हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 30 ☆ बँधी प्रीति की डोर ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण कविता बँधी प्रीति की डोर  । 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 30 ☆

☆ बँधी प्रीति की डोर  ☆

 

भीनी -भीनी खुश्बू ने भरमाया है.

मेरे मन की सांकल को खटकाया है

 

छेड़ा अपना राग समय ने अलबेला

जीवन की उलझन को फिर उलझाया है.

 

बँधी प्रीती की डोर, खो गई मैं देखो

प्रीतम ने ऐसा बादल बरसाया है.

 

पानी का बुलबुला एक जीवन अपना

क़ूर समय से पार न कोई पाया है.

 

मौन है जिन्दगी भटकती राहों में

देर हो गयी अब न कोई आया है।

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 38 ☆ मशाल ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “ मशाल ”।  यह कविता आपकी पुस्तक एक शमां हरदम जलती है  से उद्धृत है। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 38 ☆

☆ मशाल   ☆

रेगिस्तान सी तन्हाई है मुझमें-

बहुत चली हूँ नंगे पाँव

तपती हुई बालू पर,

बहुत खोजा है मेरे बेचैन दिल ने

पानी की तरह ख़ुशी को

जो किसी मृगतृष्णा की तरह

मेरी उँगलियों से फिसलती रही,

बहुत सहा है मैंने

उबलती हुई हवाओं को

जो मेरे बदन पर वार करती रहीं

और छालों से ढक दिया…

 

हाँ,

रेगिस्तान सी तन्हाई है मुझमें,

पर मुझमें एक अलाव की लौ भी है-

और यह लौ

सीने पर लाख ज़ख्म होने पर भी

मुझे बुझने नहीं देती

और शायद इसीलिए मैं रुदाली नहीं बनी,

मैं बन गयी एक मशाल

जो राहगीरों को रौशनी दिखाती है!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिव्यक्ति # 18 ☆ कविता – बेरिकेड्स ☆ हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

(स्वांतःसुखाय लेखन को नियमित स्वरूप देने के प्रयास में इस स्तम्भ के माध्यम से आपसे संवाद भी कर सकूँगा और रचनाएँ भी साझा करने का प्रयास कर सकूँगा।  आज प्रस्तुत है  एक कविता  “बेरिकेड्स”।  अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दीजिये और पसंद आये तो मित्रों से शेयर भी कीजियेगा । अच्छा लगेगा ।)  

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति # 18

☆  बेरिकेड्स ☆

जिंदगी की सड़क पर

खड़े हैं कई बेरिकेड्स

दोनों ओर खड़े हैं तजुर्बेकार

वरिष्ठ पहरेदार

करने सीमित नियति

सीमित जीवन की गति

 

कभी कभी तोड़ देती हैं

जिंदगी की गाडियाँ

बेरिकेड्स और सिगनल्स

भावावेश या उन्माद में

कभी कभी कोई उछाल देता है

संवेदनहीनता के पत्थर

भीड़तंत्र में से

बिगाड़ देता है अहिंसक माहौल

तब होता है – शक्तिप्रयोग

नियम मानने वाले से

मनवाने वाला बड़ा होता है

अक्सर प्रशासक विजयी होता है

 

आखिर क्यों खड़े कर दिये हमने

इतने सारे बेरिकेड्स

जाति, धर्म, संप्रदाय संवाद के

ऊंच, नीच और वाद के

कुछ बेरिकेड्स खड़े किए थे

अपने मन में हमने

कुछ खड़े कर दिये

तुमने और हितसाधकों नें

घृणा और कट्टरता के

अक्सर

हम बन जाते हैं मोहरा

कटवाते रह जाते हैं चालान

आजीवन नकारात्मकता के

 

काश!

तुम हटा पाते

वे सारे बेरिकेड्स

तो देख सकते

बेरिकेड्स के उस पार

वसुधैव कुटुंबकम पर आधारित

एक वैश्विक ग्राम

मानवता-सौहार्द-प्रेम

एक सकारात्मक जीवन

एक नया सवेरा

एक नया सूर्योदय।

 

© हेमन्त बावनकर, पुणे 

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ ऊँचाई ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ ऊँचाई ☆

 

बहुमंजिला इमारत की

सबसे ऊँची मंजिल पर

खड़ा रहता है एक घर,

गर्मियों में इस घर की छत

देर रात तक तपती है,

ठंड में सर्द पड़ी छत

दोपहर तक ठिठुरती है,

ज़िंदगी हर बात की कीमत

ज़रूरत से ज्यादा वसूलती है,

छत बनाने वालों को ऊँचाई

अनायास नहीं मिलती है..!

 

# दो गज की दूरी, है बहुत ही ज़रूरी।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(रात्रि 3:29 बजे, 20 मई 2019)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 
मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 49 – कविता – ॐ निनाद में शून्य सनातन ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी  एक अप्रतिम कविता  “ॐ निनाद में शून्य सनातन ।  इस आध्यात्मिक रचना का शब्दशिल्प अप्रतिम है। इस सर्वोत्कृष्ट  रचना के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 48 ☆

☆ कविता  – ॐ निनाद में शून्य सनातन

ॐ निनाद में शून्य सनातन

है ब्रह्मांड समस्त समाहित।

 

देवगणो ने मिलकर किया

नव सृष्टि का विस्तार

विष्णु पद से निकली गंगा

शिव जटा पर रही सवार

ब्रह्मांड सदा गुंजित मान

स्वर ॐ निरंतर प्रवाहित।

 

आदि अनंत के कर्ता शिव

अनंत कोटि प्रतिपालक

कण कण रूप अजय अक्षुण

नाद करत मृदंग संग ढोलक

शिव तांडव नित जनहित।

सोहे नटराज रुप जनहित

 

कल कल वेग निरंतर बहती

निर्झर झर झर वन उपवन

गूँज पर्वतों पर बिखराई

ऋषि मुनियों का तपोवन

स्वर लहरी जन जन प्रेरित

श्रंग नाद शिवम हिताहित।

 

देवो के महादेव सुशोभित

हिमगिरि सूता संग वास

भस्मी भूत लगाए रुद्रगण

पाए निरंकारी विश्वास

जन जन के प्रतिपालक शंभू

ॐ सत्य शिवम पर मोहित।

 

ॐ निनाद में शून्य सनातन

है ब्रह्मांड समस्त समाहित।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पियाँ – 11 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ चुप्पियाँ – 11 ☆

 

चुप्पी, निरंतर

सिरजती है विचार,

‘दूधो नहाओ,

पूतो फलो’

का आशीर्वाद

चुप्पी को

फलीभूत हुआ है!

 

# दो गज की दूरी, है बहुत ही ज़रूरी।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

 8:11 बजे, 2.9.18

( कवितासंग्रह *चुप्पियाँ* से)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 
मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 3 – धैर्यवान पीढ़ियाँ ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है उनका अभिनव गीत  “धैर्यवान पीढ़ियाँ“ ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 3 – ।। अभिनव गीत ।।

☆ धैर्यवान पीढ़ियाँ ☆

 

इसी भाव भूमि को

सम्हालती

तेरे घर आले में

रख आयी सगनौती

लौटते हुये बसन्त मालती

 

धूप : उतरती सहमी बहू लगी

घेरदार सीढियाँ

छानी से झाँक रहे-

छारके : धैर्यवान पीढ़ियाँ

 

लिपीपुती बाखर के

सधे परावर्तन में

अगवारें बैठी,निहारे

मार पालथी

 

सरक चले छाया के

लुप्तप्राय चंचल से

जवा कुसुम टीले से

घाम के ज्यों पीले

प्रपात हुये गुमसुम

 

पुरइन के वंश में

उठी जैसे हूक कोई

लहर एक छाती में

गहरे तक सालती

 

जेठ की दोपहरी में

हल्दी के हाथ खूब छापे

और लिखा साँतिया

बाहर की देहरी पर अपनापे

 

रोप रही बाँहों के बीच

कोई सगुन वृक्ष

चौक पूर आहिस्ता

रंगोली डालती

 

© राघवेन्द्र तिवारी

28-04-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ पत्रकारिता दिवस विशेष – पत्रकार का प्रेम – पत्र ☆ पंडित मनीष तिवारी

पंडित मनीष तिवारी

 

(प्रस्तुत है संस्कारधानी जबलपुर ही नहीं ,अपितु राष्ट्रीय  स्तर ख्यातिलब्ध साहित्यकार -कवि  पंडित मनीष तिवारीजी  की  पत्रकारिता दिवस के अवसर पर समस्त पत्रकारों को  हार्दिक शुभकामनाओं के साथ समर्पित एक विनोदात्मक कविता  “पत्रकार का प्रेम – पत्र”।  श्री मनीष तिवारी जी  की लेखनी को सादर नमन।  )

☆ पत्रकारिता दिवस विशेष – पत्रकार का प्रेम – पत्र ☆

 

एक पत्रकार ने

अपनी प्रेमिका को पत्र लिखा

पत्र का मज़मून

समाचार की तरह तैयार किया

 

प्रिये,

प्राप्त जानकारी के अनुसार

आजकल तुम छत पर

उदास अनमनी सी घूमती हो

गमले में लगे गुलाब को

हसरत भरी निग़ाहों से चूमती हो।

 

हमारा अपराध संवाददाता

ख़बर ला रहा है

मेरा प्रतिद्वंदी पत्रकार

तुम्हारे घर के

चक्कर लगा रहा है।

 

पर तुम बहकावे में मत आना

मैं उससे अपने ढंग से निपटूंगा

उससे कुछ भी नहीं बोलूंगा

आगामी अंक में

उसके पूरे खानदान की

जन्म कुण्डली खोलूंगा।

 

प्रत्यक्ष दर्शियों के अनुसार

तुम मेरी याद में

रात रात भर जागती हो

छत पर

तारे को तोड़ने के लिए

दौड़ती हो भागती हो

और  प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार

मोरनी की तरह नाचती हो।

 

पिछले पाँच सालों से हमारा प्यार

किसी धारावाहिक अंक की

तरह चल रहा है

इसमें,

क्रमशः शब्द मुझे

बहुत खल रहा है।

 

इंतज़ार में समय नहीं गवाना है

शीघ्र ही अंतिम किश्त लाना है।

 

अनेक प्रेम प्रूफ की गलतियां लिए

वर्गीकृत विज्ञापन की तरह

तुम्हारा पत्र आता है

बदले में मेरा जवाब

पूरे आठ कॉलम में जाता है।

 

तुम्हारे डैडी की बातें

मेरे समझ में नहीं आती हैं

अ कविता अ कहानी नवगीत की तरह

ऊपर से गुजर जाती हैं।

 

जानकार सूत्रों के अनुसार

तुमनें अपना दूत

मेरे पास पहुँचाया

परन्तु , प्राण बल्लभे

वह कलमुँहा तो

ग्रामीण क्षेत्रीय प्रतिनिधि की तरह

आज तक नहीं आया।

 

वैसे मैं खोटा नहीं हूँ

अक्ल से मोटा नहीं हूँ

यकीन मानिए

दैनिक अख़बार की तरह

एकदम निष्पक्ष और निर्भीक हूँ।

 

मालिक का चमचा हूँ

इसलिए उनके बहुत नज़दीक हूँ

 

बतर्ज़ प्रधान संपादक

हमारे अख़बार में

किसी का खण्डन नहीं छपता है

इसलिए

तुम भी प्यार का

खण्डन नहीं करना

वरना

तुम्हारे घर के आगे धरूँगा धरना।

 

आज इतना ही

शेष आगामी अंक में फिर लिखेंगे

मुझे विश्वास

अख़बार के मुद्रक और प्रकाशक की तरह

प्रेम के स्वत्ताधिकार पर

हम दोनों के नाम दिखेंगे।

 

©  पंडित मनीष तिवारी, जबलपुर ,मध्य प्रदेश 

प्रान्तीय महामंत्री, राष्ट्रीय कवि संगम – मध्य प्रदेश

मो न 9424608040 / 9826188236

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 36 – धम्मम शरणम गच्छामि ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण रचना  ‘धम्मम शरणम गच्छामि । आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़  सकते हैं । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 36 – विशाखा की नज़र से

☆  धम्मम शरणम गच्छामि  ☆

 

अगर यह कलयुग है तो

उसकी देहरी पर बैठी है मानवता

और यह है साँझ का वक्त

देहलीज के उस पार

धीरे – धीरे बढ़ रहा है अंधकार

हो न हो कलयुग का यही है मध्यकाल

अर्थ जिसका कि ,

अभी और गहराता जाएगा अंधकार

 

देहरी के इस ओर है धम्म का घर

जहां किशोरवय संततियां

एक – एक कक्ष में फैला रहीं है प्रकाश

अभी शेष है समय

चलो ! कलयुग को पीठ दिखा

हम लौट चले धर्म से धम्म की ओर

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 9 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 9/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 9 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

 

दीदार की तलब हो तो

नज़रें जमाये रखिये,

क्योंकि नक़ाब हो या नसीब, 

सरकता  तो  जरूर है…

 

If urge of her glimpse is there

Then keep an eye on it patiently

Coz whether it’s the  mask or

luck , it moves for sure…

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

चलो अब ख़ामोशियों 

की गिरफ़्त में चलते हैं…

बातें गर ज़्यादा हुईं तो 

जज़्बात खुल जायेंगे..!!

  

Let’s get arrested now in

the regime of silence …

If we kept talking anymore

Emotions may get revealed…!!

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

बादलों का गुनाह नहीं कि 

वो  बेमौसम  बरस  गए!! 

दिल  हलका  करने का 

हक  तो  सबको हैं ना!!

 

 It’s not the crime of clouds

If they rained unseasonably!

After all everyone is entitled 

To lighten burdened sorrows

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

काश नासमझी में ही

 बीत जाए ये ज़िन्दगी

समझदारी ने तो हमसे बहुत कुछ छीन लिया…

 

Wish  life could pass 

In  imprudence only

Wiseness alone 

did snatch a lot…

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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