हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ 150वीं गांधी जयंती विशेष -२ ☆ प्रश्नचिन्ह ☆ श्री रमेश सैनी

ई-अभिव्यक्ति -गांधी स्मृति विशेषांक-2

श्री रमेश सैनी

(प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध वरिष्ठ  साहित्यकार  श्री रमेश सैनी जी   की महात्मा गांधी जी एवं लाल बहादुर शास्त्री जी  के जन्मदिवस पर एक कविता. श्री रमेश सैनी जी व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं. )

 

☆ प्रश्नचिन्ह ☆

 

हम हर वर्ष

मनाते हैं, जयंती

गाँधी और नेहरू की

खाते है,कसम

पदचिंहों पर चलने की

कसम वही रेखा है,

रेत पर खींची हुई

जिन्हें हर वर्ष

हम पीटते हैं

भूल गए हम उन्हें

उनके स्मारक बनाकर

चढ़ा देते हैं, पुष्प

वर्ष में एक बार जाकर

क्या ?

वतन पर मरने वालों का यही बाँकी निशां होगा ?

 

रमेश सैनी

मोबा. 8319856044  9825866402

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हिन्दी साहित्य – लघुकथा – ☆ 150वीं गांधी जयंती विशेष -2 ☆ पूछ रहे बैकुंठ से बापू ☆ श्री मनोज जैन “मित्र”

ई-अभिव्यक्ति -गांधी स्मृति विशेषांक-2

श्री मनोज जैन “मित्र”

 

(श्री मनोज जैन “मित्र” जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है. विगत 22 वर्षों से ग्रामीण अंचलों में सद् साहित्य के प्रचार हेतु निपोरन प्लस एवं दिया बत्ती नामक पत्रिकाओं के 36अंकों का निरंतर संपादन एवं प्रकाशन.  प्रस्तुत है श्री मनोज जैन “मित्र” जी की कविता “पूछ रहे बैकुंठ से बापू”.)

 

पूछ रहे बैकुंठ से बापू

 

सिर्फ किताबों में मिलती है,

गांधी जी की अमर कहानी

नई पीढ़ी तैयार नहीं है,

सुनने तेरी कथा पुरानी

 

त्याग, तपस्या,आदर्शों के,

तिथि बाह्य सब तथ्य हो गए

जिनको बापू ने त्यागा था,

आज वही सब पथ्य हो गए

 

किसको चिंता रही देश की,

अब आहार बन गया भारत

चाटुकारिता की स्याही में,

निष्ठा की छुप गई इबारत

 

जनहित पर निज हित चढ़ बैठा,

अपना उल्लू सीधा करते

मरे वतन की खातिर बापू,

ये वेतन की खातिर मरते

 

बढ़ते हैं अपराध दिनों दिन,

अमन-चैन है आहत,खंडित

भ्रष्टाचार हुआ सम्मानित,

सत्य हुआ निर्वासित,दंडित

 

सर्वोपरि राष्ट्र की सेवा,

अब ऐसे अरमान कहां हैं?

पूछ रहे बैकुंठ से बापू,

मेरा हिंदुस्तान कहां है?

 

© मनोज जैन “मित्र”

पता- मुख्य पथ निवास, जिला मंडला (मध्य प्रदेश)

मो.9424931962

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हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ 150वीं गांधी जयंती विशेष-1 ☆ अहिंसा का दूत ☆ सुश्री निशा नंदिनी भारतीय

ई-अभिव्यक्ति -गांधी स्मृति विशेषांक -1

सुश्री निशा नंदिनी भारतीय 

 

(सुदूर उत्तर -पूर्व  भारत की प्रख्यात  लेखिका/कवियित्री सुश्री निशा नंदिनी जी  की 150 वे गाँधी जयंती पर यह विशेष कविता. )

☆ कविता – अहिंसा का दूत ☆

 

अहिंसा का दूत एक

चला लकुटिया टेक

सर्वोदय की मांग लेकर

ज्ञान का भाल लेकर

चरखा चला कातता सूत

खादी का संदेश लेकर

साबरमती का साधु संत

करने चला शत्रु का अंत

चला बदलने देश को

भारत के परिवेश को

 

आजादी का परवाना

सत्याग्रह का साथ लेकर

असहयोग आंदोलन को

महिला शिक्षा नीति को

घर घर पहुंचाने को

अहिंसा नीति के बल पर

स्वावलंबन की ज्योति से

राम राज्य की तर्ज पर

जीवन का उत्सर्ग कर

देश को आजाद कर गया।

 

अस्पृश्यता को दूर कर

आत्मानुशासन के बल

सत्य की तलवार लेकर

नैतिकता की ढाल पर

अड़ा रहा मार्ग पर

अहिंसा के द्वार पर

देश प्रेम के बल पर

आदर्श बन युवाओं का

हर प्रहार सह गया

वीर गति पा गया।

 

© निशा नंदिनी भारतीय 

तिनसुकिया, असम

9435533394

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 10 ☆ जब कभी मैं तनहा होती हूँ ☆ – सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

 

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “जब कभी मैं तनहा होती हूँ”। )

 

साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 10

☆ जब कभी मैं तनहा होती हूँ 

जब कभी मैं तनहा होती हूँ,

नज्मों की धार पकड़ लेती हूँ

और झूल जाती हूँ

दहर के किसी कोने में छुपे

एहसासों के खूबसूरत से जंगल में!

 

कभी-कभी इस धार को पकड़

मैं ऊपर को बढती रहती हूँ,

छू लेती हूँ आसमान
और उड़ने लगती हूँ

मस्त परिंदों की तरह…

 

और कभी-कभी गिर जाती हूँ

नीचे अलफ़ाज़ के दरिया में,

अपनी नाज़ुक उँगलियों से

तब मैं चुनती जाती हूँ एक-एक हर्फ़

और फिर अपनी कलम से

भरती रहती हूँ न जाने कितने सफ्हे,

लिखती रहती हूँ न जाने कितनी किताब…

 

जीत

दोनों में ही मेरी है,

और फिर जब वापस पहुँचती हूँ

तो देखती हूँ

कि ख़ुशी का एक समंदर

बह रहा है

मेरे ही ज़हन में!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

 

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हिन्दी साहित्य – नवरात्रि विशेष – कविता/गीत ☆ नौ रूपों में नारी-नारायणी  ☆ – श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी”

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी” 

 

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी”  जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है. आज प्रस्तुत है  श्रीमती हेमलता मिश्रा ‘मानवी’ जी की  नवरात्रि पर विशेष कविता/गीत  “नौ रूपों में नारी-नारायणी ”.)

 

☆  नौ रूपों में नारी-नारायणी ☆

 

भरा हुआ भीतर तक तुम वो अमृत घट हो

एक बार अपनी क्षमताओं सी हो जाओ।

मूरत नहीं खुद को खुद में ही पहचानो

एक बार तुम नारी-नारायणी हो जाओ।।

 

पूजाघर या चौराहों पर क्यों पुजो-पुजाओ

मानवी बनकर अपने नौं रूपों में आओ।

जन्म लेने वाली कन्या हो शैलपुत्री हो।

 

कौमार्यावस्था तक पवित्र पावनी ब्रह्मचारिणी

विवाह पूर्व चंद्र सी निर्मल चंद्रघंटा

जन्मदात्री गर्भधारिणी हो कूष्मांडा

जन्म देने के बाद संतान की हो स्कंदमाता।

संयम-साधन की धारिणी कात्यायनी जगत्राता

अपने संकल्पों से पति की जीत ले जो

मृत्यु अकाला कालरात्रि वो सुरभूता

कुटुंब रूपी संसार पर नित उपकारी महागौरी

देती महाप्रयाण से पूर्व संतानों को सब सिद्धि वो सिद्धिदात्री।।

 

नौ निधि नौ विधि नौ रिद्धि नौ सिद्धि नौ शक्ति नौ भक्ति नौ अनुरक्ति नौ नवधा

नौ दुर्गा के नौ अवतारों में नारी का पूरा जीवन नौ निधि अनपायनी प्रिय वसुधा।

 

नारी । नारी-नारायणी। गृहिणी।

खुद में अमृत घट पूरा तुम

एक बार खाली हो जाओ

देवी नहीं मानवी बन आओ।

हां घट-घट वासिनी अमृत दायिनी

संतानों के तन मन जीवन में बस जाओ।।

देवी नहीं मानवी बन आओ।।

देवी नहीं मानवी बन आओ।

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र

 

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हिन्दी साहित्य – नवरात्रि विशेष – कविता – ग़ज़ल/गीतिका ☆ – माँ का  उपवास ☆ – डॉ. अंजना सिंह सेंगर

डॉ. अंजना सिंह सेंगर

 

(आज प्रस्तुत है  डॉ. अंजना सिंह सेंगर जी  द्वारा रचित  नवरात्रि पर्व पर  माँ दुर्गा देवी  जी को  समर्पित  ग़ज़ल/गीतिका  – माँ का  उपवास)

 

☆ ग़ज़ल/गीतिका  – माँ का  उपवास  

 

माँ का जब उपवास करोगे,

ख़ुशियों का आभास करोगे।

 

मन  में  श्रद्धा-भाव  जगेंगे,

पूजन पर विश्वास करोगे।

 

यश, वैभव, आशीष मिलेगा,

जीवन  हर्षोल्लास   करोगे।

 

माँ मंत्रों को रोज जपोगे,

हर संकट का नाश करोगे।

 

मृत्यु लोक से मोक्ष मिलेगा,

माँ चरणों में वास करोगे।

 

मंज़िल से आगे पहुँचोगे,

जीवन को इतिहास करोगे।

 

आज चलो फिर ये प्रण ले लो,

हर दुर्गुण का ह्रास करोगे।

 

©  डॉ. अंजना सिंह सेंगर  

जिलाधिकारी आवास, चर्च कंपाउंड, सिविल लाइंस, अलीगढ, उत्तर प्रदेश -202001

ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – बंदीगृह- ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

We present an English Version of this poem with the title  ☆ Prisons  ☆published today. We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation.)

 

☆ संजय दृष्टि  – बंदीगृह ☆

बंदीगृह के सारे दरवाजे खोल दो,
कारागार अप्रासंगिक हो चुके।
मजबूत फाटकों पर टंगे
विशाल ताले
जड़े जा चुके हैं
मनुष्य के मन पर,
हथकड़ियाँ,
हाथों में बेमानी लगती हैं,
वे, उग, जम, और
कस रही हैं नसों पर,
पैरों की बेड़ियाँ
गर्भस्थ शिशु के साथ ही
जन्मती और बढ़ती हैं
क्षण-प्रतिक्षण,
बस बुढ़ाती नहीं..,
विसंगतियों के फंदे
फाँसी बनकर
कसते जा रहे हैं,
यहाँ-वहाँ टहलते जानवर
रुपये के खूँटे से बंधे
आदमी पर तरस खा रहे हैं,
भूमंडलीकरण के दायरे में
सारा विश्व बड़े से
बंदीगृह में तब्दील हो चुका,
इसलिए कहता हूँ-
बंदीगृह के सारे दरवाजे खोल दो
कारागार अप्रासंगिक हो चुके।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – नवरात्रि विशेष – कविता / गीत ☆ तुम्हीं को गीत अर्पित है ☆ – डॉ. अंजना सिंह सेंगर

डॉ. अंजना सिंह सेंगर

 

(आज प्रस्तुत है  डॉ. अंजना सिंह सेंगर जी  द्वारा रचित  नवरात्रि पर्व पर  माँ दुर्गा देवी  जी को  समर्पित गीत  – तुम्हीं को गीत अर्पित है.)

 

☆ तुम्हीं को गीत अर्पित है  

 

तुम्हीं को गीत अर्पित है, तुम्हीं को प्रीति अर्पित है,

करूँ वंदन नमन तुमको, तुम्हें श्रद्धा समर्पित है।

 

सुशोभित नौ स्वरूपों में, शरद वासंत में आए,

सजे हर गेह तेरा दर, दिलों में भी सुसज्जित है।

 

हरे दुख-दर्द, पीड़ा तू, सदा मंगल करे माता,

तेरे ही  प्यार की महिमा, पुराणों में सुवर्णित है।

 

करे संहार दुष्टों का, मनुजता का करे पालन,

अपरिमित शक्ति से माँ की, विनिर्मित सृष्टि पोषित है।

 

करूँ सब कुछ समर्पित मैं, करो स्वीकार पूजा को,

शरण में लो जगत जननी, मुझे तो मोक्ष इच्छित है।

 

©  डॉ. अंजना सिंह सेंगर  

जिलाधिकारी आवास, चर्च कंपाउंड, सिविल लाइंस, अलीगढ, उत्तर प्रदेश -202001

ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ # 2 – विशाखा की नज़र से ☆ जगह भर जाती है ☆ – श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

 

(हम श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  के  ह्रदय से आभारी हैं  जिन्होंने  ई-अभिव्यक्ति  के लिए  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” लिखने हेतु अपनी सहमति प्रदान की. आप कविताएँ, गीत, लघुकथाएं लिखती हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है।  आज प्रस्तुत है उनकी रचना जगह भर जाती है .  अब आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे. )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 2 – विशाखा की नज़र से

 

☆ जगह भर जाती है  ☆

 

मुठ्ठी में रेत उठाओ

चुल्लू पानी का बनाओ

समुद्र से नदी बनाओ

उल्टा चाहे क्रम चलाओ

रीती जगह नही रहती

जगह भर जाती है ….

 

आँखों से आँसू बहे

पत्ते चाहे जितने झरे

आँखों में फिर पानी

पेड़ों में हरियाली

जगह भर जाती है ….

 

गर्म हवा ऊपर उठी

ठंड़ी हवा दौड़ पड़ी

निर्वात की वजह नही

रूखी हो या नमी

जगह भर जाती है ….

 

एक शख्स जगता रहा

इधर -उधर दौड़ता रहा

देह छुटी आत्मा मुक्त

उसकी निशानी ना चिन्ह कहीं

कुछ ही समय की बात है

यादें , यादों के साथ है

रिक्त जगह नहीँ रहती

जगह भर जाती है …….

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – नवरात्रि विशेष – कविता/गीत ☆ पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की नवरात्रि पर विशेष कविता/गीत – पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे।)

 

☆ पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे ☆

 

नव रातें की जोत जगी है घर-घर बोए जवारे,

पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे।

 

प्रथम पूज्य शैलपुत्री श्वेत वर्ण है धारे,

मधुर कलश हाथ लिए हैं सबकी ओर निहारे ।

 

पग पग धीरे चली भवानी गली-गली उजियारे।

 

द्वितीय देवी ब्रह्मचारिणी सबकी विपदा हारे,

ब्रह्म सनातन धीरज धरनी धर्म ध्वजा फहराए।

 

पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे।

 

तृतीय देखो चंद्रघंटा मस्तक चंद्र विराजे,

शिव दूती बनी भवानी दुर्गा रूप सवारे।

 

पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे।

 

चतुर्थ माता कुष्मांडे हैं साग नाम धराए,

जग की रक्षा करने को फिर बलि बलि भोग लगाएं।

 

पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे।

 

पंचम देवी स्कंध माता श्याम कार्तिकेय की धाये,

दानव दल को मार भगाए माता का नाम उजारे।

 

पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे।

 

षष्ठी कात्यानी भवानी शक्ति रूप निखारे,

जब जब विपदा जग में पड़ी सब को पार उतारें।

 

पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे।

 

सप्तम देखो कालरात्रि बन दुष्टन को दे संहारे,

लंबी लंबी जीव्हा निकाल  रक्त बीज को मारे।

 

पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे।

 

अष्टम महागौरी का रूप मनोहर सुंदर रूप संवारे,

पूरन सबकी करें आराधना दुर्गा यही कहाए।

 

पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे।

 

नवम सिद्धिदात्री हैं भरे भंडार हमारे,

आराधन कर नवदुर्गा का मन वांछित फल पाए।

 

नव रातें की जोत जगी है घर-घर बोए जवारे,

पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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