हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #31 ☆ बासंती परिवर्तन ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है बसंत ऋतू के आगमन पर एक भावप्रवण कविता “बासंती परिवर्तन”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 31 ☆

☆ बासंती परिवर्तन ☆ 

जब ऋतुराज बसंत आता है

मुझे बसंत सेना-चारूदत्त की

याद दिलाता है

जब मीठी-मीठी बयार चलती है

प्रणय गाथा चलचित्र सी

मचलती है

दृष्टि पर धुंधलका छा जाता है

वो युगों पुराना बसंत

याद आता है

 

जहां-

अमराई में थी

कोयल कूकती

रमणियां ठूंठों में

नयें प्राण फूंकती

सुगंधित गंधों में रची-बसी

रत्न जड़ित आभूषणों से

वक्षों को कसी-कसी

स्वागत द्वार पर सजी हुई मालायें

आंखों से प्रणय

निवेदन करती बालायें

मदिरा मे डूबा हुआ नगर

गणिकाओं के आलिंगन में

सो जाता है

मदनोत्सव के बासंती उन्माद में

उज्जयिनी का कण कण

खो जाता है

उसी अवसर पर वीर आर्यक

समस्थानक का मद

चूर करता है

रक्तहीन क्रांति से तख्तापलट

अनाचार, अन्याय को

दूर करता है

 

आज-

ऋतुराज वसंत के

आगमन के साथ

मन में एक प्रश्न जागा है

अंतर्मन तक जुड़ा

जिसका हर एक धागा है

क्या विलासिता के

उन्माद में डूबी

इस व्यवस्था को

कोई आर्यक बदल पायेगा ?

क्या इस बार यह मादक बसंत

इस देश में कोई

परिवर्तन लायेगा ?

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५८॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५८॥ ☆

 

ये संरम्भोत्पतनरभसाः स्वाङ्गभङ्गाय तस्मिन

मुक्ताध्वानं सपदि शरभा लङ्घयेयुर भवन्तम

तान कुर्वीथास तुमुलकरकावृष्टिपातावकीर्णन

के वा न स्युः परिभवपदं निष्फलारम्भयत्नाः॥१.५८॥

आवेश में किन्तु भगते उछलते

शरभ स्वयंघाती करें आक्रमण जो

समझकर कि तुम मार्ग के बीच में आ ,

अचानक स्वयं वहाँ से हट गये हो

तो कर उपल वृष्टि गंभीर उन पर

उन्हें ताड़ना दे , हटा दूर देना

भला निरर्थक यत्नकारी जनों पर

कहां , कौन ऐसा कभी जो हँसे न ?

 

शब्दार्थ ..शरभ… एक जाति के वन्य जीव , हाथी का बच्चा

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 42 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 42 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 42) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 42☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

आँधियाँ  हसरत भरी, कोशिश कर

सर पटक कर रह गईं…

मगर बच गए वो पेड़ जिनमें

हुनर था झुकने का…

 

Storms kept trying fiercely,

Only to fail repeatedly; but…

The trees  having skills  of

Bowing low survived merrily!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

सुना है आज समंदर को

बड़ा  गुमान  आया  है

उधर ही ले चलो कश्ती

जहां तूफान आया है…

 

Heard  that  the  sea  is

feeling too boisterous today

Take the boat there only

where the storm is raging…!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

नींद चुराने वाले पूछते हैं

आप सोते क्यों नहीं,

गर इतनी ही फिक्र है तो फिर

वो हमारे होते क्यों नहीं…

 

Sleep-stealer asks me

Why  don’t  you  sleep…

If  he is  so much concerned,

Why doesn’t he become mine

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

हवाएँ  आज  शायद…

हड़ताल  पर  हैं

आज  तुम्हारी

खुशबू नहीं  आई…

 

Probably, breeze is on

strike today since, your

fragrance  didn’t  envelop

the  environs  today…

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 43 ☆ द्विपदियाँ (अश’आर) ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी  द्वारा रचित  ‘द्विपदियाँ (अश’आर).’। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 43 ☆ 

☆ द्विपदियाँ (अश’आर) ☆ 

*

आँख आँख से मिलाकर, आँख आँख में डूबती।

पानी पानी है मुई, आँख रह गई देखती।।

*

एड्स पीड़ित को मिलें एड्स, वो हारे न कभी।

मेरे मौला! मुझे सामर्थ्य, तनिक सी दे दे।।

*

बहा है पर्वतों से सागरों तक आप ‘सलिल’।

समय दे रोक बहावों को, ये गवारा ही नहीं।।

*

आ काश! कि  आकाश साथ-साथ देखकर।

संजीव तनिक हो सके, ‘सलिल’ के साथ तू।।

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५७॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५७॥ ☆

 

तं चेद वायौ सरति सरलस्कन्धसंघट्टजन्मा

बाधेतोल्काक्षपितचमरीबालभारो दवाग्निः

अर्हस्य एनं शमयितुम अलं वारिधारासहस्रैर

आपन्नार्तिप्रशमनफलाः संपदो ह्य उत्तमानाम॥१.५७॥

तभी यदि प्रभंजन चले , वृक्ष रगड़ें

औ” घर्षण जनित दाव वन को जलायें

ज्वालायें यदि क्लेश दें चमरि गौ को

तथा पुच्छ के केश दल झुलस जायें

उचित तब तुम्हें तात ! जलधार वर्षण

अनल को बुझा जो सुखद शांति लाये

सफलता यही श्रेष्ठ की संपदा की

समय पर दुखी आर्त के काम आये

 

शब्दार्थ … प्रभंजन… तेज हवा , आंधी

घर्षण जनित दाव … वृक्षो के परस्पर घर्षण से उत्पन्न आग

चमरि गौ    … चमरी गाय जिसकी पूंछ के सफेद बालों से चौरी बनती है

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 30 ☆ गीत – शांति दे माँ नर्मदे !☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  माँ नर्मदा जयंती पर्व पर रचित “गीत – शांति दे माँ नर्मदे !“।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

यूट्यूब लिंक >> गीत – शांति दे माँ नर्मदे!

गीत – प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव “विदग्ध”

स्वर-संगीत – सोहन सलिल & दिव्या सेठ

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 30 ☆

☆ गीत – शांति दे माँ नर्मदे! ☆

सदा नीरा मधुर तोया पुण्य सलिले सुखप्रदे

सतत वाहिनी तीव्र धाविनि मनो हारिणि हर्षदे

सुरम्या वनवासिनी सन्यासिनी मेकलसुते

कलकलनिनादिनि दुखनिवारिणि शांति दे माँ नर्मदे ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

हुआ रेवाखण्ड पावन माँ तुम्हारी धार से

जहाँ की महिमा अमित अनुपम सकल संसार से

सीचतीं इसको तुम्ही माँ स्नेहमय रसधार से

जी रहे हैं लोग लाखों बस तुम्हारे प्यार से ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

पर्वतो की घाटियो से सघन वन स्थान से

काले कड़े पाषाण की अधिकांशतः चट्टान से

तुम बनाती मार्ग अपना सुगम विविध प्रकार से

संकीर्ण या विस्तीर्ण या कि प्रपात या बहुधार से ! शांति दे माँ नर्मदे !

तट तुम्हारे वन सघन सागौन के या साल के

जो कि हैं भण्डार वन सम्पत्ति विविध विशाल के

वन्य कोल किरात पशु पक्षी तपस्वी संयमी

सभी रहते साथ हिलमिल ऋषि मुनि व परिश्रमी  ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

हरे खेत कछार वन माँ तुम्हारे वरदान से

यह तपस्या भूमि चर्चित फलद गुणप्रद ज्ञान से

पूज्य शिव सा तट तुम्हारे पड़ा हर पाषाण है

माँ तुम्हारी तरंगो में तरंगित कल्याण है  ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

सतपुड़ा की शक्ति तुम माँ विन्ध्य की तुम स्वामिनी

प्राण इस भूभाग की अन्नपूर्णा सन्मानिनी

पापहर दर्शन तुम्हारे पुण्य तव जलपान से

पावनी गंगा भी पावन माँ तेरे स्नान से  ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

हर व्रती जो करे मन से माँ तुम्हारी आरती

संरक्षिका उसकी तुम्ही तुम उसे पार उतारती

तुम हो एक वरदान रेवाखण्ड को हे शर्मदे

शुभदायिनी पथदर्शिके युग वंदिते माँ नर्मदे  ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

तुम हो सनातन माँ पुरातन तुम्हारी पावन कथा

जिसने दिया युगबोध जीवन को नया एक सर्वथा

सतत पूज्या हरितसलिले मकरवाहिनी नर्मदे

कल्याणदायिनि वत्सले ! माँ नर्मदे ! माँ नर्मदे !  ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अनुवादक ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि –  अनुवादक ☆

हर बार परिश्रम किया है

मूल के निकट पहुँचा है

मेरी रचनाओं का अनुवादक,

इस बार जीवट का परिचय दिया है

मेरे मौन का उसने अनुवाद किया है,

पाठक ने जितनी बार पढ़ा है

उतनी बार नया अर्थ मिला है,

पता नहीं

उसका अनुवाद बहुआयामी है

या मेरा मौन सर्वव्यापी है…!

 

©  संजय भारद्वाज

प्रात: 10.40 बजे, 19.01.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ आईने में सूरत तेरी नजर आती है ☆ डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव 

(आज  प्रस्तुत है  डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव जी  की एक भावप्रवण रचना आईने में सूरत तेरी नजर आती है 

☆ आईने में सूरत तेरी नजर आती है ☆

 

सोच रही हूँ खुद को देख कर

जब भी देखती हूँ आईना सूरत तेरी नजर आती है

लगता है आईने की नजर सीधे दिल की तरफ जाती है

 

तुझे देखा नहीं बरसो से पर जहां भी देखूं

तेरी तस्वीर नजर आती है लगता है

आईने की नजर सीधे दिल की तरफ जाती है

 

तू है तो नहीं है वीरान, नहीं है पतझड़

हर तरफ बहार ही बहार नजर आती है

लगता है आईने की नजर सीधे दिल की तरफ जाती है

 

जब भी छिड़ता है जिक्र तेरा

होठों ही होठों में एक मुस्कान उतर आती है

लगता है आईने की नजर सीधे दिल की तरफ जाती है

 

जब भी देखती हूं आईना सूरत तेरी नजर आती है

लगता  है आईने की नजर सीधे दिल की तरफ जाती है

 

© डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

मो 9479774486

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५६॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५६॥ ☆

 

आसीनानां सुरभितशिलं नाभिगन्धैर मृगाणां

तस्या एव प्रभवम अचलं प्राप्य गौरं तुषारैः

वक्ष्यस्य अध्वश्रमविनयेन तस्य शृङ्गे निषण्णः

शोभां शुभ्रां त्रिनयनवृषोत्खातपङ्कोपमेयम॥१.५६॥

आसीन कस्तूरिमृग नाभि की गंध

से रम्य जिसकी शिलायें सुगंधित

उसी जान्हवी के प्रभव स्त्रोत गिरि जो

हिमालय धवल हिम शिखर सतत मंडित

पहँच कर वहाँ मार्ग श्रम को मिटाने

किसी श्रंग पर लग्न लोगे सहारा

तो शिव के धवल वृषभ के श्रंग में लग्न

कर्दम सदृश रूप होगा तुम्हारा

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दृष्टि (2) ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि –  दृष्टि (2) ☆

तुमने देखी उसकी

निर्वसन,अनावृत्त देह?

पुलिया पर खड़ा जनसमूह

नदी में मिले नारी शरीर पर

कुजबुजा रहा था,

मैं पशोपेश में पड़ गया,

निर्वसन देह होती है या दृष्टि !

 

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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