(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। वर्तमान में आप जनरल मैनेजर (विद्युत) पद पर पुणे मेट्रो में कार्यरत हैं।)
(डॉ हनीफ का e-abhivyakti में स्वागत है। डॉ हनीफ स प महिला महाविद्यालय, दुमका, झारखण्ड में प्राध्यापक (अंग्रेजी विभाग) हैं । आपके उपन्यास, काव्य संग्रह (हिन्दी/अंग्रेजी) एवं कथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।)
गजल
देख तस्वीर उनकी, उनकी याद आ गई
छुपी थी जो तहरीर उनकी,उनकी याद आ गई।
कहते हैं शीशे में कैद है उनकी जुल्फें
दफ़न हुए कफ़न कल की,उनकी याद आ गई।
क़मर छुप गया देख तसव्वुर महक की
खिली धूप में खिली हुई,उनकी याद आ गई।
लम्हें खता कर हो गई गाफिल फिर
आरजू आंखों में लिपटी रही,फ़क़त उनकी याद आ गई।
तन्हाइयों में भी तन्हा साये में खोई सी
दर्द जब इंतहा से गुजरी,उनकी याद आ गई।
खार चुभी जब जिगर में उनके गुजरने की,उनकी याद आ गई।
उनकी यादों के आंचल में हुई परवरिश,क़ज़ा हुई तो उनकी याद आ गई।
(यह संयोग ही नहीं मेरा सौभाग्य ही है कि – ईश्वर ने वर्षों पश्चात मुझे अपने पूर्व प्राचार्य श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी (केंद्रीय विद्यालय क्रमांक -1), जबलपुर से सरस्वती वंदना के रूप में माँ वीणा वादिनी का आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हो रहा है। अपने गुरुवर द्वारा लिखित ‘सरस्वती वंदना’ आप सबसे साझा कर गौरवान्वित एवं कृतार्थ अनुभव कर रहा हूँ।)
(हम श्री सदानंद आंबेकर जीके आभारी हैं, इस अत्यंत मार्मिक एवं भावप्रवणकाव्यात्मक आत्मकथ्य के लिए। यह काव्यात्मक आत्मकथ्य हमें ही नहीं हमारी अगली पीढ़ी के लिए भीपर्यावरणकेसंरक्षण के लिए एक संदेश है।श्री सदानंद आंबेकरजी की हिन्दी एवं मराठी साहित्य लेखन में विशेष अभिरुचि है।गायत्री तीर्थशांतिकुंज, हरिद्वारके निर्मल गंगा जन अभियान के अंतर्गत गंगा स्वच्छता जन-जागरण हेतु गंगा तट पर 2013 सेनिरंतर प्रवास।)
(दो तीन दिन पूर्व एक निर्माणस्थल पर एक परिपक्व पेड़ को बेदर्दी से कटते देखा।पिछले आठ सालों से उसे देख रहा था।मैं कर तो कुछ नहीं पाया पर उसकी पुकार इन शब्दों में उतर आयी।सब कुछ ऐसे हीघटित हुआ है।)