हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच – #43 ☆ जो बाँचेगा, वही रचेगा, जो रचेगा, वही बचेगा ☆ अमृत -2 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 43 –  जो बाँचेगा, वही रचेगा, जो रचेगा, वही बचेगा ☆ अमृत -2 ☆

एक सुखद संयोग:
जो बाँचेगा, वही रचेगा,
जो रचेगा, वही बचेगा।..
ये मेरी पंक्तियाँ हैं जिनका उल्लेख प्रधानमंत्री जी से काशी की एक लेखिका ने किया। हमारी संस्था हिंदी आंदोलन परिवार का यह सूत्र भी है। हमारी पत्रिका ‘हम लोग’ के मुखपृष्ठ पर इसे सदा छापा भी गया है।

– संजय भरद्वाज
☆ अमृत -2 ☆

मुझे अमृत

कभी मत देना,

मिल भी जाए

तो हर लेना,

चक्रपाणि,

ये चाह मुझे

जिलाये रखती है

मंथन को

टिकाये रखती है,

मैं जीना चाहता हूँ

मैं लिखना चाहता हूँ!

 

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 1 ☆ दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी रचना  ” दोहा सलिला”। )

 ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 1 ☆ 

☆  दोहा सलिला ☆ 

 

घर में रह परिवार सँग, मिल पाएँ आनंद

गीत गाइए हँसी के, मुस्कानों के छंद

 

दोहा दुनिया में नहीं, कोरोना का रोग

दोहा लेखन साधना, गीत जानिए योग

 

नमन चिकित्सक को करें, नर्स देवियाँ मान

कंपाउंडर कर्मठ बहुत, हैं समाज की जान

 

सामाजिक दूरी रखें, खुद को दें उपहार

मिलना-जुलना छोड़ दे, जो वह सच्चा यार

 

फिक्र काम की छोड़िए, कुछ दिन रह निष्काम

काम करें गृहवास कर, भला करेंगे राम

 

मनपसंद पुस्तक उठा, जी भर करिए पाठ

जो जी चाहे बना-खा, करें शाह सम ठाठ

 

घर से बाहर जो गया, खड़ी हो गई खाट

कोरोना दे पटकनी, मारे धोबीपाट

 

घरवाली को निहारें, बाहरवाली भूल

घरवाले के बाग में, खिलिए बनकर फूल

 

बच्चों के सँग खेलिए, मारें गप्पे खूब

जो जी चाहे खा-बना, हँसें खुशी में डूब

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२१-३-२०२०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #32 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 32 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

तीन बात बंधन बंधें, राग द्वेष अभिमान । 

तीन बात बंधन खुलें, शील समाधि ज्ञान ।। 

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.  We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

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Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अमृत ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – अमृत ☆

इस ओर असुर

उस ओर भी

असुर ही,

न मंदराचल

न वासुकि

तब भी-

रोज़ मथता हूँ

मन का सागर,

जाने कितने

हलाहल निकले

एक बूँद

अमृत की चाह में!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

प्रातः 7:11 बजे, 26.3.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #31 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 31 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

शीलवान के ध्यान से, प्रज्ञा जाग्रत होय ।

अंतर की गांठें खुलें, मानस निर्मल होय ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 40 ☆ कोरोना ☆ डॉ. मुक्ता

डॉ.  मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से आप  प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की एक अति संवेदनशील  सार्थक एवं समसामयिक कविता  “ कोरोना ”.  डॉ मुक्ता जी  ने  इस नवीन त्रासदी के दोनों पहलुओं  (दो भागों में ) से रूबरू कराने का एक सार्थक एवं सफल प्रयास किया है। अब पहल आपको करना है और इस त्रासदी से उबर कर आप सब एक नए युग में पदार्पण करें ,ईश्वर से यही कामना है। समाज को सचेत  करती कविता के लिए डॉ मुक्ता जी की कलम को सादर नमन।  कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें। )     

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 40 ☆

☆ कोरोना 

कोरोना (भाग एक)

कोरोना…

‘कोई भी रोड पर न निकले’

जी हां यह संदेश है

माननीय नरेंद्र मोदी जी का

ताकि हम कोरोना वायरस की

चेन तोड़कर उसे अलविदा कह पाएं

वैसे बड़ा स्वाभिमानी है वह

बिन बुलाए मेहमान की तरह

दस्तक देगा नहीं

जब तक तुम द्वार पर खिंची

लक्ष्मण-रेखा पार कर

बाहर जाओगे नहीं

तुम सुरक्षित रहोगे

अपने आशियां में

उनके अंग-संग

अपनों के बीच

 

हां!सीमा-रेखा पार करते

वह दबोच लेगा तुम्हें इस क़दर

तुम व तुम्हारा परिवार ही नहीं

आस-पड़ोस को भी

शिकंजे में ले डूबेगा

सो!अपने घर की चौखट

को भूल कर भी पार करने की

ग़ुस्ताख़ी कभी मत करना

वरना अनर्थ हो जाएगा

 

और

कोरोना…

किसी को रोने न देना

के अर्थ बेमानी हो जाएंगे

और तुम सबको पड़ेगा उम्र भर रोना

सो! तीन सप्ताह अपनों के साथ बिताइए

ज़िंदगी भर के ग़िले-शिक़वे मिटाइए

उनकी सुनिए, कुछ अपनी सुनाइए

बच्चों के मान-मनुहार का लु्त्फ़ उठाइए

संवादहीनता से पसरे सन्नाटे को

मगर की भांति लील जाइए

अजनबीपन के बढ़ते अहसास को

ग़लती स्वीकार पाट जाइए

 

यदि तुम रहे आत्मनियंत्रण

करने में असफल

ओर भूले से निकाला

घर से बाहर कदम

तो संभव है टूट जाए

आपका उस घर से नाता

और हो जाएं सदा के लिए दूर

क्योंकि यदि कोई व्यक्ति

कोरोना से पॉज़िटिव पाया गया

तो उसे अस्पताल वाले

उठाकर ले जाएंगे उसी पल

और यदि आप बच निकले

तो आपकी तक़दीर

यदि हुआ इसके विपरीत

तो आपके मरने की सूचना

आपके परिवार को मिल जाएगी

और वे आपके अंतिम दर्शन भी

नहीं कर पाएंगे और न ही प्राप्त होगा

उन्हें अंत्येष्टि करने का अवसर

 

तो सोचिए! क्या मंजूर है

दोनों में से कौन-सा करोना

पसंद है आपको

अपनों का साथ या बाहर की

ज़हरीली आबो-हवा

जो छीन ले आपकी ज़िंदगी

व आपके अपनों से उम्र-भर का सूक़ून

■■■

 

कोरोना (भाग दो)

 

कोरोना एक मुहिम है

देशवासियों को भारतीय संस्कृति

की ओर प्रवृत्त करने की

‘हैलो-हाय’ के स्थान पर

झुक कर नमस्कार करने की

परिवारजनों के साथ मिल-बैठ कर

सुख-दुख सांझे करने की

परिवार में स्नेह, सौहार्द

व सामंजस्य स्थापित करने की

दिलों के फ़ासले मिटाने की

अजनबीपन का अहसास

व गहरा सन्नाटा

जो पसरा है हमारे बीच

उसे अलविदा कहने की

ताकि संवेदनाएं जीवित रहें

 

आओ! सब मिल बैठें

एक-दूसरे की भावनाओं को समझें

ताकि ग़लतफ़हमियाँ दूर हो जाएं

मन शांत रहे और ख़ुद से

ख़ुद की मुलाक़ात  हो जाए

मिट जाए मैं और तुम का भाव

‘हम सबके, सब हमारे’

का भाव जगे सृष्टि में

अंतर्मन में शांति का बसेरा हो जाए

और ज़िंदगी की इक नयी

शुरुआत हो जाए…

स्वर्णिम प्रभात हो जाए

 

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

मो• न•…8588801878

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 40 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है नववर्ष एवं नवरात्रि  के अवसर पर एक समसामयिक  “भावना के दोहे ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 40 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे 

 

शक्ति

नारी तू नारायणी, स्वयं शक्ति अवतार।

नारी के हर रूप की, महिमा अपरंपार ।

 

देवी

नारी अब अबला नहीं, नारी बड़ी महान।

देवी सी गरिमा मिले, देवी सा सम्मान।।

 

शारदा

मां मैहर की शारदा,  सजे सदा दरबार।

आल्हा करें आरती,नित्य नवल श्रंगार।।

 

शैलपुत्री

लक्ष्मी दुर्गा अम्बिका,शैलसुता हर रूप।

नारी को सब पूजते,देवी लगे अनूप।।

 

श्रद्धा

नारी मूरत प्रेम की,श्रद्धा की तस्वीर।

नारी से बनती सदा,सबकी ही तकदीर।।

 

नवबर्ष

आया है नववर्ष ये, सबका हो उद्धार।

कोरोना के कहर से,बचा रहे संसार।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नववर्ष ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

( ई- अभिव्यक्ति में डॉ निधि जैन जी का हार्दिक स्वागत है। आप भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक  कुछ लम्हे आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। यह काव्य संग्रह दो भागों में विभक्त है प्रथम भाग व्यक्तिगत पहलू पर आधारति है एवं दूसरा भाग सामाजिक पहलू पर आधारित है।  आज प्रस्तुत है आपकी नव वर्ष पर एक कविता ” नववर्ष”।)

KUCH LAMHEIN (Hindi Edition) by [Jain, Dr. Nidhi]

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☆ नववर्ष  ☆

 

हर स्वागत के नियम को दोहराते हुए,

हम फिर आये हैं इस परंपरा को नववर्ष में निभाते हुए।

 

स्वागत नियम है प्रकृति का, स्वागत करें हम मानव आकृति का,

सुबह की भोर ने स्वागत किया प्रकृति का सूरज के उजाले से,

हम करते हैं अपने पड़ोसियों का स्वागत तिलक के आलिंगन से,

हर स्वागत के नियम को दोहराते हुए,

हम फिर आये हैं इस परंपरा को नववर्ष में निभाते हुए।

 

द्वार की रंगोली से करते हैं हम स्वागत,

गिफ्ट पैकिंग से करते हैं हम स्वागत,

आपकी बिंदिया ने किया आपके श्रृंगार का स्वागत,

हर स्वागत के नियम को दोहराते हुए,

हम फिर आये हैं इस परंपरा को नववर्ष में निभाते हुए।

 

फूलों ने किया, अपनी खुशबू का स्वागत,

मुर्गे की बाँग ने किया सुबह की रोशनी का स्वागत,

शिक्षकों ने किया अपनी ज्ञान ज्योति का स्वागत,

हर स्वागत के नियम को दोहराते हुए,

हम फिर आये हैं इस परंपरा को नववर्ष में निभाते हुए।

 

प्यार की धरोहर को  लौटाना चाहते हैं अपने घनिष्ठों को,

सम्मान देना चाहतें हैं अपने गुरुवर की प्रतिष्ठा को,

सहयोग देना चाहते हैं और दिखाना चाहते हैं अपनी निष्ठा को,

हर स्वागत के नियम को दोहराते हुए,

हम फिर आये हैं इस परंपरा को नववर्ष में निभाते हुए।

 

©  डॉ निधि जैन, पुणे

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हिन्दी साहित्य☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 31 ☆ संतोष के समसामयिक दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  श्री संतोष नेमा जी  के  “संतोष के समसामयिक दोहे ”। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर  सकते हैं . ) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 31 ☆

☆ संतोष के समसामयिक दोहे   ☆

 

शक्ति

माता इतनी शक्ति दे, कटे अंधेरी रात

हमको यह विस्वास है, होगा नवल प्रभात

 

शैलपुत्री

करें शैलपुत्री नमन , प्रथम दिवस नवरात

हरती विघ्न बाधाएं, देती नव सौगात

 

शारदा

ज्ञान दे माँ शारदे, हरिये भव के पीर

शरण चरण हम आपकी, करें नीर का क्षीर

 

श्रद्धा

दे दो श्रद्धा, भक्ति माँ, हम बालक नादान

दया आपकी बढ़ाती, हम सबका सम्मान

 

नववर्ष

स्वागत सब मिल कर करें, संवत्सर नववर्ष

खत्म आपके हों सभी, जीवन के संघर्ष

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मो 9300101799

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #30 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

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☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 30 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

गंगा जमुना सरस्वती, शील समाधि ज्ञान ।

तीनों का संगम हुवे, प्रकटे पद निर्वाण ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

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