विश्व शांति के दौर में, आतंकी विस्फोट
मानव मन में आई क्यों, घृणा भरी यह खोट
विकृत सोच से मर चुके, कितने ही निर्दोष
सोचो अब क्या चाहिए, मातम या जयघोष
प्रश्रय जब पाते नहीं, दुष्ट और दुष्कर्म
बढ़ती सन्मति, शांति तब, बढ़ता नहीं अधर्म
दुष्ट क्लेश देते रहे, बदल ढंग, बहुभेष
युद्ध अदद चारा नहीं, लाने शांति अशेष
मानवीय संवेदना, परहित जन कल्याण
बंधुभाव वा प्रेम ने, जग से किया प्रयाण
मानवता पर घातकर, जिन्हें न होता क्षोभ
स्वार्थ-शीर्ष की चाह में, बढ़ता उनका लोभ
हर आतंकी खोजता, सदा सुरक्षित ओट
करता रहता बेहिचक, मौका पाकर चोट
पाते जो पाखंड से, भौतिक सुख-सम्मान
पोल खोलता वक्त जब, होता है अपमान
रक्त पिपासू हो गये, आतंकी, अतिक्रूर
सबक सिखाता है समय, भूले ये मगरूर
सच पैरों से कुचलता, सिर चढ़ बोले झूठ
इसीलिए अब जगत से, मानवता गई रूठ
निज बल, बुद्धि, विवेक पर, होता जिन्हें गुरूर
सत्य सदा ‘पर’ काटने, होता है मजबूर
आतंकी हरकतों से, दहल गया संसार
अमन-चैन के लिए अब, हों सब एकाकार
मानव लुट-पिट मर रहा, आतंकी के हाथ
माँगे से मिलता नहीं, मददगार का साथ
आतंकी सैलाब में, मानवता की नाव
कहर दुखों का झेलती, पाये तन मन घाव
अपराधों की श्रृंखला, झगड़े और वबाल
शांति जगत की छीनने, ये आतंकी चाल
© विजय तिवारी “किसलय”, जबलपुर