हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ दृष्टि ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ दृष्टि ☆

तुम्हारी आँख में भविष्य के सपने हैं।

…मैं आशान्वित हुआ।

 

तुम्हारी आँख में भविष्य का मानचित्र है।

…मैं उत्साहित हुआ।

 

तुम्हारी आँख में भविष्य के लिए संघर्ष और श्रम की ललक है।

…मैं आनंदित हुआ।

 

तुम्हारी आँख में तुम्हारा भविष्य साफ-साफ दिखता है।

…मैं धन्य हुआ।

 

©  संजय भारद्वाज 

7 अगस्त 2020, संध्या 6:13 बजे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – अष्टदशोऽध्याय: अध्याय (29) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अध्याय 18  

(सन्यास   योग)

(कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन)

(तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद)

 

बुद्धेर्भेदं धृतेश्चैव गुणतस्त्रिविधं श्रृणु ।

प्रोच्यमानमशेषेण पृथक्त्वेन धनंजय ॥

 

तीन भेद धृति, बुद्धि के होते गुण अनुसार

पृथक ओर संपूर्णतः कहता पार्थ ! मैं सार ।।29।।

 

भावार्थ :  हे धनंजय ! अब तू बुद्धि का और धृति का भी गुणों के अनुसार तीन प्रकार का भेद मेरे द्वारा सम्पूर्णता से विभागपूर्वक कहा जाने वाला सुन॥29॥

Hear thou the threefold division of the intellect and firmness according to the Gunas, as I declare them fully and distinctly, O Arjuna!

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected] मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ अव्यक्त ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ अव्यक्त ☆

अंतहीन विवाद,

भीषण कलह,

एक-दूसरे के लिए आज से

मर चुका होने की घोषणा,

फिर भी जाने क्या था कि

खिड़की के कोने पर खड़ा वह

भाई को तब तक देखता रहा

जब तक सुरक्षित रूप से

पार नहीं कर ली उसने सड़क,

और ओझल नहीं हो गया आँखों से..,

 

आपसी सहमति से हुए

उनके संबंध विच्छेद पर

अब तो अदालती मोहर भी लग चुकी,

फिर भी जाने क्या है कि

हर रोज वह बनाती है अपने साथ

उसके भी नाम की रोटियाँ

और सुबह आँसुओं के नमक से

लगा-लगा कर खाती है

रोजाना उसे कोसते हुए…,

 

संपत्ति बीच में क्या आई

शत्रु हो गई अपनी ही जाई,

एक खुद का,दो बेटों का

और एक बेटी का हिस्सा करके भी

गुज़रने से पहले

माँ अपना हिस्सा भी कर गई

अबोला किए नाराज़ बेटी के नाम…,

 

“लव यू मॉम…”

“मेड फॉर इच अदर” “फारॅएवर…”

“ग्रेटेस्ट ब्रो!’

सेलेब्रेशन, विशिष्ट संबोधन

और फिर पढ़ता हूँ सुर्खियाँ-

भाई का भाई द्वारा खून,

पति निकला पत्नी का हत्यारा,

बूढ़ी माँ को बेटी ने दिया घर निकाला…,

 

सोचता हूँ

जो अभिव्यक्त नहीं होता था

संभवत: अधिक परिपक्व

अधिक सशक्त होता था!

 

©  संजय भारद्वाज 

( 2 जुलाई 2016, प्रात: 6:30 बजे, पुणे से मुंबई की यात्रा में)

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अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – अष्टदशोऽध्याय: अध्याय (28) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अध्याय 18  

(सन्यास   योग)

(कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन)

(तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद)

 

आयुक्तः प्राकृतः स्तब्धः शठोनैष्कृतिकोऽलसः ।

विषादी दीर्घसूत्री च कर्ता तामस उच्यते॥

 

जो अकुशल, शठ, आलसी, संस्कार से हीन

तामस कर्ता विषादी, मन का रहा मलीन ।।28।।

 

भावार्थ :  जो कर्ता अयुक्त, शिक्षा से रहित घमंडी, धूर्त और दूसरों की जीविका का नाश करने वाला तथा शोक करने वाला, आलसी और दीर्घसूत्री (दीर्घसूत्री उसको कहा जाता है कि जो थोड़े काल में होने लायक साधारण कार्य को भी फिर कर लेंगे, ऐसी आशा से बहुत काल तक नहीं पूरा करता। ) है वह तामस कहा जाता है॥28॥

Unsteady, dejected,    unbending,    cheating,    malicious,    vulgar,    lazy    and proscrastinating-such an agent is called Tamasic.

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected] मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 67 ☆ देहरी ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच – देहरी

पुनर्पाठ-

घर की देहरी पर खड़े होकर बात करना महिलाओं का प्रिय शगल है। कभी आपने ध्यान दिया कि इस दौरान अधिकांश मामलों में संबंधित महिला का एक पैर देहरी के भीतर होता है, दूसरा आधा देहरी पर, आधा बाहर। अपनी दुनिया के विस्तार की इच्छा को दर्शाता चौखट से बाहर का रुख करता पैर और घर पर अपने आधिपत्य की सतत पुष्टि करता चौखट के अंदर ठहरा पैर। मनोविज्ञान में रुचि रखनेवालों के लिए यह गहन अध्ययन का विषय हो सकता है।

अलबत्ता वे चौखट का सहारा लेकर या उस पर हाथ टिकाकर खड़ी होती हैं। फ्रायड कहता है कि जो मन में, उसीकी प्रतीति जीवन में। एक पक्ष हो सकता है कि घर की चौखट से बँधा होना उनकी रुचि या नियति है तो दूसरा पक्ष है कि चौखट का अस्तित्व उनसे ही है।

इस आँखों दिखती ऊहापोह को नश्वर और ईश्वर तक ले जाएँ। हम पार्थिव हैं पर अमरत्व की चाह भी रखते हैं। ‘पुनर्जन्म न भवेत्’ का उद्घोष कर मृत्यु के बाद भी मर्त्यलोक में दोबारा और प्रायः दोबारा कहते-कहते कम से कम चौरासी लाख बार लौटना चाहते हैं।

स्त्रियों ने तमाम विसंगत स्थितियों, विरोध और हिंसा के बीच अपनी जगह बनाते हुए मनुष्य जाति को नये मार्गों से परिचित कराया है। नश्वर और ईश्वर के द्वंद्व से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हें पहल करनी चाहिए। इस पहल पर उनका अधिकार इसलिए भी बनता है क्योंकि वे जननी अर्थात स्रष्टा हैं। स्रष्टा होने के कारण स्थूल में सूक्ष्म के प्रकटन की अनुभूति और प्रक्रिया से भली भाँति परिचित हैं। नये मार्ग की तलाश में खड़ी मनुष्यता का सारथ्य महिलाओं को मिलेगा तो यकीन मानिए, मार्ग भी सधेगा।

 

© संजय भारद्वाज

(लेखन-10.10.2018)

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अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – अष्टदशोऽध्याय: अध्याय (27) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अध्याय 18  

(सन्यास   योग)

(कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन)

(तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद)

 

रागी कर्मफलप्रेप्सुर्लुब्धो हिंसात्मकोऽशुचिः।

हर्षशोकान्वितः कर्ता राजसः परिकीर्तितः॥

लोभी हिंस्र, फलेच्छु व भोगी मलिन विचार

हर्ष-शोक के भाव से राजस नित लाचार ।।27।।

भावार्थ :  जो कर्ता आसक्ति से युक्त कर्मों के फल को चाहने वाला और लोभी है तथा दूसरों को कष्ट देने के स्वभाववाला, अशुद्धाचारी और हर्ष-शोक से लिप्त है वह राजस कहा गया है॥27॥

Passionate, desiring to obtain the rewards of actions, cruel, greedy, impure, moved by joy and sorrow, such an agent is said to be Rajasic.

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected] मो ७०००३७५७९८

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अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – अष्टदशोऽध्याय: अध्याय (26) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अध्याय 18  

(सन्यास   योग)

(कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन)

(तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद)

 

मुक्तसङ्‍गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वितः ।

सिद्धयसिद्धयोर्निर्विकारः कर्ता सात्त्विक उच्यते॥

 

धैर्य और उत्साह से, लिप्ति मान से मुक्त

हानि-लाभ, दुख-हर्ष से सात्विक कर्म विमुक्त ।।26।।

 

भावार्थ :  जो कर्ता संगरहित, अहंकार के वचन न बोलने वाला, धैर्य और उत्साह से युक्त तथा कार्य के सिद्ध होने और न होने में हर्ष -शोकादि विकारों से रहित है- वह सात्त्विक कहा जाता है॥26॥

He who is free from attachment, non-egoistic, endowed with firmness and enthusiasm and unaffected by success or failure, is called Sattwic.

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected] मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ खोज ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ खोज 

ढूँढ़ो, तलाशो,

अपना पता लगाओ,

ग्लोब में तुम जहाँ हो

एक बिंदु लगाकर दिखाओ,

अस्तित्व की प्यास जगी

खोज में ऊहापोह बढ़ी,

कौन बिंदु है, कौन सिंधु है..?

ग्लोब में वह एक बिंदु है या

ग्लोब उसके भीतर एक बिंदु है..?

©  संजय भारद्वाज 

 रात्रि 10:11बजे, दि. 25 नवंबर 2015

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अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – अष्टदशोऽध्याय: अध्याय (25) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अध्याय 18  

(सन्यास   योग)

(कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन)

(तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद)

अनुबन्धं क्षयं हिंसामनवेक्ष्य च पौरुषम्‌।

मोहादारभ्यते कर्म यत्तत्तामसमुच्यते॥

बिना विचारे हानि या हिंसा का परिणाम

उसे दिया जाता सदा ‘तामस कर्म‘ का नाम ।।25।।

भावार्थ :  जो कर्म परिणाम, हानि, हिंसा और सामर्थ्य को न विचारकर केवल अज्ञान से आरंभ किया जाता है, वह तामस कहा जाता है॥25॥

That action which is undertaken from delusion, without regard to the consequences of loss, injury and (one’s own) ability-that is declared to be Tamasic.

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ संभावना ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ संभावना

एक आयु के बाद

प्रसूति की संभावनाएँ

निरंतर घटती जाती हैं,

चिकित्साशास्त्र कहता है…,

एक आयु के बाद

प्रसूति की संभावनाएँ

निरंतर बढ़ती जाती हैं,

काव्यशास्त्र कहता है…!

अनुकूल, प्रतिकूल से परे

सदा विजिगीषु रहता है,

संभावना का अपना

एक शास्त्र होता है…!

 

आज मिली कालावधि प्रसूत हो।

©  संजय भारद्वाज 

21.10.2020,  रात्रि 10.01 बजे

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