हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्यनारायण गोयन्का के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. गोयन्काजी ने स्वयं इन दोहों को सबको समर्पित  करते हुए कहा है:

न तेरे!

न मेरे!

ये दोहे धरम के!

काम आयें सबके!

मैल काटें मन के!

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पानी ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

आज  इसी अंक में प्रस्तुत है श्री संजय भरद्वाज जी की कविता  ” पानी ” का अंग्रेजी अनुवाद  “Water”  शीर्षक से ।  हम कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी के ह्रदय से आभारी  हैं  जिन्होंने  इस कविता का अत्यंत सुन्दर भावानुवाद किया है। )

☆ संजय दृष्टि  –  पानी 

 

आदमी की आँख का

जब मर जाता है पानी

खतरे का निशान

पार कर जाता है।

 

पानी की तासीर है

गला तर कर देना

पानी की तदबीर है

रीते सोतों को भर देना।

 

पेड़ की खुरदरी जड़ों को

लबालब सींचना

घास को रेशमी कर

हरियाली पर रीझना।

 

ताल, टप्पे, गड्ढों में

पंछियों के लिए ठिठक जाना

बंजर माटी की देह भिगोकर

उसकी कोख हरी कर जाना।

 

रास्ते में खड़ा काँक्रीट का जंगल

सोख नहीं पाता पानी

सीमेंट, एडेसिव, बस्ती का आदमी

मिलकर रोक देते हैं पानी।

 

पानी को पहुँचना है

हर प्यास तक

पानी को बहना है

हर आस तक।

 

थोड़ा नाराज हो जाता है

उफान पर आ जाता है

रोकने के सारे निशान

समेटकर बहता चला जाता है।

 

काँक्रीट का जंगल

थरथराने लगता है

छोटे मन का आदमी

बहाव के लिए रास्ते बनाने लगता है।

 

आदमी की आँख में

जब उतर आता है

पानी खतरे के निशान से

उतर जाता है पानी।

 

©  संजय भारद्वाज

(कविता संग्रह ‘चेहरे’ से ली गई एक रचना।)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य 0अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 35 ☆ कविता – चौगड्डे के सिग्नल से ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनका एक भावपूर्ण कविता “चौगड्डे के सिग्नल से ”। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 35

☆ कविता – चौगड्डे के सिग्नल से   

ओलम्पिया के सामने

पोल पर बैठा कौआ

अपने छोटे बच्चे को

दाना चुगने का गुर

बार बार सिखा रहा है

नीचे से करोड़ों की

कारें भी गुजर रहीं हैं

दिन डूबने के पहले

ऊपर से उड़नखटोलों

की भागदौड़ मची है

ओलम्पिया के चौगड्डे में

खूब हबड़ धबड़ मची है

ऊपरी मंजिल से लोग

झांक झांक कर कौए

को दाना न दे पाने का

खूब अफसोस कर रहे हैं

एक नये जमाने की मां

चोंच में दाना डालने के

तरीके भी सीख रही है

जीवन इतना सुंदर है

देखकर खुश हो रही है

 

     * चौगड्डे  ->चौराहे 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य ☆ कविता ☆ स्त्रियां घर लौटती हैं ☆ काव्य पाठ (श्री कमल शर्मा) ☆ श्री विवेक चतुर्वेदी

श्री विवेक चतुर्वेदी 

( हाल ही में संस्कारधानी जबलपुर के युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी का कालजयी काव्य संग्रह  स्त्रियां घर लौटती हैं ” का लोकार्पण विश्व पुस्तक मेला, नई दिल्ली में संपन्न हुआ।  यह काव्य संग्रह लोकार्पित होते ही चर्चित हो गया और वरिष्ठ साहित्यकारों के आशीर्वचन से लेकर पाठकों के स्नेह का सिलसिला प्रारम्भ हो गया। काव्य जगत श्री विवेक जी में अनंत संभावनाओं को पल्लवित होते देख रहा है।  ई-अभिव्यक्ति  की ओर से यह श्री विवेक जी को प्राप्त स्नेह /प्रतिसाद को श्रृंखलाबद्ध कर अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास है।   इस श्रृंखला की  अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं प्रमुख कविता “स्त्रियां घर लौटती हैं ”। )

अमेज़न लिंक >>>   स्त्रियां घर लौटती हैं

☆ प्रसिद्ध उदघोषक कमल शर्मा जी की आवाज़ में ‘स्त्रियां घर लौटती हैं’ ☆

अपनी मखमली आवाज से रेडियो की दुनिया पर कई दशकों तक राज करने वाले 2017 में लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित आवाज के जादूगर माने जाने वाले श्री कमल शर्मा की आवाज़ में ‘स्त्रियां घर लौटती है’।। सुनिएगा जरुर… दृश्यावली का सुन्दर संयोजन अग्रज श्री आर के गरेवाल जी द्वारा …  (श्री विवेक चतुर्वेदी जी के फेसबुक वाल से sabhaar)

वीडियो लिंक >>>>

(काव्य पाठ – सुप्रसिद्ध रेडियो उद्घोषक श्री कमल शर्मा)

 

☆ कविता  – स्त्रियां घर लौटती हैं – श्री विवेक चतुर्वेदी  ☆

 

स्त्रियाँ घर लौटती हैं

पश्चिम के आकाश में

उड़ती हुई आकुल वेग से

काली चिड़ियों की पांत की तरह।

स्त्रियों का घर लौटना

पुरुषों का घर लौटना नहीं है,

पुरुष लौटते हैं बैठक में, फिर गुसलखाने में

फिर नींद के कमरे में

स्त्री एक साथ पूरे घर में लौटती है

वो एक साथ, आँगन से

चौके तक लौट आती है।

स्त्री बच्चे की भूख में

रोटी बनकर लौटती है

स्त्री लौटती है दाल-भात में,

टूटी खाट में,

जतन से लगाई मसहरी में,

वो आँगन की तुलसी और कनेर में लौट आती है।

स्त्री है… जो प्रायः स्त्री की तरह नहीं लौटती

पत्नी, बहन, माँ या बेटी की तरह लौटती है

स्त्री है… जो बस रात की

नींद में नहीं लौट सकती

उसे सुबह की चिंताओं में भी

लौटना होता है।

स्त्री, चिड़िया सी लौटती है

और थोडी मिट्टी

रोज पंजों में भर लाती है

और छोड़ देती हैं आँगन में,

घर भी, एक बच्चा है स्त्री के लिए

जो रोज थोड़ा और बड़ा होता है।

लौटती है स्त्री, तो घास आँगन की

हो जाती है थोड़ी और हरी,

कबेलू छप्पर के हो जाते हैं ज़रा और लाल

दरअसल एक स्त्री का घर लौटना

महज स्त्री का घर लौटना नहीं है

धरती का अपनी धुरी पर लौटना है।।

 

© विवेक चतुर्वेदी, जबलपुर ( म प्र ) 

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ पेड़  की व्यथा! ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आई आई एम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।)

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी न केवल हिंदी और अंग्रेज़ी में प्रवीण हैं, बल्कि उर्दू और संस्कृत में भी अच्छा-खासा दखल रखते हैं.  हमने अपने प्रबुद्ध पाठकों के लिए कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी की अतिसुन्दर मौलिक रचना   Anguish of the Tree! कल के अंक में प्रकाशित की है। आज प्रस्तुत है इसी कविता का हिंदी अनुवाद “पेड़  की व्यथा!” )

☆  पेड़  की व्यथा! ☆

 

आये हैं पेड़ काटने

कुछ लोग!

मगर,

है धूप बहुत तेज

तो, बैठे हैं उसकी छाँव में !

 

बोल पड़ा यूहीं

वो फलदार दरख़्त:

काटना क्या है?

मैं तो यूहीं

मर जाता इस ग़म में

कि बैठा नहीं कोई

मेरे अपने साये में…

 

असर चिलचिलाती धूप का

क्या जाने वो

जो रहते

हमेशा ठंडी छाँवों मेँ…!

 

तकलीफों का अंदाज़

उन्हें क्या

जो रहे नही कभी

उजड़े वीरानों में…!!

 

क्या है अहसास तुम्हे

अपनो के खोने का?

है अगर, तो मत कटने दो,

मैं भी तुम्हारा अपना ही हूँ

 

छाँव दूँगा,

फल दूँगा…

अपनों से भी बढ़कर

तुम्हारे अपनों का भी साथ दूँगा!

 

© कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, पुणे

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 23 – तिलस्म ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है  एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना ‘तिलस्म । आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़ सकेंगे. )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 23  – विशाखा की नज़र से

☆ तिलस्म ☆

 

वो तब भी था उसके साथ जब था वह कोसों कोसों दूर

था वह दुनियाँ की किसी खुशनुमा महफ़िल में

हो रही थी जब फ़ला फ़ला बातें फ़ला फ़ला शख़्स की

तब भी भीतर छुप किसी कोनें से वह कर रहा था उससे गुफ़्तगू

 

वह हो रहा था जाहिर जो कि एक तिलस्म था

वह हिला रहा था सर पर मौन था

वह दिख रहा था दृश्य में पर अदृश्य था

सब देख रहे थे देह उसकी पर आत्मा नदारद थी

वह दिख रहा था मशरूफ़ पर अकेला था

 

वह प्रेम का एक बिंदु था

बिंदु जो कि सिलसिलेवार था

वह पहुँचा प्रकाश की गति से

प्रेमिका  के मानस में

बिंदु जो अब पूर्णविराम था

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस विशेष – भाषा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस विशेष – भाषा  

 

‘ब’ का ‘र’ से बैर है

‘श’ की ‘त्र’ से शत्रुता

‘द’ जाने क्या सोच

‘श’, ‘म’ और ‘न’ से

दुश्मनी पाले है,

‘अ’ अनमना-सा

‘ब’ और ‘न’ से

अनबन ठाने है,

स्वर खुद पर रीझे हैं

व्यंजन अपने मद में डूबे हैं,

‘मैं’ की मय में

सारे मतवाले हैं

है तो हरेक वर्ण पर

वर्णमाला का भ्रम पाले है,

येन केन प्रकारेण

इस विनाशी भ्रम से

बाहर निकाल पाता हूँ

शब्द और वाक्य बन कर

मैं भाषा की भूमिका निभाता हूँ।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

16.12.18, रात्रि 11:55 बजे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 26 ☆ प्रभात ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  श्री संतोष नेमा जी के मौलिक मुक्तक / दोहे   “प्रभात ”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़  सकते हैं . ) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 26 ☆

☆ प्रभात ☆

सौगात

सूरज की यह लालिमा,देती सुखद प्रभात

खगकुल का कलरव मधुर,पूरब की सौगात

 

लालिमा

देख उषा की लालिमा,मन हर्षित हो जाय

करते सूरज को नमन,दिल से अर्घ चढ़ाय

 

पूरब

पूरब दिशा सुहावनी,पूरब घर का द्वार

उत्तम फल मिलता सदा,दूर भगे अँधियार

 

सूरज

सूरज की गर्मी सदा,करती नव बरसात

जिसके दिव्य प्रकाश से,डरती है यह रात

 

खगकुल

खगकुल की महिमा बड़ी,उनके रूप अनेक

देते संदेशा सुबह,काम करें सब नेक

 

प्रभात

प्रथम नमन माता-पिता,फिर प्रभात -सत्कार

करते जो उनके यहाँ,खुशियाँ सदाबहार

 

© संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अपने वरक्स ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – अपने वरक्स 

 

फिर खड़ा होता हूँ

अपने कठघरे में

अपने अक्स के आगे

अपना ही मुकदमा लड़ने,

अक्स की आँख में

पिघलता है मेरा मुखौटा

उभरने लगता है

असली चेहरा..,

सामना नहीं कर पाता

आँखें झुका लेता हूँ

और अपने अक्स के वरक्स

हार जाता हूँ अपना मुकदमा

हर रोज की तरह!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

( कविता संग्रह ‘मैं नहीं लिखता कविता’ से।)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र # 13 ☆ कविता – प्यार में ☆ डॉ. राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘चक्र’ 

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी  का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  महान सेनानी वीर सुभाष चन्द बोस जी की स्मृति में एक एक भावप्रवण कविता  “प्यार में.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 13 ☆

☆ प्यार में ☆ 

 

प्यार में हम जिए या मरे

मुश्किलों से मगर कब डरे

 

आस्था का समर्पण रहा

अर्घ्य देकर रहे हम खरे

 

बचपना जब हवा हो गया

फूल, शूलों में जाकर झरे

 

लोग कहते रहे यूँ हमें

कोई पागल, कोई मसखरे

 

खेत, बच्चे, पखेरू, विटप

सब मेरे दिल को लगते हरे

 

मेरे अंदर के बच्चे सभी

मुझसे मिलते हैं खुशियाँ भरे

 

डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी,  शिवपुरी, मुरादाबाद 244001, उ.प्र .

मोबाईल –9456201857

e-mail –  [email protected]

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