श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “लिखने की ढो मत लाचारी…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 59 ☆ लिखने की ढो मत लाचारी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
खोज जरा नए बिंब
लिखने की ढो मत लाचारी।
शब्द के पहाड़े का
रट्टा मत मार
पत्थर को और कुछ तराश
धुँधली सी आकृतियाँ
झाड़ पोंछ कर
थोड़ी बारीकियाँ तलाश
गढ़ ले इक नया ढंग
कहने में मत कर घरदारी।
डूबेगा अर्थ नहीं
गहरे में तैर
बह जा धारा के विपरीत
खुद को पतवार बना
साँसों को मोड़
गा ले फिर विप्लव का गीत
खींच दृश्य कविता में
आलोचक दृष्टि हो तारी।
(१३.२.२४)
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
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