English Literature – Poetry ☆ Experiments…☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poem  “प्रयोग …”.  We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

☆ संजय दृष्टि  ☆ प्रयोग 

अदल-बदल कर

समय ने किये

कई प्रयोग पर

निष्कर्ष वही रहा,

धन, रूप, शक्ति,

सब खेत हुए

केवल ज्ञान

चिरंजीव रहा!

 ©  संजय भारद्वाज 

रात्रि 12:08  21-10-2018.

☆ Experiments…☆ 

Interchangeably,

Time conducted

countless experiments

But, the inference

remained the same,

Wealth, beauty,

power and authority

all perished,

Knowledge only

emerged timelessly alive!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 22 ☆ उसूलों का जोड़ बाकी ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता उसूलों का जोड़ बाकी । ) 

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 22 ☆ उसूलों का जोड़ बाकी ☆

 

खर्च हो गयी जिंदगी बेकार के असूलों को निभाने में,

उसूलों का जोड़ बाकी गुणा भाग सब अब शून्य हो गया ||

 

हिफ़ाजत से रखे थे कुछ उसूलों बुढ़ापे के लिए,

डॉक्टर ने बताया तुम्हारा जीवन अब बोनस में तब्दील हो गया ||

 

डॉक्टर ने कह दिया अब जिंदगी का हर दिन बोनस है,

जी लो जिंदगी अपनों के संग, हर दिन सुकून से बीत जाएगा ||

 

मौत करती नहीं रहम कभी पल भर का भी,

मिटा लो गिले शिकवे, दिल का बोझ दिल से उतर जाएगा ||

 

कल तक जिंदगी ठेंगा दिखाती रही मौत को,

आज मौत हंस कर बोली,आज हंस ले कल सब शून्य हो जाएगा ||

 

मौत ने कहा भगवान भी नहीं दिला सकता मुझसे निजात,

आज या कल हर कोई मेरे आगोश में आकर दुनिया छोड़ जाएगा ||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 58 ☆ जी चाहता है ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साbharatiinझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  एक भावप्रवण रचना “जी चाहता है”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 58 ☆

☆  जी चाहता है ☆

गले सितारों को लगाने को, जी चाहता है

पास महताब के जाने को, जी चाहता है

 

बड़ी ही सिरफिरी हवाएं हैं, मचल रही हैं

उनके साथ मचल जाने को, जी चाहता है

 

सुनाई नहीं देती आहट, ख़ामोशी है बड़ी

गाने को सरगम निराली, जी चाहता है

 

रात महके जुस्तजू से, अंदाज़ हैं निराले

पास से आसमान छू जाने को, जी चाहता है

 

समाई सी लगती है परिंदों की रूह मुझमें

आज फ़लक तक उड़ जाने को, जी चाहता है

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )

 ✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

दीवाली की दस्तकें, दीपक की पदचाप।

आओ खुशियां मनायें, क्यों बैठे चुपचाप।।

 

अंधियारे की शक्ल में, बैठे कई सवाल ।

कर लेना फिर सामना, पहले दीप उजाल।।

 

कष्टों का अंबार है, दुःखों का अंधियार ।

हम तुम दीपक बनें तो, फैलेगा  उजियार ।।

 

नहीं पूर्व थी सूचना,और न था संकेत ।

अकस्मात तुम चल  दिए , त्यागा नेह निकेत।।

 

भटक-भटक कर आ गया, मैं फिर तेरे द्वार।

और किसी का है नहीं, बस तेरा अधिकार ।।

 

आंख उलझ कर रह गई, रहे तरसते कान।

बस इतनी थी खैरियत, झांक गई मुस्कान।

 

अधरों पर मुस्कान वह, जैसे हो फरमान।

तिल कातिल सा देखता, बना हुआ दरबान।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 24 – जीवन की गति उलझी… ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “जीवन की गति उलझी…। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 24– ।। अभिनव गीत ।।

☆ जीवन की गति उलझी... ☆

साड़ी के छोर सखी

ऐसे मत बाँध री  |

लोगों के चेहरे पर

मन की सड़ाँध री ||

 

सर्पिला है परछाई

तन की द्युति शरमाई

चूल्हे का है कहना

भात नहीं राँध री ||

 

जीवन की गति उलझी

छुअन तक नहीं समझी

घूर घूर क्या ताके

तू  है क्या  आँधरी ?

 

कोमल कोमल हाथों

पिघली इन बरसातों

सबर  कर तनिक तो डर

देहरी मत फाँद री  ||

 

संध्या है घिर आई

लौट गई तरुणाई

आ उतरा  मँगरे पर

धुला धुला चाँद री ||

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

11-02-2019

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ निधि की कलम से # 25 ☆ दीपावली ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक समसामयिक कविता  “दीपावली”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 25 ☆ 

☆ दीपावली

वसुंधरा पर स्वर्ण की वर्षा सी,

निशा पर प्रभात की विजय सी,

दीपावली करती हमें आनंदित दीपों के पर्व सी I

 

दीपों की रौशनी से मिटता निशा का अंधकार सा,

द्वार की रंगोली से, भरती जीवन में नया आकार सा,

हर रूठे मन मे भरता उजाले सा,

हर अंग सजता, अलंकार सा,

हर मुखड़ा चहकता मोहक चितवन सा,

हर आँगन लगता मधुवन सा I

 

वसुंधरा पर स्वर्ण की वर्षा सी,

निशा पर प्रभात की विजय सी,

दीपावली करती हमें आनंदित दीपों के पर्व सी।

 

निधिपति का स्वागत करने का ये पर्व,

राम के लिये हर पूजा हर जतन करने का ये पर्व,

राम के वनवास से लौटने का ये पर्व,

हर आँगन में फैलता स्वर्ण लता सा ये पर्व,

मिठाईयों में मीठा रसगुल्ले सा ये पर्व,

पुष्पों में सुन्दर कमल सा ये पर्व,

वसुंधरा पर स्वर्ण की वर्षा सी,

निशा पर प्रभात की विजय सी,

दीपावली करती हमें आनंदित दीपों के पर्व सी।

 

ऐसे ही हर साल आये ये पर्व,

कुमार के मौसम को जगमगाये ये पर्व,

भाईचारे और एकता को जगाये ये पर्व,

हर आँगन हर मुखड़ा पटाखे की रोशिनी से चहके ये पर्व,

पकवानों की महक से हर आँगन महकाये ये पर्व,

रुढ़िवाद, भेदभाव को दूर करे ये पर्व।

 

वसुंधरा पर स्वर्ण की वर्षा सी,

निशा पर प्रभात की विजय सी,

दीपावली करती हमें आनंदित दीपों के पर्व सी।

 

सरोवर में स्वर्ण मीन सा ये पर्व,

भानु पर अग्नि सा ये पर्व,

प्रभात में रोशन और पानी में दामिनी सा ये पर्व,

भाईचारे और एकता की मिसाल पैदा करे ये पर्व।

 

©  डॉ निधि जैन,

पुणे

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #17 ☆ इक ज्योति जलाइए ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर, अर्थपूर्ण एवं भावप्रवण  कविता “इक ज्योति जलाइए”। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 17 ☆ 

☆ इक ज्योति जलाइए ☆ 

हर मायूस दिल में

इक ज्योति जलाइए

दीपोत्सव का उत्सव है

सब मिलकर मनाइए

माना हवाओं में

जहर बहुत है

माना तूफानों में

कहर बहुत बहुत है

घमंड, अभिमान के

मेले लग रहे हैं

बिक रहा इन्सान

और बिकते इन्सानों के

ठेले लग रहे हैं

मर्यादा पुरुषोत्तम

कशमकश में पड़े हैं

अटृहास करते

चहुं ओर रावण खड़े हैं

वध कीजिये इन दुष्टात्माओं का

सत्य को बचाइये

इक ज्योति जलाइये

 

कुछ उम्मीद लिए

आसमान में तांक रहें हैं

फिर अपनी झोपड़ी के

अंधेरे में झांक रहें हैं

चाँद सितारे

हो तुमको मुबारक

उनको तो है

बस जुगनुओं की जरूरत

कोई टूटा हुआ तारा

उनकी नजर कर देता

अरमानों से उनकी

झोली भर देता

कुछ पल जीवन में

खुशियाँ आ जाती

मिठाई की मिठास तो

सबको है भाती

बुझ गई आँखों में

रोशनी जलाइए

टूटे हुए दिलों को

धीरज बंधाइए

बाँटिए खुशियाँ

उनको गले लगाइए

इक ज्योति जलाइए

 

कब तलक एक दूसरे से

नफ़रत करोगे

इन्सान हो इन्सान से

कब मुहब्बत करोगे

जख्मों को कुरेदोगे

तो क्या फ़ायदा होगा ?

भर जाये जख्म ऐसा

क्या कोई कायदा होगा ?

मंदिर की घंटियाँ हो

या मस्जिद की हो अजान

हर जगह सर झुकाके

खड़ा है इन्सान

कुछ सौदागर यह अफीम

बाँट रहे हैं

एकता, भाईचारे की जड़ों को

काट रहे हैं

इन भटके हुए राहगीरों को

सही राह दिखाइए

इक ज्योति जलाइए

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 29 ☆ पाँच पर्व ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  आचार्य जी  की एक  कविता पाँच पर्व । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 29 ☆ 

☆ पाँच पर्व ☆ 

पाँच तत्व की देह है,

ज्ञाननेद्रिय हैं पाँच।

कर्मेन्द्रिय भी पाँच हैं,

पाँच पर्व हैं साँच।।

*

माटी की यह देह है,

माटी का संसार।

माटी बनती दीप चुप,

देती जग उजियार।।

कच्ची माटी को पका

पक्का करती आँच।

अगन-लगन का मेल ही

पाँच मार्ग का साँच।।

*

हाथ न सूझे हाथ को

अँधियारी हो रात।

तप-पौरुष ही दे सके

हर विपदा को मात।।

नारी धीरज मीत की

आपद में हो जाँच।

धर्म कर्म का मर्म है

पाँच तत्व में जाँच।।

*

बिन रमेश भी रमा का

तनिक न घटता मान।

ऋद्धि-सिद्धि बिन गजानन

हैं शुभत्व की खान।।

रहें न संग लेकिन पूजें

कर्म-कुंडली बाँच।

अचल-अटल विश्वास ही

पाँच देव हैं साँच।।

*

धन्वन्तरि दें स्वास्थ्य-धनहरि दें रक्षा-रूप।

श्री-समृद्धि, गणपति-मति

देकर करें अनूप।।

गोवर्धन पय अमिय दे

अन्नकूट कर खाँच।

बहिनों का आशीष ले

पाँच शक्ति शुभ साँच।।

*

पवन, भूत, शर, अँगुलि मिल

हर मुश्किल लें जीत।

पाँच प्राण मिल जतन कर

करें ईश से प्रीत।।

परमेश्वर बस पंच में

करें न्याय ज्यों काँच।

बाल न बाँका हो सके

पाँच अमृत है साँच

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 29 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 28 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 29) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 29☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

तेरे ख्याल से खुद को

छुपाकर भी देखा  है,

दिल-ओ-नजर  को भी

रुला कर के देखा  है…

 

तेरी कसम, गर तू नहीं

तो  कुछ  भी  नहीं,

मैंने कुछ  पल  तुझे

भुला कर भी देखा है…

 

I’ve tried myself hiding

 from your thoughts,

I have even made the

eyes and the heart cry…

 

I have even tried forgetting

you  for  few moments…

I swear, there is nothing

if  you  are  not there…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

गर  मैं  लब  हूँ, तो

तुम  मेरी  बात  हो,

मेरा वज़ूद भी तब  है,

जब तुम मेरे साथ हो…

 

If  I am  lips, then

You’re  my  words,

My existence is only,

when you are with me…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

ख़्वाब में भी देर तलक

जागा  किए  हम…

नींद ख़ुद भी एक किरदार थी

हमारी  उस  नींद  में…

 

Remained  awake  till

late even in the dream

Sleep  itself  was  a

character in that sleep…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – दीपोत्सव ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  काशी निवासी लेखक श्री सूबेदार पाण्डेय जी द्वारा  रचित दीप पर्व पर विशेष रचना “दीपोत्सव। ) 

साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – दीपोत्सव 

 

इन दुख की काली रातों में, दीपों से धरा सजाना है।

कोई कोना छूटे ना, इस तम को हमें ही  मिटाना है।

तन मन आलोकित कर,जग आलोकित कर जाना है।

जो अंधेरों में मन मारे बैठे हैं, आस का दीप जलाना है।।१।।

इन दुःख।।

 

जीवन की अंधेरी ‌राहों में,  कांटों के ऊपर चलना है।

उम्मीदों का दीप जला‌ कर, खतरे से बच निकलना है ।

ना ठोकर खाये कोई राह में ,दीपक बाती सा जलना है।

कर्मों के पथ आलोकित हो, जग में उजाला करना है।।२।।

इन दुख की।।

 

नीले अंबर की छांव में, दुख से कातर हर गांव में।

बांधे घुंघरू पांवों में, झम झम कर नाच दिखाना है ।

ना दुखिया हो जीवन में कोई, खुशियों के गीत सुनाना है।

हर तरफ खुशी के रेले हो, हर दिल का साज‌ बजाना है।।३।।

इन दुख की।।

 

खेतों में खलिहानों में, झोपड़ियों महलों के कंगूरों पे।

हर मंदिरों के कलशों पे, हर मस्जिद की मीनारों पे।

हर तरफ रोशनी फैली हो, दीपों से टिम टिम लड़ियों में।

कहीं  भी अंधेरे ना रह ना पायें, चर्चों और गुरूद्वारों में ।।४।।

इन दुःख।।

 

हर तरफ खुशी के मंजर हो,ना जंग में गम का अंधेरा हो।

आशा की किरणें फूट पड़े, हर जीवन में नया सबेरा हो।

आओ मिलकर खुशियां बांटें, सहस दें  सबको बधाई हो।।५।।

इन दुःख की।।

 

© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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