हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 57 ☆ फासले ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साbharatiinझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  एक भावप्रवण रचना “फासले”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 57 ☆

☆  फासले ☆

 

नज़दीक हमारे हाय वो आ न सके

दर्द-ए-जिगर हम उन्हें बता ना सके

 

परिंदे ख्वाब के उड़ते आसमान में

मुक़द्दर उन सा हम पा ना सके

 

तिनके के जैसी होती है हैसियत

किस्मत अपनी हम आजमा ना सके

 

दरख़्त खड़े थे वहाँ सीना ताने हुए

झुके रहे हरदम, हम महका ना सके

 

क्या किस्मत पायी है गुलाब ने भी

काटों में फंसे रहे, आगे जा ना सके

 

जब भी झांका शीशा तो टूट ही गया

अपने अक्स से हाथ मिला ना सके

 

हाताश आये थे, चले जायेंगे उदास से

फासला जो दरमियाँ था मिटा ना सके

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ परिचय ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ परिचय  

अपना विस्तृत परिचय

संक्षेप में भेजिये..,

उन्होंने कहा था,

मैंने लिख भेजा

केवल एक शब्द,

‘कविता’,

सुना है,

‘डिस्क ओवरलोडेड’ कहकर

सर्वर डाउन हो गया।

 

©  संजय भारद्वाज 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Effect… ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poem  प्रभाव….  We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

☆ प्रभाव…☆

कौन कहता है

निर्जीव वस्तुएँ

अजर होती हैं,

घर की कलह से

घर की दीवारें

जर्जर होती हैं !

Effect… ☆ 

Who says

Inanimate objects

don’t decay,

The walls of the house

get cracked,

From the discord

within the house…!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )

 ✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

मात्र छुअन की महक से, महक रहा है गात।

बेला फूले रात को, सूरजमुखी  प्रभात ।।

 

वृंदावन – सा मन मिला, सांसे जमुना नीर।

सम्मुख रूपम राधिका, उड़ता संयम चीर।।

 

तिष्यरक्षिता की तरह, चली जगत ने चाल।

नेत्रहीन ‘इच्छा ‘ हुई, जैसे धीर कुणाल ।।

 

मन में उपजी वासना, जो  सकत है रोक।

कालांतर में स्यात वह,  हो सम्राट अशोक।।

 

पारिजात विद्योत्तमा, कालिदास वन गंध ।

हो दोनों का मिलन जब, मिटे द्वैत की धुंध।।

 

बाहर खिल खिल निर्झरी, भीतर झरते नैन ।

विकल प्रतीक्षित हृदय को, हर क्षण काली रैन।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 23 – वीणा में ठहर गए…. ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “वीणा में ठहर गए….। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 23– ।। अभिनव गीत ।।

☆ वीणा में ठहर गए…. ☆

तुम्हें सुना जब से कल

आहिस्ता फोन पर

लगा तुंग- भद्रा तट गाती है

राग-यमन, किशोरी अमोनकर

 

स्वप्न-पंख ओढ़

थाट का लहरा

मींड, मन्द्र, द्रुत  का

झण्डा फहरा

 

जिक्र हुआ तेरा

सब पूछते हैं

घराना यह किराना

या जौनपुर

 

यादों का यह

ख्याल गायन  है

सरगम में छुपा

शब्द सावन है

 

मधुर कण्ठ ले

ज्यों अालाप  लगा

वीणा में ठहर गए

मौन पर

 

स्थाई, अंतरा

सम्हाल कर

स्वर भरते गत में

हर ताल पर

 

जैसे कि अटक  गया

स्वाद कहीं

प्रीतिभोज  का

किंचित नोंन पर

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

28-01-2019

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पी- (28) ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ चुप्पी- (28)

उच्चरित शब्द

अभिदा है,

शब्द की

सीमाएँ हैं

संज्ञाएँ हैं

आशंकाएँ हैं,

चुप्पी

व्यंजना है,

चुप्पी की

दृष्टि है

सृष्टि है

संभावनाएँ हैं!

 

©  संजय भारद्वाज 

( ‘चुप्पियाँ’ शृंखला की एक रचना।)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ निधि की कलम से # 24 ☆ अन्तर ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता  “अन्तर”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 24 ☆ 

☆ अन्तर

कुछ तो अन्तर कर हे मानव पेड़ों, पौधों और पशुओं में।

तू तन से सबल, तू मन से सबल,

तू तन से पूर्ण, तू मन से पूर्ण,

तू भगवान की श्रेष्ठ कृति है,

तू उजाले की किरण अँधेरी रति में,

तू कर सकता है एक पल में सागर को पार,

तू ज्वालामुखी सा रखता शक्ति अपार,

कुछ तो अन्तर कर हे मानव पेड़ों, पौधों और पशुओं में।

 

तू है जननी इस संस्कृति का।

तू है रचयिता इस सामाजिक आकृति का,

तू है सरिता सुंदरता का,

तू है आधुनिकता का आधार,

तू है प्रेम उस निराकार का,

तू है ज्ञान का भंडार,

कुछ तो अन्तर कर हे मानव पेड़ों, पौधों और पशुओं में।

 

तुझसे है रीति जगत की,

तुझसे है प्रीति जगत की,

तू है मोह का भन्डार,

तुझमें है प्रेम अपार,

तू मानव अब आलस छोड़,

तू मानव अब छोड़ लालच का भन्डार,

कुछ तो अन्तर कर हे मानव पेड़ों, पौधों और पशुओं में।

 

©  डॉ निधि जैन,

पुणे

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #16 ☆ बीती हुई दिवाली की यादें ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर, अर्थपूर्ण एवं भावप्रवण  कविता “बीती हुई दिवाली की यादें ”। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 16 ☆ 

☆ बीती हुई दिवाली की यादें ☆ 

 

दिवाली के दीप

जब जगमगाते हैं

बीते हुए दिन

याद आते हैं

अब भी-

हर लौ में

तुम मुस्कुराती हो

तुमसे रोशन

घर बार हो जाते है

वो तुम्हारे हाथ में थी फुलझड़ी

वो मेरे हाथ में थी

पटाखों की लड़ी

वो गगन में उड़ते हुए

आकाशदीप

वो मेरे पास थी

तुम्हारी दो आंखें बड़ी-बड़ी

जब तुम छुपकर

छत पे आयी थी।

कितनी छत पर

छाई रोशनाई थी

जैसे अंधेरी रात में

चाँद निकला था

अपनी रात दीपों से

जगमगाई थी।

कितनी स्वादिष्ट

वो मिठाई थी।

जो छुपाकर

तुम लाई थी।

कितने प्यार से

तुमने खिलाई थी।

हम दोनों ने

मिलकर खाई थी।

वो तुम्हारा नया नया परिधान

वो तुम्हारी आन और शान

वो अधखुली आंखों से

तुम्हारे व्यंग बाण

वो तुम्हारा मुझको

करना परेशान

यह बातें जब भी

याद आती है

शान्त लहरों मे

तूफान लाती है

बेमजा हुई

इस जिंदगी में

कुछ पल रंगीनियां

झिलमिलाती है

अब यह सब व्यर्थ है

इन सबका ना कोई अर्थ है

ना जाने तुम कहाँ

और हम कहाँ

आज यह जमाना

दीपोत्सव में गर्क है

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अनब्याही लड़कियाँ ☆ डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’

डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ 

(डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) क्वाङ्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन ।  वर्तमान में संरक्षक ‘दजेयोर्ग अंतर्राष्ट्रीय भाषा सं स्थान’, सूरत. अपने मस्तमौला  स्वभाव एवं बेबाक अभिव्यक्ति के लिए प्रसिद्ध। आज प्रस्तुत है डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर ‘ जी  की एक भावप्रवण कविता   “गांधी और जीवन मूल्य “। डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर ‘ जी  के आज के सन्दर्भ में इस सार्थक एवं  विचारणीय विमर्श के लिए उनकी लेखनी को सादर नमन।  ) 

 ☆ कविता  –अनब्याही लड़कियाँ  

चार-चार जवान बेटियाँ

लदी हैं छाती पर सताना के

पर कौन बाँचे सताना

और उनकी अनब्याही लड़कियों की व्यथा

सताना को सताना नहीं इज़्ज़त से

छोटी की माँ के नाम से पुकारते हैं लोग

फिर भी इनकी कथा में

कोई रुचि ही नहीं लेता

तभी तो रह गई है अनकही की अनकही

छोटी की माँ और इन सबकी भी यह

अकथ कहानी कि

हँस नहीं सकतीं ये ठठाकर

बड़े बाप की बेटियों की तरह

मेले-ठेले नहीं जा सकतीं

मेहनत-मजूरी वाली मज़बूत कलाइयों के बावज़ूद

डरी-डरी रहती हैं मर्दों के सामने

कहानी में कथा रस चाहिए

पर यहाँ भरे भादों में भी सूखी पड़ी है

इनकी कथारस की कुइयाँ

जब पास में कुछ नहीं तो कोई क्यों

ले जाए इन गरीब अभागिन गउओं को

क्यों बाँधे अपने खूँटे

खूँटे तो बहुत हैं पर उनमें

मढ़वाने के लिए चाहिए

दस-दस तोले सोने का पत्तुर

और इनके यहाँ

किसी के मरने पर भी

मुँह में सोने का पानी डालने तक के लिए

मासा भर की कील भी नहीं निकलती

इनमें से किसी की नाक में तो

कहाँ से लाएँ सोने का इतना चौड़ा पत्तुर

जिनसे मढ़ी जा सके

थूहड़ की मेखों(वरों) की गोबरैली देह

इसीलिए तो सताना राज़ी हैं

किसी दोहाजू पर भी बड़ी वाली के लिए

इन अनब्याही लड़कियों की

राँड़-बेवा माँ के घर में भी

सोने का न निकलना

बहुत बुरा लगता है लड़के वालों को

थूकने लगते हैं आँखें बचा-बचाकर

छोटी भी अब छोटी नहीं रही बड़ी हो गई है

रोज़ किसी न किसी शीशे के टुकड़े में

अपना चेहरा निहारती है

उसे डर है कि कहीं

उसके चेहरे की भी चमक न चली जाए

एड़ियाँ भी फट न जाएँ

उसकी अपनी ही बड़ी बहनों की तरह

इसीलिए नहाती रहती है घंटों

झाँवे से घिस-घिस कर इतनी लाल कर लेती है एड़ियाँ

कि जैसे अभी-अभी लगा लिया हो आलता

किसी के यहाँ भी संतरे के छिलके पाती है तो

सबकी आँख बचाकर  उठा लाती है

रगड़ती है गालों पर कि झाईं न पड़े

टकसाल से निकली चवन्नी की तरह

अब भी चमकना चाहती है छोटी

वह भी जानती है कि

रीतिकाल के कवियों की नायिका की लुनाई

यानी चमड़ी की चमक ही होगी

उसे वरने वाले की पहली व आखिरी पसन्द

अब तो किसी के पास

खड़ी भी नहीं हो सकती

अपनी बड़ी बहिनों की तरह ही छोटी भी

काँटा चुभने पर भी ठिठके तो

लोगों के कान सनसनाने लगते हैं

आँखें नाच उठती हैं

दवा लेने भी

अपने भाई की साइकिल तक पर

नहीं जा  सकतीं छोटी और उसकी बहनेंं हँड़हिया बाज़ार

कभी- कभी तो

पैदल ही जाती हैं माँ (असमय बूढ़ी हुई माँ) को

संग-संग घसीटते हुए

डॉक्टर के पास

कोई मील भर की भी दूरी नहीं

इसी में दस जगह बैठती हैं सताना

कभी सूखा कभी बाढ़

यह नहीं कि छोटी की माँ उर्फ सताना नहीं जानतीं कि

उनके साथ-साथ खेती भी

हो गई है राँड़

फिर भी आस लगाए रहती हैं

हर फ़सल पर कि जीने भर को अन्न

(कुछ न कुछ)तो मिल ही जाएगा

आज नहीं तो कल मिल ही जाएँगे वर भी

जैसे मिल गए थे उसकी बहनों को

ऐसे अनब्याही ही नहीं बैठी रहेंगी

उसकी लड़कियाँ भी।

 

©  डॉ. गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’

सूरत, गुजरात

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 28 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 28 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 28) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 28☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

ज़रूरी नहीं तोड़ने के लिए,          

हमेशा पत्थर ही  मारा जाए,                           

लहज़ा  बदलने  से  भी,             

बहुत  कुछ  टूट  जाता है…

 

It’s not always necessary to

stone  something  to  break

Even by  changing the  tone,

Lots  of  things  get broken…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

लोगों ने एक ज़र्रे  को

आफ़ताब बनते  देखा

और हम तो बस आपके

नूर को ही देखते रह गए…

 

Everyone kept watching a

granule  turning into  Sun

And I  just kept looking

at  your  resplendence…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

आइना देख कर कुछ

खुद को तसल्ली हुई,

खुदगर्जी के ज़माने में

कोई तो जानता है हमें..

 

Looking into the mirror,

Felt  somewhat  relieved,

In  the  era  of selfishness,

At least someone knows me

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

कुछ  रहम  कर, ऐ जिंदगी

थोड़ा  संवर  तो  जाने  दे…

तेरा अगला जख्म भी सह लेंगे,

पर पहले वाला तो भर जाने दे

 

Have some mercy, O’ life!

Let me get recovered a bit,

Shall bear your next wound too

Let the first one be filled…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

 

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