संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “घूमा बहुत विदेश में…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
श्रवण मास साधना में जपमाला, रुद्राष्टकम्, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना करना है
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – विश्वास बादल तो नहीं…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 203 – विश्वास बादल तो नहीं…
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत “टाँका करता हूँ कपड़ों में...”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 203 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆
☆ “टाँका करता हूँ कपड़ों में...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “रक्षाबंधन”)
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता ‘अम्मा की रोटी…‘।)
☆ कविता – अम्मा की रोटी… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆
Anonymous Litterateur of Social Media # 200 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 200)
Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.
Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.
Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.
In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.
He is also an IIM Ahmedabad alumnus.
His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!
English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 200
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है मुक्तिका – राधे माधव…।)
(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब) शिक्षा- एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)
☆ पुस्तक चर्चा ☆ “पृथ्वी किताबें नहीं पढ़ती” (काव्य संग्रह) – लेखक : श्री कुल राजीव पंत ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆
पुस्तक : पृथ्वी किताबें नहीं पढ़ती
कवि : कुल राजीव पंत
प्रकाशक : प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली
मूल्य : 250 रुपये
☆ प्रकृति, पहाड़ और नदी के प्रेम की कवितायें : पृथ्वी किताबें नहीं पढ़ती – कमलेश भारतीय ☆
शिमला जब कभी जाना हुआ, किसी साहित्यिक समारोह में कुल राजीव पंत से, उनकी प्यारी सी, मासुम सी मुस्कान से मुलाकात जरूर हुई । कभी आराम से बैठकर तो नहीं लेकिन जब जब कोई रचना सुनी, तब तब कुछ अच्छा सा महसूस हुआ । मैं सोचता था कि वे शिमला में रहते हैं लेकिन यह मुगालता दूर हुआ उनके काव्य संग्रह में लिखे परिचय से कि वे तो सोलन में रहते हैं पर जब बातचीत की तो यह मुगालता भी टूट गया कि उनके पिता बरसों पहले सोलन उत्तराखण्ड के रूद्रप्रयाग के पास से आये और यहीं बस गये । यही हिमाचल में ही कुल राजीव का जन्म हुआ, इस तरह वे एक पर्वतीय प्रदेश से दूसरे पर्वतीय प्रदेश में आ बसे। यहीं पढ़े, लिखे, नौकरी की हिमाचल विश्वविद्यालय, शिमला में !
यह पृष्ठभूमि इसलिए कि बता सकूं कि कुल राजीव पंत किस तरह जन्म से लेकर अब तक, जीवन की सांध्य बेला में भी पहाड़, प्रकृति और नदी से सीधे सीधे जुड़े हैं और ऐसे ही उनकी कवितायें ये बताती हैं कि पहाड़ का दर्द क्या है, पहाड़ पर किस तरह धीरे धीरे कब्ज़ा किया जा रहा है, बाज़ार की ओर से, कैसे चिड़िया की तरह एक एक कर उसकी संपदा, उसका सौंदर्य, उसकी मासूमियत और भोलापन छींना जा रहा है, लूटा जा रहा है पहाड़ से ही चुरा कर कैसे शुद्ध पानी और हवा का व्यापार बढ़ रहा है, कैसे पेड़ पर ही शुद्ध हवा का विज्ञापन चस्पां किया जा रहा है ! सच कहूं, ये पहाड़ के दर्द, पीड़ा और उसकी आत्मा को सामने लातीं, असली, बिल्कुल प्रकृति से जुड़ी कवितायें हैं ! एक पहाड़ के आदमी ने पहाड़ के झेले दर्द बड़ी ईमानदारी से बयान किये हैं ! वैसी ही मासूम, भोली सी भाषा में, जैसे पहाड़ी होते हैं या माने जाते हैं । इन कविताओं से गुजरते गुजरते जैसे मैं पहाड़ों के दर्द से गुजरता गया और मुंह से आह और वाह निकलता गया । आह, इसलिए कि कितना खरा व सच्चा लिखा है दर्द पहाड़ का और वाह इसलिए कि कितना खूबसूरत लिखा है ! सबसे खरी खरी बात कही है, इन पंक्तियों में :
हां, किताबों में
खूब बयां होते हैं पहाड़ के दर्द
लेकिन अफ़सोस
पृथ्वी किताबें नहीं पढ़ती!!
इसी तरह पहाड़ को बचाने के लिए की जाने वाली गोष्ठियों की पोल खोलती है कविता – पहाड़ पर पहाड़ के लिए!
दुनिया भर के देवता प्रतिष्ठित हैं
बड़े बड़े हैं उनके मंदिर
इसलिए तुम तो सबसे ज्यादा सुखी होंगे
पर तुम तो सदियों से
इतने दुख सह रहे हो
और हमें कोई खबर ही नहीं !
कितने दर्द सहता आ रहा है पहाड़, कितनी सताई जा रही है प्रकृति और हम शुद्ध हवा,, पानी को तरसते जा रहे हैं ! कितनी प्यारी प्यारी कल्पनाओं से भी और सच्चाई से भी जुड़ी हैं कवितायें! छाते में बारिश मे भीगते, किसी को साथ लेकर चलते कितनी यादे चली आती हैं और पुराने बाज़ार और शहरों का चित्रण भी!
लिखना चाहूँ तो लिखता चला जाऊ़ लेकिन बस, इतना लिखना चाहता हू कि पहाड़, प्रकृति और समाज पर इस संग्रह की कवितायें बहुत सच्ची और खरी हैं। इन्हें निश्चय ही पढ़ा जाना चाहिए और खूबसूरत मुखपृष्ठ भी आमंत्रित करता जान पड़ता है कि प्रकृति के निकट आओ, दोस्तो! नदी के जूड़े में जंगल ने फूल टांके हैं और नदी शर्मा, सकुचाई सी है! पहाड़ और छाते का साथ और बहुत सी प्रेम कथायें लेकिन चिंता कि ऑक्सीजन बार खुलने लगे हैं और पतझर का मायका पहाड़ मूक दर्द सह रहा है !
फ्लैप पर प्रो कुमार कृष्ण ने भी कहा है कि ये कवितायें सृजनात्मक अनुभव और जीवनानुभव से निकली हैं। ये नदी के पांव से लेकर पृथ्वी पर चलने के लिए आतुर है तो आपकी आतुरता इन कविताओं को पढ़ने की बढ़ती जायेगी, निश्चित है। बहुत बहुत बधाई, कुल राजीव! अबकि शिमला मिलेंगे तो आपकी कविताओं पर खुलकर बात करेंगे।
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “पहली नज़र में समझ लेते थे इज़हार…” ।)
ग़ज़ल # 134 – “पहली नज़र में समझ लेते थे इज़हार,…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’