(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी की एक समसामयिक एवं सार्थक व्यंग्य उल्लू जिंदाबाद ! इस सार्थक व्यंग्य के लिए श्री विवेक रंजन जी का हार्दिकआभार। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 80 ☆
☆ व्यंग्य – उल्लू जिंदाबाद ! ☆
अमेरिका में गधे और हाथी की रेस में गधे जीत गए बाईडेंन का चुनाव चिन्ह गधा था, और ट्रम्प का हाथी।
चुनावो के समय अपने देश मे भी अचानक २००० रुपयो की गड्डियां बाजार से गायब होने की खबर आती है, मैं अपनी दिव्य दृष्टि से देख रहा होता हूं कि २००० के गुलाबी नोट धीरे धीरे काले हो रहे हैं.
अखबार में पढ़ा था, गुजरात के माननीय १० ढ़ोकलों में बिके. सुनते हैं महाराष्ट्र में पेटी और खोको में बिकते हैं. राजस्थान में ऊंटों में सौदे होते हैं।
सोती हुई अंतर आत्मायें एक साथ जाग जाती हैं और चिल्ला चिल्लाकर माननीयो को सोने नही देती. माननीयो ने दिलों का चैनल बदल लिया , किसी स्टेशन से खरखराहट भरी आवाजें आ रही हैं तो किसी एफ एम से दिल को सुकून देने वाला मधुर संगीत बज रहा है, सारे जन प्रतिनिधियो ने दल बल सहित वही मधुर स्टेशन ट्यून कर लिया. लगता है कि क्षेत्रीय दल, राष्ट्रीय दल से बड़े होते हैं, सरकारो के लोकतांत्रिक तख्ता पलट, नित नये दल बदल, इस्तीफे, के किस्से अखबारो की सुर्खियां बन रहे हैं. हार्स ट्रेडिंग सुर्खियों में है। यानी घोड़ो के सौदे भी राजनीतिक हैं।
रेस कोर्स के पास अस्तबल में घोड़ों की बड़े गुस्से, रोष और तैश में बातें हो रहीं थी. चर्चा का मुद्दा था हार्स ट्रेडिंग ! घोड़ो का कहना था कि कथित माननीयो की क्रय विक्रय प्रक्रिया को हार्स ट्रेडिंग कहना घोड़ो का सरासर अपमान है. घोड़ो का अपना एक गौरव शाली इतिहास है. चेतक ने महाराणा प्रताप के लिये अपनी जान दे दी, टीपू सुल्तान, महारानी लक्ष्मीबाई की घोड़े के साथ प्रतिमाये हमेशा प्रेरणा देती है. अर्जुन के रथ पर सारथी बने कृष्ण के इशारो पर हवा से बातें करते घोड़े, बादल, राजा, पवन, सारंगी, जाने कितने ही घोड़े इतिहास में अपने स्वर्णिम पृष्ठ संजोये हुये हैं. धर्मवीर भारती ने तो अपनी किताब का नाम ही सूरज का सातवां घोड़ा रखा. अश्व शक्ति ही आज भी मशीनी मोटरो की ताकत नापने की इकाई है. राष्ट्रपति भवन हो या गणतंत्र दिवस की परेड तरह तरह की गाड़ियो के इस युग में भी, जब राष्ट्रीय आयोजनो में अश्वारोही दल शान से निकलता है तो दर्शको की तालियां थमती नही हैं. बारात में सही पर जीवन में कम से कम एक बार हर व्यक्ति घोड़े की सवारी जरूर करता है. यही नही आज भी हर रेस कोर्स में करोड़ो की बाजियां घोड़ो की ही दौड़ पर लगी होती हैं. फिल्मो में तो अंतिम दृश्यो में घोड़ो की दौड़ जैसे विलेन की हार के लिये जरूरी ही होती है, फिर चाहे वह हालीवुड की फिल्म हो या बालीवुड की. शोले की धन्नो और बसंती के संवाद तो जैसे अमर ही हो गये हैं. एक स्वर में सभी घोड़े हिनहिनाते हुये बोले ये माननीय जो भी हों घोड़े तो बिल्कुल नहीं हैं. घोड़े अपने मालिक के प्रति सदैव पूरे वफादार होते हैं जबकि प्रायः नेता जी की वफादारी उस आम आदमी के लिये तक नही दिखती जो उसे चुनकर नेता बना देता है.
वाक्जाल से, उसूलो से उल्लू बनाने की तकनीक नेता जी बखूबी जानते हैं. अंतर्आत्मा की आवाज वगैरह वे घिसे पिटे जुमले होते हैं जिनके समय समय पर अपने तरीके से इस्तेमाल करते हुये वे स्वयं के हित में जन प्रतिनिधित्व करते हैं और अपने किये गलत को सही साबित करने के लिये इस्तेमाल करते हैं. नेताजी बिदा होते हैं तो उनकी धर्म पत्नी या पुत्र कुर्सी पर काबिज हो जाते हैं. पार्टी अदलते बदलते रहते हैं पर नेताजी टिके रहते हैं. गठबंधन तो उसे कहते हैं जो सात फेरो के समय पत्नी के साथ मेरा, आपका हुआ था. कोई ट्रेडिंग इस गठबंधन को नही तोड़ पाती. यही कामना है कि हमारे माननीय भी हार्स ट्रेडिंग के शिकार न हों आखिर घोड़े कहां वो तो “वो” ही हैं !
वो उल्लू होते हैं, और उल्लू लक्ष्मी प्रिय हैं, वे रात रात जागते हैं, और सोती हुईं गाय सी जनता के काम पर लगे रहते हैं । इसलिए अपना नारा है, उल्लू जिंदाबाद!
© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर
ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈