श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज 24 जून को वीरांगना रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक प्रेरक एवं ऐतिहासिक आलेख “विश्व इतिहास की पहली महिला योद्धा”। इस ऐतिहासिक आलेख को हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने के लिए श्री विवेक जी का हार्दिक आभार। )
☆ वीरांगना रानी दुर्गावती बलिदान दिवस विशेष – विश्व इतिहास की पहली महिला योद्धा ☆
(समय के साथ यदि ऐसे महत्वपूर्ण तथ्यो को नई पीढ़ी के सम्मुख दोहराया न जावे तो विस्मरण स्वाभाविक होता है, आज की पीढ़ी को रानी दुर्गावती के संघर्ष से परिचित करवाना इसलिये भी आवश्यक है, जिससे देश प्रेम व राष्ट्रीय एकता हमारे चरित्र में व्याप्त रह सके इस दृष्टि से सरदार पटेल पर बहुत महत्वपूर्ण उपन्यास के लेखक व एकता शक्ति ग्रुप के संस्थापक इंजी अमरेन्द्र नारायण जी के नेतृत्व में विगत वर्ष रानी दुर्गावती जयंती का आयोजन कई संस्थाओ में किया गया था. इस वर्ष लाक डाउन के चलते इस आलेख में वर्णित यू ट्यूब काव्य रचना के जरिये एकता शक्ति ग्रुप, जबलपुर वीरांगना रानी दुर्गावती को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता है. आज जब देश की सीमाएं दुश्मन से घिरी हुई हैं एवं हमारी सेना में महिलाओं को बराबरी का दर्जा है, रानी दुर्गावती का सुस्मरण बहुत प्रासंगिक है )
माना जाता है कि विश्व इतिहास में रानी दुर्गावती पहली महिला है जिसने समुचित युद्ध नीति बनाकर अपने विरूद्ध हो रहे अन्याय के विरोध मे मुगल साम्राज्य के विरूद्ध शस्त्र उठाकर सेना का नेतृत्व किया और युद्ध क्षेत्र मे ही आत्म बलिदान दिया.रानी दुर्गावती के मदन महल के दर्शन किये हैं कभी आपने ? एक ही शिला को तराश कर यह वाच टावर, छोटा सा किला जबलपुर में पहाड़ी के उपर बनाया गया है. इसके आस पास अप्रतिम नैसर्गिक सौंदर्य बिखरा पड़ा है. रानी दुर्गावती सोलहवीं शताब्दि की वीरांगना थीं, उनके समय तक गौंड़ सेना पैदल व उसके सेनापति हाथियो पर होते थे, जबकि मुगल सेना घोड़ो पर सवार सैनिको की सेना थी. हाथी धीमी गति से चलते थे और घोड़े तेजी से भागते थे, इसलिये जो मुगल सैनिक घोड़ो पर रहते थे वे तेज गति से पीछा भी कर सकते थे और जब खुद की जान बचाने की जरूरत होती तो वो तेजी से भाग भी जाते.किंतु पैदल गौंडी सेना धीमी गति से चलती और जल्दी भाग भी नही पाती थी.
विशाल, सुसंगठित, साधन सम्पन्न मुगल सेना जो घोड़ो पर थी उनसे जीतना संख्या में कम, गजारोही गौंड सेना के लिये कठिन था, फिर भी जिस तरह रानी दुर्गावती ने अकबर की दुश्मन से वीरता पूर्वक लोहा लिया, वह नारी सशक्तीकरण का अप्रतिम उदाहरण है. तीन बार तो रानी ने मुगल सेना को मात दे दी थी, पर फिर फिर से और बड़ी सेना लेकर आसफ खां चढ़ाई कर देता था.
९३ वर्षीय सुप्रसिद्ध कवि गीतकार एवं लेखक प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध की एक रचना है ‘‘गौडवाने की रानी दुर्गावती” जिसमें उन्होनें दुर्गावती का समग्र चित्रण किया है. प्रस्तुत है वह रचना
उपजाये हैं वीर अनेको विध्ंयाचल की माटी ने
दिये कई है रत्न देश को मां रेवा की घाटी ने
उनमें से ही एक अनोखी गढ मंडला की रानी थी
गुणी साहसी शासक योद्धा धर्मनिष्ठ कल्याणी थी
युद्ध भूमि में मर्दानी थी पर ममतामयी माता थी
प्रजा वत्सला गौड राज्य की सक्षम भाग्य विधाता थी
दूर दूर तक मुगल राज्य भारत मे बढता जाता था
हरेक दिशा मे चमकदार सूरज सा चढता जाता था
साम्राज्य विस्तार मार्ग में जो भी राह मे अड़ता था
बादशाह अकबर की आंखो में वह बहुत खटकता था
एक बार रानी को उसने स्वर्ण करेला भिजवाया
राज सभा को पर उसका कडवा निहितार्थ नहीं भाया
बदले में रानी ने सोने का एक पिंजन बनवाया
और कूट संकेत रूप मे उसे आगरा पहुंचाया
दोनों ने समझी दोनों की अटपट सांकेतिक भाषा
बढा क्रोध अकबर का रानी से न रही वांछित आशा
एक तो था मेवाड प्रतापी अरावली सा अडिग महान
और दूसरा उठा गोंडवाना बन विंध्या की पहचान
घने वनों पर्वत नदियों से गौड राज्य था हरा भरा
लोग सुखी थे धन वैभव था थी समुचित सम्पन्न धरा
आती हैं जीवन मे विपदायें प्रायः बिना कहे
राजा दलपत शाह अचानक बीमारी से नहीं रहे
पुत्र वीर नारायण बच्चा था जिसका था तब तिलक हुआ
विधवा रानी पर खुद इससे रक्षा का आ पडा जुआ
रानी की शासन क्षमताओ, सूझ बूझ से जलकर के
अकबर ने आसफ खां को तब सेना दे भेजा लडने
बडी मुगल सेना को भी रानी ने बढकर ललकारा
आसफ खां सा सेनानी भी तीन बार उससे हारा
तीन बार का हारा आसफ रानी से लेने बदला
नई फौज ले बढते बढते जबलपुर तक आ धमका
तब रानी ले अपनी सेना हो हाथी पर स्वतः सवार
युद्ध क्षेत्र में रण चंडी सी उतरी ले कर मे तलवार
युद्ध हुआ चमकी तलवारे सेनाओ ने किये प्रहार
लगे भागने मुगल सिपाही खा गौडी सेना की मार
तभी अचानक पासा पलटा छोटी सी घटना के साथ
काली घटा गौडवानें पर छाई की जो हुई बरसात
भूमि बडी उबड खाबड थी और महिना था आषाढ
बादल छाये अति वर्षा हुई नर्रई नाले मे थी बाढ
छोटी सी सेना रानी की वर्षा के थे प्रबल प्रहार
तेज धार मे हाथी आगे बढ न सका नाले के पार
तभी फंसी रानी को आकर लगा आंख मे तीखा बाण
सारी सेना हतप्रभ हो गई विजय आश सब हो गई म्लान
सेना का नेतृत्व संभालें संकट मे भी अपने हाथ
ल्रडने को आई थी रानी लेकर सहज आत्म विश्वास
फिर भी निधडक रहीं बंधाती सभी सैनिको को वह आस
बाण निकाला स्वतः हाथ से यद्यपि हार का था आभास
क्षण मे सारे दृश्य बदल गये बढे जोश और हाहाकार
दुश्मन के दस्ते बढ आये हुई सेना मे चीख पुकार
घिर गई रानी जब अंजानी रहा ना स्थिति पर अधिकार
तब सम्मान सुरक्षित रखने किया कटार हृदय के पार
स्वाभिमान सम्मान ज्ञान है मां रेवा के पानी मे
जिसकी आभा साफ झलकती गढ़ मंडला की रानी में
महोबे की बिटिया थी रानी गढ मंडला मे ब्याही थी
सारे गौंडवाने मे जन जन से जो गई सराही थी
असमय विधवा हुई थी रानी मां बन भरी जवानी में
दुख की कई गाथाये भरी है उसकी एक कहानी में
जीकर दुख मे अपना जीवन था जनहित जिसका अभियान
24 जून 1564 को इस जग से था किया प्रयाण
है समाधी अब भी रानी की नर्रई नाला के उस पार
गौर नदी के पार जहां हुई गौडो की मुगलों से हार
कभी जीत भी यश नहीं देती कभी जीत बन जाती हार
बडी जटिल है जीवन की गति समय जिसे दे जो उपहार
कभी दगा देती यह दुनियां कभी दगा देता आकाश
अगर न बरसा होता पानी तो कुछ और हुआ होता इतिहास
इस गीत को जबलपुर के श्री सोहन सलिल व सुश्री दिव्या सेठ ने स्वर तथा संगीत , व तकनीकी सहयोग देकर श्री प्रशांत सेठ ने बड़ी मेहनत से मधुर संगीत के साथ तैयार किया है. यह गीत यू ट्यूब पर निम्न लिंक पर सुलभ है.
यूट्यूब वीडियो लिंक >>>>
(दुर्गावती शौर्य गाथा): गोंडवाना की रानी के साहस और बलिदान की कहानी
रानी दुर्गावती पर अनेक पुस्तके लिखी गई है, कुछ प्रमुख इस तरह है-
- राम भरोस अग्रवाल की गढा मंडला के गोंड राजा
- नगर निगम जबलपुर का प्रकाशन रानी दुर्गावती
- डा. सुरेश मिश्रा की कृति रानी दुर्गावती
- डा. सुरेश मिश्र की ही पुस्तक गढा के गौड राज्य का उत्थान और पतन
- बदरी नाथ भट्ट का नाटक दुर्गावती
- बाबूलाल चौकसे का नाटक महारानी दुर्गावती
- वृन्दावन लाल शर्मा का उपन्यास रानी दुर्गावती
- गणेश दत्त पाठक की किताब गढा मंडला का पुरातन इतिहास
इनके अतिरिक्त अंग्रेजी मे सी.यू.विल्स, जी.वी. भावे, डब्लू स्लीमैन आदि अनेक लेखको ने रानी दुर्गावती की महिमा अपनी कलम से वर्णित की है।
वीरांगना की स्मृति को अक्षुण्य बनाये रखने हेतु भारत सरकार ने 1988 मे एक साठ पैसे का डाक टिकट भी जारी किया है।
रानी दुर्गावती ने 400 साल पहले ही जल संरक्षण के महत्व को समझा था, अपने शासनकाल मे जबलपुर मे उन्होने अनेक जलाशयो का निर्माण करवाया, कुछ ऐसी तकनीक अपनाई गई कि पानी के प्राकृतिक बहाव का उपयोग करते हुये एक से दूसरे जलाशय में बिना किसी पम्प के जल भराव होता रहता था. रानी ने अपने प्रिय दीवान आधार सिंग, कायस्थ के नाम पर अधारताल, अपनी प्रिय सखी के नाम पर चेरीताल और अपने हाथी सरमन के नाम पर हाथीताल बनवाये थे। ये तालाब आज भी विद्यमान है। प्रगति की अंधी दौड मे यह जरूर हुआ है कि अनेक तालाब पूरकर वहां भव्य अट्टालिकाये बनाई जा रही है।
रानी दुर्गावती के समय की और भी कुछ चीजे, सिक्के, मूर्तियां आदि रानी के नाम पर ही स्थापित रानी दुर्गावती संग्रहालय जबलपुर में संग्रहित हैं.
रानी दुर्गावती ने सर्वप्रथम मालवा के राज बाज बहादुर से लडाई लडी थी, जिसमें बाज बहादुर का काका फतेहसिंग मारा गया था। फिर कटंगी की घाटी मे दूसरी बार बाज बहादुर की सारी फौज का ही सफाया कर दिया गया। बाद मे रानी रूपमती को संरक्षण देने के कारण अकबर से युद्ध हुआ, जिसमें तीन बार दुर्गावती विजयी हुई पर आसफ खां के नेतृत्व मे चौथी बार मुगल सेना को जीत मिली और रानी ने आत्म रक्षा तथा नारीत्व की रक्षा मे स्वयं अपनी जान ले ली थी.
नारी सम्मान को दुर्गावती के राज्य मे सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती थी। नारी अपमान पर तात्कालिक दण्ड का प्रावधान था। न्याय व्यवस्था मौखिक एवं तुरंत फैसला दिये जाने वाली थी. रानी दुर्गावती एक जन नायिका के रूप मे आज भी गांव चौपाल में लोकगीतो के माध्यम से याद की जाती हैं.
गायक मडंली-
तरी नाना मोर नाना रे नाना
रानी महारानी जो आय
माता दुर्गा जी आय
रन मां जूझे धरे तरवार, रानी दुर्गा कहाय
राजा दलतप के रानी हो, रन चंडी कहाय
उगर डकर मां डोले हो, गढ मडंला बचाय
हाथन मां सोहे तरवार, भाला चमकत जाय
सरपट सरपट घोडे भागे, दुर्गे भई असवार
तरी नाना………..
ये लोकगीत मंडला, नरसिंहपुर, जबलपुर, दमोह, छिंदवाडा, बिलासपुर, आदि अंचलो मे लोक शैली मे गाये जाते है इन्हें सैला गीत कहते है।
रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को कालींजर मे हुआ था. उनके पिता कीरत सिंह चन्देल वंशीय क्षत्रिय शासक थे। इनकी मां का नाम कमलावती था। सन् 1540 में गढ मंडला के राजकुमार दलपतिशाह ने विवाह कर दुर्गावती का वरण किया था। अर्थात आज जो अंतर्जातीय विवाह स्त्री स्वात्रंत्य व नारी अस्मिता व आत्म निर्णय के प्रतीक रूप में समाज स्वीकार कर रहा है, उसका उदाहरण रानी ने सोलहवीं शताब्दी में ही प्रस्तुत किया था. 1548 मे महाराज दलपतिशाह के निधन से रानी ने दुखद वैधव्य झेला। तब उनका पुत्र वीरनारायण केवल 3 वर्ष का था। उसे राजगद्दी पर बैठाकर रानी ने उसकी ओर से कई वर्षो तक कुशल राज्य संचालन किया।
आइने अकबरी मे अबुल फजल ने लिखा है कि रानी दुर्गावती के शासन काल मे प्रजा इतनी संपन्न थी कि लगान का भुगतान प्रजा स्वर्ण मुद्राओ और हाथियो के रूप मे करती थी।
शायद यही संपन्नता, मुगल राजाओ को गौड राज्य पर आक्रमण का कारण बनी।
शायद रानी ने राज्य की आय का दुरुपयोग व्यक्तिगत एशो आराम, बड़े बड़े किले महल आदि बनवाने की जगह आम जनता के सीधे हित से जुड़े कार्यो में अधिक किया, यही कारण है कि जहां मुगल शासको द्वारा निर्मित बड़े बड़े महल आदि आज भी विद्यमान हैं, वहीं रानी के ऐसे बड़े स्मारक अब नही हैं.
लेकिन, महत्वपूर्ण बात यह है कि अकबर ने विधवा रानी पर हमला कर, सब कुछ पाकर भी कलंक ही पाया, जबकि रानी ने अपनी वीरता से सब कुछ खोकर भी इतिहास मे अमर कीर्ति अर्जित की।
© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर
ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
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