श्री प्रहलाद नारायण माथुर
( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें सफर रिश्तों का तथा मृग तृष्णा काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता तुम कब आओगे। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 27 ☆ तुम कब आओगे ☆
राक्षसों से भर गयी वापिस अब धरा,
तुम्हीं ने सृष्टि का निर्माण किया, तुम्हीं ने मानव-दानव धरती पर बसाए,
इनके पापों का घड़ा अब भर चुका,
लोग भयभीत राक्षस उन्हें निगलने को आतुर, हे ब्रह्मा! तुम कब आओगे ||
हे भोले भंडारी! हे त्रिनेत्र धारी!
राक्षसों का तुमने सर्वनाश किया, दैत्य भस्मासुर को तुमने भस्म किया,
भय-मुक्त राक्षस विचरण कर रहे,
फिर तांडव नृत्य कर राक्षसों का वध करने, हे शिव! तुम कब आओगे ||
कभी अम्बा तो कभी दुर्गा का रूप धरा,
कभी चण्ड-मुण्ड तो कभी रक्तबीज को मार धरा को असुर मुक्त किया,
हे जगत माँ! तुम्हें शत-शत प्रणाम!
दैत्य धरा पर बढ़ गए अपार, इनका वध करने हे माँ! तुम कब आओगे ||
अधर्मी रावण को तुमने मार गिराया,
कितने ही राक्षसों का वध कर ऋषि मुनियों के यज्ञ की रक्षा वचन निभाया,
चारों और असंख्य रावण अवतरित हो गए,
लड़ने की नहीं शक्ति हमारी, रावण वध करने हे राम! तुम कब आओगे ||
द्रोपदी की तुमने लाज बचाई,
अब हर तरफ व्याभिचारी खुले आम स्त्रियों का चीरहरण कर रहे हैं,
रोज निधिवन भी तो आते हो,
व्याभिचारियों का नाश कर नारी रक्षा करने हे कृष्ण! तुम कब आओगे ||
© प्रह्लाद नारायण माथुर
8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈