श्रीमद् भगवत गीता
पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
प्रथम अध्याय
अर्जुनविषादयोग
(मोह से व्याप्त हुए अर्जुन के कायरता, स्नेह और शोकयुक्त वचन )
न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च ।
किं नो राज्येन गोविंद किं भोगैर्जीवितेन वा ॥32॥
नहीं विजय की कामना, न ही राज सुख चाह
न ही राज्य वैभव तथा जीवन की परवाह।।32।।
भावार्थ : हे कृष्ण! मैं न तो विजय चाहता हूँ और न राज्य तथा सुखों को ही। हे गोविंद! हमें ऐसे राज्य से क्या प्रयोजन है अथवा ऐसे भोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है?॥32॥
For I desire neither victory, O Krishna, nor pleasures nor kingdoms! Of what avail is a dominion to us, O Krishna, or pleasures or even life? ॥32॥
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर
मो ७०००३७५७९८
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)