शरद पूर्णिमा विशेष
श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(आज प्रस्तुत है संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की शरद पूर्णिमा के अवसर पर एक विशेष कविता बिना चांद के बने न कहानी.)
☆ कविता – बिना चांद के बने न कहानी ☆
सदियों की यह रीत पुरानी।
बिना चांद के बने न कहानी।।
हमको छोड़ चली वर्षा रानी।
ठंड ले आई शरद सुहानी।।
चांद चमके संग संग चांदनी।
रात पूनम की सुंदर सुहानी।।
पेड़े दूध चावल की खीर।
रात पड़े जब अमृत नीर।।
अमृत बन जाए औषधि खीर
खा कर दूर हो सबकी पीर।।
करके दूध खीर का सेवन।
स्वस्थ सुखी हो सबका जीवन।।
शरद पूर्णिमा की बात निराली।
दूध सी चमके नदिया सारी।।
टिमटिम तारे चमके निखरे।
प्रकृति ने नभ में फूल बिखेरे।।
श्रंगार रस की सुंदर कल्पना।
प्रेमी मन में जगाती सपना।।
चांद चांदनी मिले हैं जैसे।
हमें भी मिले जीवन में वैसे।।
हाथ जोड़ मांगे वरदान।
हमें अमर करना भगवान।
जब हो जाये चांद के दर्शन।
हर्षित हो जाये सबका मन।।
कहे चांद से सुंदर नारी।
चमके सदैव सुहाग हमारी।
कन्या की तो बात निराली।
चांद में देखी प्रिय सूरत प्यारी।।
ना तरसाओ हमें दूर से ऐसे।
पास आ जाएंगे हम भी उड़ के।।
चांद पर घर बनाएंगे अपना।
छोटा सा टुकड़ा हमें दे देना।।
नभ में तुम तो ऐसे छाए।
अनेक चांदनी संग तुम भाये।।
दादुर मोर पपीहा गाये।
बिना चांद के कुछ न सुहाये।।
हर बच्चे की बोली में तुम।
मां से बढ़कर मामा हो तुम।।
सदियों की यह रीत पुरानी।
बिना चांद के बने न कहानी।।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश