हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गीत – प्रेम ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

 

☆ गीत – प्रेम  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

गुज़ारें प्रेम से जीवन,नफ़रती सोच को छोड़ें।

हम अपने सोच की शैली अभी से,आज से मोड़ें।।

*

अँधियारे को रोककर,सद्भावों का गान करें।

मानव बनकर मानवता का नित ही हम सम्मान करें।।

अपनेपन की बाँहें डालें ,नव चेतन मुस्काए।

दुनिया में बस अच्छे लोगों को ही हम अपनाएँ।। 

जो दीवारें खड़ी बीच में आज गिरा दें।

अपने जीवन की शैली को आज फिरा दें।।

*

लड़ें नहिं,मत ही झगड़ें,कुछ भी नहीं मिलेगा।

किंचित नहीं नेह के आँगन में फिर फूल खिलेगा।।

देखें हम पीछे मुड़कर के,क्या-क्या नहीं गँवाया।

तुमने नहिं,नहिं मैंने लड़कर कुछ भी तो है पाया ।।

जो फैलाती हैं कटुता ताक़तें,उनको तो छोड़ें।।

गुज़ारें प्रेम से जीवन,नफ़रती सोच को छोड़ें।

हम अपने सोच की शैली अभी से,आज से मोड़ें।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 58 – आप बुलाने आये… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – आप बुलाने आये।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 58 – आप बुलाने आये… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

आज क्या बात है जो आप मनाने आये 

फिर से, अहसान नया मुझपे जताने आये

*

आये हैं आतिशी अंदाज में सँवरकर वो 

जब भी आये हैं, इसी भाँति जलाने आये

*

मेरी पुस्तक में, मिला फूल एक मुरझाया 

झूल, आँखों में कई दृश्य पुराने आये

*

आज फिर देर तक बोला मुँडेर पर कागा

लौटकर क्या, वही पल फिर से सुहाने आये

*

उनकी यादों ने, मुझे चैन से सोने न दिया

ख्वाब में आये, तो बस मुझको रुलाने आये

*

कितने परिचित, यहाँ चेहरे दिखाई देते हैं 

याद, गुजरे हुए इक साथ जमाने आये

*

लेके, सद्भाव का मरहम निकल पड़े हैं वो 

दुश्मनी, ऐसे ही हर बार भंजाने आये

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 132 – गौरैया कहती सुनो… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “गौरैया कहती सुनो…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 132 – गौरैया कहती सुनो… ☆

 कांक्रीट के शहर में, नहीं मिले अब छाँव।

गौरैया कहती सुनो, चलो चलें फिर गाँव।।

 *

रवि है आँख दिखा रहा, बढ़ा रहा है ताप।

ग्रीष्म काल का नवतपा, रहा धरा को नाप।।

 *

कंठ प्यास से सूखते, तन-मन है बैचेन ।

दूर घरोंदे में छिपे, बाट जोहते नैन।।

 *

उनने खुद ही कर दिया, काट उन्हें बेजान।

ठूंठों से है आजकल, जंगल की पहचान।।

 *

सभी घोंसले मिट गए, तनते रोज मकान।

दाना पानी अब नहीं, हम पंक्षी हैरान।।

 *

पोखर पूर तलाब में, तन गईं अब दुकान।

हम पक्षी दर-दर फिरें, खुला हुआ मैदान।।

 *

सूरज के उत्ताप से, सूखे नद-तालाब।

आकुल -व्याकुल कूप हैं, हालत हुई खराब।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मंत्रमुग्ध हूँ…! ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – मंत्रमुग्ध हूँ…!  ? ?

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

जो मैंने कहा नहीं

जो मैंने लिखा नहीं

उसकी समीक्षाएँ

पढ़कर तुष्ट हूँ

अपनी चुप्पी की

बहुमुखी क्षमता पर

मंत्रमुग्ध हूँ…!

© संजय भारद्वाज  

1.9.18 रात्रि11:37 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ 💥 श्री हनुमान साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी। 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘मैं और मेरी चुप्पी’??’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Endless Epic…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem “मैं और मेरी चुप्पी’??.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि –  मैं और मेरी चुप्पी’?? ? ?

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

युग-यगांतर से रच रहा हूँ

बस यही एक महाकाव्य,

जाने क्या है कि

सर्ग समाप्त ही

नहीं होते!

© संजय भारद्वाज

(रात्रि 9:56 बजे, शुक्र. 4.12.2015)

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

?~ Endless Epic ~??

?

Since time immemorial

I’ve been scripting just

this one epic only…

Knoweth not,

why don’t its chapters

ever get finished…!

?

~ Pravin Raghuvanshi

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 388 ⇒ बरगद… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – “बरगद…।)

?अभी अभी # 388 ⇒ बरगद? श्री प्रदीप शर्मा  ?

मैं जड़ हूँ !

जड़ से चेतन हुआ।

ज़मीन से निकला

बड़ा हुआ !

बरगद, खुशी से गदगद।

मेरी जड़ें ज़मीन में हैं

ज़मीन में ही गड़ी जाती हैं।

हाँ मैं बूढ़ा हूँ, बुजुर्ग हूँ

ज़मीन से जुड़ा हूँ।

सबको छाया देता,

पंछियों को विश्राम।।

बट सावित्री पर मेरी

पूजा करती महिलाएँ

पर्यावरण का रखवाला

बूढ़ा बरगद।। मैं जड़ हूँ !

जड़ से चेतन हुआ।

ज़मीन से निकला

बड़ा हुआ !

बरगद, खुशी से गदगद।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ पराधीन… ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

श्रीशैल चौगुले

? कवितेचा उत्सव ?

☆ पराधीन... ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

मी नव्हतो कधी कुणाचा

मी नसतो कधी कुणाचा

आपुल्याच अंतरंगात

शोधतो ‘मी’ पुन्हा-पुन्हाचा.

 

पांघरुन देह लक्तर

अवयव कला-गुणांचा

चिंतनात दृढ जिज्ञासा

ठाव घेई मना-मनांचा.

 

हे एकांतच मज प्रीय

भाव भक्ती प्रेम प्राणाचा

मी नितांत जगतो मला

वेध वृत्ती बीज तृणांचा.

 

अवघे समुद्र पिऊन

अतृप्त किनारा कुणाचा

विशाल अंबर केवळ

सृष्टित पराधीन पेचा.

© श्रीशैल चौगुले

मो. ९६७३०१२०९०.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 194 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 194 – कथा क्रम (स्वगत)✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

‘मेरा जन्म सफल हुआ

मैं धन्य हुआ

कृतार्थ हुआ कि आपने

मुझे

इस योग्य समझा।

किन्तु

ग्लानि में डूबा

मैं हतमागा

क्या कहूँ

कैसे कहूँ

कि अब

मेरा वैभव क्षीण हो गया है।

अब नहीं रहा मैं

वैसा सम्पत्तिवान्

जैसा पहले था।

श्यामकर्ण अश्व भी नहीं है

मेरी अश्व शाला में

और

उन्हें क्रय करने योग्य

धन भी नहीं है

राजकोष में।

किन्तु

‘याचक को निराश कर

कलंकित नहीं होने दूंगा

अपना कुल गौरव ।

निष्फल नहीं रहेगी

आपकी याचना ।

फलवती होगी इच्छा।

ऐसी वस्तु दूंगा

जिससे होगा।

 क्रमशः आगे —

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 194 – “रूपवती जैसे अखनूर की…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत रूपवती जैसे अखनूर की...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 194 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “रूपवती जैसे अखनूर की...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

कहने को हिलगी है

एक अदद टहनी खजूर की ।

डोरी पर क्लिप लगी सूख रही

कुर्ती ज्यों डायना कुजूर की ॥

 

तपी रेत नीचे, धूप चढ़ी –

आसमान में ।

बदल गई गढ़ी जैसे

चौड़े मकान मे ।

 

मुर्गी की कलगी है

रक्तवर्ण अग्निरेख दूर की ।

या जैसे आरक्ता आँखों से

झाँक रही भावना हुजूर की ॥

 

लम्बग्रीव तना, पीठ –

जैसे घडियाल की ।

छायातक नहीं मिली

जिसकी पड़ताल की ।

 

शापग्रस्त मुलगी है

रूपवती जैसे अखनूर की ।

नजरों से बची रही  कब से वह

भाग्यवश  बेटी मजूर की ॥

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

26 – 11 – 2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मैं और मेरी चुप्पी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  मैं और मेरी चुप्पी’??

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

युग-यगांतर से रच रहा हूँ

बस यही एक महाकाव्य,

जाने क्या है कि

सर्ग समाप्त ही

नहीं होते! 

© संजय भारद्वाज  

(रात 11:31 बजे)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ 💥 श्री हनुमान साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी। 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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