☆ राष्ट्रीय धैर्य की परीक्षा – मानवता के हित में सकारात्मक सन्देश ☆
(ई- अभिव्यक्ति सम्पूर्ण विश्व में विश्वयुद्ध से भी भयावह इस दौर में ईश्वर से मानवीय संवेदनाओं एवं मानवता की रक्षा की कामना करता है। बस पहल आपको करनी है। )
☆ यह साहस और रौशनी दिखाने का समय है ☆
लेखक का काम रोशनी दिखाना होता है न कि डर बढ़ाना या निराशा फैलाना। यह दहशत फैलाने का समय नहीं है बल्कि, साहस, संयम और धैर्य के साथ मजबूती से खड़े होकर एहतियात बरतने का समय है।
ऐसे समय में लेखन और पत्रकारिता की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है।
कोरोना से बचाव के पांच सुझाव :
(यह एक बायालोजिस्ट के नाते दे रहा हूं)
सोशल डिस्टेंसिंग तो सबसे कारगर उपाय है ही, इसके साथ निम्न उपाय भी बहुत महत्वपूर्ण हैं ….
- डर, क्रोध, नकारात्मक सोच और स्ट्रैस हमारे शरीर की इम्यूनिटी कमजोर करते हैं और सकारात्मकता एवं हल्का फुल्का हास्य एवम मन पसन्द काम (पढ़ना, लिखना, बागवानी आदि) हमारी इम्यूनिटी बढ़ाते हैं और स्वस्थ एवं सुरक्षित रखते हैं।
- थोड़ी देर धूप में रहना, कपड़ों को धूप देना बहुत लाभकारी है
- स्वास्थ्यवर्धक ताजा पका सात्विक भोजन बीमारी को दूर रखता है।
- अच्छी नींद और दोपहर भोजन के बाद आराम जरूर कीजिए
- कुछ दिन के लिए कोरोना के डरावने टी वी समाचारों, व्हाटसएप मेसेज और नकारात्मक फेसबुक पोस्ट से दूर रहें।
यह पांच सूत्रीय फार्मूला लाक डाउन में स्वस्थ और प्रसन्न रहने का आजमाया हुआ नुस्खा है। इसमें आयुर्वेद एवम बायलॉजी का ज्ञान और ख़ाकसार का अनुभव शामिल है
इसका कोई कापी राइट नहीं है। जो चाहे कापी पेस्ट कर सकता है।
– डॉ आर के पालीवाल
☆ अभावों व कठिनाईयों का दृढ़ इच्छाशक्ति से सामना करना होगा ☆
मैं हिन्दी साहित्य संगम, विसुधा सेवा समिति एवं पाथेय संस्था की ओर से आप सभी को कोविड-19 अर्थात कोरोना वायरस बीमारी-2019 के संदर्भ में अवगत कराना चाहता हूँ कि इस विश्वव्यापी महामारी के प्रकोपकाल में जब इस बीमारी का निरोधक टीका अभी तक नहीं बना है, न ही इसका समुचित इलाज सुगम हुआ है, तब इन विषम परिस्थितियों में इससे बचाव के दृष्टिगत हमारा सबसे सामाजिक दूरी बनाए रखना ही श्रेष्ठ एवं सुरक्षित उपाय है। हमें थोड़े या बड़े अभावों व कठिनाईयों का दृढ़ इच्छाशक्ति से सामना करना होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं शासन-प्रशासन के निर्देशों का पालन करना हमारा नैतिक दायित्व है। हमारे सहयोगी रवैये के चलते निश्चित रूप से हम कोरोना वायरस की बीमारी पर नियंत्रण पा सकेंगे। उम्मीद है, हम स्वस्फूर्त भाव से इन बातों पर अमल करेंगे।
सबके स्वस्थ रहने की कामना सहित।
– डॉ विजय तिवारी ‘किसलय‘, जबलपुर
☆ राष्ट्रीय धैर्य की परीक्षा ☆
मानव सभ्यता के इतिहास में आज वक़्त के इस पड़ाव पर हम ‘विजय’ और ‘पराजय’ के बीच मे खड़े हैं. हमारी थोड़ी सी कोताही ‘दुर्भाग्य’ में बदल सकती है. इतने विशाल राष्ट्र को ‘लॉक-डाउन’ करना प्रधानमंत्री जी का बहुत बड़ा निर्णय है. प्रधानमंत्री जी ने हाथ जोड़कर निवेदन किया है, इसे मान लेना ही देशहित में है. यह सच है कि राष्ट्रीय धैर्य की परीक्षा की इस कठिन घड़ी में वक़्त एक तरह से ठहर सा गया है. इस विकसित सभ्यता के इतिहास में इसके पहले आदमी इस कदर लाचार कब हुआ था, पता नहीं. शायद प्रकृति आज हम इंसानों की परीक्षा ले रही है और कह रही है कि- “सुनो, मेरे ख़िलाफ़ हर साजिश का हिसाब, हर इंसान को करना होगा.”
ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में जब दुनिया एक ‘ग्लोबल विलेज’ बन गयी है, इसमें हम सबके सुख ही नहीं बल्कि हम सबके दुःख भी एक हो गए हैं. बेशक हम सबके लिए ये दिन कठिन परीक्षा के दिन हैं. वैश्विक संकट संसार की सभ्यताओं के परीक्षण का एक प्रयोजन भी होता है. मुझे पूरी उम्मीद है कि भारत और हम भारत के लोग इस आपदा पर ऐतिहासिक जीत हासिल करेंगें. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने आज जो कहा है वह सब उन्होंने देश और दुनिया के Epidemiologists, Virologists, Scientists के द्वारा सुझाए गए सुझावों के आधार पर कहा है. इसलिए हमें उनके दिशा-निर्देशों को बस मानते जाना है.
यह संघर्ष प्रकृति की दो सफ़ल species का संघर्ष है और हम सर्वाधिक सफ़ल species थे और रहेंगे. अकाल और महामारी इस देश की सामूहिक-स्मृति के लिए कोई नई बात नहीं है, हालाँकि यह जरूर है कि इस बार चुनौती बहुत बड़ी है. हमने ‘Small pox’ जैसे जानलेवा वायरस को हराया है जिसमें भारत ने अग्रणी भूमिका निभाई थी. ‘पोलियो’ और ‘प्लेग’ को हराया है, ‘स्वाइन फ्लू’ को भी नियंत्रित किया है. हमारी यह पावन भारत भूमि युद्धों से भले ही परेशान रही हो, मानवीय उत्पातों ने भले ही इसे रक्त रंजित किया हो, लेकिन प्रकृति की सर्वाधिक चहेती भूमि भी यही रही है, जहाँ समुद्र है तो रेगिस्तान भी है, जहाँ जंगल हैं तो हिमाच्छादित विशाल पर्वत भी हैं. तभी हर रंग, रूप, संस्कृति और भौगोलिक क्षेत्र के करोड़ों लोग हज़ारों वर्षों से यहाँ रहकर इसे सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व का देश बनाते हैं. भारत की गौरवशाली संस्कृति में रचे-बसे हम लोग अपने भोजन में कुछ ऐसी औषधियों का उपयोग करते आए हैं, जो हमारी इम्युनिटी को बढ़ाती हैं. हम लोग हज़ारों सालों से हाथ मिलाने के बजाय ‘नमस्ते’ कर रहे हैं, पशुओं की पूजा कर रहे हैं, शाकाहारी भोजन कर रहे हैं और घर में प्रवेश करने के बाद नियमित हाथ-पैर धोते हैं. भारत की रक्षा हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कर रही है और इसका मूल हमारी जीवन-शैली में है और यह वही जीवन-शैली है, जिसे अस्वच्छ मानकर पश्चिम एक लम्बे अर्से से हमारा उपहास उड़ाता रहा है. हम भोजन में भरपूर हल्दी लेने वाले लोग हैं इसलिए हम इतनी जल्दी बीमार नहीं पड़ते. हम भारत के लोग अक्सर बिना किसी ग्लानि और लज्जा के कहते हैं कि यह देश तो भगवान भरोसे चल रहा है- “जेहि विधि राखे राम…”. इस भाव के पीछे हमारा आशय यह होता है कि प्रकृति की स्वयं की जो चैतन्य-मेधा है, भारत की गति-मति उसके अनुरूप है. इस सच से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता कि भोजन और भजन का जीवन में बड़ा महात्म्य है. जो तामसी और विषाक्त भोजन नहीं करेगा, आहार में औषध के तत्वों का सम्यक निर्वाह करेगा और जीवन के उपादानों, देवताओं और मातृभूमि के प्रति परम्परा से ही धन्यभाव रखेगा, वह प्राकृत-चेतना के प्रकोप का भाजन नहीं बनेगा. और फिर अगर सर्वनाश में सच्चरित्र का भी अवसान होना ही विधि के विधान में लिखा है तो कम से कम वह अपने साथ प्रारब्ध की गठरी लेकर नहीं जाएगा. मुझे भरोसा है कि हम इस वैश्विक त्रासदी पर जल्द ही विजय प्राप्त करेंगें. इस आश्वस्ति के मूल में परम्परा से संचित कर्म और संस्कार का चिंतन समाया हुआ है.
“जो जहाँ हैं वहीं ठहर जाइए,
वक़्त माकूल नहीं है सफर के लिए.”
– डॉ राजेश पाठक ‘प्रवीण ‘, सनाढ्य संगम, जबलपुर
☆ जान है तो जहां है ☆
चीन मध्ये निर्माण झालेल्या कोरोना नावाच्या विषाणू ची सगळ्या जगात दहशत निर्माण झाली आहे. या विषाणू ची बाधा म्हणजे “महामारी” असे दृश्य दिसतेय, पूर्वी “करोना” नावाची एक शूज कंपनी होती, या कंपनीची चप्पल वापरल्याचेही मला स्मरते आहे..आज एक मजेशीर विचार मनात आला, हा “क्राऊन” च्या आकाराचा विषाणू विधात्या च्या पायताणाखाली चिरडला जावा.हीच प्रार्थना!
या आपत्तीमुळे संपूर्ण मानवजात हादरली आहे.योग्य काळजी तर आपण घेतच आहोत, घरात रहातोय, घरातली सर्व कामं स्वतः करतोय, कौटुंबिक सलोखा राखतोय, प्रत्येकाला ही जाणीव आहेच, “जान है तो जहां है।”
– सुश्री प्रभा सोनवणे, पुणे