English Literature – Poetry ☆ Inseparable ..…☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poem “अभिन्न..”.  We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

☆ संजय दृष्टि  ☆ अभिन्न 

अलग करने की

कल्पनाभर से अस्तित्व

धुआँ-धुआँ हो चला,

लेखन मुझमें है

या मैं लेखन में हूँ,

अबतक पता नहीं चला…!

©  संजय भारद्वाज 

प्रात: 5:58 बजे, 18.11.2020

 

☆ Inseparable.. ☆

My existence got

Shattered with just the

Thought of separation,

Writing is in me

Or I’m in writing

Don’t know as yet …!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ हम तुम ☆ सुश्री सुलक्षणा मिश्रा

सुश्री सुलक्षणा मिश्रा 

( ई- अभिव्यक्ति में युवा साहित्यकार सुश्री सुलक्षणा मिश्रा जी का हार्दिक स्वागत है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “हम तुम”। )

☆ कविता – हम तुम ☆

तुम सपनों के सौदागर

मैं शब्दों की बाजीगर।

तुम सजाते मेले

सपनों के

मैं दिखलाती करतब

शब्दों के।

जो हृदय चुभे

कोई शूल तुम्हें

मैं शब्दों से मरहम देती हूँ।

राह हो तुम्हारी

जब कंटक भरी

मैं शब्दों से

मखमल कर देती हूँ।

दिख जाए बस

एक मुस्कान तुम्हारी

तो सब कुछ मैं

न्यौछावर कर देती हूँ।

जो छलक उठे

एक अश्क तुम्हारा

मीन बिन नीर सी

तड़प उठती हूँ।

मैं नियत से हूँ

तुम्हारी ही

नियति से मैं हारी हूँ।

तुम कृष्ण हो मेरे

पूरे से

मैं राधिका तुम्हारी

अधूरी सी।

 

© सुश्री सुलक्षणा मिश्रा 

संपर्क 5/241, विराम खंड, गोमतीनगर, लखनऊ – 226010 ( उप्र)

मो -9984634777

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )

 ✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

कभी विहंसती सी  लगे, कभी खिले मुस्कान।

मुख मंडल मुझको प्रिये, लगता जलज समान।।

 

गोधूली में दृष्टिगत, होता चारु  स्वरूप।

कभी झलकती राधिका,कभी कृष्ण का रूप।।

 

वृंदावन उच्चारते, सजलित होते प्राण।

युग से प्यासी दृष्टि को, यही मिलेगा त्राण।।

 

वह शब्दों की माधुरी, वह आंगिक संवाद।

अपने को भूला मगर, सिर्फ वही है याद।।

 

किशमिश रंगी रूप का, चखा चक्षु ने स्वाद।

तृप्ति कपूरी जो मिली, अब तक है वह याद।।

 

प्राण प्रिया की याद में, व्याकुल है मन-मीन।

कितना धौंऊं नयन पट, अब भी बहुत मलीन।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 25 – एक उलझी वंचना का… ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “एक उलझी वंचना का…। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 25– ।। अभिनव गीत ।।

एक उलझी वंचना का...

 

विजय सा ।

एक चुटकी भर बचा था

दोस्त मुझ में

सहमता, मेरी पड़ोसिन

के हृदय सा ॥

 

एक उलझी वंचना का

था सुखद निक्षेप भर जो ।

लड़ रहा खुद में अपरिचित

द्वंद्व की ही खेप भर जो ।

 

एक बस पच्चीस प्रतिशत

रास्ते के संतुलन में ।

जगमगाती दिया-बाती के

अनौखे चुप समय सा ॥

 

यही हैं जो अंजुरी भर

बचे मौसम के सुनहरे ।

शब्द जिनके बिम्ब पानी में

हुये है  हरे बिखरे ।

 

बस यही बालिश्त भर का

सुख रहा है पास मेरे  ।

जो सदा चलता रहा है

अति नमनशीला विनय सा॥

 

किसी मौलिक वजह का

प्रतिपाद्य है जो सुफलवाला ।

प्रीति कर भी है अनिश्चित

संतुलन की कार्यशाला ।

 

बहुत ऊहापोह में गुजरी

सदी के आचरण को ।

परिस्थितियों से कटा है

सौख्य के अभिनव तनय सा॥

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

17-11-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

 

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ नींव और मन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ नींव और मन

झूठ की नींव पर,

सच की मीनार

खड़ी नहीं होती,

छोटे मन से कोई यात्रा

कभी बड़ी नहीं होती!

 

©  संजय भारद्वाज 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ निधि की कलम से # 26 ☆ इक्कीसवी सदी का भारत ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण  कविता  “इक्कीसवी सदी का भारत”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 26 ☆ 

☆ इक्कीसवी सदी का भारत

 

मैंने सपने में देखा इक्कीसवी सदी का भारत कैसा होगा,

इतिहास में शहीदों के बलिदानों ने सींचा हैं भारत को,

अनेकों लुटेरों ने लूटा हैं भारत को,

अंग्रेजों ने लूटा और अत्याचार से पीड़ित किया था भारत को,

सदियों की पराधीनता को सहना पड़ा हैं भारत को,

मैंने सपने में देखा इक्कीसवी सदी का भारत कैसा होगा,

इतिहास में शहीदों के बलिदानों ने सींचा हैं भारत को।

 

गाँधी और नेहरु के पदचिन्हों में चलना हैं भारत को,

लाल, बाल, पाल की दृढ़ता को भरना होगा भारत को,

नेताजी के सपनों को पूरा करना हैं भारत को,

रानी लक्ष्मीबाई की हिम्मत को भरना हैं भारत को,

मैंने सपने में देखा इक्कीसवी सदी का भारत कैसा होगा,

इतिहास में शहीदों के बलिदानों ने सींचा हैं भारत को।

 

विज्ञान एंव कंप्यूटर क्षेत्र में विश्व में सर्वव्यापी होगा,

शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में भारत विश्व में अद्वितीय होगा,

संस्कारों के क्षेत्र में भारत विश्व में अग्रणी होगा,

हमारी परम्पराएं प्रत्येक भारतवासी के जीवन का मूल्य होगी,

मैंने सपने में देखा इक्कीसवी सदी का भारत कैसा होगा,

इतिहास में शहीदों के बलिदानों ने सींचा हैं भारत को।

 

वो नवजात शिशु की भाँति कोमल और विकासशील होगा,

वो निरंतर विधिगत एंव विकासमान राष्ट्र होगा,

वो ऐसा वटवृक्ष होगा जिसकी जड़े गहरी होंगी,

वो गौरवशाली परम्पराओं का रस ग्रहण करने के योग्य होगा,

मैंने सपने में देखा इक्कीसवी सदी का भारत कैसा होगा,

इतिहास में शहीदों के बलिदानों ने सींचा हैं भारत को।

 

आओ इस सपने को पूरा करें हम,

अपने आप को अपने आप से ऊँचा करें हम,

अनेकता में एकता भरें हम,

आओ इस स्वर्ण इतिहास को रत्नमय करने का प्रयास करें हम,

मैंने सपने में देखा इक्कीसवी सदी का भारत कैसा होगा,

इतिहास में शहीदों के बलिदानों ने सींचा हैं भारत को।

 

©  डॉ निधि जैन,

पुणे

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #18 ☆ नशे का जहर ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर, अर्थपूर्ण, विचारणीय  एवं भावप्रवण  कविता “नशे का जहर”। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 18 ☆ 

☆ नशे का जहर ☆ 

दीवाली के दिन

जब उसने संयंत्र से

बोनस पाया

बच्चों के लिए

पटाखे, मिठाईयां

और अपने लिए

देशी बोतल लाया

दीप जले, मिठाईयां बंटी

पटाखे फूटे

द्वार द्वार जगमगाये

उसने बोतल खोलकर

जमकर पी

कि

शायद दुखों को

कुछ पल भूल जायें

लेकिन-

कुछ ही क्षणों बाद

वह मृत्यु से जूझ रहा था

दीवाली का दीपक

बुझने से पहले ही

इस घर का

दीपक बुझ रहा था।

 

पता नहीं

यमराज ने कैसा

खेल रचा था?

सारी बस्ती में

कोहराम मचा था

त्योहारों पर अक्सर

ऐसा ही कुछ

होता रहता है

प्रतिवर्ष हम

जलाते हैं रावण को

फिर भी

वह नहीं मरता है

तब-

दावानल सा

लगता है तन में

अंगारे सा प्रश्न

उठता है मन में

क्या खुशी, गम या

तीज त्योंहारों पर

नशा करना

वाकई जरूरी है?

क्या अभावों की कटुता

कुछ पल भुलाने के लिए

यह जहर पीना

मानवीय मजबूरी है?

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 30 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 30 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 30) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 30☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मैं दिल हूँ, रुकूँगा…

तो  मर  जाऊँगा,

मुझे  सुकून  ना  दे,

बस बेकरार रहने दे…

 

I am just a  heart…

If stopped,  I’ll  die…

Give me no relaxation,

Let me be restless only…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

जिंदगी भी एक

फन है लम्हों का

इसे अपने अंदाज

से  गँवाने  का…

 

Life  is  just  an

artistry of moments

To have them wasted

in  their  own  style…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

अक्सर कुछ अनकही बातें

बहुत कुछ  कह जाती हैं

ज़रूरी नहीँ कि हर चीज़

लफ़्ज़ों  में  ही  बयाँ हो…

 

Sometimes  even  some

Unexpressed things say a lot

It’s not always necessary

Everything be said in words!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

ख्वाहिशों से भरा पड़ा है

मन  इस  कदर  कि…

रिश्ते  भी  तरसते  हैं …

ज़रा सी जगह पाने के लिए…

 

The mind is full of desires

to such an extent that

Relationship also yearns

to  get  a  little space…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 30 ☆ भारत आरती ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  आचार्य जी  द्वारा रचित आरती भारत आरती । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 30 ☆ 

☆ भारत आरती ☆ 

आरती भारत माता की

सनातन जग विख्याता की

*

सूर्य ऊषा वंदन करते

चाँदनी चाँद नमन करते

सितारे गगन कीर्ति गाते

पवन यश दस दिश गुंजाते

देवगण पुलक, कर रहे तिलक

ब्रह्म हरि शिव उद्गाता की

आरती भारत माता की

*

हिमालय मुकुट शीश सोहे

चरण सागर पल पल धोए

नर्मदा कावेरी गंगा

ब्रह्मनद सिंधु करें चंगा

संत-ऋषि विहँस,  कहें यश सरस

असुर सुर मानव त्राता की

आरती भारत माता की

*

करें श्रृंगार सकल मौसम

कहें मैं-तू मिलकर हों हम

ऋचाएँ कहें सनातन सच

सत्य-शिव-सुंदर कह-सुन रच

मातृवत परस, दिव्य है दरस

अगिन जनगण सुखदाता की

आरती भारत माता की

*

द्वीप जंबू छवि मनहारी

छटा आर्यावर्ती न्यारी

गोंडवाना है हिंदुस्तान

इंडिया भारत देश महान

दीप्त ज्यों अगन, शुद्ध ज्यों पवन

जीव संजीव विधाता की

आरती भारत माता की

*

मिल अनल भू नभ पवन सलिल

रचें सब सृष्टि रहें अविचल

अगिन पंछी करते कलरव

कृषक श्रम कर वरते वैभव

अहर्निश मगन, परिश्रम लगन

ज्ञान-सुख-शांति प्रदाता की

आरती भारत माता की

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ अभिन्न ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ अभिन्न

अलग करने की

कल्पनाभर से अस्तित्व

धुआँ-धुआँ हो चला,

लेखन मुझमें है

या मैं लेखन में हूँ,

अबतक पता नहीं चला…!

©  संजय भारद्वाज 

प्रात: 5:58 बजे, 18.11.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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