आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (54) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(बिना अनन्य भक्ति के चतुर्भुज रूप के दर्शन की दुर्लभता का और फलसहित अनन्य भक्ति का कथन)

 

भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन ।

ज्ञातुं द्रष्टुं च तत्वेन प्रवेष्टुं च परन्तप ॥54॥

मुझे समझना देखना औ” कर सकना प्राप्त

केवल नैष्ठिक भक्ति से , ही है संभव आप्त ॥54॥

 

भावार्थ :  परन्तु हे परंतप अर्जुन! अनन्य भक्ति (अनन्यभक्ति का भाव अगले श्लोक में विस्तारपूर्वक कहा है।) के द्वारा इस प्रकार चतुर्भुज रूपवाला मैं प्रत्यक्ष देखने के लिए, तत्व से जानने के लिए तथा प्रवेश करने के लिए अर्थात एकीभाव से प्राप्त होने के लिए भी शक्य हूँ॥54॥

 

But by single-minded devotion can I, of this form, be known and seen in reality and also entered into, O Arjuna!॥54॥

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – प्रतीक्षा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – प्रतीक्षा ☆

 

अंजुरि में भरकर बूँदें

उछाल दी अंबर की ओर,

बूँदें जानती थीं

अस्तित्व का छोर,

लौट पड़ी नदी

की ओर..,

मुट्ठी में धरकर दाने

उछाल दिए आकाश की ओर,

दाने जानते थे

उगने का ठौर

लौट पड़े धरती की ओर..,

पद, धन, प्रशंसा, बाहुबल के

पंख लगाकर

उड़ा दिया मनुष्य को

ऊँचाई की ओर..,

……….,………..,

….तुम कब लौटोगे मनुज..?

# घर में रहें, स्वस्थ रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

श्रीविजयादशमी 2019, अपराह्न 4.27 बजे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

Please share your Post !

Shares

आध्यत्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (53) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(बिना अनन्य भक्ति के चतुर्भुज रूप के दर्शन की दुर्लभता का और फलसहित अनन्य भक्ति का कथन)

 

नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया।

शक्य एवं विधो द्रष्टुं दृष्ट्वानसि मां यथा ।। 53 ।।

 

वेद से ,तप या दान से , यज्ञ से कह न प्राप्य

यह जो तुमको दिख सका , मुझसे ही संभाव्य ।। 53 ।।

 

भावार्थ :  जिस प्रकार तुमने मुझको देखा है- इस प्रकार चतुर्भुज रूप वाला मैं न वेदों से, न तप से, न दान से और न यज्ञ से ही देखा जा सकता हूँ।। 53 ।।

 

Neither by the Vedas, nor by austerity, nor by gift, nor by sacrifice, can I be seen in this form as thou hast seen Me (so easily).।। 53 ।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

Please share your Post !

Shares

आध्यत्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (52) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(बिना अनन्य भक्ति के चतुर्भुज रूप के दर्शन की दुर्लभता का और फलसहित अनन्य भक्ति का कथन)

श्रीभगवानुवाच

सुदुर्दर्शमिदं रूपं दृष्टवानसि यन्मम।

देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्‍क्षिणः।। 52 ।।

 

भगवान ने कहा ‍

मेरा कठिन स्वरूप जो देखा तुमने आज

उसे देखना चाहता प्रायः देव समाज ।। 52 ।।

 

भावार्थ :  श्री भगवान बोले- मेरा जो चतुर्भज रूप तुमने देखा है, वह सुदुर्दर्श है अर्थात्‌ इसके दर्शन बड़े ही दुर्लभ हैं। देवता भी सदा इस रूप के दर्शन की आकांक्षा करते रहते हैं॥52॥

 

Very hard indeed it is to see this form of Mine which thou hast seen. Even the gods are ever longing to behold it.

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – परिचय ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – परिचय ☆

अपना

विस्तृत परिचय भेजो,

उन्होंने कहा..,

मैंने लिख भेजा

केवल एक शब्द-

कविता…,

सुना है

‘डिस्क ओवरलोडेड’ कहकर

सिस्टम हैंग हो गया है।

 

# घर में रहें, सुरक्षित रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

20.9.2018,  प्रात: 11.19 बजे

 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

Please share your Post !

Shares

आध्यत्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (51) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(बिना अनन्य भक्ति के चतुर्भुज रूप के दर्शन की दुर्लभता का और फलसहित अनन्य भक्ति का कथन)

 

अर्जुन उवाच

दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तव सौम्यं जनार्दन।

इदानीमस्मि संवृत्तः सचेताः प्रकृतिं गतः।। 51 ।।

 

अर्जुन ने कहा –

सौम्य मानवी रूप यह देख नाथ अब आप

मेरा मन है शांत अब , भय सब हुआ समाप्त  ।। 51 ।।

 

भावार्थ :  अर्जुन बोले- हे जनार्दन! आपके इस अतिशांत मनुष्य रूप को देखकर अब मैं स्थिरचित्त हो गया हूँ और अपनी स्वाभाविक स्थिति को प्राप्त हो गया हूँ।। 51 ।।

 

Having seen this Thy gentle human form, O Krishna, now I am composed and restored to my own nature!।। 51 ।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 24 ☆ वाग्देवी माँ मुझे स्वीकार लो ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  आपकी एक अतिसुन्दर प्रार्थना  “वाग्देवी माँ मुझे स्वीकार लो.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 24 ☆

☆ वाग्देवी माँ मुझे स्वीकार लो ☆

 

वाग्देवी माँ मुझे

स्वीकार लो

भाव सुमनों -सा

सजा संसार दो

 

शब्द में भर दो मधुरता

अर्थ दो मुझको सुमति के

मैं न भटकूँ सत्य पथ से

माँ बचा लेना कुमति से

 

भारती माँ सब दुखों से

तार दो

वाग्देवी माँ मुझे

स्वीकार लो

भाव सुमनों -सा सजा

संसार दो

 

कोई छल से छल न पाए

शक्ति दो माँ तेज बल से

कामनाएँ हों नियंत्रित

सिद्धिदात्री कर्मफल से

 

बुद्धिदात्री ज्ञान का

भंडार दो

वाग्देवी माँ मुझे

स्वीकार लो

भाव सुमनों -सा सजा

संसार दो

 

भेद मन के सब मिटा दो

प्रेम की गंगा बहा दो

राग-द्वेषों को हटाकर

हर मनुज का सुख बढ़ा दो

 

शारदे माँ! दृष्टि को

आधार दो

वाग्देवी माँ मुझे

स्वीकार लो

भाव सुमनों-सा सजा

संसार दो

 

डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001

उ.प्र .  9456201857

[email protected]

Please share your Post !

Shares

आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (50) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(भगवान द्वारा अपने विश्वरूप के दर्शन की महिमा का कथन तथा चतुर्भुज और सौम्य रूप का दिखाया जाना)

 

संजय उवाच

इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः ।

आश्वासयामास च भीतमेनंभूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा।। 50 ।।

संजय ने कहा –

यों कहकर श्रीकृष्ण ने दिखलाया वह रूप

जो अर्जुन की शांति हित था अति सौम्य अनूप  ।। 50 ।।

 

भावार्थ :  संजय बोले- वासुदेव भगवान ने अर्जुन के प्रति इस प्रकार कहकर फिर वैसे ही अपने चतुर्भुज रूप को दिखाया और फिर महात्मा श्रीकृष्ण ने सौम्यमूर्ति होकर इस भयभीत अर्जुन को धीरज दिया।। 50 ।।

 

Having thus spoken to Arjuna, Krishna again showed His own form; and the great soul (Krishna), assuming His gentle form, consoled him who was terrified (Arjuna).।। 50 ।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – जग, सजग का है ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – जग, सजग का है  ☆

 

प्रश्न- जग सो रहा है और तुम अब तक जाग रहे हो?

 

उत्तर- जग शब्द स्वयं कहता है- जग, नेत्र खुले रख। स्थूल की निद्रा में भी सूक्ष्म को जागृत रख। जग में आगमन जगने, जगे रहने, जगाते रहने और जगाये रखने के लिए है। जग में आकर जो जगे रहने का अर्थ नहीं समझा, वह अज-सा काल का भक्ष्य है। जो जगता रहा, जगाता रहा, सजगता उसका लक्ष्य है।

 

….ध्यान रहे जग, सजग का है।

 

सजग रहें। घर में रहें। सुरक्षित और स्वस्थ रहें।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

सोमवार 1 जुलाई 2018, रात्रि 1:27 बजे

 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

Please share your Post !

Shares

आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (49) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(भगवान द्वारा अपने विश्वरूप के दर्शन की महिमा का कथन तथा चतुर्भुज और सौम्य रूप का दिखाया जाना)

 

मा ते व्यथा मा च विमूढभावोदृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्‍ममेदम्‌।

व्यतेपभीः प्रीतमनाः पुनस्त्वंतदेव मे रूपमिदं प्रपश्य।। 49 ।।

 

व्यथित न हो , न ही हो भ्रमित लख मम घोर स्वरूप

भय तज , खुश हो देख फिर यह पहला सा रूप  ।। 49 ।।

 

भावार्थ :  मेरे इस प्रकार के इस विकराल रूप को देखकर तुझको व्याकुलता नहीं होनी चाहिए और मूढ़भाव भी नहीं होना चाहिए। तू भयरहित और प्रीतियुक्त मनवाला होकर उसी मेरे इस शंख-चक्र-गदा-पद्मयुक्त चतुर्भुज रूप को फिर देख॥49॥

 

Be not afraid nor bewildered on seeing such a terrible form of Mine as this; with thy fear entirely dispelled and with a gladdened heart, now behold again this former form of Mine.।। 49 ।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

Please share your Post !

Shares