आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (27) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्धवम्‌।

एरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम्‌।।27।।

अश्वों में उच्चैश्रवा,मंथन से उद्भूत

ऐरावत गजराज मैं पुरूषों में हूँ भूप।।27।।

 

भावार्थ :  घोड़ों में अमृत के साथ उत्पन्न होने वाला उच्चैःश्रवा नामक घोड़ा, श्रेष्ठ हाथियों में ऐरावत नामक हाथी और मनुष्यों में राजा मुझको जान।।27।।

 

Know Me as Ucchaisravas, born of nectar among horses; among lordly elephants (I am) the Airavata; and among men, the king।।27।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (26) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः ।

गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः ।।26।।

 

देवर्षियो में नारद,वृक्षों में अश्वत्थ

सिद्धों में मैं कपिल मुनि,चित्ररथ हूँ गंधर्व।।26।।

      

भावार्थ :  मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष, देवर्षियों में नारद मुनि, गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्धों में कपिल मुनि हूँ।।26।।

 

Among the  trees  (I  am)  the peepul ;  among  the  divine  sages  I  am  Narada;  among Gandharvas I am Chitraratha; among the perfected the sage Kapila.।।26।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (25) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्‌।

यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ।।25।।

 

 महर्षियों में भृगु ऋषि ,भाषा में ओंकार

 यज्ञों में जप यज्ञ मैं अचलों में गिरिराज।।25।।

 

भावार्थ :  मैं महर्षियों में भृगु और शब्दों में एक अक्षर अर्थात्‌‌ओंकार हूँ। सब प्रकार के यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहने वालों में हिमालय पहाड़ हूँ।।25।।

 

Among the great sages I am Bhrigu; among words I am the monosyllable Om; among sacrifices I am the sacrifice of silent repetition; among immovable things the Himalayas I am.।।25।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (24) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्‌।

सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः ।।24।।

 

पुरोहितों में मुख्य मैं वृहस्पति सम्मान्य

सेनानियों में स्कंद मैं जलाशयों में सिंधु।।24।।

 

भावार्थ :  पुरोहितों में मुखिया बृहस्पति मुझको जान। हे पार्थ! मैं सेनापतियों में स्कंद और जलाशयों में समुद्र हूँ।।24।।

 

And, among  the  household  priests  (of  kings),  O  Arjuna,  know  Me  to  be  the  chief, Brihaspati; among the army generals I am Skanda; among lakes I am the ocean!।।24।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (23) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)।

 

रुद्राणां शङ्‍करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्‌।

वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्‌।।23।।

 

रूद्रों में शंकर हूँ मैं औ” यक्षों में कुबेर

वसुओं में पावक हूँ मैं शिखरों में हूँ मेरू।।23।।

 

भावार्थ :  मैं एकादश रुद्रों में शंकर हूँ और यक्ष तथा राक्षसों में धन का स्वामी कुबेर हूँ। मैं आठ वसुओं में अग्नि हूँ और शिखरवाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत हूँ॥23॥

 

And, among the Rudras I am Shankara; among the Yakshas and Rakshasas, the Lord of wealth (Kubera); among the Vasus I am Pavaka (fire); and among the (seven) mountains I am the Meru.

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (22) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः ।

इंद्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ।।22।।

 

देवों में हूँ इन्द्र मैं वेदों में सामवेद

इंद्रियों में हदय मन ,जीवों में संचेत।।22।।

 

भावार्थ :  मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवों में इंद्र हूँ, इंद्रियों में मन हूँ और भूत प्राणियों की चेतना अर्थात्‌जीवन-शक्ति हूँ।।22।।

 

Among the Vedas Iamthe Sama Veda; I am Vasava among the gods; among the senses I am the mind; and I am intelligence among living beings.।।22।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (21) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान्‌।

मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ।।21।।

 

आदित्यों में विषय हूँ दीप्तिवान में सूर्य

मरूतों मारिचि हूँ नक्षत्रों में शशि रूप।।21।।

 

भावार्थ :  मैं अदिति के बारह पुत्रों में विष्णु और ज्योतियों में किरणों वाला सूर्य हूँ तथा मैं उनचास वायुदेवताओं का तेज और नक्षत्रों का अधिपति चंद्रमा हूँ।।21।।

 

Among the (twelve) Adityas, I am Vishnu; among the luminaries, the radiant sun; I am Marichi among the (seven or forty-nine) Maruts; among stars the moon am I.।।21।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (20) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः ।

अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ।।20।।

 

अर्जुन! हूँ मैं आत्मा सब देहों में व्याप्त

मैं ही सबका आदि हूँ मघ्य भी और समाप्ति।।20।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा संपूर्ण भूतों का आदि, मध्य और अंत भी मैं ही हूँ॥20॥

 

I am the Self, O Gudakesha, seated in the hearts of all beings! I am the beginning, the middle and also the end of all beings.।।20।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (19) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

श्रीभगवानुवाच

हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः ।

प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ।।19।।

 

भगवान बोले –

अच्छा मुख्य विभूतियाँ बतलाउँगा तात

क्योंकि अखिल अनंत है अद्धुत सब की बात।।19।।

 

भावार्थ :  श्री भगवान बोले- हे अर्जुन! अब मैं जो मेरी दिव्य विभूतियाँ हैं, उनको तेरे लिए प्रधानता से कहूँगा; क्योंकि मेरे विस्तार का अंत नहीं है।।19।।

 

Very well, now I will declare to thee My divine glories in their prominence, O Arjuna! There is no end to their detailed description.।।19।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (18) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के लिए प्रार्थना )

 

विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन ।

भूयः कथय तृप्तिर्हि श्रृण्वतो नास्ति मेऽमृतम्‌।।18।।

 

कहें जनार्दन योग औ” निज विभूति तो आप

बिना सुने विस्तार से मन को चैन अप्राप्त।।18।।

 

भावार्थ :  हे जनार्दन! अपनी योगशक्ति को और विभूति को फिर भी विस्तारपूर्वक कहिए, क्योंकि आपके अमृतमय वचनों को सुनते हुए मेरी तृप्ति नहीं होती अर्थात्‌सुनने की उत्कंठा बनी ही रहती है।।18।।

 

Tell me again in detail, O Krishna, of Thy Yogic power and glory; for I am not satisfied with what I have heard of Thy life-giving and nectar-like speech!।।18।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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