श्री सदानंद आंबेकर
लघुकथा- जवाब
“जिसने जीवन बांटा है वो सुख के पल भी बांटेगा,
जीवन में जो दुःख आयेंगे, वो दिन भी वह ही काटेगा…..”
तेजी से भागती हरिद्वार अहमदाबाद एक्सप्रेस में कच्चे कंठ से यह गाना सुनाई दिया, धीरे-धीरे गाने के बोल साफ होने लगे। थोड़ी देर बाद एक छोटी-सी लड़की पत्थर की दो चिप्स उंगलियों में फंसाकर ताल देकर गाना गाते हुये आगे निकल गई। डिब्बे के दूसरे छोर पर पहुँच कर उसने हाथ फैलाकर पैसे मांगना शुरू किया। मेरे पास जब वो आई तो उसे ध्यान से देखा, आठ-नौ साल की लड़की, मैली से जीन्स टी शर्ट पहने सामने खड़ी थी। चेहरे पर भिखारियों का भाव न होकर छिपा हुआ अभिजात्य दिख रहा था। उसकी मासूमियत देखकर उसे भिखारी मानने का मन नहीं करता था। उसके हाथ पर पैसे रखते हुये सहज भाव से मैंने पूछा – “स्कूल में पढ़ती हो?”
उसने झिझकते हुये कहा- “पढ़ती थी, चौथी कक्षा में।”
मैंने फिर प्रश्न किया- “फिर अब ये काम क्यों करती हो?”
जवाब में उसने सूनेपन से कहा- “पिताजी का देहांत हो गया है।”
मेरी उत्सुकता ने फिर प्रश्न दागा- “फिर अब घर कौन चलाता है?” ……
उसने विरक्त भाव से मुझे देखा, पैसे जेब में रखे, गाना शुरू किया और आगे चल दी –
“जिसने जीवन बांटा है वो सुख के पल भी बांटेगा,
जीवन में जो दुःख आयेंगे, वो दिन भी वह ही काटेगा…..”
मुझे जैसे मेरे प्रश्न का जवाब मिल गया था।
© सदानंद आंबेकर
(श्री सदानंद आंबेकरजी हिन्दी एवं मराठी साहित्य लेखन में अभिरुचि। गायत्री तीर्थ शांतिकुंज, हरिद्वार के निर्मल गंगा जन अभियान के अंतर्गत गंगा स्वच्छता जन-जागरण हेतु गंगा तट पर 2013 से निरंतर प्रवास।)