श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना अभी हम आधे पौने हैं…….। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य # 69 ☆
☆ अभी हम आधे पौने हैं…….☆
हम चाबी से चलने वाले, मात्र खिलौने हैं
बाहर से हैं भव्य, किन्तु अंदर से बौने हैं।
बाहर से हैं भव्य, किन्तु अंदर से बौने हैं।
बीच फसल के, पनप रहे हम खरपतवारों से
पहिन मुखौटे लगा लिए हैं, चित्र दीवारों पे
भीतर से भेड़िये, किन्तु बाहर मृगछौने हैं।….
नकली मुस्कानें और मीठे बोल रटे हमने
सभा समूहों में, नीति के जाप लगे जपने
हम सांचों में ढले, बिकाऊ पत्तल दोने हैं।…..
शिलान्यास-उदघाटन-भाषण, राशन की बातें
दिन में उजले काम, कुकर्मों में बीते रातें
कर के नमक हरामी, कहते फिरें अलोने हैं…..
कई योजनाएं हमने, गुपचुप उदरस्थ करी
भेड़ों के बहुमत से, तबियत रहती हरी-भरी
बातें शुचिता की, नोटों के बिछे बिछौने हैं।….
इत्र-फुलेल सुवासित जल से,तन को साफ किया
मन मलिन ही रहा, न इसका चिंतन कभी किया
दिखें सुशिक्षित-शिष्ट,नियत से निपट घिनोने हैं..…
बाहर – बाहर जाप, पाप भीतर में सदा किया
चतुराई से दोहरा जीवन, सब के बीच जिया
फिर भी पूरे नहीं, अभी हम आधे-पौने हैं।……
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈