हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नवरात्रि विशेष☆ देवी गीत – मात जगदंबे  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित नवरात्रि पर्व पर विशेष देवी गीत – मात जगदंबे । ) 

☆ नवरात्रि विशेष  ☆ देवी गीत – मात जगदंबे  ☆

हे जग की पालनहार मात जगदंबे

हम आये तुम्हारे द्वार मात जगदंबे

 

तुम आदि शक्ति इस जग की मंगलकारी

तीनों लोकों में महिमा बड़ी तुम्हारी ,

इस मन की सुनो पुकार मात जगदंबे

 

देवों का दल दनुजों से था जब हारा

असुरों को माँ तुमने रण में संहारा ,

तव करुणा अपरम्पार मात जगदंबे

 

चलता सारा संसार तुम्हारी दम से

माँ क्षमा करो सब भूल हुई जो हम से,

तुम जीवन की आधार मात जगदंबे

 

हर जन को जग में भटकाती है माया

बच पाया वह जो शरण तुम्हारी है पाया ,

माया मय है संसार मात जगदंबे

 

माँ डूब रही नित भवसागर में नैया

है दूर किनारा कोई नहीं खिवैया,

संकट से करो उबार मात जगदंबे

 

सद् बुद्धि शांति सुख दो मां जन जीवन को

हे जग जननी सद्भाव स्नेह दो मन को ,

बस इतनी ही मनुहार  मात जगदंबे

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ☆ सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ एकता व शक्ति ☆ श्री सुशील कुमार श्रीवास्तव “सुशील”

श्री सुशील कुमार श्रीवास्तव “सुशील”

  

हम ई-अभिव्यक्ति पर एक अभियान की तरह प्रतिदिन “संदर्भ: एकता शक्ति” के अंतर्गत एक रचना पाठकों से साझा कर रहे हैं। हमारा आग्रह  है कि इस विषय पर अपनी सकारात्मक एवं सार्थक रचनाएँ प्रेषित करें। हमने सहयोगी  “साहित्यम समूह” में “एकता शक्ति आयोजन” में प्राप्त चुनिंदा रचनाओं से इस अभियान को प्रारम्भ कर दिया  हैं। आज प्रस्तुत है श्री सुशील कुमार श्रीवास्तव “सुशील”  जी की  एक विचारणीय लेख  “एकता व शक्ति”

☆  सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ एकता व शक्ति 

बिखरे बिखरे रहने से,

बट जाती है शक्ति सारी;

पांच उंगलियां बंधी रहें जो,

दिखती है तब दमदारी।

अभी न जागे तो जागेंगे,

हम तुम सब कब बोला;

नीहित है एका में शक्ति,

बात जरा ये पहचानो।।

 

कब तक बांध रखोगे खुद को,

ऊंच नीच के बंधन में;

कब तक सिमट रखोगे खुद को,

संप्रदाय के बंधन में।

शक्तिशाली बनना है तो फिर,

देश राग को अपना लो;

नीहित है एका में शक्ति,

बात जरा ये पहचानो।।

 

अब न देना अवसर गैरों को,

रखना एका आपस में;

वरना सदियां कोसेंगी,

जो फूट पड़ी फिर आपस में।

मिली है सत्ता संघर्षों से,

फूट का न फिर विष घोलो;

नीहित है एका में शक्ति,

बात जरा ये पहचानो।।

 

जब जब फूट पड़ी है हम में,

औरों ने हमको लूटा;

आया जब तक होश हमें तो,

हमने अपना माथा कूटा।

देता रहा इतिहास गवाही,

अब तो “सुशील” आंखें खोलो;

नीहित है एका में शक्ति,

बात जरा ये पहचानो।।

 

© श्री सुशील श्रीवास्तव ‘सुशील’

9893393312

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ निधि की कलम से # 23 ☆ खुशियाँ ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता  “खुशियाँ ”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 23 ☆ 

☆ खुशियाँ 

 

खुशियों की चादर को, यादों के धागों से बनाया.

सपनों के सितारों को, प्यार की रौशनी से सजाया।

 

हर दिन कुछ और रंगों से रंगाया,

हर शाम हसीन फूलों की इत्र में महकाया,

हर पल हँसा और हँसाया,

हर मौसम को रंगीन बनाया,

खुशियों की चादर को, यादों के धागों से बनाया,

सपनों के सितारों को, प्यार की रौशनी से सजाया।

 

यादों ने जीवन को रंगीन बनाया,

ठोकरों ने उसे और भी मजबूत बनाया,

प्यार के आँगन ने जीवन के श्रृंगार को पूरा कराया,

नन्हे बालक ने आकर मातृत्व का बोध कराया,

खुशियों की चादर को, यादों के धागों से बनाया,

सपनों के सितारों को, प्यार की रौशनी से सजाया।

 

यूँ ही ज़िंदगी गुजरी चली जा रही है,

हर खुशी को सब मुकाम समझ लेते हैं,

मुकाम मिलने पर एक और राह ढूंढ लेते हैं,

रास्ते कटते जाते है, मंजिले मिलती जाती हैं,

खुशियों की चादर को, यादों के धागों से बनाया,

सपनों के सितारों को, प्यार की रौशनी से सजाया।

 

खुशियाँ पूरी होती हैं, एक और नई मिल जाती है,

खुशियों की चादर द्रौपदी के चीर सी लंबी होती जाती है,

धीरे-धीरे उम्र कटती जाती है,

खुशियों की चादर का छोर नहीं मिलता,

खुशियों की चादर को, यादों के धागों से बनाया,

सपनों के सितारों को, प्यार की रौशनी से सजाया।

 

चलो इस जीवन इसी पल हम जी लें,

अपने आप को खुशियों की चादर से ढँक लें,

सपनों के सितारों में, और सुख की रौशनी में खो जाना है,

जीवन का खजाना मिट्टी से मिल मिट्टी में मिल जाना हैं

खुशियों की चादर को, यादों के धागों से बनाया,

सपनों के सितारों को, प्यार की रौशनी से सजाया।

 

©  डॉ निधि जैन,

पुणे

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #13 ☆ मोहरे ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर रचना “मोहरे”।  खेल चाहे जिंदगी का हो या शतरंज की बिसात, हम और हमारे आस पास मोहरे, चाल, शाह और मात विचारणीय है।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 13 ☆ 

☆ मोहरे ☆ 

मोहरों की बिसात

ही क्या है

चाहे सफेद हो या काले

खिलाड़ी जैसे चाल चलेगा

वैसे है वो दौड़ने वाले

हाथी, घोड़ा, ऊंट, प्यादा

या हो शातिर वजीर

सबकी चाल निराली है

हर चाल ऐसी मारक है

जैसे मात होने वाली है

मंझे हुए हैं सभी खिलाड़ी

मंझा हुआ है इनका खेल

एक दूसरे के चिर प्रतिद्वंद्वी

कैसे होगा इनका मेल

नई नई रणनीतियाॅ

चतुराई भरी चालें

नये नये उभरते खिलाड़ी

कोई मुगालता ना पालें

अपने अपने मोहरों से

लगे हुए हैं

देने शह और मात

रच रहे नित नए षड़यंत्र

विनाशकारी घात-प्रतिघात

अपने मोहरों पर

यह व्यर्थ का अभिमान है

शतरंज का खेल है जीवन

बेबस हर इंसान हैं

शतरंज का जो है निपुण खिलाड़ी

उसके मोहरों की

कोई समझ ना पाए चाल

वो पल भर में शह दे दे

वो पल भर में दे दे मात

 

© श्याम खापर्डे 

18/10/2020

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ समंदर ☆ श्री संजय भारद्वाज

 

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ समंदर

वह प्याले में

उठे तूफान के

किस्से सुनाता रहा,

अपने भीतर

एक समंदर छिपाये

मैं चुपचाप सुनता रहा।

 

©  संजय भारद्वाज 

प्रातः 6:50 17.10.18

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 25 ☆ बिटिया की नोक-झोंक ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  आचार्य जी  की एक रचना  बिटिया की नोक-झोंक। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 25 ☆ 

☆ बिटिया की नोक-झोंक ☆ 

बिटिया की नोक-झोंक

ताजा पुरवैया सी

?

अम्मा सम टोंक रही

चाहे जब रोक रही

ठुमक मचल करवा जिद

पूरी, झट बाँह गही

तितली सम उड़े, खेल

ता ता ता थैया सी

बिटिया की नोकझोंक

ताजी पुरवैया सी

?

धरती पर धरती पग

हाथों आकाश उठा

बाधा को पटक-पटक

तारे हँस रही दिखा

बेशऊर लोगों को

चुभे भटकटैया सी

बिटिया की नोंकझोंक

ताजी पुरवैया सी

?

बात मान-मनवाती

इठलाती-इतराती

बिन कहे मुसीबत में

आप कवच बन जाती

अब न मूक राधा यह

मुखर है कन्हैया सी

बिटिया की नोकझोंक

ताजा पुरवैया सी

?

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

३-५-२०२०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ नवरात्रि विशेष☆ हम द्वार तुम्हारे आये हैं ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित नवरात्रि पर्व पर विशेष देवी गीत –  हम द्वार तुम्हारे आये हैं । ) 

☆ नवरात्रि विशेष  ☆ हम द्वार तुम्हारे आये हैं ☆

माँ दरशन की अभिलाषा ले हम द्वार तुम्हारे आये हैं

एक झलक ज्योती की पाने सपने ये नैन सजाये हैं

 

पूजा की रीति विधानों का माता है हमको ज्ञान नही

पाने को तुम्हारी कृपा दृष्टि के सिवा दूसरा ध्यान नहीं

 

फल चंदन माला धूप दीप से पूजन थाल सजाये हैं

दरबार तुम्हारे आये हैं, मां  द्वार तुम्हारे आये हैं

 

जीवन जंजालों में उलझा, मन द्विविधा में अकुलाता है

भटका है भूल भुलैया में, निर्णय न सही कर पाता है

 

मां आँचल की छाया दो हमको, हम माया में भरमाये हैं

दरबार तुम्हारे आये हैं, हम द्वार तुम्हारे आये हैं

 

जिनका न सहारा कोई माँ, उनका तुम एक सहारा हो

दुखिया मन का दुख दूर करो, सुखमय संसार हमारा हो

 

आशीष दो मां उन भक्तों को जो, तुम से आस लगाये हैं

दरबार तुम्हारे आये हैं, सब  द्वार तुम्हारे आये हैं

 

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 25 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 25 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 25) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 25☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

तमाम उम्र गुज़र जाती है…

तराजू की तरह साहब,

कभी फ़र्ज़ भारी होते हैं

तो कभी दिली ख्वाहिशें…

 

The  whole  life passes on

Like a weighing scale, dear

Sometimes duty is heavier

Other times heart’s desires

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

बडी कशमकश है, ए खुदा!

थोड़ी  सी रहमत कर  दे,

या तो ख्वाब ही ना दिखा,

या फिर मुकम्मल कर दे..!

 

What a big dilemma I am in,

Have a little mercy, O’ God!

Either don’t make me dream,

Or just realise them for me!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

यादों को भुलाने में

कुछ देर तो लगती है

आँखों को सुलाने में

कुछ देर तो लगती है

 

किसी शख्स को भुला देना

इतना आसान नहीं होता

दिल  को  समझाने  में

कुछ देर तो लगती ही है…

 

It takes some time to

 forget the memories…

It  takes a  while  to

make the eyes sleep…

 

It’s not so easy

to forget someone

It  takes some time

to convince the heart…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ क्यों जीयें भय से हम जीवन? ☆ श्री अमरेंद्र नारायण

श्री अमरेंद्र नारायण

(आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं  देश की एकता अखण्डता के लिए समर्पित व्यक्तित्व श्री अमरेंद्र नारायण जी की एक भावप्रवण कविता क्यों जीयें भय से हम जीवन?)

☆ क्यों जीयें भय से हम जीवन?  

 

क्यों जीयें भय से हम जीवन ?

शंकित क्यों रहता अपना मन?

 

जीवन का मिला वरदान हमें,

आशीष प्रभु का है सम्बल

बाधायें भी टल जायेंगी

डरते जीयें हम क्यों हर पल?

 

डरना है नहीं,हमें लड़ना है

हर विपदा से,उसके भय से

शक्ति इतनी प्रभु ने दी है

हम जीतेंगे दृढ़ निश्चय से

 

यह हर पल का डरना कैसा?

जीवन का मधु खोने जैसा

निष्क्रियता,जड़ता,कायरता

के वश में है होने जैसा!

 

भयभीत न हों, शंका छोड़ें

आशीष प्रभु का हम मांगें

होगा सुखमय अपना जीवन

जड़ता,आलस,चिंता त्यागें!

 

©  श्री अमरेन्द्र नारायण 

शुभा आशर्वाद, १०५५ रिज़ रोड, साउथ सिविल लाइन्स,जबलपुर ४८२००१ मध्य प्रदेश

दूरभाष ९४२५८०७२००,ई मेल amarnar @gmail.com

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अंको का खेल ☆ सुश्री हरप्रीत कौर

सुश्री हरप्रीत कौर

(ई- अभिव्यक्ति में उज्जैन से प्रसिद्ध कवियित्री एवं शिक्षिका सुश्री हरप्रीत कौर जी का हार्दिक स्वागत है। आप मुख्यतया सामायिक समस्याओं और अध्यात्मिक विषयों पर लिखना पसंद करती हैं। पुस्तकें पढ़ना और संगीत सुनना आपकी प्रिय अभिरुचि है। फिल्हाल कानपुर से लेखनी में सक्रिय हैं ।आज प्रस्तुत है अभिभावकों एवं छात्रों पर आधारित एक विचारणीय कविता ” अंकों का खेल”।)   

☆ कविता ☆ अंको का खेल ☆

 

क्यों हो रहा समाज संवेदनहीन,

रिश्तों में बढ़ रही दूरियाँ,

बचपन हो गया भावनाओं से विहीन.

इस अंधी दौड़ में बच्चों संग

भाग रहे अभिभावक

जिंदगी बन कर रह गयी

“अंको का खेल”

कोई पास कोई फेल.

हर पालनहार का बस स्वपन यही

मेरे बच्चे के नब्बे प्रतिशत अंक आने चाहिए,

उसे जिंदगी में पैसा बहुत कमाना चाहिए.

ना बन पाए वो आइंस्टीन या कलाम तो क्या

मदर टेरेसा और स्वामी विवेकानंद में

अब हमारी दिलचस्पी कहाँ,

मेरे बच्चे के नब्बे प्रतिशत अंक आने चाहिए

उसे जिंदगी में पैसा बहुत कमाना चाहिए

फिर क्यों हम शिकायत करते हैं

बच्चे अब मर्यादाओं का पालन

नहीं करते है.

किताबों में खो गया बचपन

जूझता रहा अंको के खेल से

संवेदनाओं  से हो के दूर

हम सभी है मजबूर

कहलाते हम उस सभ्य समाज का हिस्सा

जहाँ हो रहे हम अपनों से दूर

आहिस्ता आहिस्ता.

 

©  सुश्री हरप्रीत कौर

ई मेल [email protected]

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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