हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१५॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१५॥ ☆

 

रत्नच्चायाव्यतिकर इव प्रेक्ष्यमेतत्पुरस्ताद

वल्मीकाग्रात प्रभवति धनुःखण्डम आखण्डलस्य

येन श्यामं वपुर अतितरां कान्तिम आपत्स्यते ते

बर्हेणेव स्फुरितरुचिना गोपवेषस्य विष्णोः॥१.१५॥

 

यथा कृष्ण का श्याम वपु गोपवेशी

सुहाता मुकुट मोरपंखी प्रभा से

तथा रत्नछबि सम सतत शोभिनी

कान्ति पाओगे तुम इन्द्र धनु की विभा से

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 24 ☆ चले गए जो छोड़कर आती उनकी याद ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  के अप्रतिम दोहे “चले गए जो छोड़कर आती उनकी याद।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 24 ☆

☆ चले गए जो छोड़कर आती उनकी याद  ☆

चले गए जो छोड़कर आती उनकी याद

कानों में नित  गूंजते उनके आशीर्वाद

 

सरस्वती की कृपा से जिनको प्रिय साहित्य

दुनिया के उलझाव से दूर वही है नित्य

 

हर एक के मन में सदा उठते अगणित भाव

जो जीवन में डालते रहते कई प्रभाव

 

सदा सत्य होते नहीं सब के सब अनुमान

लक्ष्य प्राप्ति के लिए नित आवश्यक अनुसंधान

 

विपदार्ओ से जूझ जो स्वतः बनाते राह

करने उनका अनुकरण मन नित रख उत्साह

 

रहते सबके साथ भी रहिए जग से दूर

जिसे आत्मविश्वास व सुखी सदा भरपूर

 

कैसे कोई पूर्ण हो उनके मन की चाह

औरों को जो कोसते रह खुद लापरवाह

 

अगर प्रेम का भाव है सुखी तो सब परिवार

दुख चिंता बढ़ती सदा आप पाकर के अधिकार

 

मन को वश में राखिए यदि है खुद से प्यार

मन के वश में हो सदा दुखी हुआ संसार

 

मन की उतनी मानिए सधें जहाँ शुभ काम

सुने न मन की राय वह जिससे हो बदनाम

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ बातूनी ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ बातूनी ☆

नन्ही-सी थी

कितनी बड़ी हो चली है

बूँद-सी लगती थी

धारा बन बह चली है,

जीवन की गति पर

आश्चर्य जता रहा था

दर्पण में दिखती

अपनी उम्र से बतिया रहा था,

 

आश्चर्य पर हँस पड़ी वह

कुछ यूँ कहने लगी वह-

धीमे चलने, पिछड़ जाने

का सोग जीवन भर रहा

आगमन-गमन की घटती दूरी पर

कभी चिंतन ही न हुआ,

बीता कल, आता कल,

कल हुआ हरेक पल

भूत,भविष्य की चर्चा में

हाथ से निकला हर पल,

यह पल यथार्थ है

यह पल भावार्थ है

इस पल को साँसों में उतार लो

इस पल को रक्त में निचोड़ लो,

अन्यथा

दर्पण हमेशा है

बढ़ती उम्र हमेशा है

कल होता पल हमेशा है

और बातूनी तो

तुम हमेशा से हो ही!

 

©  संजय भारद्वाज

(प्रातः 7:19 बजे, 01.01.2019 )

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ताश के महल … ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।)

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी ने अपने उपनाम  प्रवीण ‘आफताब’ उपनाम से  अप्रतिम साहित्य की रचना की है। आज प्रस्तुत है आपकी ऐसी ही अप्रतिम रचना ताश के महल …

ताश के महल …

वहम होता  है लोगों  का ये

सारा जहाँ पा लिया है हमने

जमीं तो  जमीं, सारा आसमां

फ़तह  कर लिया  है  हमने…

 

दास्ताँ  नहीं, हक़ीक़त  है  ये

रेत के आशियाँ कभी टिकते नहीं

लोगों का ये  है भरम लेकिन,

ताश के महल कभी बनते नहीं…

 

गफ़लतों में रहना अब  छूट चुका

बस इक अदना सा  इंसान हूँ  मैं,

मिट्टी की सी अपनी औक़ात जान

राहें इंसानियत पे निकल पड़ा हूँ मैं

 

~प्रवीन आफ़ताब

© कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

पुणे

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ किरायेदार… ☆ श्री जयेश वर्मा

श्री जयेश कुमार वर्मा

(श्री जयेश कुमार वर्मा जी  बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता किरायेदार…।)

☆ कविता  ☆ किरायेदार… ☆

इस संसार के आप

मालिक ही सही,

हम किराये दार हैं,

 

आप हमें साथ,

लेके चले, ना चले,

समय आपके, साथ है,

 

उड़, जाते है, हर रंग,

गुलिस्ताँ से,

वक़्त की आंधी,

के आगे, किसकी,

क्या बिसात, है,

 

कितने, कबीर,

फकीर, गाते रहे,

सब माटी के पुतले,

उसके ही किरदार हैं,

 

समझगें, दोनों, उस दिन,

जिस दिन,

पुतले, माटी में

मिल जाएंगे,

 

कोंन, रे, मालिक

कौन, किराएदार, रे,

ये मौत ही समझाये,

ये मौत ही समझाये…

 

©  जयेश वर्मा

संपर्क :  94 इंद्रपुरी कॉलोनी, ग्वारीघाट रोड, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
वर्तमान में – खराड़ी,  पुणे (महाराष्ट्र)
मो 7746001236

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१४॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१४॥ ☆

 

अद्रेः शृङ्गं हरति पवनः किं स्विद इत्य उन्मुखीभिर

दृष्टोत्साहश चकितचकितं मुग्धसिद्धाङ्गनाभिः

स्थानाद अस्मात सरसनिचुलाद उत्पतोदङ्मुखः खं

दिङ्नागानां पथि परिहरन स्थूलहस्तावलेपान॥१.१४॥

 

यहां से दिशा उत्तर प्रति उड़ो

इस तरह से कि लख तेज गति यह तुम्हारी

सिद्धांगनायें भी अज्ञान के वश

भ्रमित हों कि यह वायु गिरितुंगधारी

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ मौन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ मौन  ☆

उनके शब्दों से

उपजी वेदना

शब्दों के परे थी

सो होना पड़ा मौन,

अब अपने मौन पर

शब्दों से उपजी

उनकी प्रतिक्रियाएँ

सुन-बाँच रहा हूँ मैं..!

©  संजय भारद्वाज

(प्रात: 7.09 बजे, 7 जनवरी 21)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 76 ☆ कविता – स्वागत ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवणकविता “स्वागत। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 76 – साहित्य निकुंज ☆

☆ स्वागत ☆

बीस गया है बीत

जीवन की है रीत

रात के बाद आता है प्रभात

आने वाले का करना है स्वागत।

नव वर्ष का है स्वागत

साथ लाए खुशियों की बौछार।

छिने न कभी किसी का प्यार।।

बीस में सबने बहुत कुछ खोया।

मन बार बार है सभी का रोया।

बीती बातों का दिल में नहीं है रखना।

बस मन में मधुरिम याद ही संजोना।।

आने वाला हर पल होगा नवनीत।

नव जीवन नव सृजन से होगा सृजित।।

विगत को जाने दो ससम्मान

नहीं करो अपमान।

क्योंकि बीस के बाद आता है इक्कीस।

मन में जगाता है उम्मीद उमंग

भरता है प्यार के रंग।।

करो स्वागत करो स्वागत

शुभ स्वागत….

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 66 ☆ संतोष के दोहे☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 66 ☆

☆ संतोष के दोहे  ☆

जीवन में उत्कर्ष की, एक यही है राह

सत्य, अहिंसा, प्रेम की, रखें सदा ही चाह

 

सदा वक्त पर लीजिये, कर्मों का संज्ञान

चलें धरम की राह जो, उसको मिलता मान

 

जिसने जीवन में रखा, मर्यादा का मान

सदाचरण शालीनता, देते तब सम्मान

 

दिन भर देता रोशनी, सांझ ढले विश्राम

सुबह सुहानी लालिमा, दिनकर तुझे प्रणाम

 

नई सदी के दौर में, मोबाइल वरदान

घर बैठे ही कीजिये, सभी रसों का पान

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१३॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१३॥ ☆

 

मर्गं तावच चृणु कथयतस त्वत्प्रयाणानुरूपं

संदेशं मे तदनु जलद श्रोष्यसि श्रोत्रपेयम

खिन्नः खिन्नः शिहरिषु पदं न्यस्य गन्तासि यत्र

क्षीणः क्षीणः परिलघु पयः स्रोतसां चोपभुज्य॥१.१३॥

 

तो घन सुनो मार्ग पहले गमन योग्य

फिर वह संदेशा जो प्रिया को सुनाना

थके और प्यासे , प्रखर गिरि शिखर पर

जहां निर्झरों से तृषा है बुझाना

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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