English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 188 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 188 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 188) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.  

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 188 ?

☆☆☆☆☆

मुझको तो दर्द-ए-दिल का

मज़ा याद आ गया-

तुम क्यों हुए उदास

तुम्हें क्या याद आ गया…

☆☆

Remembered the bliss filled

Anguish of my lovelorn heart

Why did you become sad

Did you also miss something

☆☆☆☆☆

कहने को जिंदगी थी

बहुत मुख़्तसर मगर

कुछ यूँ बसर हुई कि

खुदा याद आ गया…

☆☆

Had a life so to say

Though much ephemeral

Passed in such away that

Made me remember the God..!

☆☆☆☆☆

रंजोगम तो तमाम मिट गए मगर

तेरा एहसास रह ही गया,

मगर खुश हूँ कि चलो तेरा कुछ

तो अपने पास रह गया…!

☆☆

Your Feelings 

 Though the suffering has gone

yet the feeling still remains,

Happy that atleast something of

yours is still left inside me…!

☆☆☆☆☆

Unchanged Stories ☆

वक्त ने कई ज़ख्म भर दिए,

यादें भी अब कम खलती हैं,

पर किताबों पर धूल जमने से

भला कहानियाँ कहाँ बदलती हैं..!

☆☆

Time has healed many a wound,

Memories are also scarce now…

But when do stories ever change by

settling of dust on the books…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 187 ☆ नवगीत – बाँस रोपने – बढ़ा कदम ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है नवगीत – बाँस रोपने – बढ़ा कदम…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 187 ☆

☆ नवगीत – बाँस रोपने – बढ़ा कदम ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

 

बाँस रोपने

बढ़ा कदम

.

अब तक किसने-कितने काटे

ढो ले गये,

नहीं कुछ बाँटें.

चोर-चोर मौसेरे भाई

करें दिखावा

मुस्का डांटें.

बँसवारी में फैला स्यापा

कौन नहीं

जिसका मन काँपा?

कब आएगी

किसकी बारी?

आहुति बने,

लगे अग्यारी.

उषा-सूर्य की

आँखें लाल.

रो-रो

क्षितिज-दिशा बेहाल.

समय न बदले

बेढब चाल.

ठोंक रहा है

स्वारथ ताल.

ताल-तलैये

सूखे हाय

भूखी-प्यासी

मरती गाय.

आँख न होती

फिर भी नम

बाँस रोपने

बढ़ा कदम

.

करे महकमा नित नीलामी

बँसवट

लावारिस-बेनामी.

अंधा पीसे कुत्ते खायें

मोहन भोग

नहीं गह पायें.

वनवासी के रहे नहीं वन

श्रम कर भी

किसान क्यों निर्धन?

किसकी कब

जमीन छिन जाए?

विधना भी यह

बता न पाए.

बाँस फूलता

बिना अकाल.

लूटें अफसर-सेठ कमाल.

राज प्रजा का

लुटते लोग.

कोंपल-कली

मानती सोग.

मौन न रह

अब तो सच बोल

उठा नगाड़ा

पीटो ढोल.

जब तक दम

मत हो बेदम

बाँस रोपने

बढ़ा कदम

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

९.४.२०१५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – हाइकू ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  हाइकू ? ?

कोरा कागज़

और मेरा मौन

महाकाव्य सिरजा,

कोरा कागज़

और उसका एक आँसू

महाकाव्य ‘हाइकू’ लगने लगा।

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्री हनुमान साधना – अवधि- मंगलवार दि. 23 अप्रैल से गुरुवार 23 मई तक 💥

🕉️ श्री हनुमान साधना में हनुमान चालीसा के पाठ होंगे। संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही। मंगल भव 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #237 – 122 – “हमने इश्क़ जी लिया जी भर कर…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “हमने इश्क़ जी लिया जी भर कर…” ।)

? ग़ज़ल # 122 – “हमने इश्क़ जी लिया जी भर कर…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

ग़म बिलकुल अजीब शय होता है,

ख़ाली दिमाग़ में ये मय होता है। 

*

हमने इश्क़ जी लिया जी भर कर,

बाद उसके सिर्फ़ अभिनय होता है।

*

मीरा के  हाथों में दिया गया जो,

प्याला ज़हर का सुधामय होता है।

*

तुम्हें  मुबारक  ख़ुश्बू  ग़ुलाब की,

जो  खार  मिला प्रेममय होता है।

*

रोता  हुआ आता  है तू  जहाँ में,

जाता  हुआ भी  दुखमय होता है।

*

पहचान ले  मुहब्बत  की तासीर,

वक्त  इश्क़ का मधुमय होता है।

*

धूप छाँव ज़रूरी पहलू आतिश के,

इनसे सबका ही परिचय होता है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ रूह से रूह तक ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ रूह से रूह तक ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

मोबाइल को

कभी नहीं कोसती मैं।

जब तक माँ के लरजते हाथों में

मोबाइल था

वे दूरस्थ बच्चों से बातें कर

दो घड़ी

निकट होने का एहसास पाती रहीं

मोबाइल से हाथों की

पकड़ क्या छूटी

उन्होंने दुनिया  छोड़ दी।

 

कहने से कहां कुछ

छूटता है भला

माँ तो यादों में बहती हैं वक्त सी

कुछ लोकोक्तियां ,कहावतें

कुछ शब्द ,कोई गंध ,कोई रेसिपी

 कोई हिदायत ,कोई समझाइश

धरती जैसी

 

रूहानी दुनिया के बारे में

हजार बातें ज़ेहन में आती हैं

पर चैन नहीं आता

बस याद ही

रूह से रूह तक के

फासले मिटाती है

 

12 मई

समूचा पटल माँ के नाम पैगाम और कसीदे से भरा पड़ा है

पर जाने क्यों, कुछ भी

लिखने कहने का

मन नहीं है

 

दर्द मेरा है

मुझ तक रहे

शब्दों को सजा क्यों दूँ

 

कभी अपनी दुनिया की

मसरूफियत बताकर

जो हकीकत भी थी

 ज्यादा कुछ कर न सकी

माँ के लिये

ये टीस अहर्निश सालती है

पर

माँ तो माँ है

अपने बच्चों से बैर कहाँ पालती है।।

💧🐣💧

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 115 ☆ मुक्तक – ।।दिल जीते जाते हैं दिल में उतर जाने से ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 115 ☆

☆ मुक्तक – ।।दिल जीते जाते हैं दिल में उतर जाने से।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

हर पल नया साज  नई   आवाज है जिंदगी।

कभी खुशी कभी  गम बेहिसाब है जिंदगी।।

अपने हाथों अपनी किस्मत का देती है मौका।

हर रंग समेटे नया करने का जवाब है जिंदगी।।

[2]

जीतने हारने की  ये हर   हिसाब रखती है।

यह जिंदगी हर अरमान हर ख्वाब रखती है।।

हार के बाजी पलटने की ताकत जिंदगी में।

जिंदगी बड़ीअनमोल हर ढंग नायाब रखती है।।

[3]

समस्या गर जीवन में तो समाधान भी बना है।

हर कठनाई से पार पाने का निदान भी बना है।।

देकर संघर्ष भी हमें यह है संवारती निखारती।

जीतने को ऊपर ऊंचा  आसमान भी बना है।।

[4]

तेरे मीठे बोल जीत सकते हैं दुनिया जहान को।

अपने कर्म विचार से पहुंच सकते हैं आसमान को।।

अपने स्वाभिमान की  सदा ही रक्षा तुम करना।

मत करो और  नहीं  गले लगायो अपमान को।।

[5]

युद्ध तो जीते जाते हैं ताकत  बम हथियारों से।

पर दिल नहीं जीते जाते कभी भी तलवारों से।।

उतरना पड़ता दिल के अंदर अहसास बन कर।

यही बात  समा जाए    सबके ही किरदारों में।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 177 ☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – बाल कविता – “वर्षा आई” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “वर्षा आई। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – बाल कविता – “वर्षा आई” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ऋतु बदली फिर आये बादल उमड़-घुमड़ कर छाये बादल।

दूर-दूर घिर आये बादल नई उमंगें लाये बादल ॥

सबके मन को भाये बादल कृषकों को हरषाये बादल।

धरती को हरयाये बादल पेड़ों को सरसाये बादल ॥

 *

गर्मी का दुख भार खो गया हरा-भरा संसार हो गया।

कृषकों का आधार हो गया जन जन पर उपकार हो गया ॥

 *

गाँव-शहर में खुशियाँ छायी झूलों से उमगीं अमराई।

घर-घर नई बहारें आईं प्रकृति लगी सबको सुखदायी ॥

 *

जल से भरे जलाशय सारे हुये सुहाने झरने प्यारे ।

उफनी नदियाँ, भरे किनारे कीचड़ ने फिर पैर पसारे ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार # 7 – नवगीत – प्रभु श्री राम जी की महिमा… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना – नवगीत – प्रभु श्री राम जी की महिमा…

? रचना संसार # 7 – नवगीत – प्रभु श्री राम जी की महिमा…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

राम तुम्हारी महिमा सारे,

जग ने देखो गाई है।

राम कथा लिखकर तुलसी ने,

जन -जन में पहुँचाई है।।

 *

अवतारे हैं राम अवध में,

देव पुष्प बरसाते हैं।

ढोल नगाड़े घर -घर बजते ,

ऋषि मुनि भी हर्षाते हैं।।

ऋषि वशिष्ठ से शिक्षा पाकर,

प्रेमिल -गंग बहाई है।

 *

उनकी पत्नी भी जगजननी ,

जनक दुलारी सीता थीं।

तीन लोक में यश था उनका

देवी परम पुनीता थीं।

राज-तिलक की शुभ बेला पर

दुख की बदरी छाई है।

 *

कुटिल मंथरा की चालों से,

राम बने वनवासी थे।

लखन जानकी संग चले वन,

क्षुब्ध सभीपुरवासी थे।।

चौदह साल रहे प्रभु वन में,

कैसी विपदा आई है।

 *

सीता हरण किया रावण ने,

वह तो अत्याचारी था।

गर्व राम ने उसका तोड़ा,

जग सारा आभारी था।

वापस लेकर सीता आये,

बजी अवध शहनाई है।।

 

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – स्त्री ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – स्त्री ? ?

एक स्त्री ठहरी है

स्त्रियों की फौज़ से घिरी है,

चौतरफा हमलों की मारी है

ईर्ष्या से लांछन तक जारी है,

एक दूसरी स्त्री भी ठहरी है

किसी स्त्री ने हाथ बढ़ाया है,

बर्फ गली है, राह खुली है

हलचल मची है, स्त्री चल पड़ी है।

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्री हनुमान साधना – अवधि- मंगलवार दि. 23 अप्रैल से गुरुवार 23 मई तक 💥

🕉️ श्री हनुमान साधना में हनुमान चालीसा के पाठ होंगे। संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही। मंगल भव 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 363 ⇒ समय पर कविता… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी कविता – “समय पर कविता।)

?अभी अभी # 363 ⇒ समय पर कविता? श्री प्रदीप शर्मा  ?

मैने कभी कोई काम समय पर नहीं किया,

जब कि मेरे पास पर्याप्त समय था

जिस व्यक्ति ने कभी कविता लिखी ही नहीं,

वह अचानक समय पर कविता लिखेगा,

अगर वह समय पर कविता लिखता,

तो हो सकता है,

आज एक बड़ा कवि होता।

लोग समय पर, जो काम करना है, वह तो करते नहीं,

और बाद में मेरी तरह पछताते हैं।

देर आयद, दुरुस्त आयद। अभी भी समय है।

समय पर कविता लिखने के लिए,

सबसे पहले मैने समय देखा,

समय तो चलायमान है,

मुझे चलते समय पर ही कविता लिखनी पड़ेगी,

मेरे लिए कहां समय ठहरने वाला है। ।

समय पर कुछ पंक्तियां याद आईं,

ये समय बड़ा हरजाई,

समय से कौन लड़ा मेरे भाई।

समय ने मुझे आगाह किया,

तुम मुझ पर कविता लिखना चाहते हो,

अथवा मुझसे लड़ना चाहते हो, व्यर्थ समय मत व्यय करो,

मुझ पर कविता लिखो।

मुझे अच्छा लगा, समय मुझ पर प्रसन्न है,

आज समय मेरे साथ है,

चलो मन लगाकर समय पर कविता लिखें।

कहीं पढ़ा था, समय को शब्द दो।

शायद समय मुझसे शब्द मांग रहा है,

कविता भी शायद वह ही लिख दे।

समय पर क्या स्वयं समय ने कभी कविता लिखी है। अब मैं शब्द कहां से लाऊं।

गूगल शब्दकोश की सहायता लूं

लेकिन मैं जानता हूं, समय इतनी देर ठहरने वाला नहीं

वह मेरी परीक्षा ले रहा है। ।

मैं समय पर कविता लिख रहा हूं या कोई निबंध ? कोई तुक नहीं, मीटर नहीं,

क्या इस तरह सपाट भी कविता लिखी जाती है। समय क्या कहेगा।

फिर खयाल आया,

अकविता और अतुकांत कविता का समय भी तो आया था

कविता में सब चलता है, बस आपका समय अच्छा चलना चाहिए।

जब आज समय मेरे साथ है,

मतलब मेरा समय भी अच्छा ही चल रहा है। साहिर बेवजह ही डरा गए हमको,

आदमी को चाहिए,

वक्त से डरकर रहे।

इतना ही नहीं,

कौन जाने किस घड़ी,

वक्त का बदले मिजाज।

मैने घड़ी की ओर देखा,

मेरा समय ठीक चल रहा था। ।

जब समय का मूड अच्छा हो,

तो आप उससे बेखौफ कुछ भी पूछ सकते हो।

साहिर के बारे में समय ने बताया,

साहिर समय से बहुत आगे का शायर था,

इसीलिए लोग उसे समझ नहीं पाए

साहिर ने कई बार वक्त को मात दी है

तारीख गवाह है।

तुम भी अगर समय की कद्र करते,

समय पर साहिर की तरह कविता लिखते,

तो शायद आज तुम्हारा भी समय होता

लगता है, तुम्हारा समय अभी नहीं आया।

तुमको मैने इतना समय दिया लेकिन तुमने कविता के नाम पर एक शब्द नहीं लिखा

आज तुम्हारा समय समाप्त होता है

फिर जब समय आए, तब मुझ पर कविता लिखने की कोशिश करना।

वैसे समय के सदुपयोग से बड़ी कोई कविता नहीं।

समय निकालकर कुछ भी लिखा करो

समय अपने आप में एक कविता है

समय के साथ बहना सीखो। ।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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