श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
(आज प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना – बेटी की अभिलाषा।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – बेटी की अभिलाषा ☆
मैं बेबस हूँ लाचार हूं, मैं इस जग की ही नारी हूं।
सबने मुझ पे जुल्म किये मैं क़िस्मत की मारी हूं।
हमने जन्माया इस जग को, लोगों ने अत्याचार किया।
जब जी चाहा दिल से खेला, जब चाहा दुत्कार दिया।
क्यो प्यार की खातिर मानव, ताजमहल बनवाता है।
जब भी नारी प्यार करे, तो जग बैरी हो जाता है।
जिसने अग्नि परीक्षा ली वे गंभीर पुरूष ही थे।
जो मुझको जूएँ में हारे, वे सब महावीर ही थे।
अग्नि परीक्षा दी हमने, संतुष्ट किसी को ना कर पाई।
क्यों चीर हरण का दृश्य देख, सबको शर्म नहीं आई।
अपनी लिप्सा की खातिर ही, बार बार मुझे त्रास दिया।
जब जी चाहा जूएँ में हारा और जब चाहा वनवास दिया।
कर्मों कर्त्तव्यों की बलि बेदी पर, नारी ही चढ़ाई जाती है।
कभी जहर पिलाई जाती है, कभी वैन में भेजी जाती है।
मेरा अपराध बताओ लोगों, क्यों घर से मुझे निकाला था?
क्या अपराध किया था, क्यो हिस्से में विष का प्याला था?
मानव का दोहरा चरित्र, मुझे कुछ भी समझ न आता है।
मैं नारी नहीं पहेली हूं, सारे जीवन में गमों से नाता है ।
अब भी दहेज की बलि वेदी पर, मुझे चढ़ाया जाता है।
अग्नि में जलाया जाता है, फांसी पे झुलाया जाता है।
दुर्गा काली का रूप समझ, मेरा पांव पखारा जाता है।
फिर क्यो दहेज के डर से, मुझे कोख में मारा जाता है
जब मैं दुर्गा मैं ही काली, मुझमें ही शक्ति बसती है।
क्यो अबला का संबोधन दे, दुनिया हम पे हंसती है।
अब तक तो नर ही दुश्मन था, नारी भी उसी राह चली।
ये बैरी हुआ जमाना अपना, नां ममता की छांव मिली।
सदियों से शोषित पीड़ित थी, पर आज समस्या बदतर है।
अब तो जीवन ही खतरे में, क्या बुरा कहें क्या बेहतर है।
मेरा अस्तित्व मिटा जग से, नर का जीवन नीरस होगा।
फिर कैसे वंश बृद्धि होगी, किस कोख में तू पैदा होगा।
मैं हाथ जोड़ बिनती करती, मुझको इस जग में आने दो।
मेरा वजूद मत खत्म करो, कुछ करके मुझे दिखाने दो।
यदि मैं आइ इस दुनिया में, तो कुलों का मान बढ़ाऊंगी।
अपनी मेहनत प्रतिभा के बल पर, ऊंचा पद मैं पाऊंगी।
बेटी पत्नी मइया बन कर, जीवन भर साथ निभाउंगी।
सबकी करूंगी सेवा रात दिवस, बेटे का फर्ज निभाउंगी।
सबका जीवन सुखमय होगा, खुशियों के फूल खिलाऊंगी
सारे समाज की सेवा कर, मैं नाम अमर कर जाऊंगी।
मैं इस जग की बेटी हूं, मेरी अब यही कहानी है।
दिल है भावों से भरा हुआ और आंखों में पानी है।
जब कर्मपथ पथ चलती हूं, लिप्सा की आग से जलती हूं।
अपने जीवन की आहुति दे, मैं कुंदन बन के निखरती हूं।
© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208
मोबा—6387407266