हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – अम्मा की रोटी… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता ‘अम्मा की रोटी…‘।)

☆ कविता – अम्मा की रोटी… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

याद आती है हमको, अम्मा की रोटी,

गोल गोल चंदा जैसी, अम्मा की रोटी,

मिट्टी के चूल्हे की, सौंधी सी रोटी,

याद आती है हमको, अम्मा की रोटी,

रोज सबेरे उठ कर खाते, अम्मा की रोटी,

पीछे पीछे लिए दौड़ती, अम्मा वो रोटी,

यादों में ही बसी हुई है, अम्मा की रोटी,

गोल गोल चंदा जैसी, अम्मा की रोटी,

भूख नहीं है,नहीं खाना, अम्मा की रोटी,

मना मना के मुझे खिलाती, अम्मा एक रोटी,

मन करता था खाता जाऊं, अम्मा की रोटी,

गोल गोल चंदा जैसी, अम्मा की रोटी,

आपा धापी में,खो गई, अम्मा की रोटी,

रोजी रोटी,आगे, पीछे अम्मा की रोटी,

किस्मतवालों को मिलती है, अम्मा की रोटी,

गोल गोल चंदा जैसी, अम्मा की रोटी,

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 200 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 200 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 200) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 200 ?

☆☆☆☆☆

लगता था जिन्दगी को

बदलने में वक्त लगेगा

पर क्या पता था बदला

वक्त जिन्दगी बदल देगा…!

☆☆

Always felt, it would take

Time  to  change  the life…

Never knew that changed

time would change the life…!

☆☆☆☆☆

हालात तो कह रहे हैं

मुलाकात नहीं मुमकिन

पर उम्मीद कह रही है

थोड़ा  इंतजार  कर…

☆☆

Circumstances are saying

It’s not possible to meet

But the expectation  says

Just  wait  for a  while..!

☆☆☆☆☆

अब तो तन्हाई भी

मुझसे है कहने लगी

मुझसे ही कर लो मोहब्बत

मैं  तो  बेवफा नहीं…

☆☆

Now,  even loneliness

has also started saying 

Please fall in love with me

At least I am not unfaithful…

☆☆☆☆☆

नज़र जिसकी समझ सके

वही  दोस्त  है वरना…

खूबसूरत   चेहरे  तो

दुश्मनों के भी होते हैं…

☆☆

Just a glance  of  whose,

perceives you fully, is your friend

Otherwise  even   enemies

Too  have  pretty  faces…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 200 ☆ मुक्तिका – राधे माधव… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है मुक्तिका – राधे माधव…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 200 ☆

☆ मुक्तिका – राधे माधव☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

जब बसंत हो, मुदित रहें राधे माधव

सुनें सभी की, कहें कभी राधे माधव

*

हीरा-लाल सदृश जोड़ी मनबसिया की

नारीभूषण पुरुषोत्तम राधे माधव

*

अमर स्नेह अमरेंद्र मिले हैं वसुधा पर

अमरावति बृज बना रहे राधे माधव

*

प्रभा किशोरी की; आलोक कन्हैया का

श्री श्रीधर द्वय मुकुलित मन राधे माधव

*

नत नारीश पगों में नरपति मुस्काते

अद्भुत मनोविनोद करें राधे माधव

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ “पृथ्वी किताबें नहीं पढ़ती” (काव्य संग्रह) – लेखक : श्री कुल राजीव पंत ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ “पृथ्वी किताबें नहीं पढ़ती” (काव्य संग्रह) – लेखक : श्री कुल राजीव पंत ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

पुस्तक : पृथ्वी किताबें नहीं पढ़ती

कवि : कुल राजीव पंत

प्रकाशक : प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली

मूल्य : 250 रुपये 

☆ प्रकृति, पहाड़ और नदी के प्रेम की कवितायें : पृथ्वी किताबें नहीं पढ़ती – कमलेश भारतीय ☆

शिमला जब कभी जाना हुआ, किसी साहित्यिक समारोह में कुल राजीव पंत से, उनकी प्यारी सी, मासुम सी मुस्कान से मुलाकात जरूर हुई । कभी आराम से बैठकर तो नहीं लेकिन जब जब कोई रचना सुनी, तब तब कुछ अच्छा सा महसूस हुआ । मैं सोचता था कि वे शिमला में रहते हैं लेकिन यह मुगालता दूर हुआ उनके काव्य संग्रह में लिखे परिचय से कि वे तो सोलन में रहते हैं पर जब बातचीत की तो यह मुगालता भी टूट गया कि उनके पिता बरसों पहले सोलन  उत्तराखण्ड के रूद्रप्रयाग के पास से आये और यहीं बस गये । यही हिमाचल में ही कुल राजीव का जन्म हुआ, इस तरह वे एक पर्वतीय प्रदेश से दूसरे पर्वतीय प्रदेश में आ बसे। यहीं पढ़े, लिखे, नौकरी की हिमाचल विश्वविद्यालय, शिमला में !

यह पृष्ठभूमि इसलिए कि बता सकूं कि  कुल राजीव पंत किस तरह जन्म से लेकर अब तक, जीवन की सांध्य बेला में भी पहाड़, प्रकृति और नदी से सीधे सीधे जुड़े हैं और ऐसे ही उनकी कवितायें ये बताती हैं कि पहाड़ का दर्द क्या है, पहाड़ पर किस तरह धीरे धीरे कब्ज़ा किया जा रहा है, बाज़ार की ओर से, कैसे चिड़िया की तरह एक एक कर उसकी संपदा, उसका सौंदर्य, उसकी मासूमियत और भोलापन छींना जा रहा है, लूटा जा रहा है पहाड़ से ही चुरा कर कैसे शुद्ध पानी और हवा का व्यापार बढ़ रहा है, कैसे पेड़ पर ही शुद्ध हवा का विज्ञापन चस्पां किया जा रहा है ! सच कहूं, ये पहाड़ के दर्द, पीड़ा और उसकी आत्मा को सामने लातीं, असली, बिल्कुल प्रकृति से जुड़ी कवितायें हैं ! एक पहाड़ के आदमी ने पहाड़ के झेले दर्द बड़ी ईमानदारी से बयान किये हैं ! वैसी ही मासूम, भोली सी भाषा में, जैसे पहाड़ी होते हैं या माने जाते हैं । इन कविताओं से गुजरते गुजरते जैसे मैं पहाड़ों के दर्द से गुजरता गया और मुंह से आह और वाह निकलता गया । आह, इसलिए कि कितना खरा व सच्चा लिखा है दर्द पहाड़ का और वाह इसलिए कि कितना खूबसूरत लिखा है ! सबसे खरी खरी बात कही है, इन पंक्तियों में :

हां, किताबों में

खूब बयां होते हैं पहाड़ के दर्द

लेकिन अफ़सोस

पृथ्वी किताबें नहीं पढ़ती!!

इसी तरह पहाड़ को बचाने के लिए की जाने वाली गोष्ठियों की पोल खोलती है कविता – पहाड़ पर पहाड़ के लिए!

दुनिया भर के देवता प्रतिष्ठित हैं

बड़े बड़े हैं उनके मंदिर

इसलिए तुम तो सबसे ज्यादा सुखी होंगे

पर तुम तो सदियों से

इतने दुख सह रहे हो

और हमें कोई खबर ही नहीं !

कितने दर्द सहता आ रहा है पहाड़, कितनी सताई जा रही है प्रकृति और हम शुद्ध हवा,, पानी को तरसते जा रहे हैं ! कितनी प्यारी प्यारी कल्पनाओं से भी और सच्चाई से भी जुड़ी हैं कवितायें! छाते में बारिश मे भीगते, किसी को साथ लेकर चलते कितनी यादे चली आती हैं और पुराने बाज़ार और‌ शहरों का चित्रण भी!

लिखना चाहूँ तो लिखता चला जाऊ़ लेकिन बस, इतना लिखना चाहता हू कि पहाड़, प्रकृति और समाज पर इस संग्रह की कवितायें बहुत सच्ची और खरी हैं। इन्हें‌ निश्चय ही पढ़ा जाना चाहिए और खूबसूरत मुखपृष्ठ भी आमंत्रित करता जान पड़ता है कि प्रकृति के निकट आओ, दोस्तो! नदी के जूड़े में जंगल ने फूल टांके हैं और नदी शर्मा, सकुचाई सी है! पहाड़ और छाते का साथ और बहुत सी प्रेम कथायें लेकिन चिंता कि ऑक्सीजन बार खुलने लगे हैं और पतझर का मायका पहाड़ मूक दर्द सह रहा है !

फ्लैप पर प्रो कुमार कृष्ण ने भी कहा है कि ये कवितायें सृजनात्मक अनुभव और जीवनानुभव से निकली हैं। ये नदी के पांव से लेकर पृथ्वी पर चलने के लिए आतुर है तो आपकी आतुरता इन कविताओं को पढ़ने की बढ़ती जायेगी, निश्चित है। बहुत बहुत बधाई, कुल राजीव! अबकि शिमला मिलेंगे तो आपकी कविताओं पर खुलकर बात करेंगे।

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #249 – 134 – “पहली नज़र में समझ लेते थे इज़हार…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल पहली नज़र में समझ लेते थे इज़हार…” ।)

? ग़ज़ल # 134 – “पहली नज़र में समझ लेते थे इज़हार,…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

मुहब्बत में जीने के दिन आ गये हैं,

लो मोती पिरोने के दिन आ गये हैं।

*

किस्से दूसरों के बहुत सुन चुके हैं,

हमारे  फ़साने के दिन आ गये हैं। 

*

हुज़ूर कुछ दिनों से उखड़े से रहते हैं,

लगता हैं सताने के दिन आ गये हैं।

*

जज़्ब कर लेते थे कल तक भीतर ही, 

अब अश्क़ बहाने के दिन आ गये हैं। 

*

पहली नज़र में समझ लेते थे इज़हार,

प्यार अब जताने के दिन आ गये हैं।

*

उड़ चुके इश्क़ के कबूतर फड़फड़ा कर,

लो ज़ख़्म सहलाने के दिन आ गये हैं।

*

चुराने  लगे  अब नज़रों से नज़र वो,

लो आतिश लुभाने के दिन आ गये हैं।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लफ़्ज़ सच्चे हैं शायरी – सच है  ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक ☆

डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

☆ कविता ☆ लफ़्ज़ सच्चे हैं शायरी – सच है  ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक 

तू   अगर  है   तो   ज़िन्दगी – सच  है

यह    मुहब्बत   की   रौशनी- सच है

*

झूठे    लगते   हैं   यह   ज़माने   मुझे

दिल जो कहता  है बस  वही – सच है

*

तुम से मिल कर मैं ख़ुद को समझी हूँ

अब  यह  लगता  है  हर ख़ुशी- सच है

*

इश्क़   कहते   हैं   सारे    लोग   जिसे

तेरी    दुनिया   का  आख़िरी – सच  है

*

बाणी   कहती  हैं   ‘बाबा नानक’  की

‘आदि’  सच   है  ‘जुगादि’ भी – सच है

*

आप   जो   रोज़    मुझ   से   कहते  हैं

ऐसा   लगता    है   अब   यही – सच है

*

ढलते     सायों     का    एतबार    नहीं

बहते   धारों    की   दोस्ती  –  सच   है

*

आप    ने    आज    जो    सुनाया    है

क्या  वो  क़िस्सा  भी  वा’क़ई – सच है

*

यह    मिटाने   से   मिट   नहीं   सकता

इस   ज़माने   में   आज  भी  – सच   है

*

 आप    करते    नहीं    यक़ीं  ,  लेकिन

मेरे   होंठो   पे   आज   भी –   सच   है

*

इस  हक़ीक़त  को मान जाओ ‘फ़लक’ 

लफ़्ज़    सच्चे    हैं    शायरी –  सच   है

© डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

संपर्क – मकान न.-11 सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब – 141003 फोन नं – 9646863733 ई मेल – [email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 126 ☆ गीत ☆ ।।स्वतंत्रता संग्राम में वीरांगनाओ का योगदान।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 126 ☆

गीत ☆ ।।स्वतंत्रता संग्राम में वीरांगनाओ का योगदान।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

हमारी आज़ादी में रानी लक्ष्मी बाई का भी योगदान है।

जुड़ा आजादी से   बेगम हज़रत महल का भी नाम है।।

भारतीय वीरांगनाओं की महती भूमिका रही स्वतंत्रता में।

अहिल्या बाई होलकर की भी स्वाधीनता में  शान है।।

[2]

स्वतंत्रता सेनानी बन महिलाओं ने भी तिरंगा थामा था।

दुर्गावती पदमावती ने स्वाधीनता का मूल्य पहचाना था।।

वीरांगना झलकारीबाई सावित्रीबाई फुले का भी स्थान।

विजय लक्ष्मी  कमला नेहरू का नाम नहीं अनजाना था।।

[3]

त्याग तपस्या स्वाभिमान तो नैसर्गिक रूप गुण नारी के।

वीर योद्धा भांति लड़ती बातआती अस्मत की नारी के।।

स्वर्ण अक्षरों में नाम रहेगा सदा नारी के योगदान का।

जब भी पढ़ा जायेगा इतिहास शौर्य पराक्रम नारी के।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 190 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – गीत – नये कदम बढ़ाता चल… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण गीत  – “नये कदम बढ़ाता चल। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 190 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – गीत नये कदम बढ़ाता चल ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

तू गाता चल मुस्काता चल,

आगे बढ़ राह बनाता चल

ये दुनियाँ चलती जाती है,

रूक मत तू चलते जाता चल ।।१।।

*

दुख दर्द भरी दुनियाँ में यहाँ,

कष्टों से कहीं भी चैन कहाँ ?

मिल जायें जभी दो पल मन के,

मन की उलझन सुलझाता चल ।।२।।

*

दुख के ही अधिक सताये हैं,

सुख तो थोड़े पा पाये हैं

जो मिले राह में गले लगा,

उनको भी राह दिखाता चल ।।३।।

*

जो थककर हिम्मत हारे हों,

घबराकर एक किनारे हों

उनके मन में अपनी गति से,

आशा की ज्योति जगाता चल ।।४।।

*

हर पीढ़ी ने जो भी आई,

नई झेलीं जग में कठिनाई

पाने को अपनी मंजिल तू,

हर क्षण नये कदम बढ़ाता चल ।। ५।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #245 ☆ रिश्ते… ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की मानवीय जीवन पर आधारित एक विचारणीय कविता रिश्ते… । यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 245 ☆

☆ रिश्ते… ☆

रिश्ते

नाजुक हैं कांच की तरह

टूट जाते हैं

मिट्टी के घरौंदों की तरह

फिर भी इन्सान

संजोता है सपने

करता है अपेक्षाएं अपने बच्चों से।

 

बच्चे !

जो पंख निकलते ही

उड़ जाते हैं निश्चिंत हो

बना लेते हैं रास्ता नि:सीम गगन में

बसा लेते हैं आशियां

किसी तरू की शाखा पर।

 

सपनों की भांति ही

टूट जाते हैं नाजुक रिश्ते

तन्हा रह जाते हैं इन्सान।

 

बच्चे

अब उड़ना सीख चुके हैं

मंजिल तय कर चुके हैं

उनके अपने रास्ते हैं

वे बसा लेंगे अलग

अपना आशियां सुंदर

वह अकेला, निपट अकेला

रो रहा है और हंस रहे हैं

उस पर दूर खड़े

जन्म-जन्म साथ निभाने

कसमें खाने वाले, दगा देने वाले

अजनबी से

ये रिश्ते।

 

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘विदेह’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Bodiless…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poetry “विदेह.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि –  लघुकथा – विदेह ? ?

बूझता हूँ पहेली-

कटोरे में कटोरा

पुत्र, पिता से गोरा,

भीतर झाँकता हूँ, 

अपनी देह के भीतर

एक और देह पाता हूँ,

इस देह का भान

सांसारिक प्रश्नों को

कर देता है बौना,

अपनी आँख से

अपनी आँख में देखो,

देह से विदेह कर देता है

इस देह का होना…!

© संजय भारद्वाज  

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

?~ Bodiless ~??

Faced a riddle

as he asks:

‘Bowl in a bowl

Son, fairer than father’,

I look inside,

find another body

inside my body,

Consciousness of which

dwarfs worldly conundrums,

Look into your eyes

with your own eyes,

Existence of this body

makes one go bodiless

from this body,

turning it incorporeal…!

??

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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