हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ☆ सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ अनेकता में एकता ☆ सुश्री स्वाति धर्माधिकारी

सुश्री स्वाति धर्माधिकारी

हम ई-अभिव्यक्ति पर एक अभियान की तरह प्रतिदिन “संदर्भ: एकता शक्ति” के अंतर्गत एक रचना पाठकों से साझा कर रहे हैं। हमारा आग्रह  है कि इस विषय पर अपनी सकारात्मक एवं सार्थक रचनाएँ प्रेषित करें। हमने सहयोगी  “साहित्यम समूह” में “एकता शक्ति आयोजन” में प्राप्त चुनिंदा रचनाओं से इस अभियान को प्रारम्भ कर दिया  हैं।  आज प्रस्तुत है सुश्री स्वाति धर्माधिकारी जी की एक प्रस्तुति  “अनेकता में एकता”

☆  सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ अनेकता में एकता ☆

इस देश के शांन की,

है यही विशेषता;

हम हैं इस देश के,

शक्ति हमारी एकता।।

 

राह में चुनौतियां आईं हैं,

जब भी कभी;

राष्ट्र था सर्वोपरी,

सर्वोपरी थी एकता;

राष्ट्र और ऊंचा उठे,

ऊंची उठे गणतंत्रता;

न गुलामी हम सहेंगे,

और न परतंत्रता।।

 

गर नज़र उठा के,

देखा किसी ने अब कभी;

दुनिया से मिट जायेगा,

नाम उसका हर कहीं;

“सत्यमेव जयते”,

इस राष्ट्र का आधार है;

ध्वज तिरंगा है हमारा,

प्रतीक हमारी एकता।।

 

देश की खातिर निछावर,

प्राण जिनने कर दिये;

याद में उनकी सदा,

हमने जलाए हैं दिये;

कर रहे प्रणाम हम,

उन वीरों को मन प्राण से;

संदेश वो जो दे गये,

हरदम रहे ये एकता।।

 

© सुश्री स्वाति धर्माधिकारी

प्राचार्या, सरस्वती शिशु मंदिर, घमापुर, जबलपुर।

मो. नंबर 9755538215

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 64 ☆ रेगिस्तान ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  आपकी एक भावप्रवण कविता “रेगिस्तान। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 64– साहित्य निकुंज ☆

☆ रेगिस्तान ☆

मन के रेगिस्तान में

खिलते हैं जब फूल

मन बावरा हो जाता

उडाता है ख़ुशी से धूल ।

बनने लगा सपनों

का महल ।

करना हैं उसे ख़ुशी

से पहल।

रेगिस्तान बरसों से प्यासा रहा।

अब उसकी तड़प को

जाना है प्रकृति ने

बरसों से सुलगी आग की

अब बुझी है प्यास।

कहीं दूर से आती है

जब

पशु पक्षियों की आवाज

मन मयूरी होता बजने लगते

मन के हर साज।

प्यार की कसक

आ ही जाती है।

चाहे इंसान

हो या रेगिस्तान ।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 56 ☆ संतोष के दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

(श्री संतोष नेमा “संतोष” के काव्य संग्रह “सपनो के गांव में” का आज 16 अक्टूबर 2020 को ऑनलाइन विमोचन समारोह शाम 7 बजे  साहित्यिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था “पाथेय “ एवं “मंथन”, जबलपुर के सौजन्य से  आयोजित किया गया है।

श्री नेमा जी को ई- अभिव्यक्ति परिवार की ओर से हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 56☆

☆ संतोष के दोहे ☆

सहनशीलता से मिलें,खुद अपने अधिकार

रखें शारदा मातु पर ,श्रद्धा अरु विश्वास

 

कर्तव्यों को भूल कर,अधिकारों की बात

यही आजकल हो रहा,देकर खुद को मात

 

एक दूसरे पर नहीं, रहा विमल विश्वास

आज समय कहता यही, रखें न कोई आस

 

जयति जयति माँ शारदा, सादर करहुं प्रणाम

एक आस विस्वास तुम, तुमहिं संवारो काम

 

कर्म वचन मन से सदा, करिये पूजा पाठ

उत्सुकता नवरात्रि की, बढ़ा रही है ठाठ

 

सहनशीलता अब कहाँ, धीरज धरे न कोय

वैभव की यह लालसा, सबके अंदर होय

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ सहनाववतु ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ सहनाववतु  

 इतना चल चुके

शिखर अबतक

पहुँच से दूर क्यों रहा..?

मैं मापता रहा

अपने साथ अपनों और

कुछ कम अपनों के

हिस्से की भी दूरी,

‘सहनाववतु सहनौभुनक्तु

सहवीर्यं करवावहै’

की परंपरा को जीना चाहता हूँ,

पहाड़ की साझा चोटियों की

एक कड़ी भर होना चाहता हूँ,

लम्बाई-ऊँचाई के पैमानों में

कोई रस नहीं,

निपट एकाकी शिखर होना

मेरा लक्ष्य नहीं।

 

©  संजय भारद्वाज 

(प्रातः 7:35 बजे, 6 सितंबर 2018)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी के हाइबन# 67 – हूलोक गिबन ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी के हाइबन ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है एक हाइबन   “हूलोक गिबन। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी के हाइबन  # 67 ☆

☆ हूलोक गिबन ☆

अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड जैसे पूर्वोत्तर राज्य में पाया जाने वाला 6 से 9 किलोग्राम वजनी वानर जाति का ये अनोखा जीव है। हूलोक गिबन विलुप्त होने के कगार पर खड़ा वानर अपने जीवन साथी के साथ अपने सीमा क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से विचरण करता रहता है। दूसरा जोड़ा कभी पहले वाले जोड़े के क्षेत्र में बिना काम से नहीं आता है।

मानवीय कृत्य वैवाहिक स्वभाव से युक्त इस वानर जाति का नर का शरीर काला और मादा का शरीर हल्के भूरे रंग का होता है । दोनों की छाती पर विस्तृत रंग की लंबी और गोलाकार छाप होती हैं। हल्के काले रंग के चेहरे पर भूरी आंखें इनकी सौंदर्य में अभिवृद्धि करती है।

इंसानों की तरह चलने वाला हूलोक गिबन अपने पिछले पैरों पर संतुलन बनाकर करतब दिखाने में माहिर होता है। यह 55 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से कूदने में सक्षम और फुर्तीला प्राणी है । नटखट प्रवृत्ति के इस छोटे जीव की छलांग 15 मीटर तक लंबी होती है।

घाटी में वर्षा~

टूटी डाली से कूदे

हूलोक गिबं।

~~~~~~~

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

25-08-20

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 44 ☆ नीति -रीति के दोहे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  “नीति -रीति के दोहे.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 44 ☆

☆ नीति -रीति के दोहे ☆ 

चक्रा इस संसार में,कटु मत बोलै सत्य।

बाज और कौए करें, प्यारे तुझको मृत्य।।

 

झूठ फरेबी बढ़ रहे, सत पर करें प्रहार।

छोटी-छोटी बात पर, जमकर करते रार।।

 

सबसे अच्छा मौन है,और प्रेम है सार।

असत भाव को छोड़कर, जोड़ प्रभू से तार।।

 

झूठ -फरेवों से करूँ , रोज मित्र मुठभेड़।

कोई करता प्रेम है, कोई कहता भेड़।।

 

अनगिन मिलकर छूटते, और मिलें गलहार।

जीवन के रंगमंच पर,शूल और त्योहार।।

 

भाग्य और भगवान ही, रोज रचावें स्वांग।

कर्मों की ये बेल ही, फल की करती माँग।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ☆ सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ गाँधीजी ☆ श्री नरेंद्र श्रीवास्तव

श्री नरेंद्र श्रीवास्तव

हम ई-अभिव्यक्ति पर एक अभियान की तरह प्रतिदिन “संदर्भ: एकता शक्ति” के अंतर्गत एक रचना पाठकों से साझा कर रहे हैं। हमारा आग्रह  है कि इस विषय पर अपनी सकारात्मक एवं सार्थक रचनाएँ प्रेषित करें। हमने सहयोगी  “साहित्यम समूह” में “एकता शक्ति आयोजन” में प्राप्त चुनिंदा रचनाओं से इस अभियान को प्रारम्भ कर दिया  हैं।  आज प्रस्तुत है श्री नरेंद्र श्रीवास्तव जी की एक प्रस्तुति  “गाँधीजी”

☆  सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆  गाँधीजी ☆

आजादी का नाम गाँधीजी।

बलिदान का दाम गाँधीजी।।

 

मोहनदास करमचंद गाँधी।

बापू पूरा नाम गाँधीजी।।

 

राष्ट्रपिता वे हम सबके हैं।

बारंबार प्रणाम गाँधीजी।।

 

सत्य,अहिंसा से हासिल की।

आजादी मुकाम गाँधीजी।।

 

जब तक सूरज-चाँद रहेगा।

अमर आपका नाम गाँधीजी।।

 

लाठी ले एक धोती पहने।

श्रद्धा के हैं धाम गाँधीजी।।

 

अंतिम साँसें, पल आखिरी।

कह गए, ‘ हे राम ! ‘ गाँधीजी।।

 

© श्री नरेन्द्र श्रीवास्तव

गाडरवारा, म.प्र

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 66 – होने बनने में अंतर है… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना होने बनने में अंतर है…। )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 66 ☆

☆ होने बनने में अंतर है… ☆  

 

होने, बनने में अन्तर है

जैसे झरना औ’ पोखर है।।

 

कवि होने के भ्रम में हैं हम

प्रथम पंक्ति के क्रम में हैं हम

मैं प्रबुद्ध, मैं आत्ममुग्ध हूँ

गहन अमावस तम में हैं हम।

तारों से उम्मीद लगाए

सूरज जैसे स्वप्न प्रखर है……

 

जब, कवि हूँ का दर्प जगे है

हम अपने से दूर भगे हैं

भटकें शब्दों के जंगल में

और स्वयं से स्वयं ठगे हैं।

भटकें बंजारों जैसे यूँ

खुद को खुद की नहीं खबर है।……

 

कविता के संग में जो रहते

कितनी व्यथा वेदना सहते

दुःखदर्दों को आत्मसात कर

शब्दों की सरिता बन बहते,

नीर-क्षीर कर साँच-झूठ की

अभिव्यक्ति में रहें निडर है।……

 

यह भी मन में इक संशय है

कवि होना क्या सरल विषय है

फिर भी जोड़-तोड़ में उलझे

चाह, वाह-वाही, जय-जय है

मंचीय हावभाव, कुछ नुस्खे

याद कर लिए कुछ मन्तर है।……

 

मौलिकता हो कवि होने में

बीज नए सुखकर बोने में

खोटे सिक्के टिक न सकेंगे

ज्यों जल, छिद्रयुक्त दोने में

स्वयं कभी कविता बन जाएं

यही काव्य तब अजर अमर है।…..

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ विचार ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ विचार 

उसके पास

एक विचार है

जो वह दे सकता है

पर खरीदार नहीं मिलता,

सोचता हूँ,

विचार के

अनुयायी होते हैं

खरीदार नहीं,

विचार जब बिक जाता है

तो व्यापार हो जाता है

और व्यापार

प्रायः खरीद लेता है

राजनीति, कूटनीति

देह, मस्तिष्क और

विचार भी..,

विचार का व्यापार

घातक होता है मित्रो!

 

©  संजय भारद्वाज 

(प्रातः 9 बजे, गुरुवार दि. 14 जुलाई 2017)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ☆ सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ एकता और शक्ति ☆ हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

हम ई-अभिव्यक्ति पर एक अभियान की तरह प्रतिदिन “संदर्भ: एकता शक्ति” के अंतर्गत एक रचना पाठकों से साझा कर रहे हैं। हमारा आग्रह  है कि इस विषय पर अपनी सकारात्मक एवं सार्थक रचनाएँ प्रेषित करें। हमने सहयोगी  “साहित्यम समूह” में “एकता शक्ति आयोजन” में प्राप्त चुनिंदा रचनाओं से इस अभियान को प्रारम्भ कर दिया  हैं।  आज प्रस्तुत है मेरी एक प्रस्तुति  “ एकता और शक्ति”

☆  सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆  एकता और शक्ति  ☆

 

ब्रेकिंग न्यूज़ आती है

उतरता है

तिरंगे में लिपटा

अमर शहीद!

 

तुम खोते हो

सैकड़ों के बराबर – एक सैनिक

किन्तु,

उसका परिवार खो देता है

बहुत सारे रिश्ते

जिन्हें तुम नहीं जानते।

 

तुमने अपनी

और

उसने अपनी

रस्म निभाई है।

बस यही

एक शहीद की

सम्मानजनक विदाई है।

 

चले जाओगे तुम

उसकी विदाई के बाद

भूल जाओगे तुम

उसकी शहादत

और शायद

तुम्हें आएगी बरसों बाद

कभी-कभी उसकी याद।

 

उसने अंतिम सफर में

तिरंगे को ओढ़कर

सम्मानजनक विदाई पाई है

जरा दिल पर हाथ रख पूछना

क्या तुमने बतौर नागरिक

सुरक्षित सरहदों के भीतर

अपनी रस्म निभाई है ?

 

तुम्हें मिली है

स्वतन्त्रता विरासत में

लोकतन्त्र के साथ।

एक के साथ एक मुफ्त!

जिसकी रक्षा के लिए

उसने अपना सारा जीवन

सरहद पर खोया है।

उसकी अंतिम बूँद के लिए

अपना पराया भी रोया है।

 

तुम नहीं जानते

एक सैनिक का दोहरा जीवन!

वह जीता है एक जीवन

अपने परिवार के लिए

और

दूसरा जीवन

सरहद की हिफाजत के लिए।

 

वह भूल जाता है

अपनी जाति, धर्म और संप्रदाय।

वर्दी पहनने के बाद

कोई नहीं रहता है

हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई

हो जाते हैं सच्चे भाई-भाई

उनका एक ही रहता है धर्म

मात्र – राष्ट्र धर्म!

 

वे लड़ते हैं तुम्हारे लिए

कंधे से कंधा मिलाकर।

जाति, धर्म, संप्रदाय, परिवार

अपना सब कुछ भुलाकर।

और तुम

महफूज सरहद के अंदर

लड़ाते रहते हो आपस में कंधा

कभी धर्म का,

कभी जाति का,

कभी संप्रदाय का।

फिर

एकता और शक्ति की बातें करते हो

अमर शहीदों पर पुष्प अर्पित करते हो

धिक्कार है तुम पर

कब कंधे से कंधा लड़ाना बंद करोगे

कब कंधे से कंधा मिलाकर चलोगे

कब अपना राष्ट्रधर्म निभाओगे?

 

इन सबके बीच कुछ लोगों ने

जीवित रखी है मशाल

निःस्वार्थ बेमिसाल

तुम बढ़ाओ  तो सही

अपना एक हाथ

अपने आप जुड़ जायेंगे

करोड़ों हाथ।

बस इतनी सी ही तो  चाहिए

तुम्हारी इच्छा शक्ति,

राष्ट्रधर्म और राष्ट्रभक्ति….

तुम्हारी एकता और शक्ति

 

©  हेमन्त बावनकर  

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares