सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साbharatiinझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना “फासले”। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 57 ☆
नज़दीक हमारे हाय वो आ न सके
दर्द-ए-जिगर हम उन्हें बता ना सके
परिंदे ख्वाब के उड़ते आसमान में
मुक़द्दर उन सा हम पा ना सके
तिनके के जैसी होती है हैसियत
किस्मत अपनी हम आजमा ना सके
दरख़्त खड़े थे वहाँ सीना ताने हुए
झुके रहे हरदम, हम महका ना सके
क्या किस्मत पायी है गुलाब ने भी
काटों में फंसे रहे, आगे जा ना सके
जब भी झांका शीशा तो टूट ही गया
अपने अक्स से हाथ मिला ना सके
हाताश आये थे, चले जायेंगे उदास से
फासला जो दरमियाँ था मिटा ना सके
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈