हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ दीपावली विशेष – दीपावली ☆ – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

 

(प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  दीपावली पर्व पर रचित एक कविता “दीपावली”।)

 

 ☆ दीपावली विशेष – दीपावली ☆

 

दीवाली ऐसा शुभ त्यौहार जिसको सब मनाते है

गरीबो औ” अमीरो से पर, उसके भिन्न नाते है

अमीरो के महल नई रोशनी,रंग से नहाते है

मधुर मिष्ठान मेवे फल नये-नये लाये जाते है

दिखावे औ” प्रदर्शन के कई व्यवहार होते है

अलंकारो में धनतेरस को क्रय नये हार होते है

 

गरीबो के यहां लेकिन कुछ ऐसा हो न पाता है

सफाई सादगी से घर को लीपा पोता ही जाता है

जलाकर चार दीपक लक्ष्मी पूजा कर ली जाती है

बताशे खील फूलो भर से थाली भर ली जाती है

 

अमीरी अपने वैभव से गरीबी को चिढाती है

गरीबी किंतु अपने में ही खुश रह मुस्कुराती है

अटारी द्वार छज्जे महलो के जब जगमगाते है

गरीबो के घरो में दो चार दीपक टिमटिमाते है

 

कहीं रस रंग के संग कई पटाखे फोडे जाते है

वहीं कई झोपडियो में बच्चे भोजन को ललाते है

शहर तो एक होता किंतु दिखती दो अलग बस्ती

दिवाली एक की महंगी दिवाली एक की सस्ती

 

जमाना देखेगा कब तक जगत में दो व्यवस्थायें

दिवाली एक सी सबकी हो पायेगी क्या बतलाये

खुशी का दिन तो तब होगा जब हर मन भाव यह जागे

रहे न किसी बस्ती में विषमता ऐसी अब आगे

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ दीपावली विशेष – दीपक बन जाएं…. ☆ – डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(प्रस्तुत  है  अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी   द्वारा दीपावली पर्व पर रचित यह विशेष कविता   “दीपक बन जाएं….। )

 

☆ दीपावली विशेष – दीपक बन जाएं…. ☆  

 

अब के दीवाली में, हम कुछ ऐसा कर जाएं

जहाँ अंधेरा हो उस देहरी, दीपक बन जाएं

 

बुझे-बुझे चेहरे हो, उनमें

आशा का संचार करें

रहे तिरस्कृत जो अब तक

हम गले लगाकर प्यार करें,

आंसू उनके पोंछे, जो अबतक नहीं मुस्काये

जहाँ अंधेरा हो………………………..।

 

जो वंचित हैं शिक्षा से

उनको हम विद्या दान करें

आडम्बर में उलझे हैं जो

उनका हम अज्ञान हरें,

दुर्व्यसनों से बचा, सही पथ उनको दिखलायें

जहाँ अंधेरा है………………………….।

 

बनें सहायक उनके हम

जो हैं अशक्त और दीन-हीन

उन्हें स्वच्छता पाठ पढ़ाएं

जिनके तन-मन है मलिन,

कैसे रहे निरोगी निर्मल, उनको समझाएं

जहाँ अंधेरा है………………………..।

 

फोड़ें वहाँ पटाखे हम

हो जहाँ कीटाणु रोगों के

फटे बही-खाते वे, जिन पर

लगे अंगूठे लोगों के,

बनकर हम बारूद, सबक अब उनको सिखलाये

जहाँ अंधेरा है……………..…………….।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ # 6 – विशाखा की नज़र से ☆ जीवनोत्सव ☆ – श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है उनकी रचना जीवनोत्सव. अब आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़ सकेंगे. )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 6  – विशाखा की नज़र से

☆  जीवनोत्सव  ☆

 

खुशी गर तुम हो हमारे जीवन में

तो यूँ छुप के न रहा करो

सम्मुख रहो हमारे

चेहरों पर छा जाया करो

 

दुःख तुम भी हो गर हमारे जीवन में

तो परछाई की तरह रहा करो

चलो भले ही पीछे – पीछे

पर बेड़ियाँ न बना करो

 

रोशनी गर तुम भी हमारे जीवन में

तो दियासलाई में न रहा करो

सर संघचालक बन उजास का

मार्गप्रशस्त किया करो

 

अंधकार तुम भी हो गर हमारे जीवन में

तो वक्त पर ही आया करो

बेवक्त आकर रोशनी से

बिन बात न उलझा करो

 

जीवन तुम सबको लेकर संगसाथ

अनवरत ताल में कदम बढ़ाया करो

प्रखर , मद्धम या बेताल किसी स्वर को

प्रभातफेरी में गूंथ हौले – हौले गुनगुनाया करो

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – दीपावली विशेष – रूप चतुर्दशी ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

प्रबुद्ध पाठकों के लिए आज दीपावली पर्व पर संजय दृष्टि के दूसरा सामयिक अंक भी आपके आत्मसात करने हेतु प्रस्तुत हैं।

 

☆ संजय दृष्टि  – दीपावली विशेष – रूप चतुर्दशी

 

मेरे भीतर

फुफकारता है

काला एक नाग,

चोरी-छिपे जिसे

रोज दूध पिलाता हूँ,

ओढ़कर चोला

राजहंस का, फिर मैं

सार्वजनिक हो जाता हूँ।

हर व्यक्ति मन के सौंदर्य से सम्पन्न हो। रूप चतुर्दशी की बधाई एवं शुभकामनाएँ।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

( कविता संग्रह ‘योंही’ )

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 12 ☆ मयख़ाना  ☆ – सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

((सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य  विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं ।  वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी की  एक भावप्रवण कविता  “मयख़ाना “।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 12 ☆

☆ मयख़ाना 

मयखाने के पास में मेरी भी दुकान है,
हर रोज मैं शरीफों के चेहरे देखती हूँ ।

 

सफेदपोश लिपे हुए कमसिन चेहरें,
जेबें टटोलते हुए सहर देखती हूँ ।

 

हरी भरी सब्जियां सूखती हैं दुकानों में
और शाम को छलकते हुए जाम देखती हूँ।

 

भूख से बिलखते बच्चे हाथ फैलाते हैं
काँच से बच्चों की जान सस्ती पाती हूँ ।

 

लड़खड़ाते कदमों को थामे नन्हीं ऊँगलियाँ
डरे हुए चेहरों की जिंदगियाँ देखती हूँ ।

 

दर्दहीन कमजोर आँखों में खून खौलता है
मयखाने के दर पर उनका नसीब देखती हूँ ।

 

© सुजाता काळे,
पंचगनी, महाराष्ट्र, मोब – 9975577684

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हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ दीपावली विशेष – दीया मिट्टी और मन का जलाएँ ☆ – श्री कुमार जितेन्द्र

श्री कुमार जितेन्द्र

 

(युवा साहित्यकार श्री कुमार जितेंद्र जी कवि, लेखक, विश्लेषक एवं वरिष्ठ अध्यापक (गणित) हैं. प्रस्तुत है दीपावली पर्व पर उनकी विशेष कविता “दीया मिट्टी और मन का जलाएँ”.)

 

☆ दीपावली विशेष – दीया मिट्टी और मन का जलाएँ ☆

 

*एक दीया मिट्टी का जलाएँ ।

दूसरा दीया मन का जलाएँ ।।*

 

अन्धकार से प्रकाशित करे ।

मिट्टी के दीये प्रज्वलित करे ।।

ईर्ष्या, द्वेष,अहं से मुक्ति पाए ।

मन के दीये की रोशनी पाए । 1।

 

*एक दीया मिट्टी का जलाएँ ।

दूसरा दीया मन का जलाएँ ।। *

फुटपाथ हाट से दीये खरीदे ।

बूढ़ी अम्मा को मुस्कुराहट दे ।।

दिखावटी वस्तुओं से दूरी करे ।

स्वदेशी वस्तुओं का क्रय करे । 2।

*एक दीया मिट्टी का जलाएँ ।

दूसरा दीया मन का जलाएँ ।।*

कपड़े व मिठाइयाँ बंटे गरीबों में ।

चेहरे पर मुस्कुराहट दिखे गरीबों में ।।

भूखे सोये न कोई इस दीवाली में ।

ग़रीबों के घर दीप जले दीवाली में । 3।

 

*एक दीया मिट्टी का जलाएँ ।

दूसरा दीया मन का जलाएँ ।।*

प्रेम, मित्रता,अपनत्व का भाव रखे ।

प्रकाश पर्व का भाईचारा रखे ।।

आओ इस दीवाली पर एक प्रण ले ।

कोई अकेला दीप न जले दीवाली में । 4 ।

 

*एक दीया मिट्टी का जलाएँ ।

दूसरा दीया मन का जलाएँ ।।*

 

कुमार जितेन्द्र

(कवि, लेखक, विश्लेषक, वरिष्ठ अध्यापक – गणित)

साईं निवास मोकलसर, तहसील – सिवाना, जिला – बाड़मेर (राजस्थान) मोबाइल न 9784853785

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – मानदंड ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

We present an English Version of this poem with the title  ☆ Criterion ☆ published today. We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation.)

 

☆ संजय दृष्टि  – मानदंड

 

सफेद कैनवास पर

बिखर जाते हैं रंग

कैनवास रंगमिति से

उर्वरा हो जाता है,

सृजन की बधाई देने

समूह पहुँचता है…..

सफेद साड़ी पर

भूल से छितर जाती है

रंग की एकाध बूँद,

आँचल तनिक फहराता है

हाहाकार मच जाता है,

घुटते रहने की हिदायत देने

समूह पहुँचता है…..

कलमकार देखता है स्वप्न,

काश फ्रेम पर तान देता

सफेद साड़ी और

औरत को ओढ़ा पाता कैनवास!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

रात्रि 2:17 बजे, 30.8.2019

 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 7 ☆ दीपावली विशेष – धनतेरस त्यौहार ☆ – श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष”  की अगली कड़ी में प्रस्तुत है उनकी  एक सामयिक रचना  “धनतेरस त्यौहार ”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़ सकेंगे . ) 

 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 7 ☆

☆  धनतेरस त्यौहार ☆

 

धन की वर्षा हो सदा,हो मन में उल्लास

तन स्वथ्य हो आपका, खुशियों का हो वास

 

जीवन में लाये सदा ,नित नव खुशी अपार

धनतेरस के पर्व पर, धन की हो बौछार

 

सुख समृद्धि शांति मिले, फैले कारोबार

रोशनी से भरा रहे, धनतेरस त्यौहार

 

झालर दीप प्रज्ज्वलित, रोशन हैं घर द्वार

परिवार में सबके लिए, आये नए उपहार

 

माटी के दीपक जला, रखिये श्रम का मान

सब के मन “संतोष”हो, सबका हो सम्मान

 

© संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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हिन्दी साहित्य – स्व आर के लक्ष्मण जी के जन्मदिवस पर विशेष – ☆ ‘कॉमन मेन’ बनाम ‘आम आदमी’ ☆ – श्री हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

 

(आज 24 अक्तूबर 1921 को मैसूर कर्नाटक में जन्में महान स्वर्गीय आर के लक्ष्मण जी का 98 वाँ जन्मदिन हैं।   उन्हें उनकी कृति ‘आम आदमी’ ‘Common Man’) के कारण सारा विश्व जानता है। अक्सर मेरे मन यह प्रश्न उठता है कि क्या कृतिकार की कृति  की आयु,  कृतिकार की आयु तक ही सीमित रहती है?  और क्या कोई अन्य कृतिकारउस कृति के पदचिन्हों पर आगे नहीं बढ़ सकता ?  आप ही निर्णय करें।  मेरी एक रचना स्व. आर के लक्ष्मण जी एवं उनकी कृति ‘आम आदमी’ के लिए समर्पित।)

☆ ‘कॉमन मेन’ बनाम ‘आम आदमी’ ☆
‘समय’
बड़े-बड़े जख्म
भर देता है।
आज
आर के लक्ष्मण के
‘कॉमन मेन’ का प्रतीक।
सिंबॉयसिस परिसर पुणे में खड़ा
देख रहा है
अवाक।
समय का चलता चक्र।
पुराने होते कार्टूनों में
अपना अस्तित्व।
उस पर
जमती जा रही
समय की धूल।
क्या
दुनिया के अन्य किरदारों की तरह
उसकी नियति भी
सीमित थी
यहीं तक ?
उसके रचियेता के
महाप्रयाण तक ?
नहीं ….. नहीं
वह छटपटाता है
हर रोज़
सूरज की
पहली किरण से आखिरी किरण तक
और
सारी रात घुप्प अंधेरे में भी।
वह होता है आतुर
दर्ज कराने
अपनी उपस्थिती
समसामयिक विषयों में
सामाजिक-राजनीतियक परिदृश्यों में
राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्यों में
तत्संबंधित ‘रचनाओं में
कार्टूनों में
कविताओं में
व्यंग्यों में
और सामयिक स्तंभों में भी
हमेशा की तरह
मात्र तटस्थ रहकर
‘कॉमन मेन’ बनाम ‘आम आदमी’
की मानिंद।
कहते हैं कि
‘समय’
बड़े-बड़े जख्म
भर देता है।

© हेमन्त बावनकर, पुणे

(इस कविता में वर्णित ‘कॉमन मेन’ बनाम ‘आम आदमी’ आदरणीय स्वर्गीय आर के लक्ष्मण जी की कृति से संबन्धित मेरे व्यक्तिगत विचार हैं।)

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – स्त्री और स्त्री ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  – स्त्री और स्त्री

एक स्त्री ठहरी है
स्त्रियों की फौज से घिरी है,
चौतरफा हमलों की मारी है
ईर्ष्या से लांछन तक जारी है,
एक दूसरी स्त्री भी ठहरी है
किसी स्त्री ने हाथ बढ़ाया है,
बर्फ गली है, राह खुल पड़ी है
हलचल मची है, स्त्री चल पड़ी है!

सहयोग और अपनत्व का हाथ सदा बढ़ाएँ।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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