डॉ.राजकुमार “सुमित्र”
दीप पर्व
दीप पर्व का अर्थ है, जन मन भरो उजास ।
केवल अपना ही नहीं ,सबका करो विकास।।
दीप उजाला बांटकर , देता है संदेश ।
अपना हित साधो मगर, सर्वोपरि हो देश।।
बांध ,रेल, पुल में नहीं, अपना हिंदुस्तान ।
सच्चे मन से देख ले ,बच्चों की मुस्कान।।
नारे व्यर्थ विकास के, भाषण सभी फिजूल।
हंसते गाते यदि नहीं , बच्चों के स्कूल ।।
दाता ने हमको दिये, अन्न ,वस्त्र , स्कूल ।
देश देवता को करें, अर्पित जीवन फूल ।।
एक अंधेरा उजाला , किंतु नहीं है मित्र ।
सदभावों की सुरभि से ,होंगे सभी सुमित्र।।
© डॉ.राजकुमार “सुमित्र”
दीवाली
दीवाली की दस्तकें, दीपक की पदचाप।
आओ खुशियां मनायें,क्यों बैठे चुपचाप।।
अंधियारे की शक्ल में, बैठे कई सवाल ।
कर लेना फिर सामना ,पहले दीप उजाल।।
कष्टों का अंबार है ,दुःखों का अंधियार ।
हम तुम दीपक बनें तो ,फैलेगा उजियार ।।
© डॉ.राजकुमार “सुमित्र”