हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 17 – सुवासित पनिहारने ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “सुवासित पनिहारने। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 17– ।। अभिनव गीत ।।

☆ सुवासित पनिहारने 

 

इस  कुयें

रहा करती

खुशबुयें

 

सुवासित

पनिहारने

गंध की

परिवारिने

 

देवरानी

जिठानी

बहुयें

 

सगुन वाले

कलश की

या सुनहरे

सुयश की

 

परछाईं

तक ना

छुयें

 

कुछ सुलगती

हुई आँखें

फड़फड़ाती

हुई पोंखें

 

छोड़ती

रहती

धुँयें

 

© राघवेन्द्र तिवारी

24-06-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ निधि की कलम से # 20 ☆ आमंत्रण ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता  “आमंत्रण”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 20 ☆ 

☆ आमंत्रण ☆

 

आमंत्रण शब्द में छुपा मेरा निमंत्रण,

उन्मुक्त प्यार रूपी पंछी को मेरा हसीन निमंत्रण,

अभिव्यक्तियों को दिल से दिल तक पहुँचाने का निमंत्रण,

उम्र के हर पड़ाव में, अपनों के साथ का निमंत्रण,

ख्वाब को रूबरू होने का निमंत्रण,

आमंत्रण शब्द में छुपा मेरा निमंत्रण।

 

ज़िन्दगी की भीड़ में कहीं अपने आप को छुड़ाने का निमंत्रण,

ये शरीर बना हड्डी का पिंजर, उसे सहजने का निमंत्रण,

मुसाफिरखाना बने मेरे मन को नए एहसास का निमंत्रण,

अपने अंतर्मन को छूने का निमंत्रण,

खामोशी के साथ पैगाम-ए-दिल को निमंत्रण,

आमंत्रण शब्द में छुपा मेरा निमंत्रण।

 

आओ हम सब एक हो जाएँ और दे ख़ुशी को निमंत्रण,

ऊँच-नीच जाति -पाति का भेद मिटाकर, करे एकता का निमंत्रण,

तेरा मेरा छोड़ कर अपनों का निमंत्रण.

 

बिखरे जीवन, लूटते दिल को जोड़ने का निमंत्रण,

अनेकता में एकता में रहने का निमंत्रण,

आमंत्रण शब्द में छुपा मेरा निमंत्रण।

 

©  डॉ निधि जैन,

पुणे

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ग़ज़ल – कत्ले आम ☆ डॉ दिवाकर पोखरियाल

डॉ दिवाकर पोखरियाल 

Diwakar Pokhriyal

(अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) पृष्ठभूमि से संबन्धित एवं ऊर्जा (एनर्जी) में पी. एच डी कर चुके डॉ . दिवाकर पोखरियाल का साहित्य एवं गीत-संगीत में रुझान उनकी सर्वांगीण प्रतिभा का परिचायक है। आपकी विशिष्ट साहित्यिक प्रतिभा के कारण आपका नाम ‘लिम्का बुक ऑफ रेकॉर्ड्स – 2014 एवं  2017’ में दर्ज है। हम ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तित्व को आपसे रूबरू करने में गौरवान्वित अनुभव करते हैं।प्रस्तुत है उनकी एक भावप्रवण ग़ज़ल  ‘ कत्ले आम ’ ।)

☆ ग़ज़ल – कत्ले आम ☆

चहु ओर जो देखूं, बस क़त्ले-आम है,

प्यार के बाशिन्दो को मिलते जाम है,

 

सुर्ख अदाओ से चलाते है वो छुरियाँ,

कभी अल्लाह है जिनका, कभी राम है,

 

फैलाते है हैवानियत का डर वो ख़ास,

इंसानियत का खून ही जिनका काम है,

 

नशा दौलत का सिर चढ़ा है कुछ ऐसा,

बाज़ारो में बिकते से ईमान तमाम है,

 

इस कदर गिरी है अब सोच दुनिया की,

उठाने वाला हर शख्स यहाँ बदनाम है,

ना समझा ये छोटी सी बात वो ‘साथी’,

पीठ में घोपना खंजर, आजकल आम है || ड्व ||

 

© डॉ दिवाकर पोखरियाल

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #10 ☆ लॉकडाउन ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक भावप्रवण रचना “लाॅकडाऊन”।  श्री श्याम खापर्डे जी ने  इस कविता के माध्यम से लॉकडाउन की वर्तमान एवं सामाजिक व्याख्या की है जो विचारणीय है।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 10 ☆ 

☆ लाॅकडाऊन ☆ 

हमारा एक रिटायर्ड मित्र

एक दिन मिला

मिलते ही करने लगा

शिकवा और गिला

बोला,’ यार,

ये कैसा लाॅकडाउन है

कैदियों सा जीवन है

सार्वजनिक पार्क बंद

सार्वजनिक ग्रंथालय बंद

देवालय बंद

विद्यालय बंद

बाजार बंद

किराना स्टोर और

सब्जी भाजी बंद

जाएँ तो कहाँ जाएँ

बाहर निकलना भी बंद

किसको अपनी व्यथा सुनाये

कैसे अपना मन बहलाये

जब चाहे तब लाॅकडाऊन

लगाते हैं

हमारे जैसे वृध्द, बीमार

सीनियर सिटीजन को

क्यों तड़पाते हैं?

हमने कहा मित्र-

तुम्हारा वाजिब रोष है

परंतु, ये तो

महामारी का दोष है

खतरें में हम सबका जीवन है

इसलिए जरूरी यह लाॅकडाऊन है

हम लोग कुछ दिनो के लाॅकडाऊन से

कितने दुःखी, परेशान हैं

हर व्यक्ति व्यथित इन्सान है

 

मित्र, जरा सोचो

उन्हें देखों

हाशिए पर खड़े वो वंचित

लुटे हुए,पिटे हुए वो शोषित

सदियों से और आज भी

लाॅकडाऊन में जी रहे हैं

असमानता का ज़हर पी रहे हैं

तिरस्कार, घृणा जिनका

आभूषण है

पशुओं से भी बदतर

नारकीय जीवन है

मित्र,

ये महामारी का लाॅकडाऊन तो

कुछ दिनों में हट जायेगा

लेकिन क्या?

उन पीड़ित इन्सानों का

सामाजिक लाॅकडाऊन

कभी खत्म हो पायेगा ?

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बिटिया दिवस विशेष – बिटिया ☆ श्रीमती सुधा भारद्वाज 

श्रीमती सुधा भारद्वाज 

सुप्रसिद्ध साहित्यकार, रंगकर्मी  एवं समाजसेवी श्रीमती सुधा भारद्वाज जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है।

संक्षिप्त परिचय 

शिक्षा- एम.ए., बी.एड., बी.ए. में एस.एन.डी.टी. विश्वविद्यालय की प्रवीणता सूची (मेरिट लिस्ट) में रहीं।

कुछ समय अध्यापन, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित, आकाशवाणी पुणे से कहानियों तथा कविताओं का प्रसारण। कुछ डॉक्यूमेंट्री फिल्मों को स्वर दिया है। सामाजिक कार्यों में रुचि, स्त्रियों और बच्चों के प्रश्न पर यथाशक्ति काम।

सम्प्रति – क्षितिज प्रकाशन की प्रमुख।

आज 27/9/2020 बिटिया दिवस के उपलक्ष्य में – 

☆ बिटिया दिवस विशेष – बिटिया  (तीन कवितायेँ)☆   

 

[1]

बिना कहे

कपड़े तह

कर देती है,

थकान को

गर्मागर्म चाय

की प्याली से

भगा देती है,

कभी रोटी सेक देती है,

कभी झाड़ू बुहार देती है,

बिजली का बिल भर आती है,

बिटिया है मेरी पर

प्राय: माँ बन जाती है!

 

[2]

नकचढ़ी हँसी के

कान उमेठे तो

और खिलखिलाई,

बोली- क्या करुँ?

आपकी बिटिया

मुझे अपने मायके

बंधुआ बना लाई!

 

[3]

रसोई से आती महक,

दीवारों से गूँजती हँसी,

पड़ोसिन के चेहरे की

रौनक बतला रही है,

उसकी बिटिया

पीहर आ रही है!

 

© श्रीमती सुधा भारद्वाज

संस्थापक सदस्या – ‘हिंदी आंदोलन परिवार’, पुणे 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बिटिया दिवस विशेष – मैं बिटिया भारत की ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी” जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी की  बिटिया दिवस पर विशेष रचना – मैं बिटिया भारत की। )

आज 27/9/2020 बिटिया दिवस के उपलक्ष्य में – 

☆ बिटिया दिवस विशेष – मैं बिटिया भारत की ☆   

 

ना मैं नन्ही छुई-मुई सी पापा की कोमल सी परी

ना ही हाथ लगे मुरझाती लाड़ली गुड़िया मम्मा की

 

मैं  हूँ बिटिया बड़ी सयानी माँ, बाबा, दादी-दादू की।

अमराई पनघट नदिया और नीम तले चौपाल गाँव की।।

 

झूला बाबा की बाहों का निंदिया लोरी में माँ की

बस इसमें ही पायी मैंने हर पल  खुशियाँ जीवन की।।

 

बाबा ने पट्टी लेखनी से बाँध दिये सब ताने-बाने।

दो चोटी संग गूँथ दिये माँ ने सपने सारे अपने।।

 

लैपटॉप है नहीं हाथ में ना एनड्राॅयड मोबाईल।

लगती भले पुराने युग की मत समझो मुझको जाहिल।।

 

मैं बस्ता पुस्तक और लैंप का ले कर के उजियारा।

अपनी कलम से तिमिर और स्याही से छाँटूगी अँधियारा ।।

 

बारिश में चमके बिजली दृढ़ता संकल्प भरे मुझमें।

मैं तब भी रहूंगी वहीं डटी सपने न कभी बिकने दूँगी ।।

 

मेरी पायल के मधुर गीत अंबर तक मैं पहुंँचाऊँगी

आकाशगंगा और अंतरिक्ष तक जब मैं दौड़ लगाऊँगी

 

खूब पढूँगी खूब बढूँगी हार नहीं मानूँगी।

सेना में भर्ती होकर दुश्मन के छक्के छुडा़ दूँगी।।

 

मैं बिटिया भारत माँ की पढ़ रही देश की खातिर।

जान लडा़ दूँगी सरहद पर आँच नहीं आने दूँगी ।।

 

© श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र 440010

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ बिटिया दिवस विशेष – जादू! ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

आज 27/9/2020 बिटिया दिवस के उपलक्ष्य में – 

☆ संजय दृष्टि  ☆ बिटिया दिवस विशेष – जादू!

तपता मरुस्थल,

निर्वसन धरती,

सूखा कंठ,

झुलसा चेहरा,

चिपचिपा बदन,

जलते कदम,

दूर-दूर तक

शुष्क और

बंजर वातावरण,

अकस्मात

मेरी बिटिया हँस पड़ी,

अब, लबालब

पहाड़ी झरने हैं,

आकंठ तृप्ति है,

कस्तूरी- सा महकता तन है

तलवों में जड़ी मखमल है,

उर्वरा हर रजकण है,

चहुँ ओर श्रावण है!

 

©  संजय भारद्वाज 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 22 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 22 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 22) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 22☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

माना  तेरी  उलझन हूँ  मैं

पर तेरी सुलझन भी हूँ  मैं…

थोड़ा दीवाना ही सही मैं

मगर  बड़ा दिलदार हूँ  मैं…

 

Agreed I’m your riddle only…

But I’m your solution too…

Though I am  bit crazy

But a large-hearted one!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

क्या करोगे अब तुम

मेरे पास आकर भी..

खो दिया है तुमने मुझे

बार-बार आजमा कर…

 

What will you do now

By coming close to me…

You’ve lost me for good

By trying again and again

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 

हर  वक़्त  फ़िजाओं  में,

महसूस करोगे तुम हमको…

हम दोस्ती की वो ख़ुशबू हैं,

जो महकते रहेंगे  उम्र भर…

 

At all times in environment

You  will  always  feel  me

I’m fragrance of friendship

That will last the whole life

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

बस यहीं मोहब्बत

अधूरी रह गई  मेरी…,

मुझे उसकी फ़िक्र रही

और  उसे  दुनिया की…!

 

That’s  why  my  love

 just remained incomplete,

I kept caring about her

and she about the world..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 22 ☆ सवैया मुक्तिका ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  आचार्य जी का एक नव प्रयोग  सवैया मुक्तिका। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 21 ☆ 

☆ सवैया मुक्तिका ☆ 

 अमरेंद्र विचरें मही पर, नर तन धरे मुकुलित मना।

अर्णव अरुण भुज भेंटते, आलोक तम हरता घना।।

श्री धर मुदित श्रीधर हुए, श्रीधर धरें श्री हैं जयी।

नीलाभ नभ इठला रहा, अखिलेश के सिर पर तना।।

मिथिलेश कर संतोष मति रख विनीता; जनहित करें

सँग मंजरी झूमें बसंत सुगीत रच; कर अर्चना

मन्मथ न मन मथ सका; तन्मय हो विजय निज चाहता

मृण्मय न रह निर्जीव हो संजीव कर नित साधना

जब काम ना तब कामना, श्री वास्तव में दे सखे!

कुछ भाव ना पर भावना से ही सफल हो प्रार्थना

कंकर बने शंकर; न प्रलयंकर कभी हो देवता!

कर आरती नित भारती; जग-वाक् हो है वंदना

कलकल बहे; कलरव करे जल-खग; न हो किलकिल सलिल

अभियान करना सफल, मैया नर्मदा अभ्यर्थना

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२४-४-२०२०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ कस्तूरी मृग ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ कस्तूरी मृग 

मैं परिधि पर

जीना चाहता हूँ

पर केंद्र भी

छोड़ नहीं पाता,

केंद्र और परिधि पर

एक साथ जीने की जिजीविषा,

अधर में बने रहने की

स्वयंसिद्ध तितिक्षा,

न वृत्त सिमटकर

बिंदु हो पाता है,

न सीमाओं का विस्तार कर

बिंदु परिधि बन पाता है,

लगता है,

मनुष्य के विकास के

डार्विन के सिद्धांतों के साथ,

अनुभूति का

जब कोई इतिहास लिखेगा,

यात्रा वृत्तांत में

वानरों के साथ

कस्तूरी मृग का

नाम भी जुड़ेगा।

 

©  संजय भारद्वाज 

24.9.2012

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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