हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 484 ⇒ कयामत से इनायत तक ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – “कयामत से इनायत तक।)

?अभी अभी # 484 ⇒ कयामत से इनायत तक? श्री प्रदीप शर्मा  ?

कुछ सांसें लेना छूट गईं,

कुछ सांसें बीच में ही उखड़ गईं।

हम भी लड़खड़ाए,

दो घूँट पानी पिया,

दो घूँट गम। ।

थोड़ा लिया दम

और फिर चल पड़े हम।

साँसों का हिसाब,

सुना है

ऊपर वाला रखता है। ।

गिनकर देता है,

जेब खर्च की तरह

और बाद में

हिसाब मांगता है।

ये चल रही सांसें भी,

किसी की अमानत है,

इनमें खयानत ना हो। ।

जो सांसें बीच में छूटी हों

उनकी भी हिफाजत हो।

जिंदगी एक जश्न हो …

चाहे कयामत हो। ।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 221 ☆ बाल गीत – साहस करो जीत ही होगी… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 221 ☆ 

बाल गीत – साहस करो जीत ही होगी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

साहस करो जीत ही होगी

कर्म करो, पुरुषार्थ करो।

पैराओलंपिक है प्रेरक

हर बाधा को पार करो।

शीतल ने बिन हाथों के ही

देश के लिए जीता मैडल ।

गौरव, सौरभ हुआ है उज्ज्वल

पैरों में अद्भुत है बल।

 *

जिनके हाथ साथ हैं साथी

प्रेरित हो उपकार करो।

साहस करो जीत ही होगी

कर्म करो, पुरुषार्थ करो।।

 *

हार नहीं मानी उनने भी

तन से अंग-भंग हैं चेते।

लक्ष्य बना मंजिल तक पहुँचे

नाव स्वयं ही रहे वे खेते।

 *

जिनका तन है सही सलामत

खुद में सदा सुधार करो।

साहस करो जीत ही होगी

कर्म करो, पुरुषार्थ करो।

 *

सदा देश हित जीना अच्छा

सार्थक जीवन करो मगर।

मुश्किल में भी मत घबराओ

तब होगी आसान डगर।

 *

मोबाइल में व्यर्थ न उलझो

कुछ तो अच्छे कार्य करो।

साहस करो जीत ही होगी

कर्म करो, पुरुषार्थ करो।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #248 – कविता – ☆ तू चलता चल, अपने बल पर… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता तू चलता चल, अपने बल पर” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #248 ☆

☆ तू चलता चल, अपने बल पर… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

तू चलता चल, अपने बल पर

संकल्प नहीं सौगंध नहीं, अब जो जैसा है ढलने दें

उस कालचक्र की मर्जी पर, वो जैसा चाहें चलने दें

जो हैं शुभचिंतक बने रहें, उनसे ही तो ऊर्जा मिलती

हैं जो ईर्ष्या भावी साथी ,वे जलते हैं तो जलने दें।

हो कर निश्छल, मन निर्मल कर।

तू चलता चल, अपने बल पर।।

*

अब भले बुरे की चाह नही, अपमान मान से हो विरक्त

हो नहीं शत्रुता बैर किसी से, नहीं किसी के रहें भक्त

एकात्म भाव समतामूलक, चिंता भय से हों बहुत दूर,

हो देह शिथिल,पर अंतर्मन की सोच सात्विक हो सशक्त।

मत ले सम्बल, आश्रित कल पर।

तू चलता चल, अपने बल पर।।

*

जीवन अनमोल मिला इसको अन्तर्मन से स्वीकार करें

सत्कर्म अधूरे रहे उन्हें, फिर-फिर प्रयास साकार करें

बोझिल हो मन या हो थकान, तब उम्मीदों की छाँव तले

बैठें विश्राम करें कुछ पल, विचलित मन का संताप हरें

मत आँखें मल, पथ है उज्ज्वल।

तू चलता चल, अपने बल पर।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 72 ☆ गाँव में… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “गाँव में…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 72 ☆ गाँव में… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

छोड़ आया हूँ शहर को

पास वाले गाँव में।

 

हवा उत्सुकता भरी

घूँघट उठाए घूमती है

धार निश्छल

हँसी रखकर

तटों का मन चूमती है

 

पकड़ लाया हूँ लहर को

गीत गाती नाव में।

 

बना चौकीदार पीपल

करे स्वागत बजा ताली

भोर पगडंडी पहनकर

निकलता है सूर्य माली

 

बिठा आया हूँ सफर को

गुनगुनी सी छाँव में।

 

गली आँगन बाग बखरी

रँभा गैया टेरती है

गोधूलि चंदन तिलक दे

नीम बाँहें घेरती है

 

बाँध आया हूँ नहर को

नदी वाले ठाँव में।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 76 ☆ करोगे दूर कैसे उसको दिल से… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “करोगे दूर कैसे उसको दिल से“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 76 ☆

✍ करोगे दूर कैसे उसको दिल से… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

मेरी नज़रों में वो इंसां बड़ा है

मदद को गैर की तत्पर खड़ा है

 *

मुहाजिर किसको तुम बतला रहे हो

मेरा भी नाल भारत में गड़ा है

*

करोगे दूर कैसे उसको दिल से

अँगूठी के नगीने सा जड़ा है

मुनासिब हक़ नहीं जो कौन देगा

मग़र बच्चों सा तू ज़िद पर अड़ा है

*

समझ आती न उसको बात अच्छी

नसीहत दो न वो चिकना घड़ा है

 *

जुड़ा है तार जिसका रब से मेरे

उसी के ताज़ कदमों में पड़ा है

 *

मिटा सकता नहीं पर ज़ोम उसमें

अँधेरों से तभी जुगनू लड़ा है

 *

ढलेगा शाम होते सोच लेना

तुझे नश्शा जो शुहरत का चढा है

 *

मुहब्बत फ़र्ज़ में है जंग जारी

अरुण अब फैसला लेना कड़ा है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ वटवृक्ष सी पितरों की छाया… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कविता ?

☆ वटवृक्ष सी पितरों की छाया☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

महाराष्ट्र का एक छोटा सा गाँव,

हमारे पूर्वज–

वहाँ के वतनदार थे,

बुजूर्ग कहते थे उस गाँव और —

 बहुत बडी हवेली की कहानी,

जिसे लोग “जगताप वाडा” कहते हैं ।

उसमे थे हाथी, घोडे, ऊँट भी कभी।

 

वो गाँव छोडकर

सदिया बीत गयी ।

लेकिन हम सोचते रहते हैं,

हमारे पडदादा के पडदादा,

रहे होंगे यहाँ के सेनापती,

हाथी, घोडों पर से,

की होगी लडाई—

दिवारों पर की ढाल- तलवारें यही

बताती हैं।

गुरूर आता है अपने आप पर,

कितने बडे खानदान से

ताल्लुख रखते हैं हम ।

हम एक बार ही गये थे,

उस जगह,

लेकिन बार बार महसूस

होता है,

वटवृक्ष सी पितरों की छाया है

मुझ पर  —-

तभी तो जीते हैं,

शान से, बडे आराम से!

☆  

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 73 – दिल की आग बुझाने आये… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – दिल की आग बुझाने आये।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 73 – दिल की आग बुझाने आये… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

वो अपनत्व दिखाने आये 

जैसे देने ताने आये

 *

वे आँधी का झोंका बनकर

दिल की आग बुझाने आये

 *

जब अंतिम साँसें गिनता था 

मेरा मन बहलाने आये

 *

अग्निपरीक्षा लेने वाले 

लेकर फूल सुहाने आये

 *

इक पल, चाँद दिखा झुरमुट में 

हमको याद जमाने आये

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 146 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत हैं “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 146 – मनोज के दोहे  ☆

लगती भूख विचित्र है, रखिए इस पर ध्यान।

तन-मन को आहत करे, आदि काल से भान।।

*

रोटी से रिश्ते बनें, जीवन का दस्तूर।

झगड़ें रोटी के लिए, रोटी  तन-मजबूर।।

*

मजदूरी मजदूर की, उचित मिलें परिणाम।

क्षुधा पूर्ति को शांत कर, सुख-समृद्धि आराम।।

*

श्रम जीवन का सत्य है, मिले सफलता नेक।

पशु-पक्षी मानव सभी, जाग्रत रखें विवेक।।

*

सत्ता-लोलुपता बढ़े, लोकतंत्र-उपहास।

भरी तिजोरी देखती, जनता रहे उदास।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शब्द ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – शब्द ? ?

तुम्हारा चुप,

मेरा चुप,

कितना लम्बा खिंच गया..,

तुम्हारा एक शब्द,

मेरा एक शब्द,

मिलकर महाकाव्य रच गया…!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️💥 श्रीगणेश साधना सम्पन्न हुई। पितृ पक्ष में पटल पर छुट्टी रहेगी।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 208 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 208 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

एक हजार श्यामकर्ण अश्व

जो

उन्हें दिये थे वरुण ने ।

कालांतर में

नदी में बह गये

चार सौ अश्व

(क्या पता कैसे ?)

अब

संसार में

श्यामकर्ण अश्व

केवल छै सौ ही हैं

जो तुम्हें प्राप्त हो गये हैं ।

गालव ने पूछा-

‘तो अब

क्या है

शेष गुरु दक्षिणा की पूर्ति

का उपाय?’

गरुड़ ने

मुस्कान बिखेरते हुए कहा

‘प्राप्त अश्वों के साथ

माधवी को भी

समर्पित कर दो

विश्वामित्र को ।

निदान

गालव ने

वही किया

जो गरुड़ ने कहा।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares