैथिलीवोन्मुखी सा

त्वाम उत्कण्ठोच्च्वसितहृदया वीक्ष्य सम्भाव्य चैव

श्रोष्यत्य अस्मात परम अवहिता सौम्य सीमन्तिनीनां

कान्तोदन्तः सुहृदुपनतः संगमात किंचिद ऊनः॥२.३९॥

 

सुन इस तरह ज्यों कि सीता पवन पुत्र

के प्रति प्रफुल्लित तुरत मुंह उठाकर

तुम्हें देखकर और सत्कार कर मित्र

होगी परम मुग्ध विष्वास पाकर

सुनेगी बडे ध्यान से सौम्य सारा

है शंका न इसमें तनिक और क्यो हो

स्वप्रिय का संदेशा परम मित्र के मुख

मिलन से न कुछ न्यून है नारियों को

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 37 ☆ कृष्ण कन्हैया ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  एक भावप्रवण कविता  कृष्ण कन्हैया।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 37 ☆ कृष्ण कन्हैया ☆

गोकुल तुम्हें बुला रहा, हे कृष्ण कन्हैया।

वन वन भटक रही हैं, ब्रजभूमि की गैया।

दिन इतने बुरे आये कि, चारा भी नही है।

इनको भी तो देखो जरा, हे धेनु चरैया।

 

करती हैं याद, देवकी माँ रोज तुम्हारी।

यमुना का तट, और  गोपियाँ सारी।

गई सूख धार यमुना की, उजडा है वृन्दावन।

रोती तुम्हारी याद में, नित यशोदा मैया।

 

रहे गाँव वे, न लोग वे, न नेह भरे मन।

बदले से हैं घर द्वार, सभी खेत, नदी, वन।

जहाँ दूध की नदियाँ थीं, वहाँ अब है वारूणी।

देखो तो अपने देश को, बंशी के बजैया।

 

जनमन न रहा वैसा, न वैसा है आचरण।

बदला सभी वातावरण, सारा रहन सहन।

भारत तुम्हारे युग का, न भारत है अब कहीं।

हर ओर प्रदूषण की लहर आई कन्हैया।

 

आकर के एक बार, निहारो तो दशा को।

बिगड़ी को बनाने की, जरा नाथ दया हो।

मन में तो अभी भी, तुम्हारे युग की ललक है।

पर तेज विदेशी हवा में, बह रही नैया।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.३८॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.३८॥ ☆

 

भर्तुर मित्रं प्रियम अविधवे विद्धि माम अम्बुवाहं

तत्संदेशैर हृदयनिहितैर आगतं त्वत्समीपम

यो वृन्दानि त्वरयति पथि श्रम्यतां प्रोषितानां

मन्द्रस्निग्धैर ध्वनिभिर अबलावेणिमोक्षोत्सुकानि॥२.३८॥

सुभगे सखा स्वामि का मै तुम्हारे

गया सुखद संदेश लेकर पठाया

संजोये सखा की सभी भावनाये

सुनाने यहां तुम्हारे पास आया

मै हूं मेघ अबला जनो का सहायक

जो सान्द्र रव से मिलन गीत गाता

प्रिया मिलन की मन लगी लगनवाले

थके पान्थ को आशु पथ में चलाता

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 89 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं   “भावना के दोहे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 89 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

मटक मटक कर चल रही,

कर सोलह शृंगार।

साजन से वह कर रही,

जन्म जन्म का प्यार।।

 

अलंकार से हो रहा,

कविता का शृंगार।

शोभा ऐसे बढ़ रही,

रूप रंग साकार।।

 

गोरी कैसे लिख रही,

अपने भाव विचार।

व्याकुल मन में चल रहा,

करना है अभिसार।।

 

विनती तुमसे कर रही,

करती हूँ मनुहार।

नयन हमारे पढ़ रहे,

कितना तुमसे प्यार।।

 

द्वार द्वार पर सज रहे,

मनहर बंदनवार।

राम पधारे राज्य में,

मंगलमय त्योहार।।

 

संकट की इस दौर में,

कैसे पाएँ त्राण।

जाप करो हनुमंत का,

बच जायेंगे प्राण।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 79 ☆ संतोष के दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं विशेष भावप्रवण  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 79 ☆

☆ संतोष के दोहे ☆

भाग सराहें आपने, आ गई वेक्सीन

कोरोना से जूझती, अब मत हों गमगीन

 

दुनिया में इज्जत बढ़ी, नाम हुआ चहुँ ओर

मोदी जी का ये जतन, मचा रहा है शोर

 

दो गज दूरी साथ रख,मुँह पर रखें मास्क

सेनिटाइज हाथ करें,नव समझकर टास्क

 

दवाई के साथ रखें,खूब कड़ाई आप

घर में रह कर कीजिये, नित भगवत का जाप

 

वेक्सीन लगवाइए, बिन डर बिन संकोच

तभी सुरक्षा आपकी, रखिये ऊँची सोच

 

अफवाहों से बच चलें, दें न उन पर ध्यान

मुश्किलों से डरें नहीं, चलिए सीना तान

 

बीमारी ना देखती, जाति धरम आधार

इसीलिए सब भाइयो, बदलो अब आचार

 

कोरोना के काल में, वेक्सीन वरदान

कोरोना भी डर रहा, सुन कर उसकी तान

 

सब मिलकर लगवाइए, कहता यह “संतोष”

फिर पछितावा होयगा, मत देना फिर दोष

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.३७॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.३७॥ ☆

 

ताम उत्थाप्य स्वजलकणिकाशीतलेनानिलेन

प्रत्याश्वस्तां समम अभिनवैर जालकैर मालतीनाम

विद्युद्गर्भः स्तिमितनयनां त्वत्सनाथे गवाक्षे

वक्तुं धीरः स्तनितवचनैर मानिनीं प्रक्रमेथाः॥२.३७॥

जगा जल कणो युक्त शीतल पवन से

कली मालती मम सुकोमल बदन जो

विद्युत शिखी धीर कर नाद कहना

प्रिया से निरखती गवाक्षस्य तुमको

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 81 – हाइबन- ओस्प्रे ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है  “हाइबन- ओस्प्रे। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 81 ☆

☆ हाइबन-ओस्प्रे ☆

ओस्प्रे को समुद्री बाज भी कहते हैं। इसे समुद्री हॉक, रिवर हॉक, फ़िश हॉक के नाम से भी जाना जाता है। 7 सेंटीमीटर लंबा और 180 सेंटीमीटर पंखों की फैलाव वाला यह पक्षी मछलियों का शिकार करके खाता है।

यूरोपियन महाद्वीप में बहुतायत से पाया जाने वाला यह पक्षी भारत में भ्रमण के लिए आता रहता है। 1 से 2 किलोग्राम के वजन का यह पक्षी तैरती हुई मछली को झपट कर पंजे में दबा लेता है। इस के पंजों के नाखून गोलाई लिए होते हैं। एक बार मछली पंजे में फंस जाए तो निकल नहीं पाती है।

इसके करिश्माई पंजे के गोलाकार नाखून ही कभी-कभी इसकी मौत के कारण बन जाते हैं। वैसे तो यह अपने वजन से दुगुने वजन की मछली का शिकार कर लेता है। फिर उड़ कर अपने प्रवासी वृक्ष पर आकर उसे खा जाता है। मगर कभी-कभी अनुमान से अधिक वजनी मछली पंजे में फंस जाती है। इस कारण इसकी पानी में डूबने से मृत्यु हो जाती है।

इस पक्षी का सिर और पंखों के निचले हिस्से भूरे और शेष भाग हल्के काले रंग के होते हैं। इसे हम सब बाज के नाम से भी जानते हैं।

शांत समुद्र~

ओस्प्रे डूबने लगा

मछली संग।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

17-01-21

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र
ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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